शुक्रवार, 27 मार्च 2020

व्योमवार्ता/ नवरात्रि का तीसरा दिन और तंत्र विद्या

व्योमवार्ता/ नवरात्रि का तीसरा दिन और तंत्र विद्या : व्योमेश चित्रवंश की डायरी,27मार्च 2020

             तंत्र शास्त्र के संबंध मे सामान्य जन ही नही प्रबुद्ध जनमामस मे भी अनेक प्रकार की भ्रांतिया है। 'तांत्रिक' शब्द का उच्चारण होते ही मनमानस मे भय आतंक का एक घृणायोग्य चित्र उभरता है जो वास्तविकता से एकदम विपरीत है। वास्तविकता यह है ति तंत्र शब्द संस्कृत धातु 'तन्' से बना है जिसका अर्थ है बढ़ाना, विस्तार करना, तानना। तंत्र का शाब्दिक अर्थ व्यवस्था भी है। मै कौन हूँ? कहॉ से आया हूँ? मेरी नीयति क्या है? मानव व्यवस्था तथा ब्रह्माण्ड के अस्तित्व का रहस्य क्या है? इन प्रश्नों के उत्तर प्राप्ति हेतु की गई साधना ही तंत्र है। तंत्र का आध्यात्मिक उद्देश्य जाति धर्म उम्र लिंग आदि के भेदभाव से परे साधक अथवा साधिका को कलुषशून्य बना कर उसके तन मन का शुद्धिकरण कर उसे आध्यात्मिकीकरण की ओर ले जाना है। जहॉ साधक समस्त  बंधन मायामोह से मुक्त हो सब मे आदिशक्ति का प्रतिबिंब देखते हुये स्व से साक्षात्कार करता है। तंत्र का विशेष गुण उसकी साधना मे निहित है। वह न तो उपासना है न प्रार्थना। वह देवी के समक्ष निवेदन याचना या पश्चाताप भी नही है । वह साधना पुरूष एवं प्रकृति का मिलन है, ऐसी साधना जो देह मे पुरूष तत्व को मातृतत्व से मिलाती है।
तंत्रशास्त्र के यथार्थ ,उद्देश्य उसके उदभव  विकास इतिहास सिद्धांत साधना पद्धति एवं विभिन्न तांत्रिक संप्रदायों की ठोस एवं प्रामाणिक जानकारी देती है पं०दुर्गा प्रसाद शुक्ल की पुस्तक " तंत्र विद्या का यथार्थ " जिसे आज हमने नवरात्रि के तीसरे दिन और कोरौना के देशव्यापी लाकडाऊन के चौथे दिन पढ़ा। पं० दुर्गा प्रसाद शुक्ल कादिम्बिनी पत्रिका के उपसंपादक रह चुके है और कादिम्बिनी के दीपावली पर निकलने वाले "यंत्र मंत्र तंत्र विशेषांक " के सर्वेसर्वा भी। इनके संपादित कई विशेषांक आज भी मौजूद है।
    दो वर्ष पूर्व क्रय की गई यह पुस्तक आज हमें सामने दिख गई तो नवरात्रि के अंतराल मे इसे पढ़ भी लिया और पढ़ने के बाद तंत्र विद्या के श्वेत पहलू से प्रथम बार साक्षात्कार हुआ। पं० दुर्गा प्रसाद जी ने स्वयं के अध्ययन व अनुभव से संक्षिप्त परन्तु सरल व सारगर्भित शब्दों मे  तंत्र शास्र के सिद्धान्त और साधना , साधना पद्धति के साथ साथ कौल मत, शैव मत व मातृका मत , चार्वाक दर्शन का स्पष्ट परिचय दिया है। इसके अतिरिक्त आम्नाय का सिद्धान्त, दसो महाविद्या, तीनों भाव, कमलदल ,चक्रानुष्ठान, पंचमकार, षटचक्र  के साथ साथ श्री चक्र,कुंडलिनी शक्ति , बौद्ध तंत्र, ताओ, रसायन व मनोविज्ञान  के  तंत्रशास्त्र मे अस्तित्व व औचित्य का यथार्थ अनुशीलन किया है। एक गूढ़ व नीरस विषय होने के बावजूद बेहद रोचक ढंग से बिवा लाग लपेट के लिखी हुई यह पुस्तक हमारे मन मे तंत्र शास्त्र को लेकर बनी गुत्थियों को निर्भय ढंग से खोलने मे सक्षम रही है। नवरात्रि के साधना काल मे इस पुस्तक को पढ़ना एक आनंददायक अनुभव रहा।
(बनारस, 27 मार्च 2020, शुक्रवार)
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गुरुवार, 26 मार्च 2020

