शनिवार, 16 अप्रैल 2016

बड़े शहरो मे रोजगार व बच्चों से दूर होते बृद्धजन : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 16 अप्रैल 2016 शनिवार


16 अप्रैल 2016, शनिवार।

बड़े शहरो मे रोजगार व बच्चों से दूर होते बृद्धजन

एक प्रयास ईमानदारी से हो तो हमारी काफी कुछ समस्याये दूर हो सकती है।  कल हम लोगों के बुजुर्गवार सुरेन्दर चाचा जी से बातचीत हो रही थी। उन्होने पूछा कि ठीक है बनारस मे सिक्स लेन रोड, इंटरनल रिंगरोड, एक्सटर्नल रिंगरोड, मेट्रो रेल, इंटरनेशनल हाईक्लास हवाईअड्डा बन रहा है , अच्छी बात है पर इससे आमजन को क्या फायदा होगा? नौजवान इन यातायात माध्यमो का उपयोग दिल्ली बंगलोर हैदराबाद पूणे जैसे इम्लायमेंट हब शहरो मे आने जाने के लिये करेगें पर इस शहर का आम बनारसी (जो बच्चे को पाल पोस इसलिये रहा है कि वे बुढ़ापे मे उसके साथ रहेगें) किस लाभ मे रहेगा? बनारस मे रहने वाले लोगो की हालत उस गॉव के लोगो जैसी होती जा रही है जहॉ के लोग शहरीकरण के भुलावे मे अड़ोस पड़ोस के शहरो की ओर भाग रहे हैं। और बनारस जैसे शहर के लोग इन इम्लायमेंट हबसिटी की ओर। वहॉ के लोग अमेरिका इंगलैण्ड आष्ट्रेलिया। यह क्रम आगे भी चलता रहता दिख रहा है।
सुरेन्द्र चाचा जी उद्योग विभाग से अवकासप्राप्ति के पश्चात बनारस मे ही रहते हैं। दोनो बेटियॉ दिल्ली मे तो  बेटा इनके साथ ही बनारस में। बेटा हनी भी बेहद सांस्कारिक व सभ्य। फिलहाल खाली। इसलिये नही कि उसमे योग्यता की कमी है, बल्कि इसलिये कि बनारस शहर ने अभी उसे उपयुक्त अवसर नही दिया है। हनी का ड्रीमप्रोजेक्ट पाईपलाईन मे है और उसके प्रयासो से शीघ्र ही साकार होगा।
लगे हाथ बात कल की भी ।अखबार मे एक खबर थी कि समाज मे बृद्धजन की संख्या बढ़ी है पर परिवार के साथ रहने वाले बुजुर्गों की संख्या मे गिरावट आयी है। देखा जाय तो दोनो समस्यायो के मूल एक ही जगह से जुड़े है। एक पढ़ा लिखा नौजवान बेहद बुझे मन से अपने शहर, अपने मॉ बाप, दोस्तो को छोड़ कर बड़े शहर मे धक्के खाने, संघर्ष करने, कदम दर कदम धोखा खा के भी खुद की