गुरुवार, 26 जनवरी 2017

हम भूल ना जाये उनको : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 26 जनवरी 2017, गुरूवार

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आज अड़सठवें गणतंत्र दिवस पर सुबह से ही बधाई संदेश मिलने लगे. लहराता हुआ तिरंगा, ईठलाता हुआ तिरंगा, मन लुभाता हुआ तिरंगा मोबाइल मे छा सा गया, आस पास के विद्यालयों मे सुबह से ही देश भक्ति के गीत संगीत बजने लगे. बिटिया को अपने स्कूल मे कार्यक्रम का संचालन करना है वह पिछले दो तीन दिनो से अपने कार्यक्रम संयोजन के लिये अच्छी अच्छी पंक्तियों के साथ लिद्वजनो के कोटेशन जुटाने मे लगी हुई थी. उसको लगता है कि जहॉ उसके सवाल खत्म होते है वहीं से उनके जबाब उसके डैडी अर्थात मेरे पास जरूर मिल जायेगें. प्रयास करता हूँ कि अपने स्तर से उसका यह विश्वास कायम रखूँ.
सुबह टीवी पर राजपथ पर झंडारोहण व परेड देख मन प्रसन्नता से भर उठा. राजपथ पर देश के रक्षा व विकास के अग्रगामी गति को देख कर जन गण मन अधिनायक की भावना हिलोरे मारने लगती है. महसूस होता है कि हम आम जन ही विश्व के सबसे बड़े जन गण के अधिनायक है और हमारे मन के अधिनायक भारत भाग्य विधाता हमेशा हमारे देश के जय को बनाये ऱखें. दो विद्यालयों के कार्यकम मे शामिल हो कर हमने भी बच्चों के साथ 26 जनवरी मनाया.
अभी पढ़ने की मेज समेटते समय बिटिया द्वारा उद्धृत की गयी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की दो रचनाये दिख गयी. पढ़ने के बाद लगा कि ये दोनो ही आज के लिये ज्यादा समीचीन है. कवितायें पढ़ कर उन पर विचार करते समय मन दो आयामी होने लगा. एक तरफ विश्वशक्ति के रूप मे पहुँचने के करीब भारत जिसके विकास की झॉकी देख कर मन आत्मविश्वास से भरा हुआ है वही दूसरी तरफ जीवन, रोटी, रोजगार, स्वास्थ्य के आधारभूत सेवाओं के लिये चल रहा संघर्ष. देश के एकजूट विकास के विरूद्ध षडयंत्र के तहत विदेशी ताकतो के इशारों पर नाचती देश विरोधी ताकतें, जिनसे हमे रोज रोज लड़ना पड़ रहा है.
        दुर्भाग्यत: आज जो देश के हालात चल रहे है अमीरो गरीबो के बीच  प्रतिभा व प्रतिभागियों के बीच शासन व प्रजा  के बीच का अंतर दिनोदिन बढ़ता जा रहा है जिसके चलते आज गणतंत्र मे गण फटेहाल है पर तंत्र मस्त है. इसी के चलते संविधान के उद्देश्य पूर्णतया आज भी सफल नही हो सके है और स्रवजन के सपूर्ण विकास व सफलता के लिये लड़ा जाने वाला संघर्ष अभी जारी है. इसी परिप्रेक्ष्य मे दिनकर जी ने लिखा था

समर शेष है------------------------

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो
किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो?
किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर से
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?
कुंकुम? लेपूँ किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान।
फूलों की रंगीन लहर पर ओ उतराने वाले!
ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!
सकल देश में हालाहल है दिल्ली में हाला है,
दिल्ली में रौशनी शेष भारत में अंधियाला है।
मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,
ज्यों का त्यों है खड़ा आज भी मरघट सा संसार।
वह संसार जहाँ पर पहुँची अब तक नहीं किरण है,
जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर-वरण है।
देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्तस्तल हिलता है,
माँ को लज्जा वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है।
पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज,
सात वर्ष हो गए राह में अटका कहाँ स्वराज?
अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?
तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?
सबके भाग्य दबा रक्खे हैं किसने अपने कर में ?
उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी, बता किस घर में?
समर शेष है यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा,
और नहीं तो तुझ पर पापिनि! महावज्र टूटेगा।
समर शेष है इस स्वराज को सत्य बनाना होगा।
जिसका है यह न्यास, उसे सत्वर पहुँचाना होगा।
धारा के मग में अनेक पर्वत जो खड़े हुए हैं,
गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अड़े हुए हैं,
कह दो उनसे झुके अगर तो जग में यश पाएँगे,
अड़े रहे तो ऐरावत पत्तों -से बह जाएँगे।
समर शेष है जनगंगा को खुल कर लहराने दो,
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो।
पथरीली, ऊँची ज़मीन है? तो उसको तोडेंग़े।
समतल पीटे बिना समर की भूमि नहीं छोड़ेंगे।
समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर,
खंड-खंड हो गिरे विषमता की काली जंज़ीर।
समर शेष है, अभी मनुज-भक्षी हुँकार रहे हैं।
गाँधी का पी रुधिर, जवाहर पर फुंकार रहे हैं।
समर शेष है, अहंकार इनका हरना बाकी है,
वृक को दंतहीन, अहि को निर्विष करना बाकी है।
समर शेष है, शपथ धर्म की लाना है वह काल
विचरें अभय देश में गांधी और जवाहर लाल।
तिमिरपुत्र ये दस्यु कहीं कोई दुष्कांड रचें ना!
सावधान, हो खड़ी देश भर में गांधी की सेना।
बलि देकर भी बली! स्नेह का यह मृदु व्रत साधो रे
मंदिर औ' मस्जिद दोनों पर एक तार बाँधो रे!
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।

                   इसलिये मुझे लगता है कि आज देश के गणतंत्र के सफलतापूर्वक 67 साल बीतने पर हमारी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है. हममे से प्रत्येक को सजग होना होगा देश के विकास व एकता के प्रति. यह सजगता कहीं और नही हमें स्वयं मे करनी होगी अगर हम अपने मे ही सुधार का प्रयास करे तो राष्ट्रसुधार अपने आप हो जायेगा.
इसी संकल्पबोध के साथ हममे अहंकार न जागृत हो जाये इस के लिये राष्ट्कवि की यह कविता भी दुहराते रहना होगा

हे कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियां बारी-बारी,
चटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफ़ानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन,
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएं,
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा,
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।

"६८ वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं"
(बनारस, गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 2017, गुरूवार)
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बुधवार, 25 जनवरी 2017

डॉ0 नरेंद्र कोहली के बहाने: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 25 जनवरी 2017, बुधवार

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डॉ0 नरेंद्र कोहली के बहाने : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 25 जनवरी 2017, बुधवार

              आज भारत सरकार ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 नरेंद्र कोहली को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया, बल्कि यह कहना उचित होगा कि सरकार ने डॉ0 कोहली को पद्म सम्मान देकर पद्मश्री सम्मान को गौरवान्वित किया. आज कोहली साहब किसी परिचय के मोहताज नही है, हिन्दी साहित्य मे उनके कद का कोई साहित्यकार नही है. बहरहाल मै साहित्य से परे कोहली साहब के बारे मे बताना चाहता हूँ. यह मेरे लिये गर्व व गौरव का विषय है कि मै स्वयं को कोहली साहब का प्रिय मानता हूँ और उनका स्नेहपात्र हूँ. हम लोग उन्हे परम आदर व श्रद्धा के साश गुरूजी कहते है और गुरूजी हम लोगो को बेहद स्नेह दे कर हमेशा अपनेपन से हर बार हमारे कद व हक से ज्यादा प्यार देते है़.
आदरणीय कोहली साहब से हमारा परिचय 2005 के आस पास हुआ. हालॉकि पहली बार उनका रामकथा पर आधारित उपन्यास खण्ड दीक्षा, अवसर, अभियान, पृष्ठभूमि, साक्षात्कार, संघर्ष की ओर , युद्ध जब मै हाईस्कूल मे था तभी पढ़ चुका था. 2005 तक तोडो़ कारा तोड़ो के भी प्रथम दो खणड तब तक आ गये थे और सरस्वती सदन पुस्तकालय के सौजन्य से पढ़ चुका था. नवरात्रि 2005 के आसपास रामकथा के इन खण्डो को दुबारा पढ़ते हुये रामायण के संदर्भ मे मेरे मन मे उठ रहे सारे किन्तु परन्तु लगभग समाप्त हो चुके थे. किसी बिन्दु पर विचार करते समय मेरी मेधा ने अपनी सीमा लॉघने से इंकार कर दिया तो मन किया कि लेखक से ही पूछते हैं. बस एक पत्र लिख कर डॉ0 नरेन्द्र कोहली को डाक से भेज दिया. मन मे कही से यह संदेह नही था कि इसका जबाब नही आना है. पर तीन चार दिन बाद ही दोपहर के तीन साढ़े तीन बजे एकाएक फोन की घंटी बजी, उठाया तो दूसरी तरफ आशा के बिलकुल विपरीत कोहली साहब थे. बेहद सरल बेहद सहज निखलिस हिन्दी भाषा शैली, बेहद अपनापन, स्नेहपूर्ण गुरूजन वाली बातचीत का ढंग. मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था कि मै इतने महान व्यक्तित्व से मुखातिब हूँ. एकाध सप्ताह ही बीते थे कि उनका दीवाली शुभकामना संदेश डाक द्वारा प्राप्त हुआ. सहज सरल व्यक्तित्व के ही समान सहज सरल अभिव्यक्ति " चौदह वर्ष बाद राम अयोध्या लौटे, अयोध्या प्रकाशित हुई, हमारे जीवन मे प्रकाश बन राम आयें, इसी शुभकामना के साथ " मन मयूर हो गया इस शुभकामना संदेश को पा कर.
 फिर तो गुरू जी से बातचीत व अपनी शंकाओं के समाधान हेतु जो सिलसिला चला, आज तक कायम है. हम फरवरी 2007 मे दिल्ली गये , संयोग से वहीं गुरू जी का फोन आया, यह जान कर कि हम दिल्ली मे ही हैं एक स्नेहासिक्त अधिकार व दुलार वाली डॉट पड़ी कि " फिर फोन पर बात नही होगी, घर आओ", आदेश के उलंधन का सवाल नही यह हमारे लिये एक स्वर्णिम अवसर था, हम अपने मित्र विजय चौबे व सूर्यभान सिंह के साथ जब वैशाली, पीतमपुरा पहुँचे तो गुरूजी हम लोगों का इंतजार कर रहे थे. सीधे खाने के मेज पर हम  लोगों को लेते गये. एक विराट व्यक्तित्व से हमारा साक्षात्कार हो रहा था हम लोगो का, पर कल्पना से परे एकदम सहज सरल जिम्मेदार पारिवारिक अपनापन. एक एक चीजों को अपने हाथो से उठा कर परोसना. छोटी छोटी बातों के बारे मे पूछना बतलाना. कहीं से हमे यह नही लग रहा था कि हम पहली बार मिल रहे है़. जैसे गुरूदेव वैसे ही उनका सरल परिवार, माता जी आदरणीय डॉ0 मधुरिमा कोहली जी, पुत्र अर्थशास्त्र के  विद्वान डॉ0 कार्तिकेय कोहली जी नेत्र चिकितसिका वंदना भाभी दोनो पौत्र सब हम लोगो से ऐसे हिल मिल गये जैसे बहुत पहले से एक दूसरे से परिचित हों.  हम कब इस परिवार का हिस्सा बन गये ये हमे भी पता नही चला.फिर दिल्ली जाने पर हमारे लिये वैशाली पीतमपुरा जाना भी जरूरी कार्यक्रम का हिस्सा हो गया. बाद मे कोहली साहब  का पारिवारिक यात्रा पर बनारस आना हुआ इस बार उनके अमेरिका मे रहने वाले छोटे पुत्र अगस्त्य भी थे. उनसे हम लोगो की खूब बनी. गुरूजी के संपूर्ण परिवार के साथ सारनाथ, विश्वनाथ मंदिर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, गंगाआरती  व नौकाविहार करना कराना मजेदार अनुभव था.
इसके बाद गुरूजी भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन मे स्वामी विवेकानंद पर व्याख्यान देने आये. आने के पहले उन्होने हम लोगो को अपना कार्यक्रम बताते हुये साथ रहने को कहा. अधिवेशन से लेकर चुनार यात्रा, सॉयंकालीन साहित्यिक संगोष्ठी मे मेजबान से लेकर मेहमान व सहभागी हम सोगो पर श्रद्धेय कोहली जी का स्नेह व अपनापन देख कर हैरान परेशान थे, हमारे अधिकार पूर्ण आग्रहों को स्वीकार करते उन्हे देख कर लोग यह मानने मे मुश्किल महसूस कर रहे थे कि हम बनारस मे रहने वाले असाहित्यिक व सामान्य जन किस तरह कोहली साहब के इतने करीबी हैं? पर इस सब से भिन्न कोहली साहब का स्नेह हमारे लिये पूँजी है. हर बार उनकी भेंट दी हुई पुस्तकें, उनके द्वारा सदैव हिन्दी का सरल व सहज प्रयोग, उनकी सहजता हमारे लिये अनमोल पूँजी से कम नही है.

नरेन्द्र कोहली का अवदान मात्रात्मक परिमाण में भी पर्याप्त अधिक है। उन्नीस उपन्यासों को समेटे उनकी महाकाव्यात्मक उपन्यास श्रृंखलाएं 'महासमर' (आठ उपन्यास), 'तोड़ो, कारा तोड़ो' (छः उपन्यास), 'अभ्युदय' (दीक्षा आदि पांच उपन्यास) ही गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों की दृष्टि से अपने पूर्ववर्तियों से कहीं अधिक हैं। उनके अन्य उपन्यास भी विभिन्न वर्गों में श्रेष्ठ कृतियों में गिने जा सकते हैं। सामाजिक उपन्यासों में 'साथ सहा गया दुःख', 'क्षमा करना जीजी', 'प्रीति-कथा'; ऐतिहासिक उपन्यासों में राज्यवर्धन एवं हर्षवर्धन के जीवन पर आधारित 'आत्मदान'; दार्शनिक उपन्यासों में कृष्ण-सुदामा के जीवन पर आधारित 'अभिज्ञान'; पौराणिक-आधुनिकतावादी उपन्यासों में 'वसुदेव' उन्हें हिन्दी के समस्त पूर्ववर्ती एवं समकालीन साहित्यकारों से उच्चतर पद पर स्थापित कर देते हैं।
इसके अतिरिक्त वृहद् व्यंग साहित्य, नाटक और कहानियों के साथ साथ नरेन्द्र कोहली ने गंभीर एवं उत्कृष्ट निबंध, यात्रा विवरण एवं मार्मिक आलोचनाएं भी लिखी हैं। संक्षेप में कहा जाय तो उनका अवदान गद्य की हर विधा में देखा जा सकता है, एवं वह प्रायः सभी अन्य साहित्यकारों से उनकी विशिष्ट विधा में भी श्रेष्ठ हैं। उनके कृतित्व का आधा भी किसी अन्य साहित्यकार को युग-प्रवर्तक साहित्यकार घोषित करने के लिए पर्याप्त है। नरेन्द्र कोहली ने तो उन कथाओं को अपना माध्यम बनाया है जो अपने विस्तार एवं वैविध्य के लिए विश्व-विख्यात हैं : रामकथा एवं महाभारत कथा। 'यन्नभारते - तन्नभारते' को चरितार्थ करते हुए उनके महोपन्यास 'महासमर' मात्र में वर्णित पात्रों, घटनाओं, मनोभावों आदि की संख्या एवं वैविध्य देखें तो वह भी पर्याप्त ठहरेगा. वर्णन कला, चरित्र-चित्रण, मनोजगत का वर्णन इत्यादि देखें भी कोहली प्रेमचंद से न सिर्फ आगे निकल जाते है, वरन संवेदनशीलता एवं गहराई भी उनमें अधिक है।
नरेन्द्र कोहली की वह विशेषता जो उन्हें इन दोनों पूर्ववर्तियों से विशिष्ट बनाती है वह है एक के पश्चात् एक पैंतीस वर्षों तक निरंतर उन्नीस कालजयी कृतियों का प्रणयन सर्वश्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त वृहद् व्यंग-साहित्य, सामाजिक उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, मनोवैज्ञानिक उपन्यास भी हैं; सफल नाटक हैं, वैचारिक निबंध, आलोचनात्मक निबंध, समीक्षात्मक एवं विश्लेषणात्मक प्रबंध, अभिभाषण, लेख, संस्मरण, रेखाचित्रों का ऐसा खज़ाना है।.. गद्य की प्रत्येक विधा में उन्होंने हिन्दी साहित्य को इतना दिया है कि उनके समकक्ष सभी अवदान फीके जान पड़ते हैं।
उपन्यास, कहानी, व्यंग, नाटक, निबंध, आलोचना, संस्मरण इत्यादि गद्य की सभी प्रमुख एवं गौण विधाओं में नरेन्द्र कोहली ने अपनी विदग्धता का परिचय दिया है। उपन्यास विधा पर अद्भुत पकड़ होने के का कारण है नरेन्द्र कोहली की कई विषयों में व्यापक सिद्धहस्तता मानव मनोविज्ञान को वह गहराई से समझते हैं एवं विभिन्न चरित्रों के मूल तत्व को पकड़ कर भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में उनकी सहज प्रतिक्रया को वे प्रभावशाली एवं विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। औसत एवं असाधारण, सभी प्रकार के पात्रों को वे अपनी सहज संवेदना एवं भेदक विश्लेषक शक्ति से न सिर्फ पकड़ लेते है, वरन उनके साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। राजनैतिक समीकरणों, घात-प्रतिघात, शक्ति-संतुलन इत्यादि का व्यापक चित्रण उनकी रचनाओं में मिलता है। भाषा, शैली, शिल्प एवं कथानक के स्तर पर नरेन्द्र कोहली ने अनेक नए एवं सफल प्रयोग किये हैं। उपन्यासों को प्राचीन महाकाव्यों के स्तर तक उठा कर उन्होंने महाकाव्यात्मक उपन्यासों की नई विधा का आविष्कार किया है।
नरेन्द्र कोहली की सिद्धहस्तता का उत्तम उदाहरण है उनके महाउपन्यास 'महासमर' के विस्तृत फैलाव से 'साथ सहा गया दुःख' तक का अतिसंक्षिप्त दृश्यपटल. सैकड़ों पात्रों एवं हजारों घटनाओं से समृद्ध 'महासमर' के आठ खंडों के चार हज़ार पृष्ठों के विस्तार में कहीं भी न बिखराव है, न चरित्र की विसंगतियां, न दृष्टि और दर्शन का भेद. पन्द्रह वर्षों के लम्बे समय में लिखे गए इस महाकाव्यात्मक उपन्यास में लेखक की विश्लेषणात्मक दृष्टि कितनी स्पष्ट है, यह उनके ग्रन्थ "जहां है धर्म, वहीं है जय" को देखकर समझा जा सकता है जो महाभारत की अर्थप्रकृति पर आधारित है। इस ग्रन्थ में उन्होंने 'महासमर' में वर्णित पात्रों एवं घटनाओं पर विचार किया है, समस्याओं को सामने रखा है एवं उनका निदान ढूँढने का प्रयास किया है। महाभारत को समझने में प्रयासशील इस महाउपन्यासकार का यह उद्यम देखते ही बनता है जिसमें उनकी विचार-प्रक्रिया के रेखांकन में ही एक पूरा ग्रन्थ तैयार हो जाता है। साहित्य के विद्यार्थियों और आलोचकों के लिए नरेन्द्र कोहली की साहित्य-सृजन-प्रक्रिया को समझने में यह ग्रन्थ न सिर्फ महत्वपूर्ण है वरन् परम आवश्यक है। इस ग्रन्थ में नरेन्द्र कोहली ने विभिन्न चरित्रों के बारे में नयी एवं स्पष्ट स्थापनाएं दी हैं। उनकी जन-मानस में अंकित छवि से प्रभावित और आतंकित हुए बगैर घटनाओं के तार्किक विश्लेषण से कोहलीजी ने कृष्ण, युधिष्ठिर, कुंती, द्रौपदी, भीष्म, द्रोण इत्यादि के मूल चरित्र का रूढ़िगत छवियों से पर्याप्त भिन्न विश्लेषण किया है।
दूसरे ध्रुव पर उनका दूसरा उपन्यास "साथ सहा गया दुःख" है जो मात्र दो पात्रों को लेकर बुना गया है। उनके द्वारा लिखा गया प्रारम्भिक उपन्यास होने के बावजूद यह हिन्दी साहित्य की एक अत्यंत सशक्त एवं प्रौढ़ कृति है। 'साथ सहा गया दुःख' नरेंद्र कोहली की उस साहित्यिक शक्ति को उद्घाटित करता है। 'सीधी बात' को सीधे-सीधे स्पष्ट रूप से ऐसे कह देना कि वह पाठक के मन में उतर जाए, उसे हंसा भी दे और रुला भी. इस कला में नरेंद्र कोहली अद्वितीय हैं। 'साथ सहा गया दुःख' नरेंद्र कोहली के संवेदनशील पक्ष को उद्घाटित करता है। महादेवी द्वारा 'प्रसाद' के लिए कही गयी उक्ति उनपर बिलकुल सटीक बैठती है: "...(उनके कृतित्व) से प्रमाणित होता है कि उनकी जीवन-वीणा के तार इतने सधे हुए थे कि हल्की से हल्की झंकार भी उसमें प्रतिध्वनि पा लेती थी।"
"यह देख कर आश्चर्य होता था कि मात्र ढाई पात्रों (पति, पत्नी और एक नवजात बच्ची) का सादा सपाट घरेलू या पारिवारिक उपन्यास इतना गतिमान एवं आकर्षक कैसे बन गया है। अनलंकृत जीवन-भाषा में सादगी का सौंदर्य घोलकर किस कला से इसे इतनी सघन संवेदनीयता से पूर्ण बनाया गया है।"
कोहलीजी का प्रथम उपन्यास था 'पुनरारंभ'. इस व्यक्तिपरक-सामाजिक उपन्यास में तीन पीढ़ियों के वर्णन के लक्ष्य को लेकर चले उपन्यासकार ने उनके माध्यम से स्वतंत्रता-प्राप्ति के संक्रमणकालीन समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों की मानसिकता एवं जीवन-संघर्ष की उनकी परिस्थितियों को चित्रित करने का प्रयास किया था। इसके पश्चात् आया 'आतंक'. सड़ चुके वर्तमान समाज की निराशाजनक स्थिति, अत्याचार से लड़ने की उसकी असमर्थता, बुद्धिजीवियों की विचारधारा की नपुंसकता एवं उच्च विचारधारा की कर्म में परिणति की असफलता का इसमें ऐसा चित्रण है जो मन को अवसाद से भर देता है।
नरेन्द्र कोहली की एक बड़ी उपलब्धि है "वर्तमान समस्याओं को काल-प्रवाह के मंझधार से निकाल कर मानव-समाज की शाश्वत समस्याओं के रूप में उनपर सार्थक चिंतन". उपन्यास में दर्शन, आध्यात्म एवं नीति का पठनीय एवं मनोग्राही समावेश उन्हें समकालीन एवं पूर्ववर्ती सभी साहित्यकारों से उच्चतर धरातल पर खडा कर देता है।
यों तो छह वर्ष की आयु से ही उन्होने लिखना प्रारम्भ कर दिया था लेकिन १९६० के बाद से उनकी रचनाएँ प्रकाशित होने लगीं। समकालीन लेखकों से वो भिन्न इस प्रकार हैं कि उन्होने जानी मानी कहानियों को बिल्कुल मौलिक तरीके से लिखा। ऐतिहासिक कथाओं पर आधारित उनके प्रमुख वृहदाकार उपन्यासों की सूची नीचे दी गयी है। उनकी रचनाओँ का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। ‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ और ‘युद्ध’ नामक रामकथा श्रृंखला की कृतियों में कथाकार द्वारा सहस्राब्दियों की परंपरा से जनमानस में जमे ईश्वरावतार भाव और भक्तिभाव की जमीन को, उससे जुड़ी धर्म और ईश्वरवाची सांस्कृतिक जमीन को तोड़ा गया है। रामकथा की नई जमीन को नए मानवीय, विश्वसनीय, भौतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। नरेन्द्र कोहली ने प्रायः सौ से भी अधिक उच्च कोटि के ग्रंथों का सृजन किया है।
(बनारस, 25 जनवरी 2017, बुधवार)
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श्रद्धेय कोहली साहब को पद्मश्री सम्मान : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 25 जनवरी 2017

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कोहली साहब को पद्म श्री सम्मान : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 25 जनवरी 2017, बुधवार

आज हमारे गुरूदेव परम आदरणीय श्रद्धेय डॉ0 नरेंद्र कोहली जी को पद्म श्री सम्मान से सम्मानित कर भारत सरकार ने पद्मश्री को गौरवान्वित किया.
कल से दो दिन तक श्रद्धेय कोहली साहब हम लोगो को अपना सानिध्य देगें.  हम सब रोमांचित है.

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सोमवार, 23 जनवरी 2017

सन 2012 दिसंबर 22 की कुहरे भरी सुबह और टी3 एअरपोर्ट नईदिल्ली : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 23 जनवरी 2017, सोमवार

एकाएक एलबम मे यह पुरानी फोटो मिल गई. दिसंबर 2012 मे नगरीय स्वायत्तता पर एक सेमिनार मे पुणे जाना हुआ था. वहॉ से हम लोग 21 दिसंबर की शाम की फ्लाईट से पुणे से दिल्ली आये. साथ मे सहभागी शिक्षण केन्द्र के सुधीर भाई थे. फ्लाईट लेट होने के कारण हम दिल्ली रात के 11.30 पर पहुँचे. जबर्दस् गलन व कोहरा था. लखनऊ के लिये हमारी ऊड़ान अगले दिन सुबह 6.30 बजे थी. एअरपोर्ट से निकलते निकलते 12.15 बजे मध्यरात्रि हो गया. हम लोग टैक्सी लेकर महिपालपुर पहुँचे व बिना खाये पीये होटल मे सो गये. सुबह एअरपोर्ट पहुँचाने के लिये टैक्सी ड्राईवर शर्मा जी ने हामी भरा था फिर भी हमे डर था कि ठण्ड मे वह सुबह आ पायेगा या नही. बहरहाल शर्माजी बेचारे अलसुबह समय से आ गये और हम दोनो लोग बिना चाय नाश्ता के सुबह 5 बजे टर्मिनल3 पर हाजिर. अंदर घुस कर एक लंबी दूरी तय करने के बाद डोमेस्टिक लॉऊंज 52 पर पहुँचे. चाय नाश्ता वहीं किया गया. तो पता चला कि लखनऊ एअरपोर्ट पर जबर्दस्त कोहरा है इस लिये फ्लाईट देर से जायेगी और साहब जो देर होना शुरू हुआ तो हम लोगो की फ्लाईट दिल्ली से 1 बजे उड़ी. यह तस्वीर उसी इंतजार के क्षणों की है.
जब हम एअरपोर्ट की आरानकुर्सी पर अधलेटे सोच रहे थे कि "होइहि सोई जो राम रूचि राखा"
(बनारस, 23 जनवरी 2017, सोमवार)
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महासमर -2, अभियान : अतीत से वर्तमान को समझने का मनोविज्ञान : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24 जुलाई 2016

