गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

व्योमवार्ता/ गण के तंत्र का उत्सव रामसमुझ की छब्बीस जनवरी: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 27 दिसम्बर 2018

व्योमवार्ता/ गण के तंत्र का उत्सव रामसमुझ की छब्बीस जनवरी: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 27 दिसम्बर 2018

                     रामसमुझ की नींद रोज की तरह आज भी पॉच बजे सुबह खुल गई, अब नींद खुल गई तो वह नहा निपट के खाली भी हो गया। अभी सुरज देवता नही उगे थे। रामसमुझ को नहा धो के बैठा देख उसकी पत्नी परभौतिया ने जले चूल्हे पर चार गो मोटी मोटी हथुई रोटी सेक मसालेदार आलूदम और गरम गरम काली चाय के साथ उसके आगे कलेवा रख दिया।कलेवा देने के बाद परभवतिया रोज की तरह ऑख पोछते, नाक सुकड़ते रामसमुझ के सामने बैठ गई। यह परभौतिया का रोज का नियम था, इसमे कोई शिकवा शिकायत या मजबूरी की बात नही बल्कि रोज सुबह सुबह चुल्हे को फूंकने व धूये के  तीखेपन का असर है। परभौतिया कई बार टी वी पर सुनी थी कि सरकार और मोदी जी सबको गैस कनेक्शन बॉट रहे है पर अभी तक उसे कोई कनेक्शन नहीं मिला। ऐसा नहीं है कि परभवतिया व रामसमुझ ने इसके लिये प्रयास नहीं किया पर गैस एजेंसी वालो ने बताया कि कनेक्शन उनके आधार कार्ड पर लिखे पता पर ही मिलेगा। अब परभवतिया का घर तो यहॉ है नही, वह तो बिहार मे है कोसी नदी के किनारे सड़क से दो कोस अंदर जाने पर। यहाँ तो वह उसी बिल्डर के अधूरी बनी बिल्डिंग के कंपाउंड मे किनारे बने टेम्परवारी ईंट की झोपड़ी मे रहती है जिसमे पहले वह व रामसमुझ दोनो काम किया करते थे। पता नहीं क्यों बीच मे ही बिल्डिंग का काम बंद हो गया लेकिन बिल्डर के मेठ ने उन दोनो को और लेबरो के साथ पॉच सो रूपये महीने पर उन्हे रहने दिया था।एक बार रामसमुझ ने मेठ से पूछा भी था कि काम क्यों बंद हो गया तो मेठ ने बताया कि नोटबंदी से सब कुछ ठप्प हो गया है परभवतिया आज तक नही समझ पाई कि अगर नोटबंदी हो चुकी है तो रोज दिखने वाले नोट कहॉ से आते है। बल्कि अब तो हरे पीले बैगनी बादामी कत्थई रंग के रिकम रिकम के नोट दिखते है उसे। पिछले बार जब एकांउट मैडम जी ने उसे पगार दिया था तो वह तो पहचान ही नही पाई थी हरे रंग के पचास कत्थई रंग के सौ और पीले रंग के दो सौ रूपये के नोट को। मैडम जी ने ही उसे पहचनवाया था । एकाउंट मैडम जी ने उसे एगो छोटका चूल्हा मुंह वाला सिलेण्डर दिया है पर वो भी न भरवाने से खाली पड़ा है। तो आधार न होने के काऱण परभवतिया को कनेक्शन नही मिला गैस का, और वह आज भी ईंटे वाले चुल्हे पर ही अपना रोटी कलेवा तैयार कर लेती है। परभवतिया की भी दिनचर्या बड़ी टाईट है वह रामसमुझ से भी पहिले उठ के मुँहअंधेरे ही थोड़ी दूर पर से