शनिवार, 24 जून 2017

दिल्ली दरबार - सत्य व्यास की एक बेहतरीन किताब : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24 जून 2017, शनिवार


                          कल सुबह आनलाईन कूरियर से मंगवाई किताबों का बंडल आया,  बंडल मे कनू के लिये  मंगाई गई किताबो मे मैने सत्य व्यास की बहुप्रतिक्षित हालिया प्नकाशित  नई पुस्तक दिल्ली दरबार भी मंगाया था, पिछले बार की तरह किताब देखनी शुरू किया तो पूरी निपटा के ही फुरसत किये. जैसा मैने बनारस टाकीज की चर्चा करते हुये लिखा था कि सत्य व्यास हिन्दू विश्वविद्यालय मे मेरे जूनियर हुआ करते थे, यूनिवर्सिटी मे पढने के दौरान तो हम एक दूसरे से कोई खास रूबरू नही हो पाये पर बनारस टाकीज पढ़ते समय अपने इस छोटे भाई से अनजानी सी आभाषी आत्मीयता हो गई और सत्य का लिखा कहीं अपने आस पास अपनों पर बीता गुजरा लगने लगा, कभी हँसाते तो कभी गुदगुदाते सत्य अपनी कहानी के प्लाट मे पाठक को ऐसा बॉध लेते है कि वह खुद को पढ़ते हुये कहानी का हिस्सा महसूस करने लगता है.

      बहरहाल बात दिल्ली दरबार की,


             जैसा की व्यास बताते है - "कहानी इसी सदी के दूसरे दशक के पहले दो सालों की है। वह वक्त जब तकनीक इंसान से ज्यादा स्मार्ट होकर उसकी हथेलियों में आनी शुरू ही हुई थी। नई तकनीक ने नई तरकीबों को जन्म देना शुरू किया था।" आगे कहानी इन बातों को सही साबित भी करती है। उपन्यास की कहानी दो दोस्तों के बैचलर लाइफ की है। कहानी है एक ऐसे मनमौजी युवा की जो सिर्फ अपनी सुनता है। चतुर, आवारा, पागल, दीवाना कुछ भी कह सकते हैं। लेकिन है बड़ा तेज। तकनीक से खेलता है और उसका पूरा इस्तेमाल करता हैं। प्रेमी है तो इसकी एक प्रेमिका भी है। यही प्रेम उसे आगे चलकर एक अच्छा इंसान बनाता है।

           कहानी के मुख्य पात्र हैं - राहुल मिश्रा उर्फ़ पंडित और मोहित सिंह उर्फ झाड़ी। सत्य व्यास की पात्रों से परिचय करने का अंदाज़ बड़ा ही लाज़वाब है। राहुल के बारे लेखक बताते हैं कि "राहुल मिश्रा पैदा ही प्रेम करने के लिए हुए हैं, ऐसा उनका खुद का कहना है। राजीव राय के बाद जो प्यार, इश्क़ और मुहब्बत में ठीक-ठाक अंतर बता सकते हैं।" ठीक इसके विपरीत मोहित एक सीधा-साधा लड़का है और पढ़ाई में राहुल से तेज है लेकिन चतुराई में नहीं। मोहित और राहुल बचपन से पक्के दोस्त हैं और साथ में पढ़े और बढ़े हैं। दोनों अपने शहर टाटानगर(जमशेदपुर) से ग्रेजुएशन करते हैं। मोहित जहाँ अपने कैरियर के बारे में सोचते रहता है वहीं राहुल लड़की के बारे में। लेखक कहते हैं - "दोस्त की सबसे बड़ी कीमत यही होती है कि यह सही गलत से परे होती है"। और कुछ ऐसी ही दोस्ती है इन दोनों के बीच। मोहित राहुल के हर अच्छे-बुरे काम में साथ देता है लेकिन उसे बहुत समझाता भी है। लेकिन राहुल माने तब तो। वह एक बार जो सोच लेता है उसे करता है।

"छोटे शहर के छोटे सपनों को विस्तार देते शहर का उनवान है दिल्ली।" ग्रेजुएशन के बाद दोनों एमबीए करने के लिए और मोहित सीडीएस की भी तैयारी के लिए दिल्ली जाते हैं। किराये के एक मकान में रहने लगते हैं और फिर शुरू होती है दिल्ली दरबार वाली कहानी। कहानी में कुछ और पात्र भी हैं। परिधि - राहुल की प्रेमिका और मकान मालिक की बेटी। परिधि एक सुन्दर, सुशिल और साधारण लड़की है जो राहुल से बहुत प्यार करने लगती है। बटुक शर्मा - मकान मालिक जो हमेशा इंग्लिश की बेज्जती करते रहते हैं और सुनने वाला खुद को हँसे बगैर रोक नहीं पता है। जैसे वो लिंक को लिंग बोलते हैं, बिलो जॉब को ब्लो जॉब और तेलंगाना को तेल लगाना इत्यादि। राहुल इन बातों