शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

व्योमवार्ता / मेरे बच्चे अब बड़े हो गये हैं ; व्योमेश चित्रवंश की कवितायें

मेरे बच्चे अब बड़े हो गये हैं : व्योमेश चित्रवंश की कवितायें, 06 अप्रैल, 2018, गुरूवार

बिस्तरों पर अब सलवटें नहीं पड़ती
ना ही इधर उधर छितराए हुए कपड़े हैं
रिमोट  के लिए भी अब झगड़ा नहीं होता
ना ही खाने की नई नई फ़रमायशें हैं
घर मे एक बेमतलब का शोर कहीं खो गया है,
हर कोई एक गंभीरता सा ओढ़े है,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।

सुबह अख़बार के लिए भी नहीं होती मारा मारी
घर बहुत बड़ा और सुंदर दिखता है
पर हर कमरा बेजान सा लगता है
अब तो वक़्त काटे भी नहीं कटता
बचपन की यादें कुछ फ़ोटो में सिमट गयी हैं
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।

अब मेरे गले से कोई नहीं लटकता
ना ही घोड़ा बनने की ज़िद होती है
खाना खिलाने को अब चिड़िया नहीं उड़ती
खाने के बाद की तसल्ली भी अब नहीं मिलती
ना ही रोज की बहसों और तर्कों का संसार है
ना अब झगड़ों को निपटाने का मजा है
ना ही बात बेबात गालों पर मिलता दुलार है
बजट की खींच तान भी अब नहीं है
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं

पलक झपकते जीवन का स्वर्ण काल बीत गया
पता ही नही कि हाथ से रेत कब फिसल चला
इतना ख़ूबसूरत अहसास कब पिघल गया
तोतली सी आवाज़ में हर पल उत्साह था
पल में हँसना पल में रो देना
बेसाख़्ता गालों पर उमड़ता प्यार था
कंधे पर थपकी और गोद में सो जाना
सीने पर लिटाकर वो लोरी सुनाना
बार बार उठ कर रज़ाई को उड़ाना
अब तो बिस्तर बहुत बड़ा हो गया है
मेरे बच्चों का प्यारा बचपन कहीं खो गया है

अब तो रोज सुबह शाम मेरी सेहत पूँछते हैं
डाक्टर से बातें करते है, टेस्ट कराते हैं,
मुझे अब आराम की हिदायत देते हैं
पहले हम उनके  झगड़े निपटाते थे
आज वे हमें समझाते हैं ,दिलासा देते हैं
बताते है कि उनके फैमिली हेल्थ इंश्योरेंस
मे हम भी कवर होते है.
वे बिजी हो कर भी हमारे लिये समय गढ़ते है,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गये हैं.

अब नही होती किताब कापी की फरमाइसें
न ही जिद कि छुट्टियों मे कहीं घूम आयें,
अब उन्हे नही रहता मतलब हमारे हिसाबों से
वे खुद व्यस्त है नेटबैंकिंग मैसेन्जर के जालों मे ,
वे मैनेज करते हैं हमारे हेल्थ, मोटर इंश्योरेंस को बिल, क्लेम से लेकर फ्लाईट, ट्रेन ,होटल को,
उनकी हमारे लिये जिम्मेदारियॉ देख,
लगता है अब शायद हम बच्चे हो गए हैं
मेरे बच्चे अब बहुत बड़े हो गए  हैं
(बनारस, 06 अप्रैल 2018, गुरूवार)
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व्योमवार्ता ; बैकफुट से फ्रंटफुट के बीच भारत की पाक अरब देशों के लिये विदेशनीति...