गुजर रही रेलवे लाईन के किनारे फरचंगा हो आती है। शुरू शुरू मे तो परभवतिया को बड़ा अजीब लगता था जब वह लाईन किनारे घुटने मे सिर गाड़े बैठी रहती और कोई रेलगाड़ी उधर से गुजरती पर अब वह आदती हो गई है । मेलगाड़ी आये या मालगाड़ी कौन सा उसमै बैठने वाले पसिंजर परभवतिया को पहचानते है,और गर पहचानते भी होगें तो परभवतिया अपना मुँह थोड़ा सा और नीचे झुका लेती है कि उसे कोई देख ही न सके। साल डेढ़ साल पहिले बड़ी दिक्कत हो गई थी कोई नया लड़का कलेट्टर आया था वह सबेरे सबेरे खुले मे फरचंगा हेने वालों को सीटी बजा के पकड़वाता था। सुन सुन कर परभवतिया को कई दिन तक खुलाशा ही नही हुआ था। लेकिन यही अच्छा रहा कि रेलवे लाईन किनारे कोई सीटी बजाने वाला नही आया बाद मे सुना कि उस लड़के कलेट्टर की यहॉ से बदली हो गई।
अरे हम भी कहॉ की बात करने लगे , बात परभवतिया के दिनचर्या की हो रही थी, तो परभवतिया जब तक रेलवे लाईन से वापस आती है तब तक हाते मे लगे सरकारी नल का पानी आना शुरू हो जाता है, बस चटपट वहीं पर राखी से रात के बर्तन मॉजने के बाद चुल्हे की मुलायम राखी से ही दंत मॉज कर नहाने के बाद परभवतिया झोपड़े मे आती है और चूल्हा मे आगी दे कलेवा तैयार करने को रख देती है। परभवतिया को कभी कोई आसकत नही लगता अपने इस सबेरे के नेम मे।हॉ कभी कभार जब सरकारी नल मे पानी नही आता तब सरकारी नल की ही तरह परभवतिया को भी अपना नियम तोड़ना पड़ता है क्योंकि तब पानी के लिये बिल्डिंग के समर्सेबुल पंप का बाट देखना पड़ता है, और वह बिल्डिंग का चौकीदार तभी चलाता है जब बिल्डिंग के सारे लोग एक साथ पानी लेने आयें। अब ऐसे मे नहाया तो जा नही सकता तब परभवतिया बिना नहाये धोये अपने काम मे लग जाती है। कामधाम का मतलब रामसमुझ को कलेवा खिला के काम पे भेजना  फिर अपना कलेवा जल्दी से निपटा कर बगल वाले अपाटमिंट मे झाडू पोछा, बरतन करने जाना। कुल चार घरों मे झाड़ू पोछा बर्तन करती है परभवतिया। एकाउंट मैडम के यहॉ, उनके साहब वीडीए मे एकांउंटेन है, प्रोफेसर मैडम के यहॉ,वकील साहेब के यहॉ और वो बलकटी मैडम के यहॉ जिनके साहेब पानी वाले जहाज पे रहते हैं, सबसे बढ़िया वही मैडम है, खूब सुंदर भी है और अभी नई उमर की भी।अकसर परभवतिया को अपने पुराने कपड़े लत्ते और सामान देती है और कुछ नया बनाती है तो वो भी। उनके यहॉ काम भी कम ही होता है गिन के तीन मुर्गी, उस पर भी अकसर खाने पीने की चीजे मोबाइल कर के मंगा लेती है दूर दूर से भी, जब उनके पति आते है तो अकसर खाना पीना बाहर, परभवतिया को आराम ही आराम, लेकिन वकिलाईन मैडम को ले लो ,बाप रे हमेशा नकचढ़ी और रोज न रोज घर पर दोस्तों को बुला कर पार्टी करती रहती है। एक तो खुद कहीं बाहर जाती नही बल्कि उसके यहॉ लोग ही आते