व्योमवार्ता/ नवरात्रि का दूसरा दिन और दशराजन

व्योमवार्ता/ नवरात्रि का दूसरा दिन और दशराजन : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 26मार्च 2020 गुरूवार

                       नवरात्रि के दूसरे दिन व कोरोनावाईरस के लाकडाऊन के तीसरे दिन  घर मे पड़े पड़े हमने अशोक के. बैंकर की लिखी किताब “दशराजन” पढ़ा। इस किताब ने मुझे उतना प्रभावित नही किया,हॉलाकि रोचक लेखन,कहानी और पात्र.अशोक के. बैंकर ने बहुत ही ख़ूबसूरती से इस पूरी कहानी को पेश किया है. इस कहानी की सबसे बड़ी खासियत है कि ये हमारे प्राचीन इतिहास का अंश है,ये कहानी ऋगवेद से ली गयी है.
      ये कहानी है ३४०० ई. पू. की,जहां एक कबीले के राजा ने अपनी प्रजा और कबीले की रक्षा के लिए अपनी छोटी सी सेना के साथ दस राजाओं और उनकी विशाल सेना का सामना किया था. उस वक़्त कबीले के मुखिया सुदास के पास कोई बाहरी मदद नहीं थी बल्कि उसे एक योजनाबद्ध तरीके से घेरा गया था.अपने पांच नदियों वाले कबीले की रक्षा के लिए सुदास ने हर संभव रणनीति का प्रयोग किया और अपने कबीले की रक्षा की. ये पांच नदियों वाला कबीला आज पंजाब के नाम से जाना जाता है.

केवल एक दिन में सभी आक्रमणकारियों के अंत के साथ ख़त्म हुए इस युद्ध को अशोक के. बैंकर ने बखूबी उतारा है.अघोषित युद्ध,एक साथ आक्रमण और सुदास की रणनीति,उसके सहायकों का साथ,गुरु का साथ से लेकर युद्ध की एक-एक घटना का इतना अच्छा वर्णन है कि आपके सामने पूरा चित्र उतर आता है.नायक सुदास अपने कबीले के हर इंसान यहाँ तक की पशु से भी प्रेम करता है,अपमान की स्थिति में भी संयम बनाये रखता है..शायद यही कारण हो सकता है कि खुद को विशाल शत्रु सेना से घिरा हुआ पाने के बाद भी वो समर्पण की बजाय सामना करने का निर्णय लेता है.
      ललस संभवतः प्राच्य इतिहास के बारे मे ज्यादा जानकारी न होने व रोचक अनुवाद न होने के कारण कथानक थोड़ा  धीमा व ऊबाऊ लगी। इतिहास मे कल्पना को शामिल करते हुये आजकल पुरा संस्कृति व इतिहास पर जो उपन्यास लेखन किया जा रहा है उनके लेखकों मे  अशोक के बैंकर का प्रमुख स्थान है उन्होंने प्रयास भी किया है कि ऐतिहासिक उपन्यासों की भॉति संवाद वर्णन और विवरणात्मक संबंध से वह ऐतिहासिक कालखण्ड व पात्र पाठक के मन मानस मे सजीव हो सके। संभवतः बहुत से पाठकों के लिये लेखक का यह प्रयास अद्वितीय व अद्भुत रहा हो और उनको बांधने मे सक्षम रहा हो । हमारे भारत का इतिहास न जाने ऐसी कितनी कही और कितनी अनकही कहानियों को समेटे खड़ा है, जो हमारे लिये ढेर सारी कल्पनाये , मिथक,  व संबंधों के तालमेल का मिश्रण लिये लेखन का बढ़िया मसाला व गारा चूना बन सकता है। दशराजन इसी तालमेल का सुंदर उदाहरण कहा जा सकता है। जो समय बिताने के लिये उपयोगी माना जा सकता है।
        बहरहाल, एक बार पुन: धन्यवाद मित्र राजीव अष्ठाना Rajeeva Kumar Asthana को, इस लाकडाऊन के वर्तमान कालखण्ड मे सोशल डिस्टेंशिंग आईसोलेशन के तीसरे दिन के लिये अपने लाईब्रेरी से पुस्तक भेंजने के लिये।
(बनारस,२६मार्च २०२०, गुरूवार)
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व्योमवार्ता/नवरात्रि का पहला दिन और भगवान परशुराम : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 26मार्च 2020, गुरूवार

व्योमवार्ता/नवरात्रि का पहला दिन और भगवान परशुराम : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 26मार्च 2020, गुरूवार

           बासंतिक नवरात्रि संवत २०७७ वि० के पहले दिन 25मार्च 2020 बुधवार, विश्वव्यापी महामारी कोरोना के चलते देशव्यापी लाकडाऊन मे आज कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की सुप्रसिद्ध कृति भगवान परशुराम को पढ़ कर बस अभी समाप्त किया। ईषा से लगभग १५५० वर्ष पूर्व के कथानक मे आर्यावर्त मे आर्य धर्म के संस्थापन संवर्धन , शुद्धिकरण ,व्यापकता और संस्कार-संस्थापन के पृष्ठभूमि मे हमारे पौराणिक युगपुरूष कालजयी महानायक भगवान परशुराम के व्यक्तित्व पर आधारित यह उपन्यास पौराणिक इतिहास का बोध कराता है। आर्य संस्कृति के ऊषाकाल मे सरस्वती और हपद्वति नदियों के बीच फैले आर्यावर्त मे यदु और पुरू, भरत औरतुत्सु, तर्वसु और अनु, द्रह्यू और जन्हू तथा भृगु जैसी आर्य जातियाँ निवसित थी और वशिष्ठ, जमदग्नि, अंगिरा, गौतम और कण्व आदि महापुरूषों के आश्रमों मे गुंजरित दिव्य ऋचाये, आर्यधर्म का नियमन व संस्थापन कर रही थी परन्तु दूसरी ओर संपूर्ण आर्यावर्त, नर्मदा से लेकर मथुरा तक अनूप प्रदेश मे शासन कर रहे हैहयराज सहस्त्रार्जुन के लोहममर्षक अत्याचारों से त्रस्त था।ऐसे मे युवा भार्गव परशुराम हैहयराज  की प्रचंडता को चुनौती देते हुये अपनी आर्यनिष्ठ तेजस्विता, संगठन क्षमता, साहस और अपरिमित शौर्य के द्वारा  आर्य संस्कृति के ध्वस्त करने के उसके सपनों को ध्वस्त करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के एक वर्ष पूर्व अप्रैल १९४६ मे प्रकाशित प्रशिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद श्री के एम मुंशी की यह पुस्तक पढ़ते हुये आज भी अन्याय और दमन के सक्रिय प्रतिरोध की प्रेरणा देती है।
हमे तो इस कोरोना लाकडाऊन पीरियेड मे इस पुस्तक को पढ़ते हुये धर्म, कर्तव्य, साहस और रणनीति के संदर्भ मे कई कई बार आजकल के दौर मे सड़क पर न निकलने, स्वयं को नियंत्रित करने व अदृश्य कोरोना वाइरस से प्रतिरोध करने की अपनी सरकार की नीतियों को समीचीन व्याख्या व नई परिभाषा मिल रही थी। धन्यवाद मित्र राजीव अस्थाना Rajeeva Kumar Asthana जी को एक अच्छी पुस्तक पढवाने के लिये।
(बनारस,26मार्च 2020,गुरूवार,12.37पूर्वाह्न)
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मंगलवार, 24 मार्च 2020

व्योमवार्ता/कोविड 19 के खौफ से लाकडाऊन का सकारात्मक पक्ष ।

व्योमवार्ता/कोविड 19 के खौफ से लाकडाऊन का सकारात्मक पक्ष । व्योमेश चित्रवंश की डायरी,2४ मार्च २०२०, मंगलवार

अपनी मनपसंद दो किताबो को कल देर रात दुबारा पढ कर समाप्त किया। डेल कार्नेगी की किताब पिछली सदी मे 1993 मे खरीद कर पढ़ने के बाद आलमारी में रखी शोभायमान बन गई थी, हालॉकि उसके सिद्धान्त आज भी मेरे व्यवहार मे है। जबकि स्यालकोट सागा 2016 मे आते ही खरीद कर दो दिन तक लगातार पढ़ते हुये मिले रोमांच भरे एहसास के बाद कई लोगों को पढ़वाने के बाद रख दिया था।
जब सब कुछ लाकडाऊन है ऐसे मे खुद को व्यस्त रहने  का मेरे लिये एकमात्र तरीका किताबें पढ़ना ही है। आज  बड़े भाई मित्र राजीवअस्थाना Rajeeva Kumar Asthana वकील साहब ने के एम मुंशी की भगवान परशुराम और अशोक के बैंकर की दशाराजम भेजवाया है। उम्मीद है कि दो दिन की टाईम की खुराकी इससे पूरी हो जायेगी। और कल से नवरात्रि का व्रत प्रारंभ हो जायेगा तो सोशल मीडिया से कट कर थोड़ा और समय मिलने पर यह खुराकी बढ़ भी सकती है।
कोरोना को भगाना है, कहीं नही जाना है।
घर मे रहना है, किताबें पढ़ना है।😊😊
(बनारस, 24मार्च2020, मंगलवार, 8.00बजे प्रात:)
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