मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

व्योमवार्ता/ आर्थिक बेचारगी मे पाकिस्तान के लिये वैश्विक अर्थव्यवस्था का नया नेतृत्व भारतवर्ष : बड़े भाई जय बख्शी के कलम से, व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 23 अक्टूबर 2018

व्योमवार्ता/ आर्थिक बेचारगी मे पाकिस्तान के लिये वैश्विक अर्थव्यवस्था का नया नेतृत्व भारतवर्षबड़े भाई जय बख्शी के कलम से

कुछ ही हफ्ते पहले इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने हैं, उनके इलेक्शन कैंपेन को आप देखें, तो उसमे एक खास बात थी....वो पिछली सरकारों की आर्थिक नीतियों के एक बड़े आलोचक थे, चाहे IMF से लोन लेने की बात हो, चाहे आर्थिक अनुशासन का अभाव हो, इन सब मुद्दों पर इमरान खान ने एक नए तरीके को अपनाने की बात की थी, जिससे देश को सुधारा जा सके।

लेकिन आज कुछ ही हफ़्तों में इमरान खान को सच्चाई समझ आ गयी है, और एक आर्थिक अनहोनी की आशंका से पाकिस्तानी सरकार कांप रही है। पाकिस्तान फिर से एक भयानक आर्थिक दलदल में फंस चुका है. वो पूरी तरह से कंगाल हो चुका है. इसके पास अब इतने भी पैसे नहीं है कि वो अपने कर्ज के ब्याज की किश्तें चुका सके. विदेशी मुद्रा का भंडार खाली हो चुका है. 2-3 सप्ताह के बाद शायद कुछ आयात भी नहीं कर पाएगा. सरकारी मुलाजीमो की सैलरी, सरकारों के अन्य खर्च आदि भी ठप्प हो जाएंगे। इसीलिए इमरान खान ने सत्ता संभालते ही कुछ मामूली कदम उठाए, जैसे सरकारी बिल्डिंग्स को बेचना, सरकारी गाड़िया आदि बेचना, यहां तक भी भैंस आदि भी बेचना। लेकिन ये कदम नाकाफी थे और इनसे अर्थव्यवस्था पर कोई भी प्रभाव नही पड़ा।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि पाकिस्तान कंगाली की कगार पर खड़ा हो. हर बार IMF पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज देकर मुसीबत से बाहर निकालता आया है. पहले पाकिस्तान पर अमेरिका का वरदहस्त होता था. अमेरिका से अच्छी खासी AID मिल जाती थी, जिसे चुकाना भी नही पड़ता था। अमेरिकी सपोर्ट की वजह से हर बार आईएमएफ से पैसे भी मिल जाते थे.

लेकिन इससे धीरे धीरे पाकिस्तान मुफ्तखोरी का एडिक्ट हो गया. अमेरिकी AID की उसे लत लग गयी। 1980 से अब तक पाकिस्तान को 12 बार IMF से Bailout पैकेज मांगना पड़ा है. गनीमत ये रही कि हर बार उसे ये सहायता मिल भी गई. पिछली बार 2013 में पाकिस्तान को आईएमएफ की तरफ से 7.6 बिलियन डॉलर्स दिए. जिसकी वजह से पाकिस्तान तबाह होने से बच गया.

लेकिन इस बार कहानी कुछ अलग है।

2014 में भारत मे सरकार बदली, मोदी ने सत्ता संभाली और उन्होंने आतंकवाद की समस्या पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया। उन्होंने पाकिस्तान को संभलने का मौका भी दिया। चाहे शपथ ग्रहण समारोह में नवाज़ शरीफ़ को बुलाना हो, या अफ़ग़ानिस्तान से लौटते हुए एकाएक पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ़ से मिलने जाना हो, मोदी ने सब किया। और इन नीतियों की वजह से अपने समर्थकों और विरोधियो का दंश भी झेला। आज भी मोदी भक्तों को उलाहना मिलता है, कि मोदी नवाज़ शरीफ़ से मिलने गए, नवाज़ शरीफ़ की माँ के लिए साड़ी दी आदि आदि