पहचान बनाने इस लिये जाने को मजबूर होता है क्योकि उसे अपने बेहद अपने शहर मे रोजगार के लिये कोई मौका ही नही मिलता। अब औरों की देखादेखी नये शहर मे एक संघर्ष के बाद वह लोन ईएमआई पर दो या तीन कमरे का फ्लैट, एसी गाड़ी, अच्छी ब्रांडेड लाईफ स्टाईल , ऱिसार्ट मे छुट्टीयॉ, एयर टिकट, ट्रेन मे प्रीमियम क्लास या एसी क्लास जौसी सुविधाये तो पाता है पर इस परफ्यूम्ड व कलर्ड लाईफस्टाईल के लिये जिन अंधियारे को वह ढँकते तोपते है वह उनकी मजबूरी भी है और बहाना भी। नतीजा बीपी सुगर कैलोस्ट्राल थायराईड हाईपरटेन्सन और इन सब का परिणाम अल्पायु।
बहरहाल मुद्दे से न भटकते हुये बात सुरेन्द्र चाचाजी के सुझाव की। उनका मानना है कि यदि सरकार छोटे छोटे शहरों मे रोजगार के बेहतरी के लिये इंतजाम करें तो बच्चो को अपने बूढ़े मॉ बाप को छोड़ कर जाने की जरूरत ही क्या है? बात को स्थानीय स्तर पर व्यवहारिक रूप से देखते है पिछले बीस पचीस वर्षो से बनारस व आसपास जैसे शहर मे कोई कल कारखाना नही लगाया गया बल्कि जो कल कारखाने थे उन्हे भी बंद कर दिया गया। औराई चीनी मिल, कालीन कारखाने, बनारसी साड़ी बुनकरी, कंक्रीट स्लीपर कारखाना खालिसपुर, खिलौना उद्योग, एशिया साइकिल कारखाना , शंकरगढ़ सीसा कारखाना, चावल मिल , कुकिंग कोल कारखाना एक के बाद एक बंद होते गये। मजदूर, बुनकर, वर्कर बेरोजगार होते गये। आज बनारस व आसपास के युवको के पास मार्केटिंग व ईंस्योरेंस के अलावा कोई काम ही नही है ऐसे मे उनकी मजबूरी है कि वे अपने रोजी रोटी के लिये बड़े शहरो का रूख करते है।
अगर सरकार मनरेगा, पीएमआरवाई जैसे घोटालों से भरपूर व बेहद खर्चिली योजनाओ के बजाय प्रतिवर्ष एक विधानसभा क्षेत्र मे २ से ५ हजार लोगो को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने वाली क्षेत्रिय जरूरत व संसाधनो पर एक कारखाना लगाये तो प्रतिवर्ष लगभग १० से २५ हजार लोगो की आजीविका आराम से चलायी जा सकेगी और शहरो की तरफ पलायन रूकेगा।
बड़ा सवाल यह है क्या हमारी सरकार ईमानदारी से इस दिशा मे कोई कदम उठाने को इच्छुक होगी?

