मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

व्योमवार्ता : एक बेमतलब की कहानी, अध्ययन नही अधिकार चाहिये : व्योमेश चित्रवंश की डायरी

अध्ययन नही अधिकार चाहिये : एक बेमतलब की कहानी; व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 10अप्रैल 2018, मंगलवार
             आज सुबह सुबह टीवी चैनलों पर बिहार मे भारतबंद के सफलता के समाचार आने शुरू हो गये है, यह बंदी किसके द्वारा क्यों आयोजित है इसकी अधिकृत जानकारी किसी को नही है, कोई चैनल इसे आरक्षण का विरोध बता रहा है तो कोई 2 अप्रैल की प्रतिक्रिया, पर विरोध और रोमांच का माहौल बनाने मे कोई पीछे नही. मै आज तक समाचार स्वतंत्रता के ऑड़ मे ये समाचार चैनल्स अपनी कौन सी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैंं. सुबह सुबह ही बगल वाले इमजीनियर साहब आ गये, गॉव से ताल्लुक रखने वाले इंजीनियर साहब ने सुप्रिम कोर्ट के आदेश के विरोध पर चर्चा यह कह कर शुरू की कि जब हम सुप्रिम कोर्ट के आदेश मे भी सरकार के प्रति अपनी बेमतलब की खींझ निकालेगें तो देश के भविष्य का क्या होगा. उनके जाने के बाद बहुत देर तक मै कानून के परिप्रेक्ष्य मे आज के बंदी और एससी एसटी एक्ट मे सुप्रिम कोर्ट के दियो गये विधिनिर्देश को तौलता रहा, फिर लगा ये सारी चर्चा ही आज के निरंकुश व प्रतिशोधित राजनीति के समय बेमानी है, ऐसे मे मन मे एक कहानी बनने लगी, वो बेमतलब ही सही पर कुछ वाजिब व मतलब भरे  सवाल उठाती है. 
         गॉव के प्राईमरी स्कूल में छठी के छात्र छेदी ने चार नवा छत्तीस की जगह बत्तीस कहकर जैसे ही बत्तीसी दिखाई, गुरुजी ने छड़ी उठाई और मारने वाले ही थे कि छेदी ने कहा, "खबरदार अगर मुझे मारा तो ? मै गिनती नही जानता मगर आरटीई और अनुसूचित जाति जनजाति दलित उत्पीडन अधिनियम की धाराएँ अच्छी तरह जानता हूँ. मेरे नेता चच्चा ने मुझे आप बड़ी जातियों के अत्याचार की बातें और उनसे निपटना मुझे अच्छे से बताया है , अब मुझे भी गणित मे नही, हिंदी मे समझाना आता है."
गुरुजी चौराहों पर खड़ी मूर्तियों की तरह जड़वत हो गए. जो कल तक बोल नही पाता था, वो आज आँखें दिखा रहा है! जिसके बाप को मैने पीट पीट के पढ़ा लिखा के आदमी बना दिया, उसका बेटा आज मेरे पूरे जीवन के अध्यापन को चैलेंज कर रहा है.
          शोरगुल सुनकर प्रधानाध्यापक भी उधर आ धमके. कई दिनों से उनका कार्यालय से निकलना ही नही हुआ था. वे हमेशा विवादों से दूर रहना पसंद करते थे. इसी कारण से उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी बंद कर दिया था. आते ही उन्होंने छडी को तोड़ कर बाहर फेंका और बोले  "सरकार का आदेश नही पढ़ा? प्रताड़ना का केस दर्ज हो सकता है. रिटायरमेंट नजदीक है, निलंबन की मार पड़ गई तो पेंशन के फजीते पड़ जाएँगे. बच्चे न पढ़े न सही, पर प्रेम से पढ़ाओ. उनसे निवेदन करो. अगर कही शिकायत कर दी तो ?"
          बेचारे गुरुजी पसीने पसीने हो गए. मानो हर बूँद से प्रायस्चित टपक रहा हो! इधर छेदी "गुरुजी हाय हाय" और बाकी बच्चे भी उसके साथ हो लिए.
        प्रधानाध्यापक ने छेदी को एक कोने मे ले जाकर कहा, "मुझसे कहो क्या चाहिए?"
छेदी बोला, "जब तक गुरुजी मुझसे माफी नही माँग लेते है, हम विद्यालय का बहिष्कार करेंगे. बताए की शिकायत पेटी कहाँ है?"
        समस्त स्टाफ आश्चर्यचकित और भय का वातावरण हो चुका था. छात्र जान चुके थे की उत्तीर्ण होना उनका कानूनी अधिकार है.
बड़े सर ने छेदी से कहा की मैं उनकी तरफ से माफी माँगता हूँ, पर छेदी बोला, "आप क्यों मांगोगे ? जिसने किया वही माफी माँगे. मेरा अपमान हुआ है."
         आज गुरुजी के सामने बहुत बड़ा संकट था. जिस छेदी के बाप तक को उन्होंने दंड, दृढ़ता और अनुशासन से पढ़ाया था, आज उनकी ये तीनों शक्तिया परास्त हो चुकी थी. वे इतने भयभीत हो चुके थे की एकांत मे छेदी के पैर तक छूने को तैयार थे, लेकिन सार्वजनिक रूप से गुरूता के ग्राफ को गिराना नही चाहते थे. छडी के संग उनका मनोबल ही नही, परंपरा और प्रणाली भी टूट चुकी थी. सारी व्यवस्था नियम कानून एक्सपायर हो चुके थे. कानून क्या कहता है, अब ये बच्चो से सिखना पढ़ेगा!
     पाठ्यक्रम मे अधिकारों का वर्णन था, कर्तव्यों का पता नही था. अंतिम पड़ाव पर गुरु द्रोण स्वयं चक्रव्यूह मे फँस जाएँगे!
           वे प्रण कर चुके थे की कल से बच्चे जैसा कहेंगे, वैसा ही वे करेंगे. तभी बड़े सर उनके पास आकर बोले, "मै आपको समझ रहा हूँ. वह मान गया है और अंदर आ रहा है. उससे माफी माँग लो, समय की यही जरूरत है."
        छेदी अंदर आकर टेबल पर बैठ गया और हवा के तेज झोंके ने शर्मिन्दा होकर द्वार बंद कर दिए.
    कलम को चाहिए कि यही थम जाए. कई बार मौन की भाषा संवादों पर भारी पड़ जाती है
(बनारस, 10 अप्रैल 2018, मंगलवार)
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