मोदी सरकार ने पाकिस्तान के Double क्रॉस को न सिर्फ उजागर किया बल्कि इसे दुनिया भर में अलग थलग करने में सफल रहा है. मुझे याद नही 2014 के बाद ऐसा कोई भी अंतरराष्ट्रीय समेलन हो, चाहे SAARC हो, G-20 हो, BRICS हो, यूनाइटेड नेशन्स हो, जहां प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के टेरर नेटवर्क की फंडिंग पर लगाम लगाने की पुरजोर वकालत ना की हो।

पहले पाकिस्तान "Fight against Terrorism" के नाम पर अमेरिका और अन्य देशों से मोटा पैसा और हथियार वसूलता था, लेकिन अब इस जुमले के झांसे में कोई नही आ रहा, चाहे तो ट्रम्प के बयान देख लीजिए।

इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी पिछले 4 सालों में कई देशों की यात्रा पर गए, आप उनके भाषण और यात्रा के दौरान किये गए एग्रीमेंट्स उठा कर देख लीजिए, "आतंकवाद नेटवर्क की फंडिंग पर एक्शन" उनके हर एग्रीमेंट का हिस्सा रही है। उन्होंने भरसक कोशिशें की अन्य देशों को इस मुद्दे पर अपने साथ रखने की। क्या मोदी को सफलता मिली?

हाँ, बिल्कुल मिली

इन्ही वजहों से अमेरिका पाकिस्तान की ब्लैकमेलिंग से बाहर आ चुका है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प हर दूसरे दिन पाकिस्तान को हड़काते रहते हैं। जिन मुल्कों से अब तक पाकिस्तान खैरात लेता रहा था उन्होंने भी अब तौबा कर लिया है. चाहे पाकिस्तान का All Weather Friend चीन हो या इस्लामिक देश हों, सभी अब पाकिस्तान से कतरा रहे हैं। हकीकत ये है कि भारत से बराबरी करने के जुनून में पाकिस्तान ने खुद के अस्तित्व को दांव पर लगा दिया है.

पाकिस्तान पर आज इतना गंभीर आर्थिक संकट आ गया है कि कर्ज में डूबे हुए पाकिस्तान ने आईएमएफ से 8 अरब डॉलर का कर्ज मांगा है. इमरान खान IMF की नीतियों का विरोध करते रहे हैं, लेकिन वर्तमान आर्थिक संकट को टालने के लिए अब उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है. दुनिया भर में दो तीन मुल्क ही हैं जो उसकी मदद कर सकते हैं और उन्होंने भी पैसे देने से मना कर दिया. भारत की आक्रामक डिप्लोमेसी की वजह से पाकिस्तानी फंडिंग के स्रोत सूख गए।

इमरान खान ने इस्लामिक कार्ड खेल और सबसे पहले सऊदी अरब से संपर्क किया। लेकिन सउदी ने ऐसी शर्त रख दी जिससे पाकिस्तान की स्थिति काटो तो खून नही वाली हो गयी। सऊदी ने किसी भी सहायता के बदले यमन के खिलाफ पाकिस्तानी सेना का साथ मांगा। ये युद्ध दो देशों की लड़ाई ना होकर शिया और सुन्नी के बीच की लड़ाई है. अगर पाकिस्तान ये शर्त मान लेता तो ईरान के रूप में एक नया मोर्चा खुल जाता, जहाँ पहले ही पाकिस्तान के संबंध खराब हैं। ऊपर से भारत ने ईरान से आर्थिक दोस्ती कर ली है, अब ऐसी स्थिति में उस दोस्ती का कैसे इस्तेमाल किया जाता ये बताने की जरूरत नही है।

