मंगलवार, 6 अगस्त 2019

व्योमवार्ता/ जुलाई 2019 मे पढ़ी गई किताबें : व्योमेश चित्रवंश की डायरी , 31 जुलाई 2019

 किताबे पढ़ने के पुराने शौक को पुन: बनाने के प्रयास के संकल्प को तीसरे महीने भी बरकरार रहने का भरपूर प्रयास सफल रहा और इस महीने हम ने अंग्रेजी की दो पुस्तकें frredom at midnight और चेतन भगत की one night@call centre हिन्दी की चार पुस्तकें नरेन्द्र मोदी की ज्योतिपुंज, राही मासूम रजा की नीम का पेड़ , श्री कांत पांडेय की आज भी जीवित है हनुमानजी, सुरेन्द्र मोहन पाठक की क्रिस्टल लाज और ऱाकेश बैरागी की दि ब्लाइंड मर्डर केस यानि कुल छ: किताबें पढ़ कर अपनी पढ़ने की शौक  यात्रा जारी रखी। प्रयास यह था कि पुस्तके बोझिल व गंभीर न हो इसलिये पुस्तक चयन को लेकर कोई मापडण्ड नही बस पुस्तक चयन का आधार स्वान्त: सुखाय मन के आनंद हेतु  पढ़ना था। इसलिये हमने दो तीन वे किताबे उठाई जो दस साल बीस साल और तीस साल पहले हमने पढ़ा था। एक लुगदी साहित्य का उपन्यास तो एक रहस्य रोमांच से भरी जासूसी कथा और एक धार्मिक रचना तो एक राजनीतिक विचारधारा से जुड़ी हुई गाथा।
श्रीकांत पाण्डेय जी की पुस्तक आज भी जीवित है हनुमानजी विशुद्ध रूप से भक्ति व श्रद्धा भाव से लिखी गई महावीर हनुमानजी के प्रति उनके सादर भाव है। वे पुस्तक की भूमिका मे कहते हैं कि हम रामराज लायेंगे, तो भाई-बहनों  फिर राम कहाँ से लायेंगे? रामराज्य की अवस्था क्या है? "सब नर करहिं परस्पर प्रीती, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती" यह रामराज्य की अवस्था है, व्यवस्था कैसी भी हो अगर, व्यक्तियों की और समाज की यह अवस्था रहेगी तो शासन में कोई भी बैठो राज्य राम का ही माना जायेगा, राम मर्यादा है, धर्म है, सत्य है, शील है, सेवा है, समर्पण है, राम किसी व्यक्तित्व का नाम नही है, राम वृत्ति का नाम है, स्वरूप का नाम राम नहीं है बल्कि स्वभाव का नाम राम है, इस स्वभाव के जो भी होंगे वे सब राम ही कहलायेंगे, वेद का, धर्म की मर्यादा का पालन हो, स्वधर्म का पालन हो, यही रामराज्य है। स्वधर्म का अर्थ है जिस-जिस का जो-जो धर्म है, पिता का पुत्र के प्रति धर्म, पुत्र का पिता के प्रति धर्म, स्वामी का धर्म, सेवक का धर्म, राजा का धर्म, प्रजा का धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, शिक्षक का धर्म, शिष्य का धर्म।जरा सी मर्यादा का उल्लंघन जीवन को कितने बड़े संकट में फँसा सकता है, जो रामराज्य में रहेगा हनुमानजी उसके पास संकट आने ही नही देंगे, क्योंकि रामराज्य के मुख्य पहरेदार तो श्रीहनुमानजी महाराज हैं, तीनों कालों का संकट हनुमानजी से दूर रहता है, संकट होता है- शोक, मोह और भय से, भूतकाल का भय ऐसा क्यों कर दिया, ऐसा कर देता तो मोह होता है। हनुमानजी सब कालों मे विद्यमान हैं, "चारों जुग प्रताप तुम्हारा, है प्रसिद्ध जगत उजियारा" हनुमानजी तो अमर हैं।चारों युगों में हैं सम्पूर्ण संकट जहाँ छूट जाते हैं शोक, मोह, भय वह है भगवान् श्री रामजी की कथा, कथा में हनुमानजी रहते हैं, अगर वृत्तियाँ न छूटे तो हनुमानजी छुड़ा देंगे। हनुमानजी मिले तो जानकीजी का ह्रदय शान्त हो गया, शीतल हो गया, हनुमानजी के प्रति श्रद्धा रखियें, श्रद्धा से भय का नाश होता है, आपके मन में यदि भगवान् के प्रति श्रद्धा है तो आप कभी किसी से भयभीत नही होंगे।