चैत्र नही बल्कि चित्रमास : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 16 अप्रैल 2016, शनिवार

16अप्रैल 2016, शनिवार
चैत्र नही बल्कि चित्रमास

यह मास चित्रमास है जो अपभ्रंश होकर चैत्रमास हो गया है| यह मास चित्रगुप्तजी के नाम से है| इसी चित्रमास के पूर्णिमा को चित्र (चित्रा) नक्षत्र में ब्रह्माजी जी द्वारा 11000 साल की तपस्या करने के उपरांत उनकी काया से श्री चित्रगुप्तजी भगवान मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में उज्जैन की क्षिप्रा नदी के तट पर प्रकट हुए थे| उज्जैन में ही काफी पौराणिक चित्रगुप्त मंदिर भी है, जहाँ प्रसाद के रूप में कलम, दवात चढ़ाया जाता है जिससे प्रसन्न होकर श्री चित्रगुप्त भगवान अपने भक्तो को मनवांछित फल प्रदान करते है| साथ ही कायस्थ के चार तीर्थो में उज्जैनी नगरी में बसा श्री चित्रगुप्त भगवान का ये मंदिर पहले नंबर पर आता है|

"""""चित्रमास की पूर्णिमा चित्र पूर्णिमा अर्थात् चित्रगुप्त पूर्णिमा कही जाती है|"""""

चित्रगुप्त पूर्णिमा से ही उज्जैन में महाकुम्भ प्रारम्भ हो रहा है| कांचीपुरम् चेन्नई में चित्रगुप्तजी का प्राचीन मंदिर है| पूरे दक्षिण भारत में 21 अप्रैल चित्र पूर्णिमा के दिन को चित्रगुप्तजी का प्रकटोत्सव के रूप में मनाया जाता है और चित्र पूर्णिमा से वैशाख पूर्णिमा तक यम नियम का पालन किया जाता है| इस मास में केतु ग्रह की शान्ति करायी जाती है क्योंकि केतु ग्रह के अधिदेवता चित्रगुप्तजी हैं| इस पूरे मास को चित्रगुप्तजी के नाम से ही चितरई मास कहा जाता है|

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

सोचियेगा जरूर : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 15 अप्रैल 2016, शुक्रवार

सोचियेगा जरूर।

ये पढ़ना जरूरी है और पढ़ाना भी..........

कल रात एक ऐसा वाकया हुआ जिसने मेरी ज़िन्दगी के कई पहलुओं को छू लिया.
करीब 7 बजे होंगे,
शाम को मोबाइल बजा ।
उठाया तो उधर से रोने की आवाज़....
मैंने शांत कराया और पूछा कि भाभीजी आखिर हुआ क्या?
उधर से आवाज़ आई..
आप कहाँ हैं और कितनी देर में आ सकते हैं ?
मैंने कहा:-"आप परेशानी बताइये..!"
और "भाई साहब कहाँ हैं...?माताजी किधर हैं..?" "आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन
उधर से केवल एक रट कि आप आ जाइए, मैंने आश्वाशन दिया कि कम से कम एक घंटा लगेगा.जैसे तैसे पूरी घबड़ाहट में पहुँचा.
देखा तो भाई साहब (हमारे मित्र जो जज हैं) सामने बैठे हुए हैं.
भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं,13 साल का बेटा भी परेशान है. 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है.
मैंने भाई साहब से पूछा
कि आखिर क्या बात है.
भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे थे.
फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये तलाक के पेपर, ये कोर्ट से तैयार कराके लाये हैं, मुझे तलाक देना चाहते हैं,
मैंने पूछा -ये कैसे हो सकता है. इतनी अच्छी फैमिली है. 2 बच्चे हैं. सब कुछ सेटल्ड है. प्रथम दृष्टि में मुझे लगा ये मजाक है.
लेकिन मैंने बच्चों से पूछा दादी किधर हैं,
बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट कर दिया है.
मैंने घर के नौकर से कहा
मुझे और भाई साहब को चाय पिलाओ,
कुछ देर में चाय आई. भाई साहब को बहुत कोशिशें कीं पिलाने की.
लेकिन उन्होंने नहीं पिया. और कुछ ही देर में वो एक मासूम बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे. बोले मैंने 3 दिन से कुछ भी नहीं खाया है. मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली. कि मैं माँ जी का ध्यान नहीं रख सकती. ना तो ये उनसे बात करती थी
और ना ही मेरे बच्चे बात करते थे. रोज़ मेरे कोर्ट से आने के बाद माँ खूब रोती थी. नौकर तक भी अपनी मनमानी से व्यवहार करते थे.
माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया.. बेटा तू मुझे ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट कर दे.
मैंने बहुत कोशिशें कीं पूरी फैमिली को समझाने की, लेकिन किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की.
जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई थी. दूसरों के घरों में काम करके मुझे पढ़ाया. मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं जज हूँ . लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.
उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके आया हूँ. पिछले 3 दिनों से मैं अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ, जो उसने केवल मेरे लिए उठाये.
मुझे आज भी याद है जब..
मैं 10th की परीक्षा में अपीयर होने वाला था. माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती.
एक बार माँ को बहुत फीवर हुआ मैं तभी स्कूल से आया था. उसका शरीर गर्म था, तप रहा था. मैंने कहा माँ तुझे फीवर है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है.
लोगों से उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी तक पढ़ाया. मुझे ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं कि कहीं मेरा टाइम ख़राब ना हो जाए. कहते-कहते रोने लगे..
और बोले--जब ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे. हम जिनके शरीर के टुकड़े हैं,आज हम उनको ऐसे लोगों के हवाले कर आये, जो उनकी आदत, उनकी बीमारी,उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते,
जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं कर सकता तो मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ.
आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और माँ इतनी बोझ लग रही हैं, तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ.
जब मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे भी पल जाएंगे. इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ,
सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले करके उस ओल्ड ऐज होम में रहूँगा. कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हूँ.
और अगर इतना सबकुछ कर के माँ आश्रम में रहने के लिए मजबूर है, तो एक दिन मुझे भी आखिर जाना ही पड़ेगा. माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जायेगी. माँ की तरह तकलीफ तो नहीं होगी.
जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे. बातें करते करते रात के 12:30 हो गए. मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा.
उनके भाव भी प्रायश्चित्त और ग्लानि से भरे हुए थे. मैंने ड्राईवर से कहा अभी हम लोग नोएडा जाएंगे.
भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला. भाई साहब ने उस गेटकीपर के पैर पकड़ लिए, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ,
चौकीदार ने कहा क्या करते हो साहब,
भाई साहब ने कहा मैं जज हूँ,
उस चौकीदार ने कहा:-
"जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये,
औरों के साथ क्या न्याय करते होंगे साहब।
इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर चला गया.
अन्दर से एक महिला आई जो वार्डन थी.
उसने बड़े कातर शब्दों में कहा:-
"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो मैं अपने ईश्वर को क्या जबाब दूंगी..?"
मैंने सिस्टर से कहा आप विश्वास करिये. ये लोग बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं.
अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. कमरे में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.
केवल एक फ़ोटो जिसमें पूरी फैमिली है और वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है.
मुझे देखीं तो उनको लगा कि बात न खुल जाए
लेकिन जब मैंने कहा हमलोग आप को लेने आये हैं, तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी.
आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए.
उनकी भी आँखें नम थीं.
कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि शायद उनको भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे .......
लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की भावनाओं कोअपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.
👩🏻 भाभीजी भी अपनी ख़ुशी की चाबी कहाँ है ये समझ गई थीं.
मैं भी चल दिया. लेकिन रास्ते भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे.
👵🏻 माँ केवल माँ है. 👵🏻
उसको मरने से पहले ना मारें.

माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें , अगर वह कमज़ोर हो गई  तो हमारी संस्कृति की रीढ़ कमज़ोर हो जाएगी , बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं

अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, बात को प्रभावी ढंग से समझायें , कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें, अगर माँ की आँख से आँसू गिर गए तो ये क़र्ज़ कई जन्मों तक रहेगा , यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर सुकून नहीं होगा , सुकून सिर्फ माँ के आँचल में होता है उस आँचल को बिखरने मत देना

(यह एक फॉरवर्ड msg था जो श्री संजय अग्रवाल ने नवनीत सिकेरा ips डीआईजी लखनऊ के IIT Roorkee के व्हाट्सप्प ग्रुप पर किया था । सिकेरा जी के आग्रह पर हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं और इस सच कहानी को हमारे वर्तमान परिवेस मे आगे बढ़ाना भी चाहिये।)

महाश्मसान मे नगरवधुओं द्वारा नृत्याभिषेक : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 15अप्रैल 2016, शुक्रवार

15 अप्रैल 2016, शुक्रवार

श्मसान मे नगरवधुओं द्वारा नृत्याभिषेक

                     श्री श्री 1008 बाबा महाश्मशान नाथ जी मणिकर्णिका घाट के त्रिदिवशीय श्रृंगार महोत्सव के अन्तिम दिन कल नवरात्रि के सप्तमी तिथि को प्राचीन काल से चली आ रही गणिकाओं के नृत्य की परम्परा को जीवंत किया आज की नगर वधुओं ने, ऐसी मान्यता और कहा जाता है कि जब दशाश्वमेध घाट पर राजा जयसिंह द्वारा मान महल का निर्माण कराया जा रहा था तो उसी समय राजा जयसिंह द्वारा महाश्मशान नाथ जी के मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया गया था चूकिं हिन्दूओं में ऐसा चलन है कि हर शुभ कार्य में संगीत जरूर होता है तो उस समय राजा को अपने समकक्ष ऐसा कोई संगीतकार नहीं मिला जो महामशान पर आकर संगीत प्रस्तुत कर सके कारण उस समय का छुआछूत व जातीय परम्परा का होना तब काशी की नगर वधुओं को इस बात की जानकारी हुई कि उनके आराध्य के सामने कोई संगीतकार नहीं आना चाहता है तो उन्हें इस बात का काफी मलाल हुआ और अपने संदेश वाहक से नगर वधुओं ने तत्काल यह संदेश राजा जयसिंह को भिजवाया कि अगर आप को ऐतराज ना हो तो अपने आराध्य बाबा को हम काशी की गणिकाएं नृत्याजलीं व गीतांजलि के माध्यम से दरबार सजाना चाहते हैं जिसे राजा ने त्वरित स्वीकार करते हुए निमंत्रण भिजवा दिया कि काशी की गणिकाएं ही सजाएंगी बाबा महाश्मशान नाथ जी का दरबार और एक नई परम्परा का होगया श्री गणेश, तब से आज तक यह महफिल सजने लगी महामशान पर काशी के अदभुत, अद्वितीय, अलोकिक, अविस्मरणीय त्योहारों की तरह, और नगर वधुओं में यह मान्यता घर कर गई थी कि एक दिन सब को चार कधें पर बाबा महाश्मशान नाथ जी के गोद मणिकर्णिका जाना ही है तो क्यों न अपने दुर्भाग्य को जो इस जन्म में मिला है नाचने वाली के रूप में उसे जीभर कर जी ले व जीते जी बाबा से अपने दुख भी बाट आए जिससे अगला जन्म तो ऐसा ना मिले, और शुरु हो गई एक परम्परा, जो आज भी बदस्तूर जारी है कि बिना किसी निमंत्रण और बुलावे के देश के कोने कोने से चली आ जाती है ये नगर वधुएं  जिन्हें भी यह जानकारी मिलती है।
# नोट : आशुतोष तिवारी जी बनारस के बनारसियत को जीने वाले एक बेहतरीन फोटोग्राफर है। यह फोटो व जानकारी उन्होने ही उपलब्ध करायी है।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

संवेदनहीनता या सियासत: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 14 अप्रैल 2016गुरूवार

14 अप्रैल 2016,गुरूवार

संवेदनहीनता या सियासत

       आज सुबह उठते ही घर व मोहल्ले मे हल्की अफरा तफरी दिखी। पहले तो यह सोचा कि आज महाष्टमी के व्रत व पूजन के कारण यह सरगरमी हो, पर मामला दूसरा था। पता चला कि आज सुबह से पूरे इलाके मे पानी की सप्लाई ही गोल है। वैसे दो दिन से बिजली व्यवस्था भी छिन्नभिन्न है। पहले तो यह बताया गया था कि बनारस मे विद्युत वितरण उपकेन्द्रो का उन्नकिकरण हो रहा है इस वजह से मंगलवार को विद्युत आपूर्ति बाधित होने की संभावना थी पर बुधवार को तो हद ही हो गयी सुबह से गयी बिजली रानी शाम के ६ बजे आई तो पर पल मे रत्ती पल मे मासा की तरह उन्होने जो रंग दिखाना शुरू किया कि यह ऑखमिचौनी का खेल रात के डेढ़ बजे तक चलता रहा।
बहरहाल बात आज सुबह की। पानी की आपूर्ति न होने से हर कोई परेशान । लोग बाग अपने अपने दरवाजे पर खड़े होकर पड़ोसियो से दरयाफ्त करते रहे कि पानी आया कि नही? जिन लोगो के यहॉ समर्सेबुल व पंप है वे भी लाचार दिख रहे थे कि बिजली भी नही आखिर पंप चले भी तो कैसे?
कुछ लोगो ने लगभग एक किलोमीटर दूर लालपुर पानी टंकी जा कर दरयाफ्त किया तो वहॉ से जो जबाब मिला उसे सुन दरियाफ्ती भाई लोग और भी परेशान । उन्हे कोई वाजिब वजह नही सूझ रहा था कि वे अपना सिर टंकी पर दे मारे या सामने मौजूद सरकारी कर्मचारियो का सिर फोड़ डाले। कारण जो वजह  कर्मचारियो द्वारा बताया जा रहा था, वो बनारसी भाषा मे ' विशुद्ध चुतियापा' था और जिसे करने को हर बनारसी अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता है। टंकी पर यह बताया गया कि कल बिजली के तार को उल्टा जोड़ दिया गया था इसलिये पानी टंकी मे चढ़ नही सका। अब उसे ठीक किया जा रहा है। बिजली आते ही पानी चढ़ा कर सप्लाई दे दी जायेगी। अब आप समझते रहिये कि कई कई बरस से काम कर रहे पंप कर्मचारियो को अभी तक यह ही नही मालूम कि सही तार कौन सा है? या कल से उल्टे तार को जोड़े जाने के जानकारी के बावजूद क्या वो आज तक इंतजार कर रहे थे कि जब सुबह पब्लिक आ के उनका 'बहिनिया- मतरिया करेगी तब वे उसे ठीक करने का सोचेगें?
हमारा नवरात्रि ब्रत चलने के कारण फिलहाल हम इस भागदौड़ से अलग है पर लगे हाथ मैने सोचा कि एक सच्चे मोहल्लेवासी का फर्ज थोड़ा बहुत मुझे भी निभाना चाहिये। मैने फेसबुक पर अपने इलाके की दुर्दशा अपडेट किया साथ ही वाट्सऐप्प पर जल संस्थान के सचिव, नगरनिगम के आयुक्त, अपने विधायक, कुछेक मीडियाकर्मियो, कुछेक सोशल साईट्स ग्रुपों व दोचार सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस बात की सूचना दी पर फालतू व वाहियात जोक्स को शेयर करने वाले किसी भी ग्रुप ने इस समस्या पर संवेदनशील होने की आवश्यकता नही समझी। माननीय विधायक रविन्द्र जायसवाल जी ने न तो मेरा फोन उठाया न तो संदेश देखने की भी जहमत उठाई और जल कल के सचिव साहब संदेश पढ़ कर उसे फाईलो की तरह ही दरकिनार कर दिये जबकि समस्या का मूल संबध उनही से था। बल्कि नगर आयुक्त डा० हरि प्रताप साही जी के बारे मे व उनकी त्वरित जिम्मेदार कार्यपद्धति पर हम अब तक जो सुनते आये थे, उसका परिचय मिला। डा० साही साहब ने पूरे प्रकरण के विषय मे जानकारी लेकर उसका समाधान कराते हुये हमे १०.१८ बजे संदेश " सर उपरोक्त इलाके मे पानी की supply नतनिदाइ टंकी से होती है रात्रि मे बिजली कटौती की वजह से टंकी भर नही पाई है। सुबह से tubewell बिजली आने पर चालू है।" भी प्रेषित किया।
  यही नही हमने इस संदेश को ट्विटर के माध्यम से मुख्यमंत्री लगायत मीडियाहाऊसो तक भी भेजा था प्रत्यूषा के आत्महत्या , कन्हैया के स्वागत जैसे महत्वपूर्ण सवालो पर जूझने वाली मीडिया के पास आमजन की समस्या के बारे मे चर्चा करने को समय कहॉ?
यह तो रही आमजन के प्रति संवेदनहीनता, लगे हाथ सियासत की भी चर्चा कर लें।
समाजवादी पार्टी की पिछले तीन सालो के अवधि के दौरान हम लोग प्राय: हर हिन्दू त्यौहारो पर बिजली व पानी की समस्यायो से दो चार होते है। दशहरा ,दिवाली, शिवरात्रि, बसंतपंचमी, मौनी अमावस्या, रामनवमी के अवसर पर पानी बिजली की आपूर्ति अवशय ही अवरोधित हो रही है। पहले हमे यह संयोग लगता था, पर अब हर किसी के कहने पर हमे भी यह सियासत लगता है।
क्या हमारी राजनीति व व्यवस्था का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि अब हम त्यौहारो व खुशियो पर भी राजनीतिक शतरंज के सियासती दॉव चलने लगे है?

