रविवार, 15 जून 2025

गंगा की सीढ़ीयॉं.......(कविता) 14जून 2025

गंगा की सीढ़ीयॉं......

ये गंगा की सीढ़ीयॉं
शहर से बस नदी की ओर
नही ले आती हैं
वे ले आती है
कोलाहल से शांति कीओर
भौतिकता से आध्यात्म की ओर
स्व से शिव को ओर
सांसरिकता से बैराग्य की ओर
इन्ही सीढ़ीयों पर
शिव ने शंकर को बताया था
द्वैत अद्वैत से परे ब्रहम को,
तुलसी ने लिखा था रामायण
रामानंद ने दिया था कबीर को
रामनाम का गुरूमंत्र
इन्ही सीढीयों पर
बुलाया था जगन्नाथ ने
अपनी लवंगी के लिये
माँ गंगा को
और गंगा चढ़ती आयी थी
इन्ही सीढ़ीयों पर
अपन पुत्र रत्नाकर के
निश्छल प्रेम का साक्ष्य देने
इन्ही सीढीयों पर
रैदास ने किया था आवाहन
अपनी कठौती में मां गंगा का
नजीर ने देखा था
इन्ही सीढ़ीयों पर
सुबह ए बनारस को
गंगा में नहाते हुये
ख्वाहिश कर जीने मरने की
गंगा में बजू कर कर के
इन सीढ़ीयों पर
हरिश्चन्द्र ने नहीं छोड़ा सत्य को
छोड़ दिया सारे संबंधों को
राजपाट, पत्नी पुत्र सर्वस्व काे
क्योंकि ये केवल सीढ़ीयां नहीं
बॉहे है मॉ गंगा की गोंद की
वह मॉं है हमारी प्रकृति मॉं
स्रोत है सत्य,श्रद्धा,निर्मल
पवित्र मोक्ष और कल्याण की
ये सीढीयॉ उतारती है
हमारे अंतर का अहंकार
मिटाती है तम और क्लेश,
हिमालय की उंचाई से
चल कर सागर मे समाते हुये,
बताती है सच्चाई
स्वयं को समाहित कर
अथाह सागर में विलीन होने की
तभी वह श्रद्धा पात्र होती है
हम सबके लिये
तभी केशव को भरोसा है
एकमात्र अपने मॉं गंगा पर
हे भागीरथी
हम दोष भरे,
पर भरोसे यही है कि भरोस तुम्हारे
नाम लिए कितने तर जात,
प्रणाम किए सुरलोक सिधारे।

-व्योमेश चित्रवंश
काशी, 14जून2025 रविवार

मंगलवार, 10 जून 2025

काशीवासी.....

 काशीवासी ?.....

स्वयं में लीन
काशी के स्वभाव में रमा
शिव और शक्ति को
मन मे जपते
चलता है
शहर से गंगा की ओर
भौतिकता से वैराग्य की दिशा में
स्वयं से स्व की ओर
गंगाघाट की सीढ़ीयों से उतरते
सधे कदमों से रस्ते नापता
अंतर में शिव व गंगा को लिये
हर हर महादेव शंभों
काशी विश्वनाथ गंगे,
मन बुद्धि अहकार से परे
भूत को भूल, भविष्य से मुक्त
मात्र वर्तमान को जीता
अपना सर्वस्व दुःख चिन्ता, भार
शिव को समर्पित कर
स्वयं शिवमय होता हुआ
शिव के शरण में
वह काशीवासी,
फक्कड मस्त अड़भंगीग
कुछ अधिक पाने के चाह से दूर
कुछ खोने का डर से मुक्त
मृत्यु से भय नही
जीवन में कुछ चाह नही
वह स्वयं मे शंकर बन
सब कुछ छोड़ कर
अपने महादेव पर,
भोले बाबा से भी अधिक
विश्वास है उसे अपनी मां अन्नपूर्णा पर
तभी तो अलख जगाता है
वो विश्व के नाथ विश्वेश्वर के दरवार में,
बाबा बाबा सब कहे माई कहे न कोय
बाबा के दरबार में माई करें सो होय,
वह जानता है कि
मां बिना पिता की पूर्णता नही
प्रकृति बिना पुरुष सिद्ध नही
जीव बिना आत्मा संपूर्ण नही
इसी लिये वह सहज है सरल है
पर जटिल और अबूझ
अपने आराध्य महादेव के समान
वही तो काशीवासी है।

