आज सुबह मै वसंत कन्या इण्टर कालेज के हास्टल पूरे घटना की जानकारी लेने पहुँचा। मेरे साथ बच्ची के लोकल गार्जियन सूर्यभान सिंह जी भी थे। हास्टल मे सबसे पहले हमे डिग्री सेक्शन की मेस इंचार्ज सोनू मैम मिली। बेहद सौम्यता से उन्होने हमारी बाते सुनी और यह स्वीकार किया कि किसी भी बच्ची को मारना पीटना गलत है, अनुशासन बनाये रखने हेतु थोड़ी डॉट डपट हम भी करते है । पीड़िता बच्ची व हास्टल की बाकी बच्चियो ने उन्हे कल शाम की घटना की जानकारी दी जिससे वे बेचारी खुद काफी दुखी हुई । उन्होने अपने मोबाईल से मैनेजर व उक्त इण्टर सेक्शन की वार्डेन को फोन कर के बुलवाया। इण्टर सेक्शन के वार्डेन महोदया का नाम संभवत: लीपी पाल राय चौधरी है। वे पहले नही आई। जानकारी मिली कि उनसे चपरासी वगैरह भी डरते है और बुलाने का साहस नही कर पाते।
मैनेजर महोदया ने पूरी बात सुन कर लीपी मैडम को बुलवाया। मैनेजर महोदया को परेशानी यह थी कि उन्हे पूजा के तुरंत बाद आना पड़ा। बहरहाल पीपी मैडम आई। पीड़िता बच्ची ने सबके सामने कल शाम की घटना के बारे मे तफसील से बताया। यह भी बताया कि मैडम उसे जबर्दस्ती कोई रहस्यमयी प्रसाद खिलाती है जिसके लिये उसने एक दो बार मना कर दिया था। कल शाम वह पेट दर्द व उल्टी आने के वजह से अपने कमरे मे ही थी जहॉ उसे बाकी बच्चियो के साथ शाम की घंटी नही सुनाई पड़ी। मैडम उसे खोजती हुई आई और उसे एक सीनियर द्वारा बुलाई, जब वह अपने कमरे के दरवाजे पर पहुँची तो मैडम ने उसे सीधे गाल पर थप्पड़ थप्पड़ पीटा।
मैनेजर महोदया ने जब लीपि पाल मैडम से पूछा तो उन्होने मुस्कराते हुये बताया कि उन्होने तो बच्ची को बस एक ही थप्पड़ मारा था। रहस्यमयी प्रसाद के बारे मे उन्होने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। लिपि मैडम की मुस्कराहट बता रही थी कि उन्हे इस बात का कोई अहसास नही है कि उन्होने बच्ची को पीटा। बल्कि बेहग संवेदनारहित ढंग से उन्होने कहा क् बच्ची के गाल पर के निशान तो मिट गये है। अब हम उनकी इस संवेदनहीनता को क्या कहें कि महिला व जिम्मेदार अध्यापिका हो कर वे यह उम्मीद करती है कि गाल पर थप्पड़ के निशान १६ घंटे बाद भी बने रहें। जब हम लोगो ने यह कहा कि मैम किसी बच्ची को मारना पीटना कहॉ तक उचित है, तो उनका कहना था कि बस एक ही थप्पड़ तो मारा था तो क्या हुआ? अब उन्हे कौन समझाये कि आदमी की जान भी एक ही बार मे एक ही वार मे जा सकती है। और बच्ची के गाल पर पड़े लिपि मैम के उंगलियो के स्प्ष्ट निशान क्या उनकी मंसा को बयॉ नही करते?
मैनेजर मैडम ने लिपि मैडम से ये तो कहा कि वे आगे से बच्चियो पर हाथ न उठायें पर साथ साथ हम लोगो पर भड़क गयी कि हम शिकायत ले कर क्यों आये? मैनेजर मैडम का गुस्सा इस बात पर भी था कि हमारे चलते उन्हे पूजा के बाद तुरंत आना पड़ा। मतलब यह कि किसी बच्ची के साथ प्रताड़ना का उनके समय के आगे कोई महत्व नही है। उन्होने यहॉ तक कहा कि कोई मरता है तो मरे हम अपना समय उसके लिये नही जाया कर सकते।
लोकल गार्जियन सूर्यभान जी ने जब उनसे बच्ची के मानसिक स्थिति और संवेदना को समझते हुये भविष्य मे इस तरह की घटनाओ को न होने देने व वार्डेन के व्यवहार मे तब्दीली लाने की गुजारिस की तो वे गुस्से से लाल पीली होती हुई पागल, बदतमीज जैसे शब्दो से सूर्यभान जी को अलंकृत करते हुये उनके लोकल गार्जियन होने के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान उठा दिया कि एक बिहार निवासी चौबे छात्रा का लोकल गार्जियन बनारस का कोई ठाकुर कैसे हो सकता है? उन्होने पीड़िता बच्ची को भी डॉटते हुये उसे अनुशासनहीन छात्रा का दर्जा देते हुये हास्टल व विद्यालय मे न रहने की चेतावनी दे डाली। अब इन पढ़े लिखे, अतिसय बुद्धिमान व उच्च धार्मिक आचरण वाले भद्र समाज के लोगो को कौन समझाये कि इंसानियत , मित्रता व संबध नाम के शब्द इसी धरती पर पाये जाते है।
बहरहाल घटना के संपूर्ण तहकीकात व तथ्यो की जानकारी से लब्बोलुआब ये पता चला कि वसंत कन्या इण्टर कालेज के हास्टल मे बच्ची की पिटाई की घटना हुई है। और पीटने वाली महिला वार्डेन इस घटना के प्रति इतनी ही संवेदित है कि उन्होने बच्ची को केवल एक ही थप्पड़ मारा था। मैनेजर मैम केवल पिता को ही गार्जियन मानती है और वे कल पिता के आने पर ही बात करेगी। उनकी निगाहो मे बच्ची हास्टल व विद्यालय मे रहने योग्य नही है क्योंकि वह इस तरह की बातों का शिकायत करती है।
अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप पीड़िता बच्ची के मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना को किस रूप मे लेते है? क्या संवेदनहीनता के हद तक जा चुके उक्त महिला वार्डेन के द्वारा की गई पिटाई का दण्ड उस मासूम बच्ची को विद्यालय व हास्टल से निष्काषित कर उसका दो वर्ष की पढ़ाई व भविष्य को बर्बाद कर के किया जा सकता है?
आप स्वयं सोचिये।
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
रविवार, 1 मई 2016
बनारस के गर्ल्स हास्टल मे संवेदनहीनता : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 01 मई 2016,रविवार
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