रहते है, अब लोग आयेगें तो बरतन निकलेगा और परभवतिया का काम बढ़ेगा। बस गर्मियों मे छुट्टी मनाने बाहर जायेगी तो सौ ठो हुकुम बजा के, परभावती रोज शाम को लाईट जला देना, किचन मे ऱोज झाड़ू लगा देना। सौ तरह के नखरे इन बड़े लोगों के होते है लेकिन परभावती सब कुछ कर लेती है बिना शिकायत, बिना बोले। आखिर उसकी कमाई तो झीरा है हर महीना मिल जाती है नही तो रामसमुझ के लेबराना का क्या भरोसा , कभी बरसात से बंद तो कभी काम न मिलने से। कभी कभी दस दिन भी बैठना ही पड़ जाता है। रामसमुझ और परभवतिया को चार लड़कियॉ है, लड़के के इंतजार मे एक के बाद एक करते हुये जब चार की लाईन लग गई तो मेडवाईफ बहिन जी के कहने पर परभवतिया ने आपरेशन करवा लिया तीन हजार रूपया  मिला था उस वक्त । चारों को उन दोनो ने सास ससुर के पास बिहार छोड़ दिया है  दो पढ़ने जाती है दो दर्जा आठ पास कर के घर का काम धाम देखती है अपने बब्बा आजी के पास। इन्ही की शादी की चिन्ता लगी रहती है परभवतिया को। इसलिये वह दोनो की कमाई से बचा के चार हजार रूपये अपने ससुर को भेज देती है , पॉच सौ रूपये कोठरी का भाड़ा चौकीदार के हाथ पर हर महीने के दो तारीख को रखना पड़ता है, उस भाड़े मे बिजली का एक लट्टू, छोटी वाली टीवी, एक फर्राटा पंखा, मोबाइल चार्जिंग और बाहर वाले नल का खर्चा शामिल है। दो ढाई हजार के आसपास राशन, कोईला, लकड़ी मे लग जाते है। गॉव से ससुर या कोई और दवा ईलाज घूमनेे या मिलने आ गया तो हजार पॉच सौ खातिरदारी लग जाते है पर इसी बहाने मटन मुर्गा आ जाता है । उस दिन रामसमुझ नूरी या मसालेदार सीसी ले आता है तो महीने मे एकाध दिन जश्न हो जाता है।
हम फिर लाईन से भटक गये। बात रामसमुझ से शुरू हुई थी और हम परभवतिया के लपेटे मे उलझ गये। हॉ, तो कल रामसमुझ के ठीकेदार ने कहा था कि कल छब्बीस जनवरी है काम नही होगा। अब छब्बीस जनवरी कोई हिन्दू मुस्लिम तीज त्योहार तो है नही जो काम बंद करना पड़े पर ठीकेदार ने बताया कि यह राष्ट्रीय त्यौहार है काम होता दिखा तो लेबर विभाग वाले उस पर फाईन ठोंक देंगे, तब रामसमुझ के समझ मे आया कि ठीकेदार अपने को बचाने के लिये काम बंद कर रहा है।
  आज कल रामसमुझ कचहरी मे काम कर रहा है, बहुत ऊँची बिल्डिंग बन रही है कचहरी मे, ठीकेदार बता रहा था कि मोदी जी बनवा रहे है, वे यहॉ से जीते है इसलिये। कोई बनवाये रामसमुझ को क्या? उसे तो बस काम से मतलब है। इधर तीन महीने से वह इसी बिल्डिंग मे काम कर रहा है। दिन भर भीड़ भाड़ रहती है यहॉ . लगता है सारा बनारस यही आ गया हो। अनगिनत काला कोट पहने वकील साहब लोग तो फटे कुर्ता लुंगी धोती से लेकर नये चमकते सूट टाई मे लोग, नई नई शरमाती अपने दुल्हे का हाथ थामे शादीसुदा लड़कियॉ तो उनसे ज्यादा तेजी दिखाती इधर उधर भागती महिलायें। मोटरसाइकिल की तो कोई गिनती ही नही और चारो तरफ लगी कार मोटर, किसी भी ओर से सीधे घुसने की गुंजाइश ही नही। वकील से लेकर पुलिस वाले, फेरी वाले, खोमचे वाले, फल वाले सभी तो दिखते है कचहरी में।