मेरे बच्चे अब बड़े हो गये हैं : व्योमेश चित्रवंश की कवितायें, 06 अप्रैल, 2018, गुरूवार
बिस्तरों पर अब सलवटें नहीं पड़ती
ना ही इधर उधर छितराए हुए कपड़े हैं
रिमोट के लिए भी अब झगड़ा नहीं होता
ना ही खाने की नई नई फ़रमायशें हैं
घर मे एक बेमतलब का शोर कहीं खो गया है,
हर कोई एक गंभीरता सा ओढ़े है,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।
सुबह अख़बार के लिए भी नहीं होती मारा मारी
घर बहुत बड़ा और सुंदर दिखता है
पर हर कमरा बेजान सा लगता है
अब तो वक़्त काटे भी नहीं कटता
बचपन की यादें कुछ फ़ोटो में सिमट गयी हैं
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।
अब मेरे गले से कोई नहीं लटकता
ना ही घोड़ा बनने की ज़िद होती है
खाना खिलाने को अब चिड़िया नहीं उड़ती
खाने के बाद की तसल्ली भी अब नहीं मिलती
ना ही रोज की बहसों और तर्कों का संसार है
ना अब झगड़ों को निपटाने का मजा है
ना ही बात बेबात गालों पर मिलता दुलार है
बजट की खींच तान भी अब नहीं है
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं
पलक झपकते जीवन का स्वर्ण काल बीत गया
पता ही नही कि हाथ से रेत कब फिसल चला
इतना ख़ूबसूरत अहसास कब पिघल गया
तोतली सी आवाज़ में हर पल उत्साह था
पल में हँसना पल में रो देना
बेसाख़्ता गालों पर उमड़ता प्यार था
कंधे पर थपकी और गोद में सो जाना
सीने पर लिटाकर वो लोरी सुनाना
बार बार उठ कर रज़ाई को उड़ाना
अब तो बिस्तर बहुत बड़ा हो गया है
मेरे बच्चों का प्यारा बचपन कहीं खो गया है
अब तो रोज सुबह शाम मेरी सेहत पूँछते हैं
डाक्टर से बातें करते है, टेस्ट कराते हैं,
मुझे अब आराम की हिदायत देते हैं
पहले हम उनके झगड़े निपटाते थे
आज वे हमें समझाते हैं ,दिलासा देते हैं
बताते है कि उनके फैमिली हेल्थ इंश्योरेंस
मे हम भी कवर होते है.
वे बिजी हो कर भी हमारे लिये समय गढ़ते है,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गये हैं.
अब नही होती किताब कापी की फरमाइसें
न ही जिद कि छुट्टियों मे कहीं घूम आयें,
अब उन्हे नही रहता मतलब हमारे हिसाबों से
वे खुद व्यस्त है नेटबैंकिंग मैसेन्जर के जालों मे ,
वे मैनेज करते हैं हमारे हेल्थ, मोटर इंश्योरेंस को बिल, क्लेम से लेकर फ्लाईट, ट्रेन ,होटल को,
उनकी हमारे लिये जिम्मेदारियॉ देख,
लगता है अब शायद हम बच्चे हो गए हैं
मेरे बच्चे अब बहुत बड़े हो गए हैं
(बनारस, 06 अप्रैल 2018, गुरूवार)
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