ज्योतिपुंज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अपने आरएसएस स्वयंसेवक निर्माण काल के स्मृतियों का संग्रह है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होने अपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मे प्रचारक काल के अनुभवों को सूचीबद्ध कर गुजरात मे कार्य कर चुके संघ के अपने जीवन निर्माण मे उन आदरणीय स्वयंसेवको के स्मृतियों को पिरो कर गुजराती मे ज्योतिपुंज नाम से यह पुस्तक लिखा था, जिसे उनके प्रधानमंत्री होने पर श्रीमती  संगीता पाण्डेय ने हिन्दी मे अनुवादित किया है। पूर्व शंकराचार्य स्वानी सत्यमित्रानंद ने पुस्तक की भूमिका मे अपने हृदयोद्गार बहुत ही सुंदर शब्दों मे व्यक्त किया है। उन्होंने पुस्तक के बारे मे लिखा है कि "राजनीति में रहते हुए अपने प्रेरणा-स्रोतों का स्मरण करना प्रायः कठिन काम है, लेकिन जिनके द्वारा प्रेरणा मिली है, जीवन का निर्माण हुआ है, उनका स्मरण सदा रहना चाहिए। एक सामान्य कार्यकर्ता से प्रचारक, प्रचारक से समाज के प्रतिनिधि, उसके बाद में गुजरात प्रांत के मुख्यमंत्री पद पर रहकर माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने इन सब सात्त्विक महापुरुषों का वर्णन किया है, समाज को प्रेरणा देनेवाले लोगों का स्मरण किया है। प्रायः लोग अपने दो-चार वर्ष के काल में अपने वैभव के प्रासाद में ही रमण करते हैं। लेकिन नरेंद्र मोदीजी के व्यक्तिगत जीवन से सिद्ध होता है कि वर्तमान काल में भी प्रामाणिकता के चिह्न उपस्थित किए जा सकते हैं, उन्हें प्रकट करने में वे बड़े सावधान हैं। 
जब कोई व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है तो असत्य के मार्ग पर चलनेवाले लोगों को कष्ट होता ही है। सूर्य का उजाला सबके लिये है। सूर्य का काल सदा होता है। सूर्य सर्वदेशीय है। जब हम मानते हैं कि भारत में अँधेरा है तो अमेरिका में सूर्य प्रकाश देता है। सूर्य कभी अंधकार को स्वीकार करता नहीं। वर्तमान परिदृश्य मे हम मोदीजी की तुलना सूर्य से ही कर सकते है वे भी प्रकाश के पक्के पथिक हैं। साहसपूर्वक आगे बढ़ रहे हैं। बड़े ही सहज भाव से ज्योतिपुंज मे उन्होने गुरूजी माॉधव सदाशिव गोलवलकर, वर्तमान सरसंघचालक डॉ० मोहन भागवत के पिताजी मधुकर भागवत जी, वकील साहब लक्षमण ईमानदार जी, केशव राव देशमुख जी,अनंतराव काले जी, बसंतभाई, विश्वनाथ वणीकर जी जैसे लोगो की स्मृतियों को नमन करते हुये अपनी भावांजलि व्यक्त किया है। कुछ महापुरूषों पर मोदी जी की अपनी भावांजलि कविताओं मे भी प्रकट हुई है, जिसे संगीता पाण्डेय ने बहुत ही अच्छे ढंग से अनुवादित किया है जो पुस्तक के प्रथम पृष्ठ से ही पुस्तक को रूचिकर बनाये रखती है।
नीम का पेड़ को मैने तकरीबन सत्ताईस अट्ठाईस साल पहले तब पढ़ा था जब इस उपन्यास पर आधारित पंकज कपूर अभिनीत धारावाहिक दूरदर्शन पर प्रसारित होता था। बुधिया का दर्द और सुखीराम के व्यवहार से उसकी खिन्नता आज भी ज्यों की त्यों याद हैं। हमारे पड़ोसी जिले गाजीपुर के एक गॉव मे 1 सितम्बर, 1925 को  जन्मे डॉ० राही मासूम रजा गॉव से ही प्रारम्भिक शिक्षा पा कर उच्च शिक्षा के लिये अलीगढ़ यूनिवर्सिटी चले गये और वहॉ ‘उर्दू साहित्य के भारतीय व्यक्तित्व’ पर पी-एच.डी. किया। अध्ययन समाप्त करने के बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में अध्यापन-कार्य से जीविकोपार्जन की शुरुआत कर कई वर्षों तक उर्दू-साहित्य पढ़ाते रहे। बाद में फिल्म-लेखन के लिए बम्बई गए। जीने की जी-तोड़ कोशिशें और आंशिक सफलता पाते हुये सृजन संघर्ष मे फिल्मों में लिखने के साथ-साथ हिन्दी-उर्दू में समान रूप से सृजनात्मक लेखन किया। फिल्म-लेखन को और लेखकों की तरह ‘घटिया काम’ नहीं, बल्कि ‘सेमी क्रिएटिव’ काम मानते थे। बी.