बुधवार, 9 जून 2021

अनुज मित्र राजीव आर्यावर्त द्वारा "यह सड़क मेरे गांव को नही जाती" पढ़ कर लिखी गई यह पाती

अनुज मित्र राजीव आर्यावर्त द्वारा "यह सड़क मेरे गांव को नही जाती" पढ़ कर लिखी गई यह पाती
बहुत बहुत आभार व स्नेह राजीव आर्यावर्त ।आपने किताब पढ़ते हुये मेरे मनोभावों को महसूस ही नही किया है वरन सच्चे रूप मे जिया है।

बड़े भैया व्योमेश चित्रवंश जी,
          आपको सादर सादर चरण स्पर्श तथा कोटि कोटि धन्यवाद जो आप अपनी किताब के माध्यम से मुझे और अपने पाठकों को आपने अपने अपने बचपन में जाने का मौका दिया है
     जैसा कि हम सब जानते हैं कि मनुष्य को अपना बचपन कभी नहीं भूलता है और ना ही उससे मधुर और कल्पनाशील कोई और याद होती है दूसरे शब्दों में अगर मैं कहूं तू मनुष्य पूरा जीवन अपने बचपन को ही जीता रहता है और व्योमेश भैया आपने अपने इस संस्मरण यह सड़क मेरे गांव को नहीं जाती है के माध्यम से मेरे जैसे पाठकों को बहुत ही आहिस्ता आहिस्ता उंगली पकड़कर उनके बचपन में ले जाती है और और उन दिनों को क्रमबद्ध ढंग से याद दिलाती है साथ ही साथ मन में यह कसक और कचोट पैदा करती है की हर एक भाव हर एक विचार अपने शब्दों के माध्यम से आप सभी को बताऊं लेकिन आप जानते ही हैं कि हर एक भाव हर एक विचार लोगों के साथ प्रकट कर पाना असंभव होता है मैं भी चाहता हूं कि मैं अपने हर एक विचार को उन बचपन की यादों को बताऊं लेकिन वह शब्द वह वाक्य मेरे पास शायद नहीं है ।परंतु आप कोटि कोटि  बधाई के पात्र हैं जिन्होंने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से हर घटना और हर पात्र का बहुत बहुत ही सुंदरता और सटीकता से वर्णन किया है और हर घटना को जो मेरे बचपन में या हम लोगों की उम्र के लोगों के बचपन में घटती थी चाहे वह पंपिंग सेट पर नहाना हो बचपन के खेल कूद जैसे हॉकी कबड्डी सरपट सुटूर आदि तमाम खेल और साथ ही साथ गांव में होने वाले तमाम त्योहारों, घटनाओं ,सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैवाहिक आयोजनों का भी आपने बहुत ही सटीक और सुंदर वर्णन किया है इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही होगी। आपकी इस किताब को अब तक में है दो बार पढ़ चुका हूं और ऐसा लग रहा है कि जैसे अभी भी पूर्णरूपेण मन भरा नहीं है वैसे ही जैसे बहुत स्वादिष्ट भोजन करने पर पेट तो भर जाता है लेकिन  आत्मा अतृप्त रह जाती है अर्थात मन बार-बार  आपकी किताब पढ़ना चाहता है और आपकी किताब दो बार पढ़ने के बाद भी ऐसा लग रहा है की और पढ़ा जाए।
     इसके साथ ही आपकी किताब का शीर्षक "#यह_सड़क_मेरे_गांव_को_नहीं_जाती ''आज के मानव के मनोभाव को पूर्णरूपेण व्यक्त करती है इसके साथ ही वर्तमान ग्रामीण समाज और उसमें उसमें हुए आर्थिक ,सामाजिक, राजनैतिक ,पारिवारिक परिवर्तनों को भी बहुत ही बृहद रूप में हम लोगों के सामने रखती है यह किताब "यह सड़क मेरे गांव को नहीं जाती ''।
    आपकी किताब को पढ़कर इसके बारे में और समाज और देश के बारे में कहने के लिए तो मेरे पास बहुत कुछ है और शायद कई दिन इसमें लिखना पड़ जाए मुझे परंतु मैं अपने मित्रों भाइयों और शुभचिंतकों से यही अनुरोध करूंगा की आप सभी लोग भी इस किताब को एक बार अवश्य पढ़ें और एक बार फिर से अपने बचपन को और उन यादों को फिर से जिएं और उन यादों में भींग कर सराबोर हो जाएं।
   अंत में एक बात और कहूंगा व्योमेश भैया कि आज के 100-200 साल बाद जब हमारी पीढ़ी और तब की पीढ़ी के बीच में जब तुलना होगी तो उस समय की पीढ़ी अगर आपकी किताब को पढ़ेगी या आज की ही पीढ़ी पढ़ेगी तो अवश्य समझ जाएगी कि उसके पूर्वज जो गांव में रहते थे उनमें कितना अपनत्व, कितनी एकता ,कितनी समझ, परस्पर भाईचारा, प्रेम और लगाव और उच्च कोटि के संस्कार थे और आपकी किताब उसका जीवंत और मूल्यवान प्रमाण होगी व्योमेश भैया।
    पुनः राजर्षि के पावन धरा के सपूत व्योमेश चित्र वंश भैया के श्री चरणों में कोटि-कोटि वंदन और अभिनंदन करते हुए इतनी उच्च कोटि की रचना के लिए आपको धन्यवाद करता हूं ताकि आप ऐसे ही नए नए विषयों पर अपनी कलम चलाते रहें और सभी राजर्षि के भाइयों मित्रों और भारत वासियों को आनंदित और प्रफुल्लित करते रहें।
   लेख में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए अग्रिम क्षमा।
                                                             #राजीव_आर्यावर्त
  भूतपूर्व छात्र
उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पुस्तक का नाम "यह सड़क मेरे गांव को नहीं जाती"
    लेखक श्री #व्योमेश चित्रवंश जी एडवोकेट वाराणसी कचहरी  ।
भूतपूर्व छात्र उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी