व्योमवार्ता/चकाचक बनारसी और सावन की बरसात
आज सावन की पहली बारिस बनारस मे हुई तो तन मन मयूर हो गया।भीषण ऊमस से जूझते तबियत को बरसात की फुहार का सुख देने छत पर चला गया तो बरसात की बूंदों के टपटप मे रम्मन चाचा "चकाचक बनारसी" की याद आ गई। रम्मन चच्चा हमारे रिश्तेदार थे, फक्कड़ बनारसी, कबीर की तरह बेबाक, मिजाज से शानदार।
रम्मन चच्चा की याद आई तो उनकी कविता भी याद आ गई। जिन्हे उनको सुनने का सुख मिला है उनके होठ बरबस ही फड़क पड़ेगें चकाचक जी की इस कविता के बोल के साथ।
बदरी के बदरा पिछयउलेस,
सावन आयल काऽ।
खटिया चौथी टांग उठेउलस,
सावन आयल काऽ।
मेहराये के डर से माई लगल छिपावै अमहर,
भईया के बहका फुसला के भउजी भागल नइहर,
सांझै छनी सोहारी दादा तोड़ लियइलन कटहर,
बाऊ छनलन ललका दारू बनके बड़का खेतिहर,
बुढ़िया दादी कजरी गईलेस,
सावन आयल काऽ।
गुद्दड़ कऽ चौउथी मेहररूआ मेंहदी सुरूक लियाईल,
सास क ओकरे कानी अंगुरी सड़-सड़ के बस्साइल,
झिंगुरी के घर भुअरी बिल्ली तिसरे बार बियाइल,
रामभजन क नई पतोहिया झूलै के ललचाईल,
धनुई फिर गोदना गोदवउलेस
सावन आयल का।
चमरउटी कऽ उलटल पोखरी मचल हौऽ छूआछूत,
खेलत हौऽ धरमू पंडित कऽ बेवा धईलेस भूत,
ननकू के ननका के मुंह पर मकरी देहलस मूत,
छींकत हौऽ जमिदार कऽ बिटिया गईल खुले में सूत,
पटवारी के दमा सतउलेस,
सावन आयल काऽ।
सांझ के अहिराने में गड़गड़ गड़गड़ बजल नगाड़ा,
कलुआ गनगनाय के नचलेस लगल कि जइसे जाड़ा,
ओकरे साथे अन्हऊ पंडित नचलन तिरछा आड़ा,
लोटा लेके दउड़त हंउवन उखड़ल ओनकर नाड़ा,
उन्हें गांव भर दवा बतउलेस,
सावन आयल काऽ।
मुखिया के बखरी पर भर-भर चीलम उड़ल खमीरा,
उनके पिछवारे मेघा के लपक के धईलेस कीरा,
एक कोठरी में मुखियाइन के उठल कमर में पीरा,
लगत हौऽ राजा कजरी होई बाजल ढोल मजीरा,
पुरुवा भक दे गैस बुझउलेस,
सावन आयल काऽ।
बदरी के बदरा पिछयउलेस,
सावन आयल काऽ।
खटिया चौथी टांग उठेउलस,
सावन आयल काऽ।
#चकाचक_बनारसी जी की मशहूर कविता #सावन_आयल_का..
#व्योमवार्ता/ व्योमेश चित्रवंश की डायरी, काशी, 27 जुलाई 2021, मंगलवार
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