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डॉ0 नरेंद्र कोहली के बहाने : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 25 जनवरी 2017, बुधवार
आज भारत सरकार ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 नरेंद्र कोहली को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया, बल्कि यह कहना उचित होगा कि सरकार ने डॉ0 कोहली को पद्म सम्मान देकर पद्मश्री सम्मान को गौरवान्वित किया. आज कोहली साहब किसी परिचय के मोहताज नही है, हिन्दी साहित्य मे उनके कद का कोई साहित्यकार नही है. बहरहाल मै साहित्य से परे कोहली साहब के बारे मे बताना चाहता हूँ. यह मेरे लिये गर्व व गौरव का विषय है कि मै स्वयं को कोहली साहब का प्रिय मानता हूँ और उनका स्नेहपात्र हूँ. हम लोग उन्हे परम आदर व श्रद्धा के साश गुरूजी कहते है और गुरूजी हम लोगो को बेहद स्नेह दे कर हमेशा अपनेपन से हर बार हमारे कद व हक से ज्यादा प्यार देते है़.
आदरणीय कोहली साहब से हमारा परिचय 2005 के आस पास हुआ. हालॉकि पहली बार उनका रामकथा पर आधारित उपन्यास खण्ड दीक्षा, अवसर, अभियान, पृष्ठभूमि, साक्षात्कार, संघर्ष की ओर , युद्ध जब मै हाईस्कूल मे था तभी पढ़ चुका था. 2005 तक तोडो़ कारा तोड़ो के भी प्रथम दो खणड तब तक आ गये थे और सरस्वती सदन पुस्तकालय के सौजन्य से पढ़ चुका था. नवरात्रि 2005 के आसपास रामकथा के इन खण्डो को दुबारा पढ़ते हुये रामायण के संदर्भ मे मेरे मन मे उठ रहे सारे किन्तु परन्तु लगभग समाप्त हो चुके थे. किसी बिन्दु पर विचार करते समय मेरी मेधा ने अपनी सीमा लॉघने से इंकार कर दिया तो मन किया कि लेखक से ही पूछते हैं. बस एक पत्र लिख कर डॉ0 नरेन्द्र कोहली को डाक से भेज दिया. मन मे कही से यह संदेह नही था कि इसका जबाब नही आना है. पर तीन चार दिन बाद ही दोपहर के तीन साढ़े तीन बजे एकाएक फोन की घंटी बजी, उठाया तो दूसरी तरफ आशा के बिलकुल विपरीत कोहली साहब थे. बेहद सरल बेहद सहज निखलिस हिन्दी भाषा शैली, बेहद अपनापन, स्नेहपूर्ण गुरूजन वाली बातचीत का ढंग. मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था कि मै इतने महान व्यक्तित्व से मुखातिब हूँ. एकाध सप्ताह ही बीते थे कि उनका दीवाली शुभकामना संदेश डाक द्वारा प्राप्त हुआ. सहज सरल व्यक्तित्व के ही समान सहज सरल अभिव्यक्ति " चौदह वर्ष बाद राम अयोध्या लौटे, अयोध्या प्रकाशित हुई, हमारे जीवन मे प्रकाश बन राम आयें, इसी शुभकामना के साथ " मन मयूर हो गया इस शुभकामना संदेश को पा कर.
फिर तो गुरू जी से बातचीत व अपनी शंकाओं के समाधान हेतु जो सिलसिला चला, आज तक कायम है. हम फरवरी 2007 मे दिल्ली गये , संयोग से वहीं गुरू जी का फोन आया, यह जान कर कि हम दिल्ली मे ही हैं एक स्नेहासिक्त अधिकार व दुलार वाली डॉट पड़ी कि " फिर फोन पर बात नही होगी, घर आओ", आदेश के उलंधन का सवाल नही यह हमारे लिये एक स्वर्णिम अवसर था, हम अपने मित्र विजय चौबे व सूर्यभान सिंह के साथ जब वैशाली, पीतमपुरा पहुँचे तो गुरूजी हम लोगों का इंतजार कर रहे थे. सीधे खाने के मेज पर हम लोगों को लेते गये. एक विराट व्यक्तित्व से हमारा साक्षात्कार हो रहा था हम लोगो का, पर कल्पना से परे एकदम सहज सरल जिम्मेदार पारिवारिक अपनापन. एक एक चीजों को अपने हाथो से उठा कर परोसना. छोटी छोटी बातों के बारे मे पूछना बतलाना. कहीं से हमे यह नही लग रहा था कि हम पहली बार मिल रहे है़. जैसे गुरूदेव वैसे ही उनका सरल परिवार, माता जी आदरणीय डॉ0 मधुरिमा कोहली जी, पुत्र अर्थशास्त्र के विद्वान डॉ0 कार्तिकेय कोहली जी नेत्र चिकितसिका वंदना भाभी दोनो पौत्र सब हम लोगो से ऐसे हिल मिल गये जैसे बहुत पहले से एक दूसरे से परिचित हों. हम कब इस परिवार का हिस्सा बन गये ये हमे भी पता नही चला.फिर दिल्ली जाने पर हमारे लिये वैशाली पीतमपुरा जाना भी जरूरी कार्यक्रम का हिस्सा हो गया. बाद मे कोहली साहब का पारिवारिक यात्रा पर बनारस आना हुआ इस बार उनके अमेरिका मे रहने वाले छोटे पुत्र अगस्त्य भी थे. उनसे हम लोगो की खूब बनी. गुरूजी के संपूर्ण परिवार के साथ सारनाथ, विश्वनाथ मंदिर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, गंगाआरती व नौकाविहार करना कराना मजेदार अनुभव था.
इसके बाद गुरूजी भारत विकास परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन मे स्वामी विवेकानंद पर व्याख्यान देने आये. आने के पहले उन्होने हम लोगो को अपना कार्यक्रम बताते हुये साथ रहने को कहा. अधिवेशन से लेकर चुनार यात्रा, सॉयंकालीन साहित्यिक संगोष्ठी मे मेजबान से लेकर मेहमान व सहभागी हम सोगो पर श्रद्धेय कोहली जी का स्नेह व अपनापन देख कर हैरान परेशान थे, हमारे अधिकार पूर्ण आग्रहों को स्वीकार करते उन्हे देख कर लोग यह मानने मे मुश्किल महसूस कर रहे थे कि हम बनारस मे रहने वाले असाहित्यिक व सामान्य जन किस तरह कोहली साहब के इतने करीबी हैं? पर इस सब से भिन्न कोहली साहब का स्नेह हमारे लिये पूँजी है. हर बार उनकी भेंट दी हुई पुस्तकें, उनके द्वारा सदैव हिन्दी का सरल व सहज प्रयोग, उनकी सहजता हमारे लिये अनमोल पूँजी से कम नही है.
नरेन्द्र कोहली का अवदान मात्रात्मक परिमाण में भी पर्याप्त अधिक है। उन्नीस उपन्यासों को समेटे उनकी महाकाव्यात्मक उपन्यास श्रृंखलाएं 'महासमर' (आठ उपन्यास), 'तोड़ो, कारा तोड़ो' (छः उपन्यास), 'अभ्युदय' (दीक्षा आदि पांच उपन्यास) ही गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों की दृष्टि से अपने पूर्ववर्तियों से कहीं अधिक हैं। उनके अन्य उपन्यास भी विभिन्न वर्गों में श्रेष्ठ कृतियों में गिने जा सकते हैं। सामाजिक उपन्यासों में 'साथ सहा गया दुःख', 'क्षमा करना जीजी', 'प्रीति-कथा'; ऐतिहासिक उपन्यासों में राज्यवर्धन एवं हर्षवर्धन के जीवन पर आधारित 'आत्मदान'; दार्शनिक उपन्यासों में कृष्ण-सुदामा के जीवन पर आधारित 'अभिज्ञान'; पौराणिक-आधुनिकतावादी उपन्यासों में 'वसुदेव' उन्हें हिन्दी के समस्त पूर्ववर्ती एवं समकालीन साहित्यकारों से उच्चतर पद पर स्थापित कर देते हैं।
इसके अतिरिक्त वृहद् व्यंग साहित्य, नाटक और कहानियों के साथ साथ नरेन्द्र कोहली ने गंभीर एवं उत्कृष्ट निबंध, यात्रा विवरण एवं मार्मिक आलोचनाएं भी लिखी हैं। संक्षेप में कहा जाय तो उनका अवदान गद्य की हर विधा में देखा जा सकता है, एवं वह प्रायः सभी अन्य साहित्यकारों से उनकी विशिष्ट विधा में भी श्रेष्ठ हैं। उनके कृतित्व का आधा भी किसी अन्य साहित्यकार को युग-प्रवर्तक साहित्यकार घोषित करने के लिए पर्याप्त है। नरेन्द्र कोहली ने तो उन कथाओं को अपना माध्यम बनाया है जो अपने विस्तार एवं वैविध्य के लिए विश्व-विख्यात हैं : रामकथा एवं महाभारत कथा। 'यन्नभारते - तन्नभारते' को चरितार्थ करते हुए उनके महोपन्यास 'महासमर' मात्र में वर्णित पात्रों, घटनाओं, मनोभावों आदि की संख्या एवं वैविध्य देखें तो वह भी पर्याप्त ठहरेगा. वर्णन कला, चरित्र-चित्रण, मनोजगत का वर्णन इत्यादि देखें भी कोहली प्रेमचंद से न सिर्फ आगे निकल जाते है, वरन संवेदनशीलता एवं गहराई भी उनमें अधिक है।
नरेन्द्र कोहली की वह विशेषता जो उन्हें इन दोनों पूर्ववर्तियों से विशिष्ट बनाती है वह है एक के पश्चात् एक पैंतीस वर्षों तक निरंतर उन्नीस कालजयी कृतियों का प्रणयन सर्वश्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त वृहद् व्यंग-साहित्य, सामाजिक उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, मनोवैज्ञानिक उपन्यास भी हैं; सफल नाटक हैं, वैचारिक निबंध, आलोचनात्मक निबंध, समीक्षात्मक एवं विश्लेषणात्मक प्रबंध, अभिभाषण, लेख, संस्मरण, रेखाचित्रों का ऐसा खज़ाना है।.. गद्य की प्रत्येक विधा में उन्होंने हिन्दी साहित्य को इतना दिया है कि उनके समकक्ष सभी अवदान फीके जान पड़ते हैं।
उपन्यास, कहानी, व्यंग, नाटक, निबंध, आलोचना, संस्मरण इत्यादि गद्य की सभी प्रमुख एवं गौण विधाओं में नरेन्द्र कोहली ने अपनी विदग्धता का परिचय दिया है। उपन्यास विधा पर अद्भुत पकड़ होने के का कारण है नरेन्द्र कोहली की कई विषयों में व्यापक सिद्धहस्तता मानव मनोविज्ञान को वह गहराई से समझते हैं एवं विभिन्न चरित्रों के मूल तत्व को पकड़ कर भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में उनकी सहज प्रतिक्रया को वे प्रभावशाली एवं विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। औसत एवं असाधारण, सभी प्रकार के पात्रों को वे अपनी सहज संवेदना एवं भेदक विश्लेषक शक्ति से न सिर्फ पकड़ लेते है, वरन उनके साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। राजनैतिक समीकरणों, घात-प्रतिघात, शक्ति-संतुलन इत्यादि का व्यापक चित्रण उनकी रचनाओं में मिलता है। भाषा, शैली, शिल्प एवं कथानक के स्तर पर नरेन्द्र कोहली ने अनेक नए एवं सफल प्रयोग किये हैं। उपन्यासों को प्राचीन महाकाव्यों के स्तर तक उठा कर उन्होंने महाकाव्यात्मक उपन्यासों की नई विधा का आविष्कार किया है।
नरेन्द्र कोहली की सिद्धहस्तता का उत्तम उदाहरण है उनके महाउपन्यास 'महासमर' के विस्तृत फैलाव से 'साथ सहा गया दुःख' तक का अतिसंक्षिप्त दृश्यपटल. सैकड़ों पात्रों एवं हजारों घटनाओं से समृद्ध 'महासमर' के आठ खंडों के चार हज़ार पृष्ठों के विस्तार में कहीं भी न बिखराव है, न चरित्र की विसंगतियां, न दृष्टि और दर्शन का भेद. पन्द्रह वर्षों के लम्बे समय में लिखे गए इस महाकाव्यात्मक उपन्यास में लेखक की विश्लेषणात्मक दृष्टि कितनी स्पष्ट है, यह उनके ग्रन्थ "जहां है धर्म, वहीं है जय" को देखकर समझा जा सकता है जो महाभारत की अर्थप्रकृति पर आधारित है। इस ग्रन्थ में उन्होंने 'महासमर' में वर्णित पात्रों एवं घटनाओं पर विचार किया है, समस्याओं को सामने रखा है एवं उनका निदान ढूँढने का प्रयास किया है। महाभारत को समझने में प्रयासशील इस महाउपन्यासकार का यह उद्यम देखते ही बनता है जिसमें उनकी विचार-प्रक्रिया के रेखांकन में ही एक पूरा ग्रन्थ तैयार हो जाता है। साहित्य के विद्यार्थियों और आलोचकों के लिए नरेन्द्र कोहली की साहित्य-सृजन-प्रक्रिया को समझने में यह ग्रन्थ न सिर्फ महत्वपूर्ण है वरन् परम आवश्यक है। इस ग्रन्थ में नरेन्द्र कोहली ने विभिन्न चरित्रों के बारे में नयी एवं स्पष्ट स्थापनाएं दी हैं। उनकी जन-मानस में अंकित छवि से प्रभावित और आतंकित हुए बगैर घटनाओं के तार्किक विश्लेषण से कोहलीजी ने कृष्ण, युधिष्ठिर, कुंती, द्रौपदी, भीष्म, द्रोण इत्यादि के मूल चरित्र का रूढ़िगत छवियों से पर्याप्त भिन्न विश्लेषण किया है।
दूसरे ध्रुव पर उनका दूसरा उपन्यास "साथ सहा गया दुःख" है जो मात्र दो पात्रों को लेकर बुना गया है। उनके द्वारा लिखा गया प्रारम्भिक उपन्यास होने के बावजूद यह हिन्दी साहित्य की एक अत्यंत सशक्त एवं प्रौढ़ कृति है। 'साथ सहा गया दुःख' नरेंद्र कोहली की उस साहित्यिक शक्ति को उद्घाटित करता है। 'सीधी बात' को सीधे-सीधे स्पष्ट रूप से ऐसे कह देना कि वह पाठक के मन में उतर जाए, उसे हंसा भी दे और रुला भी. इस कला में नरेंद्र कोहली अद्वितीय हैं। 'साथ सहा गया दुःख' नरेंद्र कोहली के संवेदनशील पक्ष को उद्घाटित करता है। महादेवी द्वारा 'प्रसाद' के लिए कही गयी उक्ति उनपर बिलकुल सटीक बैठती है: "...(उनके कृतित्व) से प्रमाणित होता है कि उनकी जीवन-वीणा के तार इतने सधे हुए थे कि हल्की से हल्की झंकार भी उसमें प्रतिध्वनि पा लेती थी।"
"यह देख कर आश्चर्य होता था कि मात्र ढाई पात्रों (पति, पत्नी और एक नवजात बच्ची) का सादा सपाट घरेलू या पारिवारिक उपन्यास इतना गतिमान एवं आकर्षक कैसे बन गया है। अनलंकृत जीवन-भाषा में सादगी का सौंदर्य घोलकर किस कला से इसे इतनी सघन संवेदनीयता से पूर्ण बनाया गया है।"
कोहलीजी का प्रथम उपन्यास था 'पुनरारंभ'. इस व्यक्तिपरक-सामाजिक उपन्यास में तीन पीढ़ियों के वर्णन के लक्ष्य को लेकर चले उपन्यासकार ने उनके माध्यम से स्वतंत्रता-प्राप्ति के संक्रमणकालीन समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों की मानसिकता एवं जीवन-संघर्ष की उनकी परिस्थितियों को चित्रित करने का प्रयास किया था। इसके पश्चात् आया 'आतंक'. सड़ चुके वर्तमान समाज की निराशाजनक स्थिति, अत्याचार से लड़ने की उसकी असमर्थता, बुद्धिजीवियों की विचारधारा की नपुंसकता एवं उच्च विचारधारा की कर्म में परिणति की असफलता का इसमें ऐसा चित्रण है जो मन को अवसाद से भर देता है।
नरेन्द्र कोहली की एक बड़ी उपलब्धि है "वर्तमान समस्याओं को काल-प्रवाह के मंझधार से निकाल कर मानव-समाज की शाश्वत समस्याओं के रूप में उनपर सार्थक चिंतन". उपन्यास में दर्शन, आध्यात्म एवं नीति का पठनीय एवं मनोग्राही समावेश उन्हें समकालीन एवं पूर्ववर्ती सभी साहित्यकारों से उच्चतर धरातल पर खडा कर देता है।
यों तो छह वर्ष की आयु से ही उन्होने लिखना प्रारम्भ कर दिया था लेकिन १९६० के बाद से उनकी रचनाएँ प्रकाशित होने लगीं। समकालीन लेखकों से वो भिन्न इस प्रकार हैं कि उन्होने जानी मानी कहानियों को बिल्कुल मौलिक तरीके से लिखा। ऐतिहासिक कथाओं पर आधारित उनके प्रमुख वृहदाकार उपन्यासों की सूची नीचे दी गयी है। उनकी रचनाओँ का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। ‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ और ‘युद्ध’ नामक रामकथा श्रृंखला की कृतियों में कथाकार द्वारा सहस्राब्दियों की परंपरा से जनमानस में जमे ईश्वरावतार भाव और भक्तिभाव की जमीन को, उससे जुड़ी धर्म और ईश्वरवाची सांस्कृतिक जमीन को तोड़ा गया है। रामकथा की नई जमीन को नए मानवीय, विश्वसनीय, भौतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। नरेन्द्र कोहली ने प्रायः सौ से भी अधिक उच्च कोटि के ग्रंथों का सृजन किया है।
(बनारस, 25 जनवरी 2017, बुधवार)
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