बैकफुट से फ्रंटफुट के बीच भारत की पाक अरब देशों के लिये विदेशनीति
व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 6अप्रैल 2018, शुक्रवार
          इस देश को सबसे बड़ा नुक्सान दो प्रधानमंत्री के काल में हुआ - जिसमे पहला नाम है इंद्र कुमार गुजराल ..
इंद्र कुमार गुजराल - पैदाइशी कम्युनिष्ट जो कांग्रेस में गया और फिर जनता दल में .. 1996 में जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे तब कम्युनिष्टों की पसंद IK Gujral को विदेश मंत्री बनाया और तबसे ही इसने भारत के विदेश मामलों को ख़राब करना चालू कर दिया .. इसके काल में भारत पाकिस्तान से आगे की सोच ही नहीं पाया .. फिर जब ये प्रधानमंत्री बना तो इसने पाकिस्तान के साथ उस समझौते को किया जिसमे लिखा था कि भारत अपने सारे केमिकल हथियार ख़त्म कर देगा .. जबकि इसके PM बनने के पहले भारत कहता आया था कि उसके पास केमिकल हथियार हैं ही नहीं .. मतलब इस गुजराल ने विश्व में ये साबित करवाया की भारत झूठ बोलता रहा है .. एक और काम जो इसने किया वो ये कि इसने भारत के PMO से ख़ुफ़िया विभाग और RAW का पाकिस्तान डेस्क खत्म कर दिया .. August 1997 में अमेरिका में पाकिस्तान के PM से मुलाकात होते ही वहीँ से इसने आदेश किया की इसके भारत लौटने तक RAW का पाकिस्तान डेस्क ख़त्म होना चाहिए ... इसके बाद इस दौरान भारत के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी, कुवैत, यमन, UAE आदि जगहों पर स्थित १०० के ऊपर एजेंट मारे गए .. एक हफ्ते में सारा खुफिया विभाग ध्वस्त हो गया और RAW नेस्तनाबूद हो गई .. पूरा का पूरा ख़ुफ़िया ढाँचा नेस्तनाबूद हो गया पाकिस्तान से लेकर फिलिस्तीन तक ....
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उसका नतीजा ये हुआ कि भारत को OIC इलाके में उसके खिलाफ हो रहे षडयंत्रो का पता ही नहीं चलता था ... भारत में 1997 से लेकर 2001 तक का समय बेहद कठिन रहा, भारत बिना किसी ख़ुफ़िया जानकारी के रहा और कोई ऐसा महीना नहीं गया जब भारत में बम विस्फोट से लेकर सीमा पर छिटपुट आतंकी हमले न हुए .. 1998 में वाजपेयी सरकार आई और 1999 में कारगिल हुआ, ख़ुफ़िया फेलियर पर खूब कोसा गया सरकार को लेकिन कम्युनिष्ट मीडिया ने गुजराल डोक्टराइन नामक उस बेहूदे कागज़ के पुलिन्दे को गोल कर गई जिसको उसको लेकर कम्युनिष्टों को अभी मुहब्बत है क्योंकि उसमे भारत की नाकामी है ...भारत के ख़ुफ़िया विभाग को ख़त्म करके और RAW को नेस्तनाबूक करके, उसके लोगिस्टिक को बर्बाद और एजेंटों के खात्मे के बाद हाल बहुत खराब हो गया ... Indian Airline का हाईजैक होकर कंधार जाना, संसद भवन हमला, कोइम्बटूर हमला, अक्षरधाम, लाल किला हमला आदि होता गया और भारत सरकार पूरे 3 वर्ष तक कुछ जान ही नहीं पाई ख़ुफ़िया से ... अटल सरकार ने आने के कुछ महीने में ही फिर से RAW का पाकिस्तान डेस्क और इंटेलिजेंस का OIC विंग चालू किया था जिसको भारत में ही खड़ा करने में 2002 तक का समय लग गया .. फिर उसका विदेशों में एजेंट बनाना आदि करते करते 2004 में अटल सरकार चली गई ... लोगों को अक्सर कारगिल और IC814 के हाईजैक को लेकर अटल सरकार पर हमला करते पाया जाता है लेकिन गुजराल के कारनामे ने भारत का जो नुक्सान कराया उस पर कभी बात ही नहीं हुई ....
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पेट्रोल डीज़ल, आलू - मटर - टमाटर के भाव, IT के स्लैब में बदलाव और एरियर को अपना सबसे बड़ा समस्या समझने वाली जनता को पता ही नहीं कि देश को असुरक्षा के किस दल दल में धकेल दिया गया था ... समय रहते अटल सरकार ने कदम उठाया लेकिन ध्वस्त करना आसान है, खड़ा करना मुश्किल - वो भी ख़ुफ़िया जैसा विभाग जिसमे कई वर्ष लगते हैं एक एजेंट खोजने में ...
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अगले है हमारे ईमानदार प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ... जिन पर कोई छीटा नहीं पड़ता .. ये अगर दिल्ली के नज़फगढ़ नाले में कूद के निकलें तो भी गंगोत्री में नहाए जैसे साफ़ निकलते हैं .... इन्होने गुजराल जैसा तो नहीं किया और RAW तथा intelligence तो टच नहीं किया लेकिन पाकिस्तान और भारत के कम्युनिष्टों के बनाए भंवरजाल और जालसाज़ी को खूब ढील दिया .. इन्होने intelligence और सुरक्षा विभाग को इस लायक न छोड़ा की देश में मुंबई का हमला से लेकर अनेकों शहरों, ट्रेनों में बम विस्फोट को न पहले जान पाए और न रोक पाए ....
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2007 - 2008 के आस पास पाकिस्तान के लाहौर में एक घटना घटी ... पाठ्यपुस्तकों में भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु तथा सुखदेव के लिए लिखा गया कि "भगत सिंह और उसके दो काफिर साथियों ने पडोसी देश के आज़ादी के लिए काम किया, उस देश के लिए जो हमारा दुश्मन है और जिसकी आज़ादी की लड़ाई से हमें कोई सरोकार नहीं, हम उनके बारे में क्यों पढ़े ... ये उनके हीरो हैं, हमारे हीरो हमारे खुद के देश में हैं जिनको हम पढ़ेंगे ... " .. इस तरह के मामले की शुरुवात होंने के खिलाफ मोर्चा खोला पाकिस्तान के मशहूर columnist और लेखक हसन निसार ने ... हसन निसार खुले मंचों पर भगत सिंह को पाकिस्तान देश की आज़ादी का सिपाही और हीरो घोषित करने लगे ... उन्होंने लाहौर चौक का नाम भी भगत सिंह चौक रखने का मांग रखा ..... इस सबके बीच ये बात चलाई गई कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि दोनों देश के लोगों में कोई संवाद नहीं है .. दोनों देश के लोगों के बीच संवाद बढ़ना चाहिए .. इस संवाद को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान के अखबार The Jung और भारत के Times of India ने आपस में मिल कर कार्यक्रम चालू किया ... गायक, कलाकार, खिलाड़ी लोगों का आना - जाना, मुशायरों का आयोजन ... सब चालू किया ... बस यहीं पर पाकिस्तान ने भारत के अंदर बहुत अंदर तक घुसपैठ कर लिया ... पाकिस्तान से जो आते थे वो सब ISI की निगरानी में उनके सिखाए, उन पर निगाह रखने वाले, और सीधे ISI एजेंट उनके मैनेजर आदि के रूप में खूब आए .. भारत के intelligence और RAW को इनके दूर रहने का आदेश मनमोहन सरकार ने दिया .. सरकार ख़ुफ़िया विभाग से पाकिस्तान की तरफ से आने वाले लोगों की लिस्ट से लेकर कार्यक्रम आदि सब छिपा के रखती थी ... उधर से आए ये ISI के एजेंट यानी "अमन की आशा" गिरोह पूरे भारत की रेकी करते, अपने स्लीपर सेल बनाते और निकल जाते और फिर पीछे से भारत में मुम्बई हमला, कई अलग अलग शहरों में बम ब्लास्ट, कश्मीर में बेरोक टोक हमले कराते रहते .. कश्मीर में तैनात सेना पर इल्जाम लगा के जेल में डालना आदि जैसे कारनामे मनमोहन सरकार ने अंजाम दिए इसी कम्युनिष्टों के "अमन की आशा गैंग के निर्देश पर ... भारत की अधिकतर मूर्ख जनता इन अमन की आशा वालों के जाल में फंसी हुई नुसरत फतह अली आदि के गीतों पर झूमती ... जबकि उसका खरीदा हर एक CD /DVD का पैसा पाकिस्तान परस्ती और उसके अपने ही सेना के खून बहाने में लगता ..