मॉ को लेकर बीएचयू ट्रौमा सेण्टर मे पिछले शुक्रवार से हूँ। आपरेशन हो चुका है। आज ड्रेसिंग हुई, परिणाम सकारात्मक है।
समय व्यतीत करने के लिये अपने गुरूदेव डॉ० नरेन्द्र कोहली का महाभारत आधारित उपन्यास महासमर दूसरी बार पढ़ रहा हूँ। श्रृंखला की दूसरी कड़ी अभियान मे एकलव्य के गुरू समर्पण तक की कथा पूर्ण हो चुकी है। कथा के साथ साथ जीवन के प्रति एक नयी दृष्टिबोध विकसित हो रही है। महासमर महाभारत के कथा को आधार मान कर भी उन समस्त मानवीय समस्यायो के समाधान के प्रति एक नया आयाम प्रस्तुत करता है जो हमे दैनिक जीवन के समस्यायों से दो चार करते हुये परेशान करती है।
महासमर पढ़ने व गुनने के पश्चात जीवन के प्रति एक नये मूल्यबोध का साक्षात्कार हो रहा है । ईश्वर इस मूल्यबोध के प्रति समर्पण सदा बनाये रखें।
         महासमर निसंदेह ही अतीत के महाभारत को आधार मान कर वर्तमान के समस्यायो का मनोवैग्यानिक समाधान प्रस्तुत करने का अद्भुत प्रयास है। इसी लिये आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने महासमर के लिये लिखा था कि आप महाभारत पढ़ने बैठेगें और अपना जीवन पढ़ कर उठेगें। यही सच भी है।
(काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस, 24 जुलाई 2016)
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हम बीसवीं सदी के आखिरी दसकों के लोग : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 22 जनवरी 2017, रविवार

हम लोग,
जो 1970  से  1990
के बीच जन्में  है,
हमें विशेष आशीर्वाद प्राप्त हैँ ...
हम ना अत्याधुनिक पीढ़ी है ना अत्यन्त प्राचीन ....

....और ऐसा भी नही कि
आधुनिक संसाधनों से
हमें कोई परहेज है......!!!
लेकिन.....
हमें कभी भी
जानवरों की तरह किताबों को
बोझ की तरह ढो कर स्कूल
नही ले जाना पड़ा ।
हमारें माता- पिता को
हमारी पढाई को लेकर
कभी अपने programs
आगे पीछे नही करने पड़ते थे...!
स्कूल के बाद हम
देर सूरज डूबने तक खेलते थे  
हम अपने
real दोस्तों के साथ खेलते थे;
net फ्रेंड्स के साथ नही ।
  जब भी हम प्यासे होते थे
तो नल से पानी पीना
safe होता था और
हमने कभी mineral water bottle को नही ढूँढा ।
हम कभी भी चार लोग
गन्ने का जूस उसी गिलास से ही
पी करके भी बीमार नही पड़े ।
हम एक प्लेट मिठाई
और चावल रोज़ खाकर भी
मोटे नही हुए ।
नंगे पैर घूमने के बाद भी
हमारे पैरों को कुछ नही होता था ।
हमें healthy रहने
के लिए  Supplements नही
लेने पड़ते थे ।
हम कभी कभी अपने खिलोने
खुद बना कर भी खेलते थे ।
हम ज्यादातर अपने parents के साथ या  grand- parents के पास ही रहे ।
हम अक्सर 4/6 भाई बहन
एक जैसे कपड़े पहनना
शान समझते थे.....
common. वाली नही
एकतावाली  feelings ...
enjoy करते थे......!
हम डॉक्टर के पास
नहीं जाते थे,
पर डॉक्टर हमारे पास आते थे
हमारे ज़्यादा बीमार होने पर ।
हमारे पास
न तो Mobile,  DVD's,
PlayStation, Xboxes,
PC, Internet, chatting,
क्योंकि
हमारे पास real दोस्त थे ।
हम दोस्तों के घर
बिना बताये जाकर
मजे करते थे और
उनके साथ खाने के
मजे लेते थे।
कभी उन्हें कॉल करके
appointment नही लेना पड़ा ।
हम एक अदभुत और
सबसे समझदार पीढ़ी है क्योंकि
हम अंतिम पीढ़ी हैं जो की
अपने parents की सुनते हैं...
और
साथ ही पहली पीढ़ी
जो की
अपने बच्चों की सुनते हैं ।
We are not special,
but.
We are
LIMITED EDITION
and we are enjoying the
Generation 🤔🤔🤔🤔🤔🤔 Gap......
( बनारस, 22जनवरी 2017, रविवार)
http://chitravansh.blogspot.com