आर. चोपड़ा के निर्देशन में बने महत्वपूर्ण दूरदर्शन धारावाहिक ‘महाभारत’ के पटकथा और संवाद-लेखक के रूप में उन्हे सारे देश मे पहचान मिली। डॉ० राही एक ऐसे कवि-कथाकार, जिनके लिए भारतीयता आदमीयत का पर्याय रही। वे मुंबई की फिल्मी दुनिया के रंगीनीयों मे रह कर भी वे गॉव गिराँव और आम भारतीय को नही भूले । नीम का पेड़ मे भी उनका यही पूरबिया शैली की आम गंवई की भाषा मे देश की समस्या, मूल्य और चिन्ता को लेकर किस्सागोई का अंदाज बॉधे रहता है जो आजादी के पॉच साल पहले के संघर्षों की कहानी को आजादी के दो दशकों बाद तक लेजाता है जहॉ राजनीतिक नव मानवीय मूल्यों का ह्रास बड़ी तेजी से हो रहा है, पर इसके लिये कोई शख्स खुद को बरी साबित नही कर सकता इसीलिये  सारी बाते वक्त के गवाह नीम के पेड़ से किस्सागोई मे कह जाती है' मैं तो शुक्रगुज़ार हूँ उस नीम के पेड़ का जिसने मुल्क को टुकड़े होते हुए भी देखा और आज़ादी के सपनों को टूटते हुए भी। ज़मींदारी को खत्म होते हुए देखा तो नए राजाओं को बनते हुए भी देखा। उसका दर्द बस इतना है कि वह इन सबके बीच मोहब्बत और सुकून की तलाश करता फिर रहा है। पतन के दौर में आदर्श की तलाशमें भटक रहा है। क्या करे बेचारा सारा खेल उसकी छाँह को खरीदने-बेचने का जो चलता रहा खुद उसी की छाँह के नीचे, तो तकलीफ उसे नहीं होती तो किसे होती।अब बताइए भला, मैं तो एक लेखक ठहरा। मुझे तो हर तकलीफज़दा के साथ होना है। चाहे वह हाड़-मांस का बना इंसान हो या फिर एक अदना-सा नीम का पेड़। क्या मैं उसकी कहानी सिर्फ़ इसलिए नहीं सुनाऊँ कि हम इंसानों की बस्ती में उसकी कोई औकात नहीं है। या इसलिए कि जब इंसानी जुबान का ही कोई भरोसा नहीं रहा तो फिर एक नीम के पेड़ का क्या ठिकाना। लेकिन मेरा तो यह फर्ज़ बनता ही था कि मैं उसकी कहानी आप तक पहुँचाऊँ। अब अगर इसमें आपको कोई झूठ लगे तो समझ लीजिएगा कि यह मेरा नहीं उसका झूठ है। और सच…तो साहब उसका दावा तो कोई भी नहीं कर सकता, न मैं न आप।अब मैं आपके और नीम के पेड़ के बीच ज़्यादा दीवार नहीं बनना चाहता, नहीं तो आप कहेंगे कि मैंने उसकी कहानी को अपनी बताने की गरज़ से इतनी लम्बी तकरीर दे मारी। तो चलिए आपकी मुलाकात गाँव मदरसा खुर्द के अली ज़ामिन खाँ और गाँव लछमनपुर कलाँ के मुसलिम मियाँ से करवाते हैं जो वैसे तो खालाज़ाद भाई हैं, लेकिन वैसी दुश्मनी तो दो दुश्मनों में भी न होती होगी। और हाँ, बुधई उर्फ बुधीराम का भी तो अफ़साना है  तो नीम के पेड़ की जुबानी ही सारा बुधिया के सपने और उनका छनक कर टूट जाना भी एक अफसाना है। पाठक की नजर से कहे तो  सुखीराम का आदर्शों से भटकाव व उस के लिये बुधिया की पीड़ा ही नीम का पेड़ की कथा वस्तु है जिसे देखने व सुनाने के लिये वो अभिशप्त है। बिला शक इतने वर्षों के बाद भी नीम का पेड़ की कहानी मुझे बॉधे रखने मे सफल रही।
डोंगरी से दुबई तक मुम्बई माफ़िया के छह दशक की कहानी है जिसे मुंबई के मशहूर क्राईम रिपोर्टर एस हुसैन जैदी ने अंग्रेजी मे Dongari to Dubai -Six Decades of the Mumbai Mafia के नाम से लिखा है और हिन्दी मे अनुवाद मदन सोनी ने किया है, हालिया दिनो मे इस पर एक बालीवुड मूवी 'शूटआऊट ऐट बटाला' भी बन चुकी है। इस किताब के प्रति आकर्षित होने के प्रति संभवतः यह भी एक परोक्ष कारण था। मूलत:दाऊद इब्राहिम को केन्द्रित पात्र बना कर मुंबई माफिया के इतिहास को सिलसिलेवार तरीक़े से दर्ज करने की पहली कोशिश है। यह हाजी मस्तान, करीम लाला, वरदाराजन मुदलियार, छोटा राजन, अबू सलेम जैसे कुख्यात गिरोहबाज़ों की कहानी तो है ही, लेकिन इन सब से ऊपर, एक ऐसे नौजवान की कहानी है, जो अपने पिता के पुलिस महकमे में होने के बावजूद ग़लत रास्ते पर चल पड़ा। अपराध की दुनिया में दाऊद इब्राहिम का दाखिला मुम्बई पुलिस के एक मोहरे के रूप में हुआ और वह इस दुनिया के अपने प्रतिद्वन्द्वियों का सफ़ाया करता हुआ अन्ततः मुम्बई पुलिस के लिए ही भस्मासुर साबित हुआ। पठानों के उत्थान से लेकर दाऊद गिरोह के बनने तक, पहली बार दी गयी सुपारी से लेकर बॉलीवुड में माफ़िया की घिनौनी भूमिका तक, और दाऊद के कराची में पलायन से लेकर दुनिया के इस मोस्ट वाण्टिड अपराधी को कथित रूप में पनाह देने में पाकिस्तान की भूमिका तक यह किस्सा हिन्दुस्तान के अपराध के इतिहास के कई बड़े-बड़े कारनामों को अपने भीतर समेटता है। ज़बरदस्त शोध के बाद लिखी गई यह किताब पूरी गहराई और तफ़सील के साथ माफ़िया की वर्चस्व की लड़ाइयों और एक दूसरे को नेस्तनाबूत कर देने की उसकी रणनीतियों का ब्योरा पेश करती है।
 One Night @ Call Centre  by Chetan Bhagat. I must say comparing this to Five point someone is not cool , as this book does not deal with the students , although it represents the youth of the country . This book is about 6 call centre employees – Shyam , Priyanka , Esha , Vroom , Radhika & “military uncle” . Just like Five point someone was adapted in a movie , the bollywood movie -“Hello” (2008) starring Salman Khan was adapted from this story .  One thing why I like Chetan Bhagat’s books is that he describes the characters in the story really well . He does the same here – may it be the mysterious story teller girl or Shyam . The pace of the book is really good till the phone call from God & I was drowned into the story . I feel that the post phone call story could have been better. Thats it for now , I had a nice time reading the book while travelling in the journey and had a nice time too 

                   Freedom at Midnight (1975) is a book by Larry Collins and Dominique Lapierre. It describes events around Indian independence and partition in 1947-48, beginning with the appointment of Lord Mountbatten of Burmaas the last viceroy of British India, and ending with the death and funeral of Mahatma Gandhi. The book gives a detailed account of the last year of the British Raj, the princely states'reactions to independence (including descriptions of the Indian princes' colourful and extravagant lifestyles), the partition of British India (into India and Pakistan) on religious grounds, and the bloodshed that followed.There is a description of the British summertime capital Shimla in the Himalayasand how supplies were carried up steep mountains by porters each year. On the theme of partition, the book relates that the crucial maps setting the boundary separating India and Pakistan were drawn that year by Cyril Radcliffe, who had not visited India before being appointed as the chairman of the Boundary Commission. It depicts the fury of both Hindus and Muslims, misled by their communal leaders, during the partition, and the biggest mass slaughter in the history of India as millions of people were uprooted by the partition and tried to migrate by train, oxcart, and on foot to new places designated for their particular religious group. Many migrants fell victim to bandits and religious extremists of both dominant religions. One incident quoted describes a canal in Lahorethat ran with blood and floating bodies. Also covered in detail are the events leading to the assassination of Mahatma Gandhi, as well as the life and motives of British-educated Jawaharlal Nehru and Pakistani leader Muhammad Ali Jinnah .I read this book more than 30 years back. In this book The authors quoted Lord Mountbatten that east and west Pakistan will never be together for more than 30 years. He was right. This book was one of the inspirations for the 2017 film Viceroy's House by Gurinder Chaddha. we may say that it is an alltime redable book about indian independent history
.(बनारस, 31 जुलाई 2019, बुधवार)
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