इन तीन चार महीनो से कचहरी के कई रंग देखे है रामसमुझ ने।रोते कलपते लोगों को, ठहाके लगाते लेगों को। घर से कुर्ते की जेब मे अखबार के टुकड़े मे लपेटी रोटी को आचार के साथ खा कर सरकारी नल पर पानी पीते लोगों को और कचहरी के दुकानों मे बैठ एक के बाद मालपुये उड़ाते लोगों को। कभी अपनी धोती की गॉठ से मुड़े तुड़े नोटों को निकाल कर देते और वकील साहब के पैरों को छूती निराश ऑखे तो अटैची से नयी नोटों की गड्डियों को वकील साहेब के मेज पर पटकती सपने बुन रही ऑखो को। अभी पिछले महीने ही तो कचहरी मे वकील साहब लोगो का 'एलेकसन' था। बाप रे बाप , क्या क्या रूप और किस किस दशा मे  देखा था वकीलसाहब लोगों का रामसमुझ ने। अब ये सब बातें रामसमुझ परभवतिया को बताता है तो वह समझ नही पाती । समझ तो रामसमुझ भी नही पाता पर वह अचरज करता है इन सब चीजों को देख कर।
आजकल रामसमुझ बिल्डिंग के ऑठवी मंजिल पर काम कर रहा है। ठीकेदार ने चारो तरफ हरा तिरपाल लटकवा दिया है ऊपर से नीचे तलक ताकि कोई ईंट पत्थर का टुकड़ा नीचे न गिर सके। ठीकेदार साहेब कहते है कि वकीलो से कौन उलझे? कुछ हो गया तो नाहक बवाल कर देगें ये लोग। उन्होने सारे लेबरों से भी वकीलों से बात चीत करने से मना कर रखा है बल्कि कोशिश ये करते है कि दिन का काम कचहरी चलने के दौरान भीतर भीतर ही हो। रामसमुझ कभी कभी इस बिल्डिंग से पूरे बनारस को देखता है। टीवी टावर से लेकर कैण्ट स्टेशन का उपर वाला चक्का, बड़े बड़े एपाटमिन्ट, रजिस्ट्री आफिस , शिवपुर वाली बिल्डिंग सब छोटे छोटे दिखते है , तब उसे लगता  कि वह बहुत  ऊँचा हो गया है, बड़ा आदमी।
बहरहाल कलेवा करने के बाद थोड़ी देर रामसमुझ ईधर उधर करता रहा। परभवतिया ने कहा भी कि घर मे रह के टीवी देखे दिल्ली से प्रोग्राम आयेगा पर परभवतिया तो काम पर चली जायेगी फिर वह अकेला क्या टीवी देखेगा। परभवतिया को छब्बीस जनवरी की छुट्टी क्यो नही है, क्या उसके एपाटमिंट मे लेबर विभाग वाले नही छापा डालते। आखिर मन नही मानता वह अपना गमछा कानो पर बॉध निकल पड़ता है। आज की सुबह थोड़ी सी अलग सी है। सड़क के किनारे खड़े बच्चे आज बिना स्कूल का बस्ता लिये चमकती ड्रेसो मे अपने स्कूल की गाड़ियों का इंतजार कर रहे हैं। कई गो टैम्पो वाले अपने टैम्पो पर भी झंडा लगाये हैं कई ने आगे सीसे पर मेरा भारत महान भी लिख रखा है चूने से। ये टैम्पो वालों की ही जिन्दगी मस्त होती है, रामसमुझ सोचता है, नये साल संक्रान्ति होली दीवाली पर टैम्पो को सजा के घूमाते है खूब जोर जोर गाना बजा के। रेलवे फाटक पर सब्जी वालो की भीड़ वैसे ही है। आज गाहक कुछ ज्यादा ही दिख रहे है फुरसत से सब्जी खरीदते हुये।