मंगलवार, 10 जनवरी 2023

व्योमवार्ता/ भारतीय इतिहास के नाम पर क्या परोसा गया....../व्योमेश चित्रवंश की डायरी,10जनवरी2023

🚩 *एक फिजिक्स के प्रोफेसर ने कक्षा 6 से 12 ncert की हिस्ट्री बुक्स के अध्ययन का निश्चय किया और उसने पाया कि लगभग 110 बातें ऐसी हैं जो संदिग्ध हैं!*  
       👉 जैसे कक्षा 6, सामाजिक विज्ञान के पृष्ठ 46 पर ऋग्वेद के आधार पर भारत के बारे में  लिखा है कि "आर्यों द्वारा कुछ लड़ाइयां मवेशी और जलस्रोतों की प्राप्ति के लिए लड़ी जाती थी। कुछ लड़ाइयां मनुष्यों को बंदी बनाकर बेचने खरीदने के लिए भी लड़ी जाती थी।"
स्पष्ट है कि किताब लिखने वाला यह साबित करना चाहता है कि भारत में भी गुलाम प्रथा थी और मनुष्यों को खरीदने बेचने की जो बातें बाइबल और कुरान में है वे कोई नई नहीं है, बल्कि वैसा ही अमानवीय व्यवहार भारत में भी होता था।
ऐसे ही वे आगे लिखते हैं "युद्ध में जीते गये धन का एक बड़ा हिस्सा सरदार और पुरोहित रख देते थे, शेष जनता में बांट दिया जाता था।" यहां भी मुहम्मद के गजवों को जस्टिफाई करने की भूमिका बनाई गई है।
आगे एक जगह लिखा है "पुरोहित यज्ञ करते थे और अग्नि में घी अन्न के साथ कभी कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी।"
आगे पृष्ठ 60 पर लिखा है "खेती की कमरतोड़ मेहनत के लिए दास और दासी को उपयोग में लाया जाता था।"
तब उस प्रोफेसर ने पहले तो स्वयं अध्ययन किया, मेगस्थनीज की इंडिका आदि के आधार पर यह सिद्ध हुआ कि ये सब मनगढ़ंत लिखा जा रहा है, उसने ncert में आरटीआई डाली कि इन बातों का आधार क्या है? आप हिस्ट्री लिख रहे हैं, रेफरेंस कहाँ हैं? ऋग्वेद की सम्बंधित ऋचाएं, अनुवाद बताया जाए और यदि नहीं है तो खंडन या सुधार किया जाए।
जानकर आश्चर्य होगा कि ncert ने सभी 110 प्रश्नों का एक ही जवाब दिया कि हमारे पास इसका कोई प्रूफ नहीं है। इसके अलावा जवाब टालने और लटकाने का रवैया रखा। कई वर्ष ऐसे ही बीत गए। हारकर वे पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में गये कि ncert हमें इनका जवाब नहीं दे रही। कोर्ट ने पिटीशन स्वीकार कर लिया और ncert को जवाब देने के लिए कहा। तब ncert ने कहा कि हमारी सभी पुस्तकों का लेखन जेएनयू के हिस्ट्री के प्रोफेसर ने किया है और हमने उन्हें जवाब के लिए कह दिया है। लगभग एक वर्ष बाद जेएनयू के लेखकों ने जवाब दिया कि हमने इन बातों के लिए ऋग्वेद के अनुवाद का सहारा लिया है।
ऋग्वेद में इंद्र को एक यौद्धा बताया गया है और उसमें आये #नरजित शब्द से यह साबित होता है कि वे लूटपाट करते थे और मनुष्यों को गुलाम बनाते थे।
इस पर इस प्रोफेसर ने संस्कृत के जानकारों को वे मंत्र बताए कि क्या इनका यही अर्थ होता है जो  जेएनयू के प्रोफेसर ने किया है?
संस्कृत के विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि जेएनयू वालों का अर्थ मनमाना, कहीं कहीं तो मूल कथ्य से बिल्कुल उलटा है।
इस पर कोर्ट ने इन्हें पूछा कि क्या आप संस्कृत जानते हैं? आपने यह अनुवाद कहाँ से उठाया?
तो जेएनयू के कथित इतिहासकारों ने कहा कि वे संस्कृत का स भी नहीं जानते, उन्होंने एक बहुत पुराने अंग्रेज लेखक के ऋग्वेद के अनुवाद का इस्तेमाल किया है।
कोर्ट -"और जो आपने लिखा है कि लूट के माल को ब्राह्मण आदि आपस में बांट लेते थे, उसका आधार क्या है?"
जेएनयू -"चूंकि ऋग्वेद में अग्नि का वर्णन है और अग्नि को पुरोहित कहा गया है तो इसका अर्थ यही है कि जो जो अग्नि को समर्पित किया जा रहा है मतलब पुरोहित आपस में बांट रहे हैं।"
अब जेएनयू और ncert के इन तर्कों पर माथा पीटने के सिवाय कोई चारा नहीं है और वे शायद यही चाहते हैं कि हम माथा पीटते रहें!!
Ncert आगे कक्षा 11की हिस्ट्री में लिखती हैं "गुलामी प्रथा यूरोप की एक सच्चाई थी और ईसा की चतुर्थ शताब्दी में जबकि रोमन साम्राज्य का राजधर्म भी ईसाई था, गुलामों के सुधार पर #कुछ_खास_नहीं_कर_सका।
यहां ncert के लिखने के तरीके से छात्र यह समझते होंगे कि ईसाई धर्म गुलामी के खिलाफ है। जबकि सच्चाई यह है कि एक चौथाई बाइबल इन्हीं बातों से भरी हुई है कि गुलाम कैसे बनाने, उनके साथ कितना यौन व्यवहार करना, उन्हें कब कब मार सकते हैं, वगैरह वगैरह।
सच्चाई यह है कि ncert के 2006 के पाठ्यक्रम का एक मात्र उद्देश्य था हिन्दुधर्म को जबरदस्ती बदनाम करना, यानि जो नहीं है उसे भी हिंदुओं से जोड़कर प्रस्तुत करना और ईसाइयों की बुराइयों पर पर्दा डालकर भारत में उसके प्रचार के अनुकूल वातावरण बनाना।
सोनिया गांधी की तत्कालीन मंडली ने पूरी साजिश कर उक्त पाठ्यक्रम की रचना की थी और आज विगत 16 वर्ष से वही पुस्तकें चल रही है, एक अक्षर तक नहीं बदला गया।
और हां, उन प्रोफेसर का नाम आदरणीय नीरज अत्रि है। वे यूट्यूब पर हैं।
http://chitravansh.blogspot.com
(काशी,10जनवरी 2023,मंगलवार)
#नीरज_अत्री
#व्योमवार्ता