-व्योमेश,
10जून2025, मंगलवार

बुधवार, 4 जून 2025

व्योमवार्ता/ गंगा दशहरा

गंगा दशहरा

गंगा दशहरा हिन्दू‌ओं का एक प्रमुख त्यौहार है जो प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन मां गंगा नदी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। यह हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो गंगा नदी ही पूजा के लिये समर्पित है। इस शुभ अवसर पर हम भारतवासी गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति करते हुये उन्हें सम्मान और आदर देते है। मां गंगा के भक्त नदी के किनारे एकत्र होते हैं। गंगा नदी में स्नान करते हैं और पूर्ण पवित्रता एवं रीति रिवाज से उनका पूजन कर आशीर्वाद की कामना करते है। माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यह त्यौहार गंगा को संराक्षत और सुरक्षित रखने के महत्व को भी दर्शाता है जो हिन्दू धर्म में अध्यात्मिक व सांस्कृतिक महत्व रखती है। सृष्टि के निर्माता ब्र‌ह्मा जी के कमंडल से राजा भगीरथ द्वारा देवी गंगा को धरती पर अवतरण दिवस को गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक क‌थाओं के अनुसार पृथ्वी पर अवतार से पहले गंगा नदी स्वर्ग का हिस्सा थी। एक बार महाराज सगर ने अपने राजधानी अयोध्या में अश्वमेध यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने ईष्यावश यज्ञ के प्रतीक अश्व का अपहरण कर लिया और उसे ले जा कर समुंदर के किनारे महर्षि कपिल के आश्रम में बांध दिया। अश्व का गायब होना यज्ञ में विघ्न के समान था। इसे यद्य में विघ्न के साथ हो अपशकुन और आने वाले अनिष्ट के रूप में मानते हुये राजा सगर की समस्त प्रजा राजकुमार अंशुमान के नेतृत्व में हर कहीं यज्ञ के अश्व को दूढ़‌ने लगी। महर्षि कपिल के आश्रम पहुँचने पर लोगों ने देखा कि वहीं एक कोने में यज्ञ का अश्व बंधा हुआ है और आश्रम के यज्ञशाला में महर्षि कपिल अपने साधना में समाधिस्थ थे। अश्व को देखते ही दूढ़ रही प्रजा एवं सैनिक महर्षि कपिल को ही अश्व चुराने का आरोपी मानते हुये उन्हें चोर चोर चिल्लाने लगी जिससे महर्षि कपिल की समाधि दूर गई एवं उन्होने बिना सोचे समझे स्वयं पर आरोप लगाने वालों को अपने क्रोधाग्नि व श्राप से भस्म कर दिया। जब इस बात की जानकारी महाराजा सगर को हुई तो उन्होंने महर्षि कपिल से क्षमा मांगते हुये अपने भस्म हो चुके प्रजा एवं सैनिकों के मुक्ति का मार्ग पूछा। महर्षि कपिल ने उन्हें बताया कि यदि स्वर्ग से गंगा नदी धरती पर आ कर इस स्थान से प्रवाहित हो तो भस्म चिता बन चुके प्रजा और सैनिकों को मुक्ति मिल सकेगी। राजा सगर फिर उनके पुत्र राजा दिलीप ने गंगा को धरती पर बुलाने के लिये अथक तपस्था किया पर उन्हें सफलता नहीं मिली। दिलीप के पश्चात उनके पुत्र भगीरथ ने अपनी घोर तपस्या से ब्रहमा को प्रसन्न किया एवं उनसे वरदान के रूप में गंगा को पृथ्वी पर उतारने की मांग किया। ब्रह्मा जी ने भगीरथ को वरदान में गंगा को धरती पर भेजने का वरदान देते हुये कहा कि गंगा के वेग को धरती पर संभालने की क्षमता केवल शंकर भगवान के पास है। यदि वे तैयार हो तो गंगा धरती पर उतर सकती है। इसके पश्चात भगीरथ ने शंकर भगवान से तप कर के गंगा के वेग को धारण करने को कहा। जिसके परिणाम स्वरुप गंगा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन धरती पर अवतरित हुई। शिव जी जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की वादियों में कल कल निनाद करते हुवे मैदान को अपने जल से सिंचित करते हुये महर्षि कपिल के आश्रम में राजा सगर के सैनिकों एवं प्रजाओं को मुक्ति दिलाते हुये सागर में समाहित हो गई।
इस प्रकार महाराज भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण कर बड़े भाग्यशाली हुये। उन्होने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों युगों तक बहने वाली गंगा की अविरल धारा महाराज भगीरथ के कठोर तप एवं साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणिमात्र को जीवन-दान ही नहीं देती. मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में गंगा की महिमा गाई जाती है।
गंगा दशहरा के दिन गंगा जी में स्नान किया जाता है यदि कोई श्रद्धालु गंगातट तक नही पहुंच पाता तब वह अपने घर के पास ही किसी नदी या तालाब में श्रद्धापूर्वक गंगा मां का ध्यान करते हुये स्नान करते हैं। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी हस्त नक्षत्र में होने के कारण यह तिथि: फोर पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है। कहते हैं कि हस्त नक्षत्र में बुधवार के दिन गंगावतरण हुआ था। इसलिये यह तिथि अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। लाखो करोणों श्रद्धालु दूर दूर से आ कर गंगा की पवित्र धारा में स्नान करते है। हरिद्वार, प्रयाग, काशी पटना गंगासागर के साथ ही अन्य शहरों में गंगा तट पर गंगा दशहरा के मेले लगते है जहां लोग दान में कोई भी वस्तु दस की संख्या में दान देते हैं। गरीबो को भोजन कराने और उन्हें आम दान करने की परंपरा अभी भी बहुत से गंगातटीय क्षेत्रों में मनायी जाती है।
काशी में गंगा दशहरा के दिन दशाश्वमेध घाट में दस बार डुबकी मार के स्नान करके शंकर भगवान को दस की संख्या में गंध, पुष्प, दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन कर के रात्रि को जागरण करने से अनन्न फल प्राप्त होता है। इस दिन गंगा पूजन का भी विशिष्ठ महत्व है। इस दिन विधि विधान से गंगा जी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ, दस सेर गेंहू और दस आम दस ब्राह‌मणों को दान देने व दशहरा स्त्रोत्र का पाठ किया जाता है।
गंगा दशहरा धार्मिक पर्व होने के साथ साथ ह‌मारे भारतीय संस्कृति का भी प्रतीक है। गंगा दशहरा के माध्यम से हम अपने प्रकृति प्रदत्त उपहारों जल स्रोत गंगा नदी को मां मानते हुये उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते है एवं अपनी संस्कृति की महत्वपूर्ण अंग गंगा नदी के पुण्यता पवित्रता एवं स्वच्छता के प्रति संकल्पित होते है क्योंकि गंगा हमारे लिये मात्र एक नदी ही नही हमारीजीवनदायिनी मां है तभी तो हम गंगा को विश्वरूप मान कर प्रार्थना करते हैं-
ॐ नमो गंगाये, विश्वरुपिणे नारायण्यै नमो नमः।
(गंगा दशहरा ५जून २०२५ के अवसर पर आकाशवाणी वाराणसी पर प्रसारित वार्ता का अंश)
-व्योमेश चित्रवंश,एडवोकेट
हमारी वरूणा अभियान के संयोजक

