शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

व्योमवार्ता/ सनातन इतिहासबोध व कथित नवबौद्ध राजनेता

व्योमवार्ता/ सनातन इतिहासबोध व कथित नवबौद्ध राजनेता
: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 3 सितंबर 2021, शुक्रवार

              आज के राजनीतिक स्वार्थ के परिवेश में नवपरिवर्तित कथित स्वयंभू बौद्ध राजनीति करने वालों के मन मे भारतीय सनातन संस्कृति के प्रति कितनी घृणा और पूर्वाग्रह भर दिया गया है कि वे अपने संस्कृति और इतिहास के अस्तित्व को भी नकारने लगे हैं। आश्चर्यजनक तो यह है कि ये नवाचारी स्वयंभू बौद्ध स्वयं को पता नही किस इतिहास व प्रमाण के आधार पर स्वयं को अनार्य मानते हुये सवर्ण समाज से स्वयं को अलग मानते है।  उनका यह मानना है कि वे गौतम बुद्ध के बौद्ध धर्म के अनुयायी है परउनके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नही कि गौतमबुद्ध तो स्वयं 563 ईसा पूर्व ईक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल मे हुआ था। जबकि वैदिक काल को 1500 से 600 ईसा पूर्व तक माना जाता है। उसके संबंध मे फिर कभी, अंततोगत्वा बात कल की। 
                 कल एक नामालूम सी छोटी सी पार्टी के बड़े नेताजी तालीबानिक बर्बरता की तुलना भारत के सनातनी व संस्कृति से करते हुये वामपंथी और भारतीय इतिहास को विकृत करने वाले संदर्भों को लेकर बहस कर रहे थे कि तालिबान जो कर रहे है वह तो आप लोग बहुत पहले से करते आ रहे हैं सनातन हिन्दू धर्म मे महिलायें अधिकारहीन व पुरूषों के लिये मात्र उपभोग्य वस्तुयें थी उन्हे शिक्षा प्राप्त करने का कोई अधिकार नही था। 
               मैने उन्हे टोंकते हुये वैदिक साहित्य व इतिहास का अध्ययन करने को कहा जहाँ महिलायें न केवल शिक्षित थी वरन वे गुरूकुलों मे संस्कृति ,संस्कार व अन्य विषयों का अध्यापन करती थी। मैने उनसे गार्गी, अपाला, घोषा, सिकता, रत्नावली, लीलावती, अरूधंती, लोपामुद्रा, अनुसूईया, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं के बारे मे बताया पर उनके पूर्वाग्रह ने इस सीमा तक उन्हे ग्रसित कर रखाथा कि उन्होंने इन सभी का नाम मात्र ऋषिपत्नीयों के रूप मे कह कर निरस्त करना चाहा। 
ईश्वर ऐसे लोग का भ्रम दूर कर सत्य से परिचित करायें। 
            आज हमारे लिये अपने वास्तविक इतिहासबोध से साक्षात करने का समय आ गया है वरना मैकाले व मैक्समूलर द्वारा स्थापित वामपंथियों द्वारा इतिहासविकृतिकरण का षडयंत्र स्वयं मे दावानल बन  और विशाल स्वरूप लेता जायेगा और हमारे अपने ही अपनो के षडयंत्र के मकड़जाल मे स्वयं की भारतीय संस्कृति व संस्कार को विस्मृत कर देगें। 
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काशी,१२कृष्णपक्ष भाद्र सं०२०७८वि० यथा 3 सितंबर 2021,शुक्रवार