शनिवार, 22 जुलाई 2017

व्योमवार्ता / जियो मोबाइल आफर, एक नजरिया यह भी : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 22जुलाई 2017,शनिवार

जियो मोबाइल  आफर,  एक नजरिया  यह भी : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 22जुलाई 2017, शनिवार

      कल से मोबाइल  बाजार मे बड़ी चर्चा है मुकेश अंबानी की जियो मोबाइल  आफर की,  अंबानी ने 24 अगस्त से 1500रूपये मे 4जी मोबाइल  सेट उपलब्ध कराने की घोषणा  की है जो तीन साल तक एक्सचेंज बैक मनी  के साथ  मिलेगा,  साथ ही साथ यह टीवी के लिये डीटीएच मोडम व इंटरनेट फैसिलेटर के रूप मे भी उपयोग हो सकेगा. आम जनता इस आफर को ले कर बेहद उत्साहित  है उम्मीद  है कि अगस्त के आखिरी हफ्ते मे जियो फोन के लिये रिटेल मोबाइल  स्टोर्स पर फिर मारामारी देखने को मिलेगी. रिलायंस जियो के इस आफर को सभी अपने अपवे तरीके से देख रहे है पर यह तो तय है कि रिलांयस अपने पिछले इतिहास को दुहराते हुये  अपना बाजार स्थापित करने के लिये बाकी कंपनियो का बाजार बिगाड़ देगी. मेरे एक मित्र ने इस पूरे प्रकरण  पर एक उम्दा पोस्ट लिखा है जिसके संबंध मे सत्यता की गारंटी नही ली जा सकती परंतु यह मन को सुकून देने वाली व वास्तविक  जैसी ही है.  यदि ऐसा ही हुआ तो?
               मुकेश अम्बानी का Jio का फ्री फोन और Make in India (वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं) : जिन्हें लग रहा है कि रिलायंस ने ये फ्री फ़ोन अचानक लांच कर दिया उन्हें दोबारा सोचने की ज़रूरत पड़ेगी इस लेख को पढ़ने के बाद,
मोदी ने 3 साल पहले Make in India लांच किया, विदेश की 70+ मोबाइल कंपनियां भारत आयीं और अपनी फैक्टरियां लगाईं, जिस देश मे मोबाइल का स्क्रीन गार्ड, कवर और टेम्पर्ड ग्लास तक नही बनता था वहां अब मोबाइल बनने शुरू हो गए, manufacture होने शुरू हो गए (assemble नही manufacture), अब इन विदेशी कंपनियों ने भारत मे Made in India हैंडसेट बेचने शुरू कर दिए जिसमे xiaomi, gionee, oppo, vivo आदि शामिल हैं, लेकिन मोदी का ये सपना नही था, उन्हें तो कुछ और चाहिए था, मोदी को भारत की बादशाहत चाहिए थी विश्व बाजार में, तो जब सब ने अपनी अपनी फैक्ट्री लगा ली प्रोडक्शन चालू कर लिया तब उन्हें विदेशों में माल बेचने के लिए प्रोत्साहित किया गया, टैक्स में छूट दी गयी, नतीजा ये हुआ कि xiaomi जैसी कंपनी Made in India हैंडसेट को US और Europe में बेचने लगी, बेच तो पहले भी रही थी पर तब चीन में बना हैंडसेट बेचा जा रहा था और अब भारत मे बना, यानी चीन का व्यापार छीन कर भारत ने ले लिया, और ऐसा एक चीनी कंपनी से करवा लिया, चीन की बौखलाहट की वजह यही है, अब कल Jio का फ्री फ़ोन लांच हो गया यानी ऐसी 70+ कंपनियों की वाट लग गयी अब वे क्या करेंगी? ज़ाहिर है हजारों करोड़ के इन्वेस्टमेंट के बाद ये कंपनियां बंद तो करेंगी नही क्योंकि बंद करने में पूरा पैसा डूब जाएगा, अब इन कंपनियों के लिए भारत का बाजार तो खत्म हो गया ऐसे में अब ये सभी कंपनियां एक्सपोर्ट पर दिमाक लगाएंगी, यानी सभी विदेशी कंपनियां अब मोबाइल बनाएंगी भारत मे और बेचेंगी विदेश में, यही तो मोदी का सपना था, यही सही मायने में Make in India है, जहां भारतीयों को काम मिले, माल भारत मे बने और विदेशों में बेचा जाए, वैसे फ्री फ़ोन का कांसेप्ट Jio के साथ लांच होना था पर इसे एक साल तक रोके रखा गया, आप इतने समझदार है कि ये समझने की ज़रूरत नही कि क्यों रोका गया
(बनारस, 22जुलाई 2017, शनिवार)
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बुधवार, 19 जुलाई 2017

