शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

बदल रहा है बनारस, मिट रहा है बनारसीपन : व्योमेश चित्रवंश की डायरी 15 जुलाई 2016

           एक वक़्त था जब हम बचपन में अपने घर से निकलते थे और फ़िक्र इस बात की होती थी की कचौड़ी जलेबी भर के पैसे जेब में  हैं या नहीं. गोलगप्पे के पैसों के लिए घर पे लात जूते खाने से भी गुरेज़ नहीं किया. घाट ही हमारा गोवा और बैंकॉक था. नाटी इमली का भरत मिलाप ही हमारे लिए ऑस्कर था. ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सपना पेट भर मलइय्यो खाना था. ख्वाहिशें छोटी थी, और बनारस से उम्मीदे कम. शायद इसीलिए हम सुखी थे और बनारस ने भी हमे कभी निराश नहीं किया. जितना हमने चाहा, बनारस ने हमेशा उससे बढ़ कर दिया. बनारस ने घाट पे बैठ के चीलम फूकने वाले को भी स्वीकारा और सड़क पे शान से भांग पीने वाले को भी. घाट पे नग्न बैठे अघोरी साधू को भी सम्मान दिया और मंदिरों में बैठे पंडितों की आस्था को भी पाला पोसा. बनारस ने डोम को भी राजा की उपाधि दे कर साम्राज्यवादियों के मुह पर तमाचा भी मारा. ये कमाल भी सिर्फ बनारस के बस की बात थी.
लेकिन अब चीजे बदल रही हैं. हमेशा मस्त हो कर भी शांत रहने वाला बनारस, अल्हड होते हुए भी संभ्रांत बनारस अब भागा भागा फिर रहा है. परेशां भी है और विचलित भी. इसका दिल अब गलियों से ऊब रहा है. इसे अब आसमानी इमारतों में रहना है. धड़ाधड़ बन रही इमारते यही बयान करती हैं. कोई फ्लैट बनाने में  परेशां है, कोई बेचने में और कोई खरीदने में. बनानेवाले भी बनारसी, बेचने वाले भी और  खरीदने वाला भी. हर रोज़ एक पुरानी इमारत गिरा दी जाती है एक नयी इमारत की  तामीर के लिए. और उसी के साथ गिर जाता है हम पर बनारस का भरोसा. चाट दलित सी हो रही है जिसकी तारीफ़ हर कोई करता है लेकिन साथ खाने की मेज़ पर कोई  नहीं बिठाना चाहता. आज का नया बनारसी पान नहीं खाता बल्कि पान की दूकान के पीछे मुंह छुपा के सिगरेट पीता है. मॉल की चमक और होटल की मदहोशी देखने और सुनने की सकत को ख़त्म कर रही है. जो बनारस अपने आप में पूर्ण था वो अब किसी और की तरह बनना चाहता है. भौतिकता और सांसारिक इच्छाओ का अंतिम पड़ाव समझा जाने वाला बनारस अब उसी में लिप्त होने को तड़प रहा है. सारनाथ, गोदौलिया, विश्वनाथ गली और हथुआ मार्किट तो चीप लोगो का बाजार हो गया. अब तो शादी के कपडे भी तभी जचते हैंजब दिल्ली या मुम्बई से आये हों. अब औरते माई से मम्मी और मम्मी से मॉम हो गयी हैं. सब्ज़ी अब वही स्वादिष्ट बना पाती हैं जोबिग बाजार से आयी हो. किटी पार्टियां इतनी होती हैं जितने बाप दादा ने रामायण नहीं कराये होंगे.
इन सब के बीच में हौले हौले सांस लेता बनारस आज भी शांत  है, और सब कुछ देख रहा है. शायद हमसे ये कहने की कोशिश कर रहा की "अपनी तहज़ीब को मस्ख  करने पे तहज़ीब का कुछ नहीं जाएगा, लेकिन एक दिन  वो तुम्हे मस्ख कर देगी"...हर हर महादेव...आप लोग नये बनारसी है या पुराने...?

