शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

व्योमवार्ता/ वे विरोध मे हैं....... (कविता): व्योमेश चित्रवंश की कोरोना लाकडाऊन मे लिखी कविता, 3अप्रैल 2020

व्योमवार्ता/
वे विरोध में हैं.............
(कोरोना लाकडाऊन मे लिखी कवितायें)

वे विरोध मे हैं,
क्योंकि विरोध उनका सत्ता से है,
क्योंकि विरोध उनका मोदी से है,
उनका काम है विरोध करना,
क्योंकि विरोध करना उनकी फितरत है,
भले ही वह उनके हित मे न हो,
भले ही वह काम उनके लिए ही हो,
भले ही वह मुल्क और कौम के लिये हो,
परउन्हे विरोध करना है,
क्यों? शायद वे खुद भी नही जानते,
अपने विरोध का मौजूं कारण,
वे कहते है निजाम बदनीयत है,
पर कैसे? उन्ह खुद भी नही मालूम,
क्योंकि उन्हे जान कर भी कुछ नही करना है,
बस विरोध की बातें करनी है उन्हे,
क्यों? वे जानना भी नही चाहते,
उन्हें खुद की नीयति का भी नही पता,
पर वे खुश है विरोध कर,
अंधकूप मे बने रहने में,
बस विरोध करना है,
इसलिये वे विरोध में हैं......

(बनारस,3अप्रैल 2020, शुक्रवार) http://chitravansh.blogspot.in

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

व्योमवार्ता/ कितने बौने हो गये है हम....: व्योमेश चित्रवंश की कवितायें, 2अप्रैल 2020, गुरूवार

कितने बौने हो गये है हम........

कोरोना,
बंद है सब कुछ,
गॉव से लेकर शहर महानगर तक,
छोटे से वेटिकन ले लेकर बड़े अमेरिका रूस तक,
सूनसान सड़के बंद बाजार,
खड़ी गाड़ियों के थमे हुये पहिये,
परास्त होती विश्व की महाशक्तियॉ,
घूटने टेकते वैज्ञानिक और चिकित्सक,
छोटे से बहुत छोटे सूक्ष्म अति सूक्ष्म,
ऑखों को नजर न आने वाले,
नन्हे से विषाणु से,
आईना दिखा रहे है हमें,
मंहगें उपकरण आलीशान मकान,
आरामदेह सुरक्षित वातानुकूलित गाड़ियाँ,
पल भर मे सब कुछ नेस्तनाबुत करने का,
दावा करने वाले मिसाईल व परमाणु बम,
आज नतमस्तक हैं हम प्रकृति के आगे,
तोड़ कर प्रकृति की वर्जनायें,
हवाहवाई हो गई है,
प्रकृति को दी जाने वाली हमारी चुनौतियां,
अंततः कितने और कितने बौने हो गये है,
खुद हम......

(बनारस, 02अप्रैल 2020, गुरूवार)
चैत्र रामनवमी,संवत २०७७ वि०
http:chitravansh.blogspot.in

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

व्योमवार्ता/ ओम प्रकाश राय यायावर की आपका रसिया : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 31 मार्च 2020, मंगलवार

व्योमवार्ता/ ओम प्रकाश राय यायावर की आपका रसिया

         कल फेसबुक के आभासी  मित्र छोटे भाई ओम प्रकाश राय यायावर ने अपनी नई नवेली कृति आपकी रसिया भेजा । एक ही बैठकी मे पूरा पढ़ गया बस इसलिये नही कि आजकल कोरोना लाकडाऊन के चलते फुरसत है बल्कि इसलिये भी कि पुस्तक बड़े प्यारे कथानक को सीधे साधे ताने बाने मे बुनती हुई एक प्यारा सी प्रेमकहानी प्रस्तुत करती है। यायावर का नायक इस बार भी गॉव का, कहना न होगा उनके अपने बिहार के एक गॉव का सीधा सरल पढ़ा लिखा जिन्दगी मे  एक अदद रोजगार की तलाश मे भला युवक है जिसे  जाने अनजाने प्यार हो जाता है पर प्यार ते टेढ़ी मेढ़ी चक्करदार गलियों मे घूमते हुये भी कहानी बड़ी सीधे साधे सरल अंदाज मे चलती है और नायक नायिका बार बार नजदीक आ कर भी नियति के बिडंबना से एक होने के लिये मिलते मिलते भी छूट जाते हैं कहानी का कथानक अंत मे एक रोचक अप्रत्याशित मोड़ पर ला कर नायक नायिका के साथ पाठक को भी खड़ा कर देता है। कहानी का आखिरी नतीजा बता देना न सिर्फ़ लेखक अनुज ओम प्रकाश राय यायावर Om Prakash Rai Yayavar के साथ बल्कि उपन्यास के किसलय और काव्या के साथ भी बेईमानी होगी।   
          ओम प्रकाश राय यायावर ने अापकी रसिया को ईमानदारी भरे लेखन के साथ बखूबी से अंजाम दिया है। बधाई सधे लेखन के लिये।
(बनारस,३१मार्च २०२०, मंगलवार)
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