आज छब्बीस जनवरी जो है, इनकी भी छुट्टी ही होगी, लेबर विभाग के छापे का डर। ये बड़े लोग भी किसी से डरते तो है, ये ख्याल आते ही रामसमुझ का मन खुश हो जाता है।फाटक के बॉये हाथ वाला बड़ा कटरा किसी मंत्री जी का है, जब यह बन रहा था तब रामसमुझ ने इसमे भी लेबरई किया था। अंदर शादी का मैदान भी है इसमे। ये मंत्री जी लोगो के ऊपर क्या नोटबंदी नही होती, बरबस ही रामसमुझ के मन मे सवाल उठता है। चलते चलते वह बाईपास आ जाता है, वाह आज बाईपास पचमुहानी के गोलंबर मे भी बड़ा सा झंडा लहरा रहा है।बगल के स्कूल की सारी बसे सड़क किनारे खड़ी है, ये रोज ऐसे ही खड़ी रहती है, पता नही क्यों इनका चालान नही होता? बाकी तो सड़क पर गाड़ी खड़ी करते ही पुलिस वाले चालान कर देते है। सुना है कोई बड़े अफसर है विशनाथ मंदिल के, उन्ही का स्कूल है यह। फिर पुलिस वाले क्यों चालान करेगें।उत्तर तरफ नया वाला पीला पुल है,इसे भी हाल मे मोदी जी ने बनवाया । रातो रात पुल कैसे सड़क के ऊपर टंग गया यह रामसमुझ के लिये अचरज की बात है। वह बहुत दिनो से इस पर चढ़ कर नीचे आती जाती गाड़ियों को देखना चाहता था। आज खलिहर है तो ये भी कर लेते है। रामसमुझ लपक कर पीले पुल पर चढ़ जाता है , हल्के कोहरे मे सूरज अभी तक नही निकले हैं। उत्तर की ओर दूर तक जाती सड़क पर आती जाती सीधी लाईन मे गाड़ियॉ, बीच मे जलते लाईट के खंभो के बीच खजूर के छोटे छोटे पेड़ अच्छे लग रहे हैं। अरे ये क्या ? सब्जी लाद कर आ रही छोटे हाथी को चौकी के सिपाही ने रोक के किनारे खड़ा करा दिया है। और किसी बात पर झेंझ कर रहा है।ऊपर से सब दिख रहा है, काश रामसमुझ के पास कैमरा वाला मोबाईल होता तो वह आज सिपाही राम की पूरी रामकहानी खेंच लेता। काफी देर तक हाथ पैर जोड़ने के बाद छोटा हाथी का ड्राईवर पहले पचास रूपये फिर सौ रूपये सिपाही को देता है तब बेचारा अपनी सब्जी लदी गाड़ी को ले के जा पाता है। उसके लिये कोई छब्बीस जनवरी नही है न ही सिपाही जी के लिये।उसके ख्यालो को  हल्की गड़गड़ाहट तोड़ती है। ऊपर एक हवाई जहाज पूरूब ओर चला जा रहा है, जब से मोदी जी बनारस से परधानमंत्री हुए है तब से बनारस मे हवाईजहाज खूब आ गये हैं। वह पुल से ऊतर कर पचकोसी पकड़ कर यूपी कालेज  गेट होते हुये भोजूबीर आता है। वहॉ टैम्पो स्टैण्ड पर ही टैम्पो वाले छब्बीस जनवरी मना रहे है,  आपस मे हंसी मजाक ठिठोली करते। रामसमुझ वही चाय पीने राजा उदेप्रताप की मूर्ति के नीचे खड़ा हो जाता है तभी एक स्कूटी पर आये साहब उसे बुलाते है "ऐ सुनो काम करोगे?" "लेकिन साहब, आज तो छब्बीस जनवरी है।"