शुक्रवार, 30 मई 2025

व्योमवार्ता/ मेरे शहर में नवतपा.......


मेरे शहर में नवतपा........
                            -डॉ०व्योमेश चित्रवंश, एडवोकेट

                मेरा शहर इस समय गरमी के नवतपा के ताप से लरज रहा है। सूरज से बरसते अंगारे और धरती से निकलती तपिश के साथ पारे ने ऊपर और ऊपर चढ़ने की होड़ लगा रखी है वहीं न बर्दास्त होने वाली ऊमस गरमी से बचने की ठांव खोज रही है। कितना अजीब है नदियों के नाम पर बसा गंगा के खूबसूरत घाटों वाला यह शहर आज खुद में हैरान व परेशान है। परेशान भी क्यों न हो? शहर को नाम देने वाली नदियाँ या तो विलुप्त हो चुकी या विलुप्त होने के कगार पर है और गंगा के घाट? आह! जब कल गंगा ही नहीं रहेगी तो ये घाट क्या करेगें? मुझे याद नहीं कहाँ लेकिन कहीं सुना था कि एक बार माँ पार्वती ने भगवान शंकर से पूछा था कि बनारस की उम्र क्या और कितनी होगी तो अवधूत भगवान शंकर ने कहा था कि "यह आदि काल से भी पहले अनादि काल से बसी है यानि मानव सभ्यता के आदिम इतिहास काशी से जुड़ते है और जब तक सुरसर गामिनी भगीरथ नन्दिनी गंगा बनारस के घाट पर रहेगी तब तक काशी अक्षुण्ण रहेगी।" तो क्या गंगा के घाटों को छोड़ने के साथ ही मेरा शहर ? और कहीं अन्दर तक मन को हिला देती है यह भयानक कल्पना। याद आता है, चना चबेना गंगा जल ज्यों पुरवै करतार, काशी कबहुँ न छोड़िये विश्वनाथ दरबार। अब तो न गंगा में गंगा जल रह गया, न ही सबके लिये मुअस्सर 'विश्वनाथ दरबार'। अब तो दोनों ही सरकारी निगहबानी में दिल्ली और लखनऊ के इशारों पर मिलते हैं। माँ गंगा और भगवान विश्वनाथ के सरकारीकरण से अपने शहर की स्थिति उतनी नहीं खराब हुई जितनी हम बनारसियों के नव भौतिकवादी सोच और 'तोर से बढ़कर मोर' वाली अपसंस्कृति ने अपने शहर का नुकसान किया। शहर बढ़ता गया और हमारी सोच का दायरा सिकुड़ता गया। कभी लंगड़े आम व बरगद और वरूण के पेड़ों और लकड़ी के खिलौने के लिए मशहूर बनारस में पेड़ों की छाँव अब गिने चुने उदाहरण बनकर रह गयी। मेरे घर की नींव पड़ोस के घर से नीची न रहे क्योंकि ऊँचे नाक का सवाल है। इस 'नाक' के सवाल ने बरसाती पानी के रास्तों को सीवर जाम, नाली जाम के भुलभुलैया में उलझा दिया तो पड़ोसी के दो हाथ के बदले हमारी चार हाथ ऊँची सड़क की जमीन की सोच ने इस शहर को एक नई समस्या अतिक्रमण के नाम से दी। नदी तालाब पोखरों का तो पता ही नहीं, कुयें क्या हम इन आलीशान मकानों के बेसमेन्ट में मोमबत्ती जलाकर ढूढ़ेगें? ऊपर से तुर्रा यह कि तालाब, पौखरों, नदियों के सेहत का ख्याल रखने वाला वाराणसी विकास (उचित लगे तो विनाश भी पढ़ सकते है) प्राधिकरण खुद ही मानसिक रूप से बीमार होने की दशा में है। कितने तालाब, पोखरे पाट डाले गये यह कार्य उसके लिए "आरुषि हत्या काण्ड की तरह किसी मर्डर मिस्ट्री, फाइनल रिपोर्ट, क्लोजर रिपोर्ट, रिइनवेस्टिगेशन से कम नहीं है और तो और दो तीन को तो वी०डी०ए० ने खुद ही पाट कर अपने फ्लैट खड़े कर दिये। शहर के जमींन मकान और योजनाओं का लेखा-जोखा रखने वाले तहसील, नगर निगम और वी०डी०ए० के पास अपना कोई प्रामाणिक आधार ही नहीं है जिस पर वे अतिक्रमणकारियों के खिलाफ ताल ठोंक सके। कम से कम वरूणा नदी और पोखरों के बारे में तो मेरा व्यक्तिगत अनुभव यही सिद्ध करता है। 
          हमारे सासंद मोदी जी ने प्रधानमंत्री के रूप मे इस शहर के विकास के लिये धन का पिटारा खोल दिया तो बनारस के भूगोल इतिहास और संस्कृति से पूरी तरह अनजान हुक्मरानों ने जिन विकास योजनाओं को बनारस की धरती पर उतारा वह यहां के परिस्थितियों के बिलकुल प्रतिकूल थी। सड़कें चौड़ी होने के बावजूद सहज सरल व अतिक्रमणमुक्त नही हो सकी। यातायात प्रबंधन बेहतर करने के प्रयोग ने बनारस को क्योटो सिटी जैसे बनाने के बजाय टोटो सिटी बना दिया। गोदौलिया चौक मैदागिन गोलघर से ले कर पूरा पक्का महाल जो इस शहर की पहचान पान, ठीहा, अड़भंगीपन, बनारसियत, मंदिर ,नेमी, नाश्ता और व्यापार के लिये ही जाना जाता था वहां अब केवल भीड़ का रेला दिखता है। हर साल पौधारोपड़ कर शहर को हराभरा बनाने के बड़े बड़े दावे तो किये गये पर सच यह है कि आज शहर मे पेड़ों की छांव कहां मिल सकती है इस पर भी काफी मगजमारी करनी पड़ेगी। हम पिछले दो वर्षों से शहर को नाम देने वाली वरूणा नदी के किनारे घने जंगल के अस्तित्व में रहे वरूण वृक्ष की तलाश कर रहे हैं। बहुत सारे पुराण कथाओं मे वरूणा का नामकरण इन्ही वरूण वृक्ष के कारण बताया गया है पर हमारी तलाश अभी मुकम्मल नही हुई है। कल सोशल मीडिया पर इसी चर्चा मे एक आयुर्वेद के ज्ञाता हमं वरूण वृक्ष के लाभ और सेहत के लिये उसके उपयोग के बारे मे बताने लगे पर सेहत मे वरूण के लाभ की चर्चा तो तब होगी जब वरूण मिल पायेगा। कुल मिला जुला कर बनारस का आम शहरी धीरे धीरे निराश हो रहा है। यहां की बनारसियत, अक्खड़मिजाजी, मस्तमौलापन, मिजाज अब कम हो रहा है जो बनारस की पहचान रही है। शहर खुद को कहीं न कहीं अंदर से नासाज़ महसूस कर रहा है लब्बोलुआब यह है कि शहर की सेहत ठीक नहीं है। 
इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक अगर कहीं मानसून आ गया तो आम शहरी की चिन्ता यही है कि गर्मी की तपिश तो कम हो जायेगी लेकिन जलनिकासी के व्यवस्था बिना नाले बने सड़कों से घर कैसे पहुँचेगें? इसी से तो बरसात चाहते हुए मन में एक दबी सी चाहत है कि दो चार दिन और मानसून टल जाये तो शायद...।
अपनी ही नही सारे शहर की बात कहें तो एक शेर याद आता है-
सीने में जलन, आँखों में तूफान सा क्यूँ है। 
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है।
(लेखक विधि व्यवसायी एवं हमारी वरूणा अभियान के संयोजक है)
काशी, 30मई2025, शुक्रवार
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बुधवार, 28 मई 2025

