रविवार, 23 अक्तूबर 2022

व्योमवार्ता/ अबकी बार....(भरत मिलाप 23अक्टूबर 2015 की रचना)

आज शहर  में एक  अद्भुत घटना  घट गयी 
बीच  चौराहे पर रावण  ने हड़ताल  कर दी 
इस बार मैं नहीँ जलूँगा,चर्चा खुलेआम कर दी
एक पाप  के लिए  मुझे हर  साल जलाते  है 
पर आजकल  तो ये पाप  सरे-आम होता  है 
फिर  क्यों नही  उन  पापियों का दहन करते
मैंने तो  केवल  सीता  का हरण  किया  था 
अब तो  सीता  का  दामन  तार-तार  होता है 
सीता हरण तो मैंने स्वपन में भी नही सोचा था
बहन के प्रेम में पड़  कर ये अपराध  किया था 
पर अब ये अपराध तो बिलकुल आम हुआ है 
लंका में  रहकर भी सीता  दामन-ए-पाक थी 
अब तो घर में भी नारी का  चिर-हरण हुआ है 
हरण के बाद भी मैंने सीता का सम्मान किया था 
सम्मान तो  क्या, अब तो वह  सुरक्षित भी नही 
सदियों से,  युगों-युगों से  मेरा दहन होता रहा है 
दहन  तो  इस बार  भी  तुम  मेरा करना '
पर दहन सिर्फ राम करे,कोई दूसरा रावण नहीं

चौदह बरसों बाद भरत के राम आज अपनी नगरी वापस लौटेगें।
पर
 अपनी अयोध्या मे उजाला कब होगा ? 
मन की अयोध्या मे सीता रूपी आाशा और राम रूपी विश्वास के आगमन की शुभकामनाओं के साथ भरत मिलाप की ढेरों बधाईयॉ ।
(काशी,23अक्टूबर2015)

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