"अरे यार कौन सा तुम्हे संविधान लिखना है, कुछ कमाना है तो बताओ, दस मिनट का काम है ,सौ रूपये दूगॉ।" रामसमुझ को लगता है छुट्टी मे कुछ मिल ही तो रहा है चलो कर लेते है। काम पूछने पर पता चलता है कि साहब के मर चुके कुत्ते की लाश को लाद कर बरना नदी मे फेंकना है। मामला दो सौ रूपये से चलते चलते डेढ़ सौ रूपये मे तय हुआ । एक बार तो रामसमुझ को लगा कि नहाने धोने के बाद मरे कुत्ते को उठाना सही नही है फिर सोचा कि छुट्टी के दिन दस मिनट के काम के लिये डेढ़ सौ रूपये कमाने मे कोई बुराई नहीं । दिन दूपहरी घर चल कर फिर से नहा लेगा। वह साहेब के साथ चल देता है। साहब के आलीशान घर मे सीढ़ी के नीचे पड़े कुत्ते की लाश को मेमसाहेब के दिये सफेद कपड़े मे लपेट बोरे मे भर लेता है। मेम साहेब लगातार रो रही है। जब रामसमुझ कुत्ते की लाश को साहेब के कार की डिग्गी मे रख कर जोर से डिग्गी का दरवाजा बंद करता है तो मेमसाहेब चीख पड़ती है"संभाल के, ब्रूनो को चोट लग जायेगी।" हक्का बक्का रामसमुझ देखता है कि ब्रूनो कौन है।साहब रामसमुझ की परेशानी समझ जाते है और फफक कर रोती मेमसाहेब को संभालते हुए अंदर ले जाते है। रामसमुझ सकुचाता सा साहेब की गाड़ी मे बैठ जाता है और बरूना पुल से बॉये कार उतार कर इंकमटैक्स के पिछवाड़े साइड मे खाली जगह देख कर डिग्गी से कुत्ते की लाश उठा कर नदी मे फेंक देता है। नदी मे पानी न होने से बोरा बस वैसे ही उतरा गया। साहेब ने हाथ जोड़ कर अपने ब्रूनो को प्रणाम किया और वापस चल दिये।कचहरी पर आ कर रामसमुझ वहीं उतर गया अपना डेढ़ सौ रूपया ले के।वह बार बार कभी खुद को कुकुरगंध मे सना महसूस करता है कभी ब्रूनो की किस्मत पर सोचने लगा कि मरने के बाद भी कार से खुद साहेब उसे ले के प्रवाहित करने गये।यही किस्मत है जो साली बार बार बड़े लेगो को ही मिलती है। उसका दिमाग भन्ना गया था और भोजूबीर तक आते आते उसके कदम देशी ठीके के तरफ घूम गये। ठीका बाहर से बंद है पर रामसमुझ को मालूम है कि छुट्टी मे भी ठीका के पीछे की खिड़की खुली रहती है। दो नमकीन भुजिया पाऊच दो सीसी नूरी ले के वह वापस कोठरी की ओर चल दिया। अभी घर पर परभवतिया नही आयी है। वह तब तक नल पर जा कर नहा धो के फारिग हो जाता है। अभी भी परभवतिया नही आई । वह कोठरी के दरवाजे पर बैठा परभवतिया के काम वाले एपाटमिंट की ओर नजर डालता है और एक पाऊच व एक नूरी खोल लेता है। परभवतिया के एपाटमिंट पर बड़ा सा झंडा लहरा है । रामसमुझ भी जोश मे खड़ा हो जाता है, उसके हाथ खुद बखुद सलामी के मुद्रा मे आ जाते है और उसे पिराईमरी स्कूल मे याद कराया गया गाना याद आ जाता है "जनगन मन अधिनायक जय हे........।
  (बनारस, २७ दिसम्बर २०१८, गुरूवार)
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