व्योमवार्ता / मेरी बेटी अब थोड़ी सी बड़ी हो गई है : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 19 जुलाई 2017,बुधवार

मेरी बेटी अब थोड़ी सी बड़ी हो गई है : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 19जुलाई 2017, बुधवार

अब मेरी बेटी थोड़ी सी,
       बड़ी हो गई है..
कुछ जिद्दी, कुछ नकचढ़ी
       हो गई है.
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी
       हो गई है.
अब अपनी हर बात
     मनवाने लगी है..
हमको ही अब वो
      समझाने लगी है.
हर दिन नई नई फरमाइशें
      होती है.
लगता है कि फरमाइशों
      की झड़ी हो गई है.
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो
       गई है.
अगर डाटता हूँ तो आखें
       दिखाती है..
खुद ही गुस्सा करके रूठ
      जाती है..
उसको मनाना बहुत
     मुश्किल होता है..
गुस्से में कभी पटाखा
     कभी फूलझड़ी हो गई है..
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो
      गई है..
जब वो हँसती है तो मन
       को मोह लेती है..
घर के कोने कोने मे
    उसकी महक होती है..
कई बार उसके अजीब से
      सवाल भी होते हैं..
बस अब तो वो जादू की
      छड़ी हो गई है..
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी
       हो गई है..
घर आते ही दिल उसी को
      पुकारता है..
सपने सारे अब उसी के
     संवारता है..
दुनियाँ में उसको अलग
     पहचान दिलानी है..
मेरे कदम से कदम
    मिलाकर वो खड़ी हो गई है
मेरी बेटी थोड़ी सी बड़ी हो गई है .
(बनारस,19जुलाई 2017, बुधवार)
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सोमवार, 17 जुलाई 2017

व्योमवार्ता / निज भाषा उन्नति करै.... (इतिहास के पन्नों से) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17जुलाई 2017 सोमवार

निज भाषा उन्नति करै.... (इतिहास के पन्नों से) : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17जुलाई 2017 सोमवार