रविवार, 10 अप्रैल 2016

अब क्या करोगे अभिमन्यु: व्योमेश चित्रवंश की कवितायें, 30 दिसम्बर 1999

अब क्या करोगे अभिमन्यु?

पुन: मोड़ दर मोड़, घने अंधियारे में
राहों के चक्रव्यूह मे खड़ा अभिमन्यु
नही पहुँचलपाता चक्रव्यूह के द्वार तक
इस अभिमन्यु ने नही सुना था व्यूहभेदन
अपनी मॉ सुभद्रा के गर्भ मे
नहीसिखाया उसे धनुरविद्या के साथ
व्यवहार शिक्षा, उसके मामा श्री कृष्ण ने
वह तो निपट अकेला है बेबस
हाथ मे थोथी डिग्रियों का धनुष
स्मृति पर आधारित परीक्षा प्रणाली की
तरकस खाली है, आज उसके
उसकी खाली जेबों की तरह
उसके पास सोर्स और मनी फोर्स भी नही
चक्रव्यूह के द्वार पर खड़े गुरू द्रोण
जो आकांक्षी है गुरूदक्षिणा मे अंगूठे के
खड़ा अंधियारे भविष्यहीन चक्रव्यूह के द्वार पर
विवस, एकाकी, थका,उत्साहहीन अभिमन्यु
स्वयं से ही करता अंतहीन, उत्तरहीन प्रश्न
अब क्या करोगे अभिमन्यु ?
(३०-१२-१९९९)

एक बार फिर गिनिज रिकार्ड बनारस के नाम: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 09 अप्रैल 2016,शनिवार

एक बार फिर गिनिज रिकार्ड बनारस के नाम

बनारस की बेटी सोनी चौरसिया ने आज बनारस का नाम विश्व में ऊंचा किया है! जिसके लिए उसे दिल की गहराइयों से★★★बहुत बहुत बधाई हो★★★

वाराणसी: वाराणसी की बेटी सोनी चौरसिया ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाते हुए अपना नाम गिनीज बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज करा लिया है। सोनी के कोच राजेश डोगरा ने बताया कि शनिवार देर शाम 9 बजकर 23 मिनट पर यह रिकॉर्ड सोनी ने अपने नाम किया। उसने लगातार 124 घंटे तक कथक डांस कर यह उपलब्धि हासिल की।

बता दें, इसके पहले यह रिकॉर्ड केरल की हेमलता कमंडलु के नाम था। उन्होंने 123 घंटे 15 मिनट डांस कर यह रिकॉर्ड बनाया था। 124 घंटे पूरे होने के बाद भी साेनी का डांस अब भी जारी है। सोनी का कहना है कि जब तक उनका शरीर साथ देगा वो डांस करती रहेंगी।

सोनी की इस उपलब्धि को हासिल करते ही लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी। सोनी, उनके कोच राजेश डोगरा, और उनके परिवार के अन्य लोग फूले नहीं समा रहे हैं।

माउंट लिट्रा स्कूल में बना यह रिकॉर्ड
सोनी चौरसिया ने मोहनसराय स्थिल माउंट लिट्रा जी स्कूल में यह रिकॉर्ड बनाया है। डांस की शुरुआत करने से पहले सोनी लगातार तीन दिन तक कथक करने का अभ्यास कर चुकी थीं।

पिछली बार टूटा था सोनी का सपना
सोनी चौरसिया ने पिछले साल वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का प्रयास किया था लेकिन असफल रही थी। आर्य महिला पीजी कॉलेज में 14 से 17 नवंबर तक सोनी ने 87 घंटे 18 मिनट तक कथक किया था लेकिन थकान की वजह से वह गिर गई थीं और उनका वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का सपना टूट गया था।