लघुकथा 'फ्लैशबैक ' : व्योमेश चित्रवंश की डायरी 20जुलाई2016

            पूरी जिंदगी फ्लैशबैक सी निकल गयी उसकी आँखों के सामने से,कैसे उन दिनों जब हर चौमासे में घर की कच्ची दीवारें गिर जाती थीं,अपनी 3 बहनों, दिल की बीमारी से ग्रसित अपने बाप, की जिम्मेदारी उसे ही उठानी थी,जब गाँव की दाई ने गुड शक्कर के साथ चंदू के होने की थाली बजवाई थी,अपनी बीड़ी पीने की एकमात्र बुरी आदत भी उसने तब छोड़ दी थी..पाई पाई जोड़ता गया, किश्तों में वो कटता रहा,बहनों के ब्याह किये, और फिर उनकी ससुराल के नक़्शे झेले,बीवी को कभी शहर नहीं दिखा पाया, और न ही कोई गहना दिलवा पाया,खुद के पास शादियों/रिश्तेदारियों में जाने के लिए एक कुरता था,बाकी वक़्त फटी हुई फतूरी में खेत में दिन रात काम करते बीतता,चंदू की पढाई चलती रहे इसके लिए पहले कुछ जेवर गिरवी रखे गए जो कभी नहीं आ पाये,और बाकी आधी जमीन चंदू की डिग्री/एडमिशन का खर्च उठाते बिक गयी..

गरीबी में भी अगर आपका आत्मविश्वास अडिग रहे तो वही आत्मसम्मान बन जाता है,उसी आत्मसम्मान की खातिर वो सब कुछ दांव पे लगाता गया..चंदू शहर में सेटल हो गया, ठीक ठाक नौकरी भी मिली,वो खुश हुआ, जैसे मानो उसकी जीवन भर अग्निपरीक्षा सार्थक हो गयी हो,वो कभी चंदू से मिलने शहर नहीं जा पाया,एक तो उसका वो कुरता अब जगह जगह से घिस चुका था,दूसरा एजुकेशन लोन और घटती खेती के बीच उसकी समस्या जस की तस थीं बीवी को भी अब कम दिखाई देता था,चूल्हा फूंकते फूंकते शायद उसको TB भी हो गयी थी..फिर एक दिन चंदू का खत आया कि उसने वहीं शहर में शादी कर ली है..मन थोड़ा विचलित जरूर हुआ, लेकिन ये पहली बार नहीं था !जब नियति के सामने वो आँखों में आँखे डाल के खड़ा था,जो जिंदगी भर परिस्थितयों से नहीं हारा था, वक़्त से कैसे हार मान लेता.साहस बटोरा, और चंदू की माँ के हाथ के बने आटे-घी के लड्डू मर्तबान में पैक किये,और अपने बेटे बहु को आशीर्वाद देने, निकल गया वो शहर की तरफ..

शहरी भीड़भाड़ में चिट्ठी में लिखे पते को पूछता हुआवो पैदल ही स्टेशन से चंदू के घर पर पहुंचा.घर का नाम शांति-सदन पढ़ के गर्व से उसकी छाती फूल गयी,और मन ही मन सोचा कि चलो कम से कम चंदू की माँ की तपस्या तो सार्थक हुई..अपनी गठरी कंधे पे लटकाये और एक हाथ में मिठाई का मर्तबान लिए उसने दरवाजा खटखटाया..दरवाजा उसकी बहु ने खोला शायद ग्रामीण परिवेश उसने पहली बार देखा हो..