         आज कल हम भारतीय मध्यवर्गीय परिवारो मे अपनी भाषा, अपनी संस्कृति,अपना संस्कार छोड़ कर पश्चिम की भौतिकवादी परिवेश के नकल करने की प्रवृत्ति बड़ी तेजी से बढ़ रही है, कुछेक मॉ बाप मुझसे जब यह कहते गर्व महसूस करते है कि उनके बच्चों को हिन्दी नही आती,या वे हिन्दी नही समझ पाते है तब मै स्वयं को अपनी मातृभाषा  व मातृभूमि  के प्रति अपराधबोध से पीड़ित पाता हूँ कि परिवर्तन की दिखावे वाली दिशाहीन ऑधी मे किस तरह दशाहीन हो रहे है हम.  दोष उन बच्चो का नही,  दोष तो हमारी पीढ़ी का है जो अपने आने वाले भविष्य को सच्चे जीवनमूल्यों ये बोध नही करा पा रहे है हम. आज फ्रांस मे एक भारतीय विद्वान का एक अनुभव पढ़ने को मिला जिसे इस उद्देश्य के साथ आप सब से बॉटने की ईच्छा हो रही है कि पता चले कि पश्चिम के देश अपनी यंस्कृति,  अपनी भाषा  व अपने परम्पराओं  को लेकर कितने सजग है वहीं उनका अनुकरण करते हम इस परिवेश मे स्वयं को कहॉ पाते है, यह विचारणीय है.
         इतिहास के प्रकांड पंडित डॉ. रघुबीर प्राय: फ्रांस जाया करते थे। वे सदा फ्रांस के राजवंश के एक परिवार के यहाँ ठहरा करते थे।
उस परिवार में एक ग्यारह साल की सुंदर लड़की भी थी। वह भी डॉ. रघुबीर की खूब सेवा करती थी। अंकल-अंकल बोला करती थी।
एक बार डॉ. रघुबीर को भारत से एक लिफाफा प्राप्त हुआ। बच्ची को उत्सुकता हुई। देखें तो भारत की भाषा की लिपि कैसी है। उसने कहा अंकल लिफाफा खोलकर पत्र दिखाएँ। डॉ. रघुबीर ने टालना चाहा। पर बच्ची जिद पर अड़ गई।
डॉ. रघुबीर को पत्र दिखाना पड़ा। पत्र देखते ही बच्ची का मुँह लटक गया अरे यह तो अँगरेजी में लिखा हुआ है।
आपके देश की कोई भाषा नहीं है?
डॉ. रघुबीर से कुछ कहते नहीं बना। बच्ची उदास होकर चली गई। माँ को सारी बात बताई। दोपहर में हमेशा की तरह सबने साथ साथ खाना तो खाया, पर पहले दिनों की तरह उत्साह चहक महक नहीं थी।
गृहस्वामिनी बोली डॉ. रघुबीर, आगे से आप किसी और जगह रहा करें। जिसकी कोई अपनी भाषा नहीं होती, उसे हम फ्रेंच, बर्बर कहते हैं। ऐसे लोगों से कोई संबंध नहीं रखते।
गृहस्वामिनी ने उन्हें आगे बताया "मेरी माता लोरेन प्रदेश के ड्यूक की कन्या थी। प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व वह फ्रेंच भाषी प्रदेश जर्मनी के अधीन था। जर्मन सम्राट ने वहाँ फ्रेंच के माध्यम से शिक्षण बंद करके जर्मन भाषा थोप दी थी।
फलत: प्रदेश का सारा कामकाज एकमात्र जर्मन भाषा में होता था, फ्रेंच के लिए वहाँ कोई स्थान न था।
स्वभावत: विद्यालय में भी शिक्षा का माध्यम जर्मन भाषा ही थी। मेरी माँ उस समय ग्यारह वर्ष की थी और सर्वश्रेष्ठ कान्वेंट विद्यालय में पढ़ती थी।
एक बार जर्मन साम्राज्ञी कैथराइन लोरेन का दौरा करती हुई उस विद्यालय का निरीक्षण करने आ पहुँची। मेरी माता अपूर्व सुंदरी होने के साथ साथ अत्यंत कुशाग्र बुद्धि भी थीं। सब ‍बच्चियाँ नए कपड़ों में सजधज कर आई थीं। उन्हें पंक्तिबद्ध खड़ा किया गया था।
बच्चियों के व्यायाम, खेल आदि प्रदर्शन के बाद साम्राज्ञी ने पूछा कि क्या कोई बच्ची जर्मन राष्ट्रगान सुना सकती है?
मेरी माँ को छोड़ वह किसी को याद न था। मेरी माँ ने उसे ऐसे शुद्ध जर्मन उच्चारण के साथ इतने सुंदर ढंग से सुनाया किखुश हो कर साम्राज्ञी ने बच्ची से कुछ इनाम माँगने को कहा। बच्ची चुप रही। बार बार आग्रह करने पर वह बोली 'महारानी जी, क्या जो कुछ में माँगू वह आप देंगी?'
साम्राज्ञी ने उत्तेजित होकर कहा 'बच्ची! मैं साम्राज्ञी हूँ। मेरा वचन कभी झूठा नहीं होता। तुम जो चाहो माँगो। इस पर मेरी माता ने कहा 'महारानी जी, यदि आप सचमुच वचन पर दृढ़ हैं तो मेरी केवल एक ही प्रार्थना है कि अब आगे से इस प्रदेश में सारा काम एकमात्र फ्रेंच में हो, जर्मन में नहीं।'
इस सर्वथा अप्रत्याशित माँग को सुनकर साम्राज्ञी पहले तो आश्चर्यकित रह गई, किंतु फिर क्रोध से लाल हो उठीं। वे बोलीं 'लड़की' नेपोलियन की सेनाओं ने भी जर्मनी पर कभी ऐसा कठोर प्रहार नहीं किया था, जैसा आज तूने शक्तिशाली जर्मनी साम्राज्य पर किया है।
साम्राज्ञी होने के कारण मेरा वचन झूठा नहीं हो सकता, पर तुम जैसी छोटी सी लड़की ने इतनी बड़ी महारानी को आज पराजय दी है, वह मैं कभी नहीं भूल सकती।
जर्मनी ने जो अपने बाहुबल से जीता था, उसे तूने अपनी वाणी मात्र से लौटा लिया।
मैं भलीभाँति जानती हूँ कि अब आगे लारेन प्रदेश अधिक दिनों तक जर्मनों के अधीन न रह सकेगा।
यह कहकर महारानी अतीव उदास होकर वहाँ से चली गई। गृहस्वामिनी ने कहा 'डॉ. रघुबीर, इस घटना से आप समझ सकते हैं कि मैं किस माँ की बेटी हूँ।
हम फ्रेंच लोग संसार में सबसे अधिक गौरव अपनी भाषा को देते हैं। क्योंकि हमारे लिए राष्ट्र प्रेम और भाषा प्रेम में कोई अंतर नहीं...।'
हमें अपनी भाषा मिल गई। तो आगे चलकर हमें जर्मनों से स्वतंत्रता भी प्राप्त हो गई।
  क्या हम इस कहानी से कुछ सीख सकते हैं,  अवश्य सोचियेगा.
(बनारस, 17जुलाई 2017, सोमवार)
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