#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं......
वह अमेरिका के एक बड़े अस्पताल में कामयाब चिकित्सक थे। अपने जन्मदिन पर उन्हें भारत से पिता के पत्र का इंतजार रहता था। उस साल उनका पत्र जन्मदिन के एक सप्ताह बाद मिला स्नेह से सराबोर पत्र में आदेश भी था,"अब तुम्हें भारत लौट आना चाहिए।आखिर अपने देश और समाज के प्रति भी तुम्हारे कुछ कर्तव्य हैं।' पुत्र ने स्वदेश लौटने का फैसला ले लिया। विदाई- पार्टी में जब इतनी आरामदायक जिंदगी छोड़कर भारत जाने से रोकने की चेष्टा हुई, तो डॉक्टर पुत्र का जवाब था, 'माता-पिता का आदेश क्या होता है, इसको महसूस करने के लिए भारत में पैदा होना होगा।' यह वाक्य डॉ प्रताप चंद्र रेड्डी का है, जो आज अपोलो अस्पताल समूह के मालिक हैं।
जो बात पहले जितनी आसान रही, वह आज उतनी ही मुश्किल होती जा रही है। जीते जी अपने मां-बाप की सेवा करना, घर के बुजुर्गों व पूर्वजों के प्रति सदैव आदर भाव रखना अब आसान नहीं रह गया। ऐसे दौर मे पितृपक्ष हमें एक संदेश देता है। हमें कुछ याद दिलाता है। लोग इन दिनों एक अलग ही भाव में रहते हैं और श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करते हैं,ताक अपने पूर्वजों से जुड़े रहें। मगर पितृ पक्ष हमसे कुछ सवाल भी करता आज के नौजवा है- क्या हम इसे एक घिसी-पिटी परंपरा मानकर भूल जाना चाहिये और अपनी सामान्य जिंदगी जीते रहें।क्या हमें यह नही सोचनाकि चाहिए कि पितृ पक्ष की कल्पना क्यों की गई थी ? क्या हम इससे सीखकर समाज को बेहतर बना सकते हैं? क्या हमारे अंदर भूखों- 'गरीबों का पेट भरने की करुणा इस पक्ष में आ सकती है? क्या हम दरिद्र नारायण के दर्द को समझ सकने की स्थिति में हैं? क्या हमारे अंदर ऐसा इंसान बचा है, जो किसी के एहसान नहीं भूलता ? हमारा देश बुजुगों व पूर्वजों के प्रति कितना संवेदनशील है?
अगर हम 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें, तो देश में बुजुगों की आबादी दस करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। यह संख्या करीब 13 करोड़, 80 लाख हो गई है, जिसके वर्ष 2031 तक 19.4 करोड़ हो जाने की संभावना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, यह भी कम ध्यान देने योग्य नहीं है कि केवल 25 फीसदी कंपनियों के पास ही वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा सुविधाए हैं। ऐसे में, ज्यादातर ग्राहक अपने पर आश्रित माता-पिता और सास-ससुर के लिए स्वास्थ्य बीमा लेने में सक्षम नहीं हैं। एक पक्ष यह भी है कि माता-पिता का बीमा खरीदने
में सक्षम होने के बावजूद कई लोग मुंह मोड़ लेते हैं। भारत सरकार ने 'वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स ऐंड सीनियर सिटीजन्स ऐक्ट 2007' (माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख एवं कल्याण अधिनियम 2007) लागू किया है। बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिक आत्मसम्मान व शांति से जीवन-यापन कर सकें, इसी के लिए यह कानून बनाया गया है। वहीं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा जारी इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 ने भारत में बुजुर्ग जनसंख्या के बढ़ने और देश पर इसके प्रभावों कीपुष्टि भी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष से अधिक) की संख्या सन 2022 में 10.5प्रतिशत थी तो 2050 तक यह 20.8 प्रतिशत हो जाएगी। देश मे 15करोड़ के बजाय 35 करोड़ बुजुर्ग हो जायेगें। ऐसे मे,पितृपक्ष के समय ही सही, आज के युवाओं को अपने भविष्य के बारे में जरूर सोचना चाहिए। भारतीयों को यह देखना चाहिए कि दूसरे देश अपने बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? अमेरिका में 'फैमिली मेडिकल केयर ऐक्ट' के मुताबिक, वरिष्ठ नागरिकों की सेवा के लिए सात दिन तक पेड लीव की सुविधा है। वहीं जापान की तो 40 प्रतिशत जनसंख्या 60 साल से ऊपर की है। वहां सरकार ने 40 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा को जरूरी कर दिया है। कमाल की बात यह है कि माता-पिता की अच्छी सेवा करने वालों को जल्दी पदोन्नत करने का भी सरकारी प्रावधान है। फ्रांस में हरेक शख्स को अपने एक दिन का वेतन बुजुगों के कल्याण-कोष में देना पड़ता है।
पितृ पक्ष पर हमें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वह कविता याद आ रही है, 'सूरज डूब रहा है। चारों तरफ अंधेरा छाने लगा है। एक वृद्ध चिंतित है कि अब भला कौन उन्हें संभालेगा। तभी एक युवा हाथ में एक छोटा- सा दिया लिए उठते हुए कहता है, मैं!'
साभार #नंदितेश_निलय
हिन्दुस्तान,6अक्टूबर2023,शुक्रवार
#व्योमवार्ता http;//chitravansh.blogspot.com
जो बात पहले जितनी आसान रही, वह आज उतनी ही मुश्किल होती जा रही है। जीते जी अपने मां-बाप की सेवा करना, घर के बुजुर्गों व पूर्वजों के प्रति सदैव आदर भाव रखना अब आसान नहीं रह गया। ऐसे दौर मे पितृपक्ष हमें एक संदेश देता है। हमें कुछ याद दिलाता है। लोग इन दिनों एक अलग ही भाव में रहते हैं और श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करते हैं,ताक अपने पूर्वजों से जुड़े रहें। मगर पितृ पक्ष हमसे कुछ सवाल भी करता आज के नौजवा है- क्या हम इसे एक घिसी-पिटी परंपरा मानकर भूल जाना चाहिये और अपनी सामान्य जिंदगी जीते रहें।क्या हमें यह नही सोचनाकि चाहिए कि पितृ पक्ष की कल्पना क्यों की गई थी ? क्या हम इससे सीखकर समाज को बेहतर बना सकते हैं? क्या हमारे अंदर भूखों- 'गरीबों का पेट भरने की करुणा इस पक्ष में आ सकती है? क्या हम दरिद्र नारायण के दर्द को समझ सकने की स्थिति में हैं? क्या हमारे अंदर ऐसा इंसान बचा है, जो किसी के एहसान नहीं भूलता ? हमारा देश बुजुगों व पूर्वजों के प्रति कितना संवेदनशील है?
अगर हम 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें, तो देश में बुजुगों की आबादी दस करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। यह संख्या करीब 13 करोड़, 80 लाख हो गई है, जिसके वर्ष 2031 तक 19.4 करोड़ हो जाने की संभावना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, यह भी कम ध्यान देने योग्य नहीं है कि केवल 25 फीसदी कंपनियों के पास ही वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा सुविधाए हैं। ऐसे में, ज्यादातर ग्राहक अपने पर आश्रित माता-पिता और सास-ससुर के लिए स्वास्थ्य बीमा लेने में सक्षम नहीं हैं। एक पक्ष यह भी है कि माता-पिता का बीमा खरीदने
में सक्षम होने के बावजूद कई लोग मुंह मोड़ लेते हैं। भारत सरकार ने 'वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स ऐंड सीनियर सिटीजन्स ऐक्ट 2007' (माता-पिता व वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख एवं कल्याण अधिनियम 2007) लागू किया है। बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिक आत्मसम्मान व शांति से जीवन-यापन कर सकें, इसी के लिए यह कानून बनाया गया है। वहीं संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा जारी इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 ने भारत में बुजुर्ग जनसंख्या के बढ़ने और देश पर इसके प्रभावों कीपुष्टि भी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष से अधिक) की संख्या सन 2022 में 10.5प्रतिशत थी तो 2050 तक यह 20.8 प्रतिशत हो जाएगी। देश मे 15करोड़ के बजाय 35 करोड़ बुजुर्ग हो जायेगें। ऐसे मे,पितृपक्ष के समय ही सही, आज के युवाओं को अपने भविष्य के बारे में जरूर सोचना चाहिए। भारतीयों को यह देखना चाहिए कि दूसरे देश अपने बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? अमेरिका में 'फैमिली मेडिकल केयर ऐक्ट' के मुताबिक, वरिष्ठ नागरिकों की सेवा के लिए सात दिन तक पेड लीव की सुविधा है। वहीं जापान की तो 40 प्रतिशत जनसंख्या 60 साल से ऊपर की है। वहां सरकार ने 40 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा को जरूरी कर दिया है। कमाल की बात यह है कि माता-पिता की अच्छी सेवा करने वालों को जल्दी पदोन्नत करने का भी सरकारी प्रावधान है। फ्रांस में हरेक शख्स को अपने एक दिन का वेतन बुजुगों के कल्याण-कोष में देना पड़ता है।
पितृ पक्ष पर हमें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वह कविता याद आ रही है, 'सूरज डूब रहा है। चारों तरफ अंधेरा छाने लगा है। एक वृद्ध चिंतित है कि अब भला कौन उन्हें संभालेगा। तभी एक युवा हाथ में एक छोटा- सा दिया लिए उठते हुए कहता है, मैं!'
साभार #नंदितेश_निलय
हिन्दुस्तान,6अक्टूबर2023,शुक्रवार
#व्योमवार्ता http;//chitravansh.blogspot.com