इसीलिए सबसे पहली बात उसने यही बोली " बाबा क्या चाहिए"

इतने में टाई बांधता हुआ चंदू भी ड्राइंग रूम में आ गया अपने पिता को देख के सीधे उनके पैरों में गिरा,और अपनी वाइफ को बताया - डार्लिंग ही इज माय फादर..वो सुन्न सा वहीं ड्राइंग रूम में बैठा हुआ था,उसकी सारी जिंदगी की पूँजी उसके सामने थी,वो जिंदगी जो वो खुद अफ़्फोर्ड नहीं कर सकता था,अपने बेटे को उसकी नींव रख के देने में उसकी जिंदगी खप चुकी थी,वो खुश था, मन में विचार श्रंखला चल रही थी,कि जब हफ्ते भर बाद वो गाँव जाएगा तो सीना चौड़ा कर के चलेगा,जिंदगी भर वो किसी के सामने नहीं झुका,बहनो की शादी करते करते वो हर बार टूटा, हर बार खड़ा हुआ,अपने बेटे की कामयाबी को वो वहीँ बैठा बैठा निहार रहा था,अचानक चंदू की बहु की आवाज उसके कानो में पड़ी..

.."पापा खाना तो खा के जाओगे न..."

कभी महसूस किया है जैसे कोई पत्थर कुए में गिरता है तब थोड़ी देर बाद एक गहरी चीख सी आती है कुँए से ठीक वैसे ही चीख उसकी आत्मा से आई..स्वाभिमान किसे कहते हैं वो इसे भूला नहीं था..वही इसकी जिंदगी भर के कमाई थी..वो तुरंत उठ खड़ा हुआ "नहीं बेटा खाना तो अब गाँव जाके ही खाऊंगा, बस तुझे देखने आ गया था, और तेरी माँ के हाथ के बने लड्डू भी देने थे"

ये कह के वो पैदल पैदल विचार शून्य सा स्टेशन की तरफ निकल चला हालांकि चंदू ने आवाज भी दी थी..और अपनी कार से स्टेशन ड्राप करने की पेशकश भी की थी.लेकिन वो तेज क़दमों से वहाँ से निकल गया..उसको जिंदगी में रोते हुए कभी किसी ने नहीं देखा था..अब वो स्टेशन पर खड़ा हुआ ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था.आँखों में गहराई थी, और चेहरे पर स्थिर और शांत भाव थे..पहली बार नहीं था जब वक़्त ने उसे नीचे दिखाने की कोशिश की थी..
उसके अंदर एक बहुत बड़ा तूफ़ान चल रहा था..उसकी सारी जिंदगी उसके सामने फ्लैशबैक की तरह निकल रही थी... .....

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

LIFE IS WHAT YOU MAKE IT : a book by Preeti Shenoy, व्योमेश चित्रवंश की डायरी 25102016

LIFE IS WHAT YOU MAKE IT : a book by Preeti Shenoy

A stop gap relationship
She looks at him with misty eyes
They have made love
Or attempted to
He seems content and relaxed
Most importantly satisfied.
Not noticing her silence
Or perhaps choosing to ignore it
Not knowing its cause.
        
                   It is 1.56 am. the day and date has changed.  There is silent night out of my chamber cum Study Room, Just completed preeti shenoy' s LIFE IS WHAT YOU MAKE IT.   This is recommended by my daughter kanu. though my english reading speed is not as good as her but i completed it in one sesting sesdion. It is a story of love, hope and how determinitation can overcome even destiny. But i think it is something more, it is the story about how life can take a totally different path from what is planned and yet how one can make  a success out of it. It is a story of courage, determination and growing up. It is a story of faith, belief and perseverance too and charting your own destiny.
      Now a days the yungsters are living in big trouma. They have to join the professional courses  after their schooling. So they are  planned for getting admission  after class 8. At present the tution coaching are being  much important then classroom. For the dreams the yungsters are totally detached by their innocency , their natural bdhaviour and their childhood. They are converting themselves as a tools who is living for their goal, their fake mortal lifestyle and thier hyperbolic life atmosphere. Many times the way of thier goal proceed them to so many problems. The proble of BIPOLAR DISORDER is one of these problems. This book is about this, it is a simple narration with umpteen smart phrases and sharp observations that cut close to the bone, witticisms that encapsulate honest- to-goodness home truths, not to forget musings of a keenly observant mind.
      Bipolar disorder is a serious brain disorder that causes dramatic shifts in moods, energy levels, attitudes and ability to carry out everyday tasks. It is very different from the normal mood changes thst everybody goes through from time to time. It developes typically in late adolscence or early adulthood. Bipolar disorder can be severly crippling that it can result in damaged relationship, poor job or academic performance and even suicide. It has also been associated with creativity. In India and China alone, there are at least 12-15 million people who suffer from BIPOLAR DISORDER. But it is very clear that having a condition like Bipolar Disorder does not mean that the perdon is crazy or a lunatic. Having a disorder like that does not mean it is the end of the world either. It can be managed in a number of ways and people affected can lead very positive and complete lives.
          Really it is a great creation by preeti on this issue. It is much appreciable and  must redable.

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महासमर- आनुषांगिक : महाभारत के परिप्रेक्ष्य मे जीवन दर्शन > व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 04 मार्च 2017, मगलवार

              यूँ तो महासमर का वर्ष 2015 मे प्रकाशित अंतिम, नवम व विशेष खण्ड  आनुषंगिक पिछले नवरात्रि मे ही पढ़ चुका था, बल्कि यूँ कहे कि दूसरी बार पढ़ चुका था, इसके काफी पहले भी हमने इस रचना के लगभग संपूर्ण अंश को कई खण्डों मे "जहॉ है धर्म वहीं है जय " के लेखमाला मे संभवतः 1989-90 के आसपास ही पढ़ा था तब यह संभवतः स्वतंत्र भारत मे प्रत्येक रविवार को प्रकाशित हुआ करता था. तब न तो महासमर समझने की पात्रता थी न ही विवेक का वह स्तर जिसके आधार पर इस संपूर्ण कथा को समझा जा सके. बस अच्छा और अभूतपूर्व लगता था इसलिये अगले लेख की प्रतीक्षा रहती थी. बाद मे श्रद्धेय डॉ0 नरेन्द्र कोहली के संपर्क मे आने के बाद उनकी अद्भुत महान कालजयी कृति महासमर के आठों खण्डों बंधन से निर्बन्ध तक पढ़ा तो एक नये जीवन दर्शन का बोध हुआ. श्रद्धेय कोहली जी की महासमर मात्र महाभारत की कथा न होकर मानव जीवन को संपूर्ण विराटता के साथ मौलिक रूप से प्रस्तुत करने का जीवन्त दर्शन है. जीवन के वास्तविक रूप से संबन्धित प्रश्नो का समाधान डा0 कोहली अनुभूति व तर्क के आधार पर देते हैं.सच तो यह है कि महासमर के बहाने आप महाभारत पढ़ने बैठेगें तो अपना जीवन पढ़ कर उठेगें. और महासमर के विस्तार के संबंध मे जहॉ तक मेरी समझ है , यह हिन्दी साहित्य का अब तक की विशालतम कृति है जिसकी तुलना लियो टालस्टाय के युद्ध व शांति से की जाती है.
       बहरहाल,  बात वर्तमान प्रसंग की, पिछले नवरात्रि मे महासमर के संपूर्ण नौ खण्डों को पढ़ने के बाद मेरी सोच बार बार आनुषंगिक पर ही रूक जाती थी, क्योंकि यह महासमर की भूमिका होने के साथ उसका समापन भी है व संपूर्णता भी. क्योंकि जहॉ यह महासमर की कथा को समझने का सूत्र है वही महासमर को पढ़ने के पश्चात उसका आवश्यक नेपथ्य भी. मैने पिछले शारदीय नवरात्रि से लेकर इस वासंतिक नवरात्रि के मध्य की अवधि मे आनुषंगिक को कई बार पढ़ा, और हर बार पढ़ने के पश्चात अपने मन मे उठ रहे महाभारत संबंधी जिग्यासा के साथ अपने जीवन की समस्याओं का समाधान भी पाया और कई बार आनुषंगिक पर कुछ लिखने को सोचा पर हर बार पात्रता के प्रश्न को लेकर मेरा विवेक सामने आ गया. सच कहे तो अभी भी मेरा स्वयं का विवेक इस तथ्य को स्वीकारने की अनुमति नही देता और न ही मै स्वयं को इस हेतुक उचित पात्र मानता हूँ. हॉ, संपूर्ण नवरात्रि व्रत होने का लाभ यह रहा कि इस नवरात्रि मे अपने चित्त की अंतर्यात्रा मे आनुषंगिक का परायण एक बार पुन: हो गया और व्यक्तिगत स्तर पर मैने यह महसूस किया कि महासमर पढ़ने के साथ आनुषंगिक पढ़ना अावश्यक ही नही अनिवार्य हो जाता है क्योंकि महासमर लिखते समय कोहली साहब के मन मे कौन कौन सी समस्याएं और कौन कौन से प्रश्न थे? किसी घटना अथवा चरित्र को वर्तमान रूप मे प्रस्तुत करने का क्या कारण था?वही प्रश्न और समस्यायें महासमर पढ़ते समय हमारे समक्ष भी खड़े होते है और इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिये स्वयं लेखक से उचित व्यक्ति कोई नही हो सकता. वस्तुतः यह लेखक के सृजन प्रक्रिया के गवाक्ष खोलने जैसा ही है. महाभारत की मूल कथा के साथ साथ लेखक के कृतित्व को समझने के लिये आनुषंगिक को पढ़ना आवश्यक है. सो मैने पुनरावृत्ति की प्रक्रिया मे आनुषंगिक का पुन: अनुशीलन किया , इस बार के अनुशीलन मे श्रद्धेय डॉ0 कोहली की अद्य प्रकाशित श्रीमद्भागवतगीता पर लिखी गई रचना "शरणम्" ने इसमे सहयोगी व संपूरक की भूमिका निभाई.
    आनुषंगिक मूलत: चार खण्डों मे लिखी गई थी जो पूर्व मे जहॉ है धर्म वहीं है जय मे प्रकाशित हो चुके है साथ ही इसमे डॉ0 कोहली द्वारा 29 मार्च 2008 को नार्वे के नेशनल थियेटर ओस्लो मे पढ़ा गया पत्र " महाभारत की प्रासंगिकता" को सम्मिलित किया गया है जो स्वयं अपने आप मे महाभारत का मनोवैज्ञानिक चित्रण व वर्तमान मे महाभारत के सिद्धांतों का व्यवहारिक रूप सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है. वर्तमान परिस्थिति मे मानव स्वभाव व स्वारथ के आधार पर उद्धरण देते हुये जिस तरह से महाभारत की वर्तमान व्यवहारिकता बताई गई है वह स्वयं अपने आप मे किसी पुस्तक के अन्तर्वस्तु से कम नही है. प्रथम खण्ड मे महाभारत की रचना प्रक्रिया, द्वितीय खण्ड मे महाभारत की कथा, उसकी कालावधि, पात्रों का कालखण्ड पर चुनाव, पात्रो का मनोवैज्ञानिक मनोविश्लेषण ,तृतीय खण्ड में महाभारत के मूल नायक की तलाश और चतुर्थ खण्ड मे महाभारत का ऐतहासिक, काव्यात्मक व आध्यात्मिक पक्ष पाठक के समक्ष कोई ऐसा प्रश्न छोड़ते ही नही जो अनसुलझा हो और यही महासमर का वह बीजतत्व है जो हमारे आपके जीवन, अध्यात्म व मनोविज्ञान के सारे गुत्थियों को सुलझा कर एक वास्तविक व सात्विक जीवनदर्शन देता है.
     संपूर्ण नवरात्रि के व्रत मे महासमर के अध्ययन ने जीवन मे सकारात्मकता के साथ जो जीवन दृष्टि दिया उसके लिये श्रद्धेय डॉ0 नरेन्द्र कोहली जी आभार.
व ईश्वर को इस महती कृपा हेतु नमन.
(बनारस, वासंतिक नवरात्रि अष्टमी, 4अप्रैल 2017, मंगलवार)
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सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

