मंगलवार, 16 जुलाई 2013

मेरा ध्यान / व्योमेश की कवितायें



ध्यान
आत्मविलोकन, आत्मनिरीक्षण 
गहन श्वॉस अन्तरतम तक विश्रान्ति
एक सतत प्रक्रिया
और अद्वितीय अप्रतिम अनुभव
शांत शांति और परम शांति
मै प्रयास करता हूँ
शवासन नेत्र बंद त्रिकूट पर संक्रेन्द्रण
बस यहीं खो जाता है
इधर उधर फिसल जाता है मेरा स्व
कभी त्रिकूट पर तो कभी आग्या चक्र मे
या तो गहन अंधेरे मे ही डूबता जाता है
और गहन
नही दिखता उसे कहीं प्रकाश
उसे दिखता है बढ़ती मँहगाई
बच्चो के हर महीने बढ़ते स्कूली खर्चे
पूरे घर मे खिलखिलाती बेटी का बढ़ता कद
रात फिर बढ़ गयी पेट्रोल की कीमतें
मै घबरा कर ऑखे खोल लेता हूँ
और नासाग्र पर केन्द्रित होता हूँ
खुले नेत्रों से
पर खुली ऑखो से दुनिया दिखती है
दिखती है ढेर सारी फाईलें
उनमें से झॉकती तारीखे
बाहर सड़क पर चल रहा काम
शायद आज भी पूरा न हो सके
दिखती है कमरे मे बिजली नही
और चलता पंखा जलती बत्तियॉ
आज भी ईन्वर्टर डिस्चार्ज हो जायेगा ९ बजे
मै पुन: ऑखे बँद बंद कर लेता हूँ जल्दी से
भ्रामरी मुद्रा अपना लेता हूँ
ऑख बंद कान बंद और होठ भी बंद
मन को तेजी से उतारता हूँ
अंतस की गहराईयों मे
पर अंतस तक उतरने से पहले ही
आते है याद
मोबाईल पर आये ढेरो मैसेज एलर्ट
मेडिकल ईश्योरेन्स की लास्ट प्रिमियम डेट
डिस कनेक्शन रिचार्ज कराना है
गाड़ी ईश्योरेन्स रविवार को खत्म होगा
मकान टैक्स जमा करने पर छूट है इस महीने
एटीएम एकाउण्ट मे भी पैसे डलवाने है
और
मेरा ध्यान अन्तर्धान हो जाता है
मै वर्तमान मे लौट आता हूँ
वापस बिना किसी प्रयास व विलम्ब के
शायद मेरा आत्मनिरीक्षण यही है
और यही है मेरा सतत ध्यान.....
-व्योमेश १५.०७.१३ सोम

एक और सॉझ ढल गयी /व्योमेश की कवितायें

और
एक और सॉझ ढल गयी
आहिस्ता आहिस्ता
आँखों मे उदास सपने लिये
कभी खुली आँखों में तो
कभी बंद पलकों में
पर सभी सपनों का रंग
फीका फीका एक जैसा
दर्द और पीड़ा से भरा
पर उस विवसता के पीछे
एक अकुलाहटऔर बेचैनी
कुछ करने की कुछ कर गुजरने की
पर मन ही सब कुछ नही होता
क्योंकि मन को तन का
वास्तविक बोध नही होता
कसमसाहट में बंद पलको के
कोरों मे सिमट आई नमी
बावजूद मानस केअन्तर से
उठती है आवाज
यह अंधेरा छँट रहा है
कल आने वाली सुबह के लिये.......
-व्योमेश १४.०७.१३ रविवार

मेरा गॉव /व्योमेश की कवितायें

मेरा गॉव 
मुझे बुलाता है 
भेजता है ढेरों संदेशे
बारिस की पहली फुहारों से
माटी की सोंधी अलसाई गंधों में
नीम के कोमल छाल से बनें
सूखे सफेद मंजनों में
आम के फलों और जामुन के
साफ्ट ड्रिंक के खूशबू मे
मंदिर के प्रसाद मे मिले
तुलसी की दो चार पत्तियों में,

मेरा गॉव 
भेजता है संदेशे उलाहने के साथ 
शुरूआती बरसात से सज चुके
पथरी और दूब भरे मैदानों से
सिधरी,घोंघा, भूजी कोसली से
करेमू व सनई के सागों से
चिलबिल,टिकोरा, अमरूद की ढोढ़ी से
कबड्डी, सुटुर पटर के पढ़ाई से
पचैँया के दंगल बिरहा के बोलों से

मेरा गॉव
जगा देता है मुझको अपनी 
अनभूली यादों में
गरजते बादल और चमकती बिजलियों मे
टिपटिपाती बूँदों से भर आये 
धान रोपे खेतों मे
मेढकों सहित उफनाये ताल तलैयों मे

मेरा गॉव 
गुदगुदाता है मुझको
फागुन मे बिखरे रंगो मे
प्यार भरें गालियों और चुहलबाजियों मे
चैता फगुआ के संग 
होरहे की अधपकी बालियों मे
किलकती हँसी और झूले पर
बल खाती हँसती हुई कजरियों मे

मेरा गॉव
शिकायत करता है मुझसे
कैसे रहते हो तुम
इन भीड़ भरी सड़कों मे
एक दूसरे को नीचा दिखाने मे लगी
इन बड़ी बड़ी बिल्डिंगो मे
बेमतलब ही भाग रहे लोगो मे
और एक दूसरे से जूझ रहे झूठो मे

मेरा गॉव
मनुहार करता है
आओ चलो फिर वहीं चलते है
खेत की मेड़ो पर बैठ 
ईख चूसेगें
पगडण्डियों पर चलते
चौधरी चच्चा के चने खायेगें
मछलियॉ मारेगें और 
पेड़ की फुनगियों पर
निशाना लगायेगें
यह तो पक्का है
अभी भी तुम ही जितोगे.

मेरा गॉव 
पकड़ लेता है मेरा हाथ
ठीक है वहॉ कुछ भी नही है
पर वहॉ तुम खिलखिलाओगे तो
माना वहं कारें नही है पर तुम 
मेरे बुलाने पर दौड़े आओगे तो
यहॉ है तुम्हारे पास वह सब कुछ
जिसकी जरूरत है शहर वालों को
पर नही है तुम्हारी मुस्कराहट
जो नाचती थी बेमतलब ही तुम्हारे होठो पर
बिना उसके तुम अधूरे से लगते हो
बिलकुल खाली खाली लूटे पिटे जैसे

मेरा गॉव 
बाहर बैठा है मुझे ले जाने को वापस
उसे इंतजार है मेरे साथ चलने का

और मै
छुपता फिर रहा हूँ
कि कहीं उससे सामना ना हो जाये..... 
-व्योमेश १५.०७.१३ सोमवार