मेरा गॉव
मुझे बुलाता है
भेजता है ढेरों संदेशे
बारिस की पहली फुहारों से
माटी की सोंधी अलसाई गंधों में
नीम के कोमल छाल से बनें
सूखे सफेद मंजनों में
आम के फलों और जामुन के
साफ्ट ड्रिंक के खूशबू मे
मंदिर के प्रसाद मे मिले
तुलसी की दो चार पत्तियों में,
मेरा गॉव
भेजता है संदेशे उलाहने के साथ
शुरूआती बरसात से सज चुके
पथरी और दूब भरे मैदानों से
सिधरी,घोंघा, भूजी कोसली से
करेमू व सनई के सागों से
चिलबिल,टिकोरा, अमरूद की ढोढ़ी से
कबड्डी, सुटुर पटर के पढ़ाई से
पचैँया के दंगल बिरहा के बोलों से
मेरा गॉव
जगा देता है मुझको अपनी
अनभूली यादों में
गरजते बादल और चमकती बिजलियों मे
टिपटिपाती बूँदों से भर आये
धान रोपे खेतों मे
मेढकों सहित उफनाये ताल तलैयों मे
मेरा गॉव
गुदगुदाता है मुझको
फागुन मे बिखरे रंगो मे
प्यार भरें गालियों और चुहलबाजियों मे
चैता फगुआ के संग
होरहे की अधपकी बालियों मे
किलकती हँसी और झूले पर
बल खाती हँसती हुई कजरियों मे
मेरा गॉव
शिकायत करता है मुझसे
कैसे रहते हो तुम
इन भीड़ भरी सड़कों मे
एक दूसरे को नीचा दिखाने मे लगी
इन बड़ी बड़ी बिल्डिंगो मे
बेमतलब ही भाग रहे लोगो मे
और एक दूसरे से जूझ रहे झूठो मे
मेरा गॉव
मनुहार करता है
आओ चलो फिर वहीं चलते है
खेत की मेड़ो पर बैठ
ईख चूसेगें
पगडण्डियों पर चलते
चौधरी चच्चा के चने खायेगें
मछलियॉ मारेगें और
पेड़ की फुनगियों पर
निशाना लगायेगें
यह तो पक्का है
अभी भी तुम ही जितोगे.
मेरा गॉव
पकड़ लेता है मेरा हाथ
ठीक है वहॉ कुछ भी नही है
पर वहॉ तुम खिलखिलाओगे तो
माना वहं कारें नही है पर तुम
मेरे बुलाने पर दौड़े आओगे तो
यहॉ है तुम्हारे पास वह सब कुछ
जिसकी जरूरत है शहर वालों को
पर नही है तुम्हारी मुस्कराहट
जो नाचती थी बेमतलब ही तुम्हारे होठो पर
बिना उसके तुम अधूरे से लगते हो
बिलकुल खाली खाली लूटे पिटे जैसे
मेरा गॉव
बाहर बैठा है मुझे ले जाने को वापस
उसे इंतजार है मेरे साथ चलने का
और मै
छुपता फिर रहा हूँ
कि कहीं उससे सामना ना हो जाये.....
-व्योमेश १५.०७.१३ सोमवार
मुझे बुलाता है
भेजता है ढेरों संदेशे
बारिस की पहली फुहारों से
माटी की सोंधी अलसाई गंधों में
नीम के कोमल छाल से बनें
सूखे सफेद मंजनों में
आम के फलों और जामुन के
साफ्ट ड्रिंक के खूशबू मे
मंदिर के प्रसाद मे मिले
तुलसी की दो चार पत्तियों में,
मेरा गॉव
भेजता है संदेशे उलाहने के साथ
शुरूआती बरसात से सज चुके
पथरी और दूब भरे मैदानों से
सिधरी,घोंघा, भूजी कोसली से
करेमू व सनई के सागों से
चिलबिल,टिकोरा, अमरूद की ढोढ़ी से
कबड्डी, सुटुर पटर के पढ़ाई से
पचैँया के दंगल बिरहा के बोलों से
मेरा गॉव
जगा देता है मुझको अपनी
अनभूली यादों में
गरजते बादल और चमकती बिजलियों मे
टिपटिपाती बूँदों से भर आये
धान रोपे खेतों मे
मेढकों सहित उफनाये ताल तलैयों मे
मेरा गॉव
गुदगुदाता है मुझको
फागुन मे बिखरे रंगो मे
प्यार भरें गालियों और चुहलबाजियों मे
चैता फगुआ के संग
होरहे की अधपकी बालियों मे
किलकती हँसी और झूले पर
बल खाती हँसती हुई कजरियों मे
मेरा गॉव
शिकायत करता है मुझसे
कैसे रहते हो तुम
इन भीड़ भरी सड़कों मे
एक दूसरे को नीचा दिखाने मे लगी
इन बड़ी बड़ी बिल्डिंगो मे
बेमतलब ही भाग रहे लोगो मे
और एक दूसरे से जूझ रहे झूठो मे
मेरा गॉव
मनुहार करता है
आओ चलो फिर वहीं चलते है
खेत की मेड़ो पर बैठ
ईख चूसेगें
पगडण्डियों पर चलते
चौधरी चच्चा के चने खायेगें
मछलियॉ मारेगें और
पेड़ की फुनगियों पर
निशाना लगायेगें
यह तो पक्का है
अभी भी तुम ही जितोगे.
मेरा गॉव
पकड़ लेता है मेरा हाथ
ठीक है वहॉ कुछ भी नही है
पर वहॉ तुम खिलखिलाओगे तो
माना वहं कारें नही है पर तुम
मेरे बुलाने पर दौड़े आओगे तो
यहॉ है तुम्हारे पास वह सब कुछ
जिसकी जरूरत है शहर वालों को
पर नही है तुम्हारी मुस्कराहट
जो नाचती थी बेमतलब ही तुम्हारे होठो पर
बिना उसके तुम अधूरे से लगते हो
बिलकुल खाली खाली लूटे पिटे जैसे
मेरा गॉव
बाहर बैठा है मुझे ले जाने को वापस
उसे इंतजार है मेरे साथ चलने का
और मै
छुपता फिर रहा हूँ
कि कहीं उससे सामना ना हो जाये.....
-व्योमेश १५.०७.१३ सोमवार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें