गुरुवार, 19 मई 2016

वरूणा गीत

मॉ वरूणा को समर्पित इस गीत की रचना प्रख्यात कवि पं० हरि राम द्विवेदी जी ने हमारी वरूणा अभियान के आग्रह पर वर्ष २००७ मे किया था।यह गीत वरूणा के महत्व के साथ काशी के संस्कृति को भी संप्रेषित करता है।

है जुड़ी वरूणा हमारी आस्था के गीत से
और काशी की संजोई साधना की रीति से
लोक के अनुराग की शुभरागिनी के प्रण सी
पीढीयो से गा रहा यह शहर वाराणसी।
राग रंजित कामनायें,रास रस की प्रीति से।
है जुड़ी........
पंचक्रोसी की परिधि मे जो तुम्हारा नाम है
है वही महिमा सनातन  लोक का सम्मान है
प्रकृति को तुमने सँवारा है नरम नवनीत से
है बसी.....
गति तुम्हारी देख ऑखे आज डबडब हो रही
देख अवजल का मिलन निष्ठा बिचारी को रही
यह समय सहमा हुआ कुछ कह न सके अतीत से
है जुड़ी.....

वरूणा गीत

मॉ वरूणा को समर्पित इस गीत की रचना प्रख्यात कवि पं० हरि राम द्विवेदी जी ने हमारी वरूणा अभियान के आग्रह पर वर्ष २००७ मे किया था।यह गीत वरूणा के महत्व के साथ काशी के संस्कृति को भी संप्रेषित करता है।

मंगलवार, 17 मई 2016

हमारी वरूणा अभियान (३): व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17मई2016 मंगलवार