कानून बनाम कानून : व्योमेश चित्रवंश की डायरी 24102016

ये अपने मोहम्मदपुरा में अजमेरी चचा, करीम मीट वाला, फारुख टेलर, सलीम मोची, और शाहरुख़ पंचरवाला बैठे बैठे मोदी को कोस कर टाइम पास कर रहे थे

अरे मियां ये मोदी कौन होता है

हम तो शरिया से चलेंगे, हां मुसलमान तो शरिया से चलेंगे, मिया शरिया से भी अच्छी चीज है कोई, हम न मानेंगे कोई भारत का काला कानून

तभी ट्यूशन पढ़ाने का काम करने वाला हामिद वहां घुसा

वो सभी शरिया शरिया वालो को आराम से बोलने लगा

अरे ज्यादा शरिया शरिया मत करो, ये मोदी टेढ़ी खोपड़ी है भड़क गया न तो पूरा शरिया ही मुसलमानों के लिए लगा देगा, फिर लिंग, हाथ काटने की सजाएं शुरू हो जायेगा

सभी हामिद की ओर देखने लगे.....हैं

जरा पूरा बताना क्या बोल रहा है तू.............

हामिद बोला - अभी मैं एक हिन्दू को सुन रहा था वो बोल रहा था

"भारतीय मुस्लिमों को तीन तलाक मामले में शरीया क़ानून के पालन की अनुमति दी जानी चाहिए. केवल उनसे और उनके परिवार वालों से लिखित में यह ले लेना चाहिए कि वे भविष्य में भी भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानेंगे, केवल शरीयत क़ानून ही मानेंगे...

फिर 1 जनवरी 2017 के बाद एक शरीया कोर्ट बैठे, जिसमें केन्द्र-राज्य सरकार की तरफ से भी मौलाना-मौलवी नियुक्त होंगे...

उसके बाद चोरी के आरोप में पकड़े गए मुस्लिम के हाथ काटे जाने चाहिए... बलात्कार के आरोपी मुस्लिम को एक गढ्ढे में आधा गाड़कर पत्थर मारते हुए उसकी मौत मुकर्रर होनी चाहिए... हत्या के दोषी मुस्लिम को चौराहे पर फाँसी देनी चाहिए...

यानी उनके शरीया में जो और जैसा लिखा हो, बिलकुल वैसी ही सजा उसे दी जाए... और वो भी ताबड़तोड़... जैसी सऊदी अरब, लीबिया वगैरा में दी जाती है. संविधान-हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के चक्कर में फ़ोकट में टाईम खोटी करने करने की जरूरत नहीं...

(और हाँ!!! मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में राज्य व केन्द्र सरकारें किसी भी संगीत समारोह, शराब अथवा सिगरेट की अनुमति ना दें... शरीया का पालन पूरी तरह होना चाहिए, आधे-अधूरे मन से नहीं... जो मुसलमान ऐसा करते पाया जाए उसे दस-बीस कोड़े लगाकर छोड़ दिया जाए...

अलबत्ता हिंदुओं के लिए ऐसा कोई क़ानून नहीं होगा, क्योंकि हिन्दू तो संविधान के अनुसार चलने की सहमति दे चुके हैं....)

मुसलमानों के लिए पूरा शरिया ही लागू

कर दिया जाये"

फिर अजमेरी चचा, और बाकि सब हामिद पर चढ़ गए, क्या बात कर रहे हामिद मिया, ऐसा थोड़ी चलेगा, यहाँ कोई तालिबानी कानून है क्या........