बनारस इस पार और उस पार......(कविता)

बनारस इस पार और उस पार...

 देखता हूँ
तरना रेलवे ओवर बृज के
नीचे उतरने वाले फ्लाईओवर से
बदलते बनारस को
मेट्रो सिटी के लुक में
फिल्मों के रीलों में चलती जैसे
ओवरबृज के पार
दिखती बहुमंजिली इमारतें
उन पर चमकतें ग्लोसाईन बोर्ड
नहीं पता चलता
हम इ‌मारत की तरफ है
या उसके दूसरी ओर
पुल के ऊपर आ कर
संशय दूर होता है
कि हम इमारत के ओर हैं
यानि इसी पार
पर पीछे देखने पर
हम फिर उस पार हो जाते है
एक भ्रम और संशय को जीते
बनारस के मर्म और अध्यात्म के जैसे
जीवन के इस पार
भौतिकता, सांसारिकता, स्वार्थ और अहम
और उस पार
आत्मा के चरम पर, शरीर से परे
सिर्फ आत्मा अघोर शून्य और शिव
वह ऊँचा ओवरबृज
दूर कर देता है मन व जीवन के संशय को
बनारस को महसूस करने जैसे
वैसे भी इस शहर को समझने के लिये
बनना पड़‌ता है कबीर
चढ़ना होता है मन की ऊंचाइ‌यों पर
तब हम देख पाते है
बनारस को मन की आखों से
जान पाते है बनारस को
जीवन के इस पार
और उस पार के सच को
जो बनारस दिखाता है
रेलवे ओवरबृज की ऊंचाइयों जैसे
इस पार और उस पार का बनारस
प्रकृति और पुरुष के मध्य का बनारस...

- व्योमेश चित्रवंश
28मई2025 बुधवार

रविवार, 25 मई 2025

व्योमवार्ता/ मित्रता (कविता)

मित्रता.......

मात्र एक शब्द नही,
एक अहसास है,
जिसे बस महसूस किया जा सकता है,
ठीक वैसे हो जैसे सांसों में गर्मी को,
बर्फ में पानी को,
गुड़ में मिठास को,
हम अंतर तक अनुभूति करके भी
शब्द नही दे सकते जैसे,
आपस की बद‌मासियाँ, नादानिया
फिर नाराज होने पर भी एक हो जाना,
यही तो है,
जो पद सम्मान, धन, मान से परे है,
जहां हम दिल से जुड़ते हैं,
समुन्दर की लहरों की तरह,
एक दूसरे को धकियाते,
हटाते जगह बनाते,
इस पार से उस पार जाते पर,
एक दूसरे से कभी अलग नही हो पाते
पानी के अनगिनत बनते बिगड़ते धाराओं में, क्योंकि हम सब भी जल धाराये हैं
मित्रता के संमुदर में,

-व्योमेश
काशी,09.05-2025

शनिवार, 29 मार्च 2025

व्योमवार्ता/ नये साल की पहली सुबह...../व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 1जनवरी 2023

नये साल की पहली सुबह/व्योमेश चित्रवंश की डायरी..

नये साल की पहली सुबह
ढेर सारे कुंहासे और धुंध से भरी
नही दिख रहे कोहरे से
सड़क पर चहलकदमी करते लोग
वे बच्चे भी नही
नये साल पर खुशियाँ मनाने वाले
आटो वाला टोपी पर मफलर बांधे
मुंह से धूंआ फेकते
कर रहा है सवारियों का इंतजार
धुले धुलाये आटो पर तिरंगा झण्डा संग
गैस वाला गुब्बारा लगाये
चूने से लिख कर 
हैप्पी न्यू ईयर 2023
चौराहे के एक कोने पर 
उजाड़ होते चितवन के नीचे 
जल रहे लकड़ी के बोटे के पास
खड़े बीट के सिपाहियों के संग
सिमटे सुकड़े बैठे है
काले भूरे कलुआ औ भूरा
उन्हे इंतजार है नुक्कड़ की दुकान पर
जलेबी कचौड़ी छनने और 
उसके फेंके हुये दोनो का
अखबार का बंडल बांधे 
निकल चुके है हाकर
मंदिर की सेवा करने वाले पंडितजी भी.
दोनो को जल्दी है खबरे पहुंचाने की
नेकी की दीवार के पास 
सोया पड़ा है मन्तोषवा
फिर कहीं से दारू पी कर
सब कुछ वैसे ही है
जैसे कल था
न कोरोना का खौफ
न कोई हड़बड़ी
घरों मे रजाई मे दुबके 
रविवार मना रहे लोगों को 
अब नही इंतजार है किसी 
बिग ब्रेकिंग का
सब कुछ सामान्य सा
हर कोई आराम से
चल रहा है
साल बदल रहा है
हम नही......
- #व्योमेश_चित्रवंश
(काशी,1जनवरी 2022, पौष शुक्ल दशमी सं०2079वि०)
#व्योमवार्ता




शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

जिनको नही पता है उनके लिये /भाई निरंजन सिंह के फेसबुक वाल से...

जिनको नहीं पता उनके लिए
जवाहरलाल नेहरू की अदूरदर्शी और मूर्खताओं की सज़ा, जो हम आज तक भुगत रहे हैं।
१. कोको आइसलैंड: 1950 में नेहरू ने भारत का 'कोको द्वीप समूह' (Google Map location 14.100000, 93.365000) बर्मा को गिफ्ट दे दिया। यह द्वीप समूह कोलकाता से 900 KM दूर समंदर में है। बाद में बर्मा ने यह द्वीप समूह चीन को दे दिया, जहाँ से आज चीन भारत पर नजर रखता है।
२. काबू वैली मणिपुर: नेहरू ने 13 जनवरी 1954 को भारत के मणिपुर प्रांत की काबू वैली मित्रता के तौर पर बर्मा को दी। काबू वैली का क्षेत्रफल लगभह 11,000 वर्ग किमी है और कहते हैं कि यह कश्मीर से भी अधिक खूबसरत है।
आज बर्मा ने काबू वैली का कुछ हिस्सा चीन को दे रखा है। चीन यहां से भी भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देता है।
३. भारत नेपाल विलय: 1952 में नेपाल के तत्कालीन राजा त्रिभुवन विक्रम शाह ने नेपाल के भारत में विलय का प्रस्ताव नेहरू के सामने रखा।
लेकिन नेहरू ने ये कहकर उनकी बात टाल दी कि इस विलय से दोनों देशों को फायदे की बजाय नुकसान ज्यादा होगा। यही नहीं, इससे नेपाल का पर्यटन भी खत्म हो जाएगा। 
जबकि असल वजह ये थी की नेपाल जम्मू कश्मीर की तरह विशेष अधिकार के तहत अपनी हिन्दू राष्ट्र की पहचान को बनाये रखना चहता था जो की नेहरू को मंजूर नही थी
४. सुरक्षा परिषद स्थायी सीट: नेहरू ने 1953 में अमेरिका की उस पेशकश को ठुकरा दिया था, जिसमें भारत को सुरक्षा परिषद (United Nations) में स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल होने को कहा गया था। नेहरू ने इसकी जगह चीन को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की सलाह दे डाली। चीन आज पाकिस्तान का हम दर्द बना हुआ है। वह पाक को बचाने के लिए भारत के कई प्रस्तावों को सुरक्षा परिषद में नामंजूर कर चुका है। 
हाल ही उसने आतंकी मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के भारतीत प्रस्ताव को कई बार वीटो किया है।
५. जवाहरलाल नेहरू और लेडी मांउटबेटन: लेडी माउंटबेटन की बेटी पामेला ने अपनी किताब में लिखा है कि नेहरू और लेडी माउन्टबेटन के बीच अंतरंग संबंध थे। लॉर्ड माउंटबेटन भी दोनों को अकेला छोड़ देते थे। लोग मानते हैं कि ऐसा कर लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से अनेक राजनैतिक निर्णय करवाए थे जिनमें कश्मीर में युद्ध विराम व सयुंक्त राष्ट्र के हस्ताक्षेप का निर्णय भी शामिल है।
६. पंचशील समझौता: नेहरू चीन से दोस्ती के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक थे। 1954 में उन्होंने चीन के साथ पंचशील समझौता किया और तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दे दी। 1962 में इसी चीन ने भारत पर हमला किया और चीन की सेना इसी तिब्बत से भारत की सीमा में दाखिल हुई।
८. 1962 भारत चीन युद्ध: चीनी सेना ने 1962 में भारत को हराया था। हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने ले. जनरल हेंडरसन और कमान्डेंट ब्रिगेडियर भगत के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी।
दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।
रिपोर्ट के अनुसार चीनी सेना जब अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम तक अंदर घुस आई थी, तब भी नेहरू ने हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगाते हुए भारतीय सेना को चीन के खिलाफ एक्शन लेने से रोके रखा। परिणाम स्वरूप हमारे कश्मीर का लगभग 14000 वर्ग किमी भाग पर चीन ने कब्जा कर लिया।
इसमें कैलाश पर्वत, मानसरोवर और अन्य तीर्थ स्थान आते हैं।
भारत का सही इतिहास जानना आपका हक़ है।
(6फरवरी2025)
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देश के ऊपर सरस्वती का अभिशाप लादने का भयंकर काण्ड / भाई निरंजन सिंह के फेसबुक वाल से......

2005 में वाजपेयी सरकार के जाते ही देश के ऊपर सरस्वती का अभिशाप लादने का भयंकर कांड हुआ था। मूल में जो कारण थे:-
1. अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने यह चिंता जताई थी कि भारतीय छात्र ज्ञान-विज्ञान क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं, इन्हें रोकना बहुत जरूरी है।
2. सोनिया गाँधी के राज में ईसाई मिशनरियों द्वारा मतांतरण का वातावरण बनाना।
3. छात्रों को भारतीय मूल्यों, स्वावलम्बन, परोपकार इत्यादि से विमुख करना, इसका साधन बनाया स्कूल में मध्याह्न भोजन। इससे छात्र भिखमंगे हो गए, अध्यापक भ्रष्ट हो गए। 
अभिभावकों के लिए मनरेगा जैसी मुफ्तखोरी की योजना लायी गयी।
इसके लिए सोनिया गाँधी की एक सलाहकार समिति बनाई गई जिसे कैबिनेट से भी अधिक पॉवर था, उसके सभी सदस्य नक्सली, राष्ट्र विरोधी, गैर हिन्दू और सनातन संस्कृति से अतिशय घृणा करने वाले थे। इन्हीं में से एक हर्षमंदर भी था।
शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह के इशारे पर हर्षमन्दर के नेतृत्व में एक कुख्यात वामपंथी मंडली ने NCERT के माध्यम से निम्न कार्य किये:-
1. सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का पुनर्लेखन किया गया (#पाठ्यक्रम_का_दूषण) जिसमें कक्षा 1 से अंग्रेजी की अनिवार्यता, गौरव प्रसंग वाले सभी लेख, तथ्य, पाठ, चित्र हटाकर हीनत्व संचार की सामग्रियाँ सम्मिलित की गई। सती, महिला अत्याचार, बालकों के यौन सुख का अधिकार, ब्राह्मणों द्वारा सभी सुविधाएं मुफ्त में लेना, हिन्दी साहित्य में उर्दू शायरों को स्थान, कला क्षेत्र में विदेशी और मुस्लिम विद्वानों की उपलब्धियाँ बढ़चढ़कर उभारी गई।
2. इंग्लिश मीडियम छोड़कर अन्य सभी पुस्तकें बहुत जटिल भाषा में लिखी गई, मानविकी विषय में इतने जटिल #तकनीकी_शब्द प्रतिस्थापित किये गए कि स्वयं शिक्षक भी उन्हें समझ नहीं पाएं। बड़े कम्पीटिशन एग्जाम में इनसे रिलेटेड ही प्रश्न पूछे गए जिससे छात्र इनमें डूब जाएं। उन दिनों यह जुमला स्थापित हुआ कि प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए NCERT का पाठ्यक्रम बहुत ही उपयोगी है।
3. विज्ञान और गणित में सरल से कठिन क्रम को फॉलो नहीं किया गया। अभ्यास और प्रश्नावलियाँ कम कर दिए गए। वैदिक गणित हटा दी गई। वे बातें शामिल की गई जिनका कोई उपयोग नहीं था और छात्रों पर अनावश्यक बोझ डाला गया। औसत, प्रतिशत, अनुपात, समय दूरी के पाठ बिल्कुल हटा दिए या सांकेतिक विलय किया गया। उद्देश्य यही था कि दसवीं करने के बावजूद छात्र व्यवहार में कुछ भी न सीखें।
पुस्तकों के नाम ऐसे रखे गए कि कोई इश्यू न बने जैसे इतिहास की पुस्तक का नाम "भारतीय इतिहास के कुछ अध्याय" इसमें चुन चुनकर बाते रखी गई या निकाली गई।
हिन्दी कक्षा 12 विषय में 20 पाठों में जो सामग्री है उसकी लिस्ट देखिये:-
2 मुस्लिम चित्रकारों की आत्मकथा/कथा
2 उर्दू कविताएं
2 अनुवाद लेख
2 अनुवाद कविताएं
1 अनुदित कहानी
शेष में हिन्दी के वे लेखक जो जेएनयू ब्रांड हैं।
4. उत्तीर्ण होना बहुत सरल कर दिया गया, लगभग मुफ्त में। ग्रेडिंग पद्धति और "छात्रों पर दबाव" के बहाने नाम लिखाओ, पास हो जाओ शैली का अनुसरण किया गया।
5. आरम्भ से ही ऐसे तत्व उभारे गये जिसमें यह साबित हो कि देश ईसाइयों का है, हिन्दू तो कोई है ही नहीं, सब महिला, दलित, आदिवासी या मुस्लिम हैं। 
इतिहास के महत्त्वपूर्ण पाठ हटाकर बहुत छिछली बाते हाइलाइट की गई। 
मोपला नरसंहार के गुंडों को स्वतंत्रता सेनानी बताया गया। 
हिन्दू लड़की मुस्लिम लड़के को पत्र लिख रही है। हिन्दू परिवार अपनी कन्याओं का शोषण कर रहे हैं। गरीब ने दारू पिया क्योंकि उसकी भी इज्जत है।
6. दलितवाद और फेमिनिज्म को उभारा गया। इसी का परिणाम था, मात्र 10 वर्ष बाद लगभग सभी दलित जातियाँ प्रचंड हिन्दू विरोधी हो गईं और ईसाईकरण के लिए मार्ग खुल गया। आज भी यही चल रहा है।
(7 फरवरी 2025)
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रविवार, 2 फ़रवरी 2025