हमारी वरूणा अभियान: दिल मे आवाज एक उठी थी कभी (३),

                         और तीन दिन बाद ही रविवार आ गया। जिन थोड़ा से  मित्रों को हम सूचना दे पाये थे वे उत्साह से लबालब थे। लेकिन श्रमदान के नाम पर हमारी कोई तैयारी नही थी। हमे पूर्व मे श्रमदान का कोई अनुभव भी नही था। बहर हाल हम श्रमदान के नियत समय ३ बजे सायं से लगभग डेढ़ घंटे पहले ये सोच कर शास्त्री घाट पहुँचे कि चल कर वहॉ जरूरत के पुताबिक व्यवस्था किया जायेगा। पर यह क्या? हमारे पहुँचने के पहले ही ज्यादातर श्रमदाता वहॉ पहुँच चुके थे। यानि समय से डेढ़ दो घंटे पहले ही। उनमे अधिकांसत: यूपी कालेज के छात्र थे जो डॉ० कुलदीप जी के आवाह्न पर मॉ वरूणा के लिये कुछ करने का जज्बा लेकर आये थे। मीरापुर बसहीं के सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय के अजय यादव जी एवं उनके सहयोगी, प्रिन्स कम्प्यूटर एकाडमी के मनोज जी व उनके छात्र, अशोक पाण्डेय, अजीत व दिनेश सिंह की अंकित व अंकुर विश्वकर्मा के साथ जीनियस कोचिंग की पूरी टीम, प्रेमचंद मार्गदर्शन केन्द्र मढ़वा लमही के राजीव, जितेन्द्र, दिलीप व प्रमोद जी, वरूणा तट पर रहने वाले लक्ष्मन सिंह प्रवक्ता,हम लोगो के प्रेरक डॉ० अरविन्द भैया , मुसीर भाई ,हम सबका प्रिय के के श्रीवास्तव उर्फ कृष्ण जैसे लगभग साठ सत्तर की संख्या मे लोग जुट चुके थे। हमारे साथी सूर्यभान सिंह विह्वल थे कि उनका प्रण साकार रूप ले रहा है। आज तक की हमारी जानकारी मे शायद यह पहला श्रमदान रहा होगा जो अपने नियत समय से पौन घंटा पहले ही शुरू हो गया। हमे लोगो ने मात्र दो फावड़े और दो टोकरी की व्यवस्था की थी। सच कहे तो हमे चार छ: से अधिक श्रमदाताओं के जुटने की उम्मीद भी नही थी। पर हमारे सारे अनुमानो को ध्वस्त करते हुये इन स्वैच्छिक श्रमदाताओं की भीड़ जब वरूणा मे सफाई के लिये उसकी तो हमारे व सूर्यभान की ऑखो मे खुशी के ऑसू आ गये। अरविंद भैया ने हमे विश्वास दिलाया कि प्रचार प्रसार से दूर अच्छे काम करने वालो की आज भी कोई कमी नही है। सत्तर की संख्या के लिये दो फावड़े और दो टोकरी नही के बराबर थी। हम लोगो के अनुभवहीनता व कयास को देखने कर डॉ० कुलदीप ने तुरंत अपने कालेज के फार्म हाउस से छ: फाचड़े, तीन बेलचे व दो पॉचा व छ: टोकरियॉ मंगवाया। अरविंद भैया भी अपने घर से दो टोकऱी व एक फावड़े की व्यवस्था की। फिर भी उत्साह व संख्या के सामने ये संसाधन कम ही थे। जिन लोगो को फावड़े, पॉचे टोकरियॉ नही मिली वे सीधे ही वरूणा मे उतर गये और वरूणा के पेटे से ढेर के ढेर पालिथीन व कूड़े निकलने लगे। अद्भुत दृश्य आज भी ऑखो के सामने है। लोगो का उत्साह देख उस समय एक दुर्घटना मे बुरा तरह घायल हो कर स्वास्थ्य लाभ कर रहे खुद किसी तरह वैसाखी के सहारे वरूणा तट तक आये डॉ० कुलदीप व लमही के हमारे दिव्यांग मित्र एक हाथ से जीवन यापन करने वाले प्रमोद मौर्य भाई भी केवल खड़े हो कर दर्शक की भूमिका निभाने को तैयार नही थे। कुलदीप भाई ने टोकरी सँभाली तो प्रमोद नदी के पेटे मे घुसी हाथ से ही करता निकालने लगे। वरूणा मे कचरे की स्थिति यह थी कि सीढ़ीयो तक केवल प्लास्टिक की बोरियो मे कूड़े व पालिथीन मे भरे कचरे से पटी थी। जीवनदायिनी कही जाने वाली वरूणा स्वयं जीवन के लिये शुद्ध सॉस के लिये कराह रही थी। हम लोगो को नदी मे साफ सफाई करते देख  एक दो स्थानीय तो एक दो अन्य राहगीर भी आ गये व हमारे प्रयास को जान कर अपनी सहयोग दिया।शाम के  साढ़े पॉच बजे तक हम लोग लगभग तीन कुन्तल से अधिक कचरा व पालिथीन वरूणा के पेटे से निकाल चुके थे।जबकि अभी हम नदी मे मुश्किल से दो मीटर या उससे थोडा सा कम अधिक ही घुस पाये थे। 
    अब हमारे सामने दूसरी समस्या यह थी कि नदी के पेटे से निकाले गये कूड़े कचरे को निस्तारित कहॉ किया जाय? अंतत: यह तय हुआ कि फिलहाल इस कचरे व कूड़े को पालिथीन से अलग कर हमे लोग पुराने पुल के नीचे कचहरी छोर पर एक किनारे ऱख दें और दूसरे दिन नगरनिगम से मिल कर उसके निस्तारण के लिये व अगले श्रमदान मे उनसे एक कूड़ागाड़ी अथवा व्यवस्था के लिये अनुरोध किया जाये। 
सूरज ढलने वाला था पर वरूणा पुत्रों के उत्साह मे कोई कमी नही थी। अंतत: हमे अरविन्द भैया व कुलदीप भाई के माध्यम से बार बार आज का काम बंद किये जाने का अनुऱोध करना पड़ा तब जा कर पहले दिन का श्रमदान समाप्त हुआ । कचहरी पर कुलदीप भाई के सौजन्य से पहलवान की चाय के साथ अगले रविवार को पुन: मिलने के विश्वास के साथ  अक अच्छी शुरूआत के पहले दिन का समापन हुआ।
        इसी श्रमदान के दौरान हमारी कई नये साथियो से मुलाकात हुई जो आज तक हमारे सहयोग मे सदैव तत्पर रहते है और बिना प्रचार प्रसार के वरूणा के पुनरूद्धार के बारे मे सिद्दत से सोचते महसूस करने के साथ ही कुछ करने के बारे मे सोचते है। ऐसे ही लोगो मे कृष्ण के के, अंकुर व अंकित , राजीव मढ़वा जैसे बच्चे थे जिनकी निष्ठा व समर्पण के माध्यम से हमारी वरूणा अभियान को बहुत बल मिला, जिसकी चर्चा आने वाले दिनो में।            (क्रमश:)
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