गुरुवार, 17 जून 2010

भोपाल और पप्पू : व्योमेश की कवितायेँ

भोपाल और पप्पू

यह कविता १९८९ में भोपाल गैस त्रासदी के बरषी पर लिखी गयी थी , तब भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर गैस पीडितो को ४९ अरब रूपये की मदद किया था, आज जून २०१० मे लम्बी कानूनी लड़ाई  के बाद जब इस सम्बन्ध में न्यायालय का फैसला आ गया है तो १९८९ मे बी ए के अध्यययन के दौरान लिखी यह कविता और भी प्रासंगिक हो जाती है।


भोपाल गैस पीडितो को ४९ अरब की मदद ,
सुप्रीम कोर्ट का फैसला जनता के हित में,
यूनियन कार्बाईड द्वारा चेक का भुगतान ,
आज फिर ये खबर आ गयी है सुर्ख़ियों में ,
रेडियो, दूरदर्शन ,अखबारों के जरिये हमें,
ये बताया जा रहा है की कार्बाईड हर्जाना दे रही है,
पर जेहन में ये सवाल बिजली की तरह कौंधता है ,
किसको ?
उन्हें जो मर चुके है एम् आई सी गैस कांड में,
या उन्हें जो नहीं देख सकते,
मुआवजे की अरबो की रकम को ,
या सरकार व जनता के बीच बैठे उन मोटे दलालों को,
जिनकी कमर की मोताइयां बढाती जा रही है,
भोपाल गैस कांड पर उठे ढेर सारे सवालों से ,
मै टी वी में 'फोकस' में देखता हूँ ,
गैस कांड पर दिए गए हर्जाने की खबर उछाली जा रही है ,
गैस के गुब्बारे की तरह ,
मेरे बगल में बैठा छोटा पप्पू ,
अपनी ज्योतिहीन आँखों से मुझे देखता पूछ रहा है,
" दादा क्या भोपाल पहले जैसा हो गया,
पापा मम्मी तो अब भोपाल आ गए होंगे ,
अब तो बंटी भैया की दवा भी हो गयी होगी न दादा ?"
मै चुप देखता रहता रहता हूँ उसको ,
सोचता हूँ कि क्या कहूँ , कैसे कहूँ ,
कि बेटे आज चार साल हो गए ,
अब तक जाने कितनो के मम्मी पापा गूम हुए होंगे ,
कितनो के पप्पू ?
मत धुन्धो अपने मम्मी पापा को वापस ,
अब उनको कैसे देखोगे ,
वे तो अपने साथ साथ लेते गए तेरी आँखे भी,
कैसे समझाऊं उस नन्हे अंधे पप्पू को,
कि अब तक उसे झूठी तसल्ली दी जा रही है ,
कैसे बताऊँ कि कंपनी ने ,
उसके मम्मी पापा के बदले ढेर सारा रुपया दिया है ,
जिसमे से थोडा सा उसे भी मिलेगा ,
जो ऊपर से नीचे आते आते और थोडा सा हो जायेगा ,
शायद कुछ रुपयों में ,
संभव है कुछ पैसो में भी ,
मै चुपचाप पप्पू को देखता रहता हूँ ,
वो मुझे पुनः झकझोरता है ,
"दादा दादा तुम बोलते क्यों नहीं? "
मै बोलना चाहता हूँ ,पर आँखे उठ जाती है टी वी की और,
देखता हूँ स्क्रीन साफ है 'फोकस' ख़त्म हो चूका है.