इधर से जो जाते थे उनको पाकिस्तानी पश्तून - कश्मीरी - अफगानी - उक्रैन की लड़कियां, महँगी शराब .. महँगी घडिया आदि देकर अपने ओर रखते थे .. अय्याशी के गर्त में डूबे इन अन्धों और लालची अमन की आशा वाले लोगों ने इस कांसेप्ट के कारण खूब पलीता लगाया देश को ... इस गैंग को प्रायोजित करने का काम भी मनमोहन सरकार ने किया है ... पाकिस्तान में हुए भगत सिंह वाली घटना के बाद ही भगत सिंह को आतंकवादी बताने वाले कम्युनिष्टों ने उनको अपना हीरो बनाकर पेश करना चालू किया .. कम्युनिष्टों के पाकिस्तानी मिलीभगत से किए जा रहे इस जालसाज़ी को बाद में खोलेंगे ...
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इधर 4 साल से अमन की आशा गैंग का धंधा बंद है .. कश्मीर में आतंकी मारे जा रहे हैं .. देश में गड़बड़ी फैलाने से पहले स्लीपर सेल वाले दबोच लिए जा रहे हैं .. पत्थरबाज बक्शे नहीं जा रहे हैं .. मनमोहन सरकार द्वारा फंसाए गए सारे सेना के अफसर आदि न्यायालय से बरी किए जा रहे हैं ... पाकिस्तान और म्यांमार सीमा पार करके आतंकियों के खिलाफ सेना सर्जिकल स्ट्राइक कर रही है ... पाकिस्तानी गोलीबारी का मुंहतोड़ जवाब दे रहा है .. कुछ हफ्ते पहले पाकिस्तानी मीडिया मोदी सरकार आने के बाद अपने 1600 के ऊपर सैनिक मारे जाने का दावा करके कृन्दन कर रही थी ... भारत अपनी सुरक्षा के लिए फ्रंट फुट पर खेल रहा हैं .. अभी भारत को ऐसे ही करना चाहिए ... यूँ ही नहीं पाकिस्तान से लेकर चीन मीडिया में रोज एक प्रोग्राम मोदी पर होता ही है ..
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(बनारस, 6अप्रैल 2018,शुक्रवार)
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बुधवार, 4 अप्रैल 2018