हां, मैने कुंभ देखा है......

हां मैने कुंभ देखा है
गंगा यमुना के संगम पर 
जहां सरस्वती भी है ज्ञान, भक्ति, श्रद्धा के 
अदृश्य अंतर में, 
आपस में संगम कर मिलते हुये 
उस प्रयागराज में
हां मैंने कुंभ देखा है 

रवि को मकर राशि में
माघ के ठण्ड में प्रवेश करते हुये 
सभी ऋषि महर्षि मनीषी के संग
आमजन को कल्प वास करते हुये
आस्था के ज्वार भाटा को
उल्टे नदी तट पर विचरते हुये
हां मैंने कुंभ देखा है 

समस्त आनंद मंगल मूल वाली 
दु:ख हरणी सुखदायिनी गंगा को
अकालमृत्यु और यमदंड को त्रासती
समस्त प्रदूषण के गरल पीती 
यमुना को
अपनी गरिमा को गंभीरता देती
अदृश्य सरस्वती को 
त्रिवेणी तट पर,

हां मैने कुंभ देखा है
काशी से प्रयागराज के पथ पर 
चलते जन सैलाब के श्रद्धा में
अयोध्या-चित्रकूट के मध्य
प्रयाग राज के रज को माथे पर चढ़ाते
अंदावा से फाफामऊ तक 
नैनी से अरैल नागवासुकी तक 
रसूलाबाद से किला के द्वार तक
इहलोक में एक दुबकी लगा 
परलोक के शुभ की इच्छा लिये
श्रद्धा से नत 
जन जन के विश्वास में

हां मैंने कुम्भ देखा है 
महामंडलेश्वरो के आखाड़े में 
जगद्गुरूओं के धर्मपताकाओं में
घाटों पर खुले आसमां के नीचे 
ठंड शीत को जीतते श्रद्वालुओं में
खोया पाया केन्द्रों मे 
और कुंभ के माटी मे रमे लोगों मे

हां मैंने कुम्भ देखा है 
कुंभ स्नान की अनुभूति को
श्रद्धा की अपार चाह में 
स्नान के पूर्व पश्चात 
थकते पैरों के बावजूद 
पुण्य कमाने की खुशी मे
बीस-तीस किलोमीटर के न थकने वाले 
नंगे पाँवों से यात्रा में 

हां मैंने कुंभ देखा है 

हे मन तुम फिर आना
अगले अर्द्धकुंभ, कुंभ
और महाकुंभ में
इस श्रद्धा के महातट पर
अंतर की शांति को खोजने 
प्रयागराज आकर
प्रकृति मां गंगा यमुना को यह बताने 
कि आज भी प्रकृति हमारी आस्था है
उस आस्था का दर्शन कर 
हम अपने अंतर के सरस्वती को 
पा सकते हैं
जो ईश्वर रूपी परमात्मा का स्वरूप है।
(२फरवरी२०२५ वसंत पंचमी)
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