वहीं पाकिस्तान का सात जन्मों का दोस्त चीन और भी पहुँचा हुआ निकला, उसकी शर्तें और भी खतरनाक है. पहले से ही CPEC प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान 62 बिलियन डॉलर का कर्ज ले चुका है. CPEC के नाम पर एक सब्जबाग दिखाया गया, पावर प्लांट्स, बड़े बड़े हाईवे, बांध आदि बनाने का प्लान था। इसमे काफी विवाद भी हुए हैं पड़ोसी देशों के साथ, ऊपर से बलोचिस्तान में इस प्रोजेक्ट का खूनी विरोध भी हो रहा है। कोई revenue generate नही हो पा रहा इसलिए इस कर्ज को लौटाना तो दूर पाकिस्तान ब्याज भी नहीं दे पा रहा है.

चीन की चालबाजी का एक नमूना बताता हूँ। चीन जो भी पावर प्रोजेक्ट्स बना रहा है पाकिस्तान में, चीन ने एग्रीमेंट किये हैं कि पाकिस्तान उन प्रोजेक्ट्स से उत्पन्न revenue का लगभग 30% हर साल 30 साल तक चीन को देगा। जबकि पाकिस्तान के सरकारी बांड्स से revenue हद से हद 8-10% एनुअल return देते हैं। अब आप समझिये कि कमाई कितनी है और देन दारी कितनी है।

ऊपर से सबसे बड़ा झोल ये है कि चीन सारी फंडिंग डॉलर्स में करता है, पाकिस्तान को सारा कर्ज डॉलर में ही चुकाना पड़ता है, और इसी वजह से उसका विदेशी मुद्राकोष अब लगभग खात्मे के कगार पर है।

* चीन ने ऐसे कई शिकार बनाये हैं, वेनेजुएला, श्री लंका, मलेशिया, म्यानमार तो कुछ ही है, इनके अलावा चीन को नेपाल के रूप में एक नया मुर्गा भी मिला है....जल्दी ही हलाल होगा......देखते जाइये।

यही वजह है कि इमरान खान की सरकार ने सउदी और चीन के दलदल से बचने के लिए आईएमएफ जाने का फैसला किया.
ये बात सही है कि इमरान के पास ऑप्शन्स नहीं है लेकिन ये फैसला भी पाकिस्तान के लिए अस्तित्व के लिए कई सारे खतरे लेकर आने वाला है. इमरान खान का ये फैसला पाकिस्तान की बर्बादी का जरिया बनने वाला है. और शायद कुछ ही सालो में हम पाकिस्तान को टूटते हुए देखें।

आईएमएफ का दिया हुआ एक एक डॉलर मीठे जहर से कम नही होता। IMF की कड़ी शर्तें होती हैं, वो एक तरह से किसी भी देश के आर्थिक मामलों में दखल देने जैसा ही है, वो एक तरह से किसी भी देश के आर्थिक ड्राइवर की सीट पर बैठने की जुगत बिठाने जैसा है। इसी वजह से IMF से लोन लेना एक तरह से आर्थिक स्वायत्तता को खोने जैसा ही है। आइये जानते हैं कैसे।

2013 में भी पाकिस्तान आर्थिक संकट आया था. उस वक्त नवाज़ शरीफ़ सरकार ने IMF से 6.6 बिलियन डॉलर का बेलआउट मांगा था. उससे पांच साल पहले यानि 2008 में भी ऐसा ही बेल आउट पैकेज 7.6 बिलियन डॉलर का पाकिस्तान को दिया गया था.

आज पाकिस्तान फिर से 8 बिलियन डॉलर की सहायता मांगने IMF पहुचा है. ट्रेंड एनालिसिस किया जाए तो हर पांच साल में पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज की जरूरत पड़ रही है. इसे Boom and Bust cycle भी कह सकते हैं, हर 5 साल में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस cycle से गुजरती है। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था Boom कर रही है, इंडीकेटर्स भी यही दिखाते हैं, लेकिन फिर एक दम से धड़ाम हो कर bust हो जाती है।

IMF पिछले कई साल से पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के इस पहलू पर नज़र रख रहा था, और उन्हें भी अंदेशा था कि अब ये स्थिति आने ही वाली है। IMF को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इतने पैसे जाते कहां हैं?

जब इस बारे में एनालिसिस किया गया तो IMF को झटका लगा। पाकिस्तान में बजट का 30 फीसदी से ज्यादा हिस्सा कर्जों के ब्याज में जाता है. वहीं बजट का बड़ा हिस्सा सेना खा जाती है और उसका कोई हिसाब किताब भी नही होता. यू तो डिफेंस पर 23 फीसदी खर्च होता है. लेकिन इसमें न तो सैनिकों की पेंशन जुड़ी है और न ही खुफिया एजेंसीज ISI और दूसरे अघोषित खर्च इसमें सम्मिलित है.

एक्पर्ट्स के अनुसार ये 50 फीसदी से ज्यादा तक पहुंच जाता है. और सारे खर्चे और देनदारियां हटा कर पाकिस्तान सरकार के पास बजट का 10 फीसदी पैसा नहीं बचता. अब इतने पैसे में दुनिया की कोई भी सरकार ढंग से काम नही कर सकती। इसलिए पाकिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट लगभग नगण्य है। यही वजह है कि एक डैम बनाने के लिए भी पाकिस्तान को चंदा जमा करना पड़ रहा है.

वहीं दूसरी और आर्मी को खुश भी रखना है, क्योंकि पाकिस्तानी आर्मी ही वहाँ की अघोषित सरकार है।इसलिए हर साल बजट में शिक्षा और स्वास्थ में कटौती और डिफेस का हिस्सा बढ़ा दिया जाता है. इमरान खान ने भी मिनी बजट में डिफेंस बजट में 25 फीसदी का इजाफा किया है. शायद और कोई ऑप्शन भी नही था, क्योंकि उन्हें सत्ता ही सेना की वजह से मिली है

वहीं पाकिस्तान के बजट का बड़ा हिस्सा वहां के तथाकथिक Non-State actors खा जाते हैं। पाकिस्तान के अंदर सौ से ज्यादा ऐसे आतंकवाद संगठन सक्रिय हैं जो आतंकवाद और जिहाद का प्रचार प्रसार करते हैं. इन्हें सारी फंडिंग ISI के द्वारा पाकिस्तान सरकार ही करती है। Indirect तरीके से देखा जाए तो bailout पैकेज और Aid का सारा पैसा इन आतंकी संगठनों तक पहुचता है।

इसी वजह से इंटरनेशनल टेरर फाइनेंसिंग वाचडॉग - फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स यानि FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया. इसके लिए भारत सरकार ने भी काफी जोर लगाया। मतलब ये कि पाकिस्तान की गिनती उन देशों में हो गई जो आतंकी सगठनों पर लगाम लगाना तो दूर उल्टा मदद करता है. इसकी पुष्टि तब हुई जब यूएन सिक्योरिटी कॉसिल ने दुनिया भर में फैले आंतकी सगठनों की लिस्ट जारी की. UNSC की लिस्ट में 339 नाम थे इनमें से 139 नाम ऐसे थे पाकिस्तान से ऑपरेट कर रहे हैं.

पाकिस्तान इन जिहादी संगठनों पर लगाम इसलिए नहीं लगा सका क्योंकि आतंकी संगठनों ने समाज में अपनी जगह बना ली, ये आतंकवादी संगठन वहां के समाज का एक ऐसा हिस्सा हैं जो अब अलग नही हो सकता. पाकिस्तान दुनिया का अकेला मुल्क है जो इस्लाम के नाम पर बना है. और आंतकी सगठन खुद को इस्लाम के सिपाही बताते हैं. पाकिस्तान में सरकारी एजेंसियों से ज्यादा इन आतकी संगठनों की साख है. इसलिए किसी भी सरकार के लिए इन पर कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है.  

लेकिन इन सब के बावजूद IMF चौकस है. पाकिस्तान के सामने कुछ कड़ी शर्तें रखी गयी है. पहला ये कि पाकिस्तान की करेंसी को और De-value किया जाए। अभी 1 डॉलर की कीमत लगभग 133 पाकिस्तानी रुपये हैं। लेकिन IMF इसे 150 के पार करना चाहता है। और बड़ी बात नही है कि ये 200 के पार भी चला जाये। इस ख़बर से negative sentiment बना और पाकिस्तानी शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखने को मिली। क्योंकि ऐसे किसी भी कदम से पाकिस्तानी आयात बहुत महंगा हो जाएगा, खासकर पेट्रोलियम के रेट्स में आग लग जायेगी और देश का ऊर्जा सेक्टर तबाह हो जाएगा।

हालांकि एक्सपोर्ट्स पर इसका ज्यादा फर्क नही पड़ेगा, क्यों पाकिस्तान का एक्सपोर्ट वैसे भी बहुत ज्यादा नही है, और जो थोड़ा बहुत था भी उसे भी भारत ने मटियामेट कर दिया। ईरान के चाबहार बंदरगाह की वजह से भारत को अफगानिस्तान और अन्य मध्य-एशियाई देशों तक नया रास्ता मिल गया है, जिसकी वजह से अब वहां भारतीय समान पहुचने लगा है। एक छोटा सा उदाहरण गेहूं और आटे का ही लीजिये, पहले अफ़ग़ानिस्तान सारा गेहूं और आटा पाकिस्तान से आयात करता था, अब भारत से होता है। कई बिलियन डॉलर का झटका दिया है भारत ने पाकिस्तानी एक्सपोर्ट्स को।

इसके अलावा IMF की दूसरी बड़ी शर्त है अर्थव्यवस्था में ट्रांसपिरेंसी. इसका मतलब ये है कि पाकिस्तान की सरकार ने कहां कहां से कर्ज लिए, किन शर्तों पर लिए, कहां कहां किस हिसाब से चुकाना है. ये सारी संवेदनशील जानकारियां IMF को देनी होगी. IMF को शक ये है कि पाकिस्तान बेलआउट पैकेज के पैसे को अपने कर्ज चुकाने में कर सकता है. इसी कड़ी में IMF ने चीन के साथ हुए CPEC करार का पूरा डिटेल देना होगा. अमेरिकी सरकार ने भी IMF को चेताया है कि पाकिस्तान उसके bailout पैकेज का उपयोग चीनी कर्ज़ को चुकाने में कर सकता है, जिसके बाद IMF और अलर्ट हो गया है।

वहीं चीन इस बात को लेकर काफी नाराज है, क्योंकि उसको भी लग रहा है कि पैसा डूब ना जाये। लेकिन ट्रासपिरेंसी की दूसरी शर्त पाकिस्तान को लिए काफी मंहगा साबित होगा. अब पाकिस्तान को ये भी बताना होगा कि बजट का पैसा वो किस तरह से खर्च कर रहा है. इसका सीधा असर आतंकी संगठनों और ISI की गतिविधियों पर पड़ेगा. खुफिया तरीके से अधोषित पैसे को जो अब तक आंतक की इंडस्ट्री में लगा रहा था उस पर लगाम लगेगी. पाकिस्तान हथियार तक खरीद नहीं पाएगा. क्योंकि इस बार एक एक पैसे का हिसाब IMF को देना होगा. इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान की आर्थिक संप्रभुता पर ग्रहण लग जाएगा.

पिछले ही दिनों चीन से पाकिस्तान को एक नई मिसाइल देने का प्रस्ताव दिया है, जिसे ब्रह्मोस-किलर कहा जा रहा है, लेकिन पाकिस्तान की हिम्मत नही हो रही बात को आगे बढ़ाने की

IMF की तीसरी शर्त पाकिस्तान की इकोनोमी को उनके हिसाब से रिफार्म करना है. ये एक खतरनाक शर्त है.

रिफॉर्म के कुछ खास पहलू होते हैं।
* सरकार के खर्च में कटौती करना
* सब्सिडी को बंद करना, जैसे गैस और पेट्रोलियम सब्सिडी
* टैक्स कलेक्शन को बढ़ाना और टैक्सपेयर बेस को बढ़ाना
* डिफेंस बजट पर लगाम लगाना
* गैर जरूरी खर्चे बन्द करना

सरकार के खर्च में कटौती का मतलब है कि पाकिस्तान को अपने डिफेंस बजट को छोटा करना होगा. एक तरफ ISI को मिलने वाला अघोषित फंड बंद होगा उपर से सेना के पैसे में कटौती - इससे पाकिस्तान में भूचाल आना निश्चित है।

सत्ता पलट भी हो सकता है. इतना ही नहीं, IMF ने बिजली, पानी, पेट्रोल, डीजल और गैस से सब्सिडी हटाने को कहा है. इससे लोगों को काफी परेशानी होने वाली है क्योंकि हर चीज की कीमतें बढ़ेगी. सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन का दौर शुरु हो जाएगा. इतना ही नहीं, रिफार्म के तहत पाकिस्तान की सरकार को ज्यादा से ज्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में लाना होगा और टैक्स कलेक्शन बढ़ाना होगा. फिलहाल ये बजट की सिर्फ 10 फीसदी है. इसे कम से कम 20 फीसदी करने को IMF ने कहा है.

IMF की शर्तों की लिस्ट काफी लंबी है औऱ पाकिस्तान के पास कोई चारा बचा भी नहीं है. अगर IMF की शर्तों पर पाकिस्तान कर्ज लेता है तो बिजनेस चौपट होगा, महंगाई बढ़ेगी,आयात का बिल बढ़ेगा, लोगों पर कर का बोझ बढ़ेगा. इमरान खान के नए पाकिस्तान में हर तरफ हाहाकार मचेगा. बलुचिस्तान, सिंध और अब तो पंजाब के लोग भी धावा बोलेंगे. इतना ही नहीं, आर्मी नाराज होगी, ISI के पर कट जाएंगे. और तो और, आतंकी संगठन को जब पैसे नहीं मिलेंगे तो ये लोग पाकिस्तान में क्या बवाल मचाएंगे ये सोचा भी नहीं जा सकता है. आतंकवादी ग्रुप्स तो Frankenstein Monsters हैं, उन्हें चढ़ावा नही चढ़ाया तो वो अपने संरक्षक को ही खा जाएंगे।

वहीं बलुचिस्तान और सिंध में पाकिस्तान से अलग होने की तहरीक चल ही रही है. वहाँ खूनी संघर्ष रोजाना ही हो रहे हैं।जिस देश की आर्थिक संप्रभुता खत्म हो जाती है वो देश वैसे भी एकजुट नहीं रह पाता है. सोवियत यूनियन जैसा शक्तिशाली साम्राज्य टूट के बिखर चुका है,उसका कारण भी आर्थिक ही था। पाकिस्तान सोवियत युनियन की राह पर है, हालात नहीं बदले तो पाकिस्तान के विघटन को कोई रोक नहीं सकता है.

और शायद यही तो गेम प्लान था मोदी का, जिसका उद्घोष उन्होंने लाल किले से इन असंतुष्ट इलाको के लोगो को संबोधित करके किया था

वैसे भी 21वी सदी के युद्ध जंग के मैदानों में नही होंगे, अब ये आर्थिक और साइबर वारफेयर का जमाना है। लड़ाइयां Datacenters और शेयर बाजारों के रास्ते लड़ी जाएंगी।
-फेसबुक वाल पर जय बख्शी
(बनारस, 23अक्टूबर 2018, मंगलवार)
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