व्योमवार्ता : अंधे के दिखाये शहर के रस्ते पर.....

अंधो के दिखाये शहर के रस्ते पर :व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 03 अप्रैल 2018,मंगलवार
सुबह के अखबार की बाकी खबरें ऱात मे पढ़ रहा हूँ, कल की घटना को लेकर नाना प्रकार के दृष्टिकोण, पर सभी सच से कोसों दूर, मुद्दो से हट कर मुद्दा विहीन राजनीति, अपने ही लोगों को भरमाने की कोशिश, तथ्य कोझुठलाते अपने अपने सत्य, राजनीति किस अंधे  मोड़ तक ले आयी है हमें,
                  ढेरो बड़े बड़े भरमाते वादों के पीछे के सच को सोच कर कुढ़न भी हो रही है व गुस्सा भी आ रहा है पर क्या फायदा? आज हमारे समाज को अंधो के दिखाये शहर के रस्ते पर चलने की आदत पड़ गई है. आप भी सोचिये इस सच को झुठलाने की राजनीति.
           9 महिलाओं सहित 299 सदस्यों वाली संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद थे । कुल 23 कमेटियां थीं । इन में एक ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष भीमराव रामजी आंबेडकर थे । सिर्फ़ ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन संविधान निर्माता का दर्जा कैसे पा गया , मैं आज तक नहीं समझ पाया । जगह-जगह संविधान हाथ में लिए मूर्तियां लग गईं । तो राजेंद्र प्रसाद सहित बाकी सैकड़ो सदस्य क्या घास छिल रहे थे । अगर कायस्थों में थोड़ी महत्वाकांक्षा जाग जाए और कि वह भी बाबू राजेंद्र प्रसाद का संविधान कहने लग जाएं तब क्या होगा ? आख़िर वह संविधान सभा के अध्यक्ष रहे थे । जब की आंबेडकर सिर्फ़ ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष । दिलचस्प यह कि संविधान सभा के पहले अध्यक्ष सच्चिदानंद सिनहा भी कायस्थ थे । फिर अच्छा-बुरा यह भारत का संविधान है , किसी आंबेडकर का संविधान नहीं । और वह लोग अंबेडकर का नाम सब से ज़्यादा लेते हैं जिन को उन के पूरे नाम में रामजी का जुड़ जाना ऐसे दुखता है गोया कलेजे में कांटा चुभ गया हो । भीमराव रामजी आंबेडकर लिखते ही कितनों के प्राण सूख गए । तब जब कि संविधान पर तमाम दस्तखत के साथ आंबेडकर के भी दस्तखत हैं । भीमराव रामजी आंबेडकर । महाराष्ट में परंपरा है कि मूल नाम के बाद पिता का नाम भी लिखा जाता है । रामजी आंबेडकर के पिता का नाम है । लेकिन यह कमीनी राजनीति है जो भारत के संविधान को आंबेडकर का संविधान कहने की निर्लज्ज मूर्खता की जाती है और सारी कुटिल राजनीतिक पार्टियां और ज़िम्मेदार लोग ख़ामोश रहते हैं । ऐसे ही आंबेडकर के नाम में रामजी नाम भाजपा सिर्फ़ दलितों का वोट जाल में फंसाने के लिए जोड़ती है और बाक़ी पार्टियां यह सही होते हुए भी ऐसे भड़क जाती हैं गोया लाल कपड़ा देख कर सांड़ ! बाकी आंबेडकर को बेचने वाले दुकानदारों की तो बात ही निराली है । गोया अंबेडकर की दुकान खोल कर वह आंबेडकर को बेचने के लिए ही पैदा हुए हैं । कि बड़ी-बड़ी कारपोरेट कंपनियों के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन पानी मांगें ।
(बनारस,03 अप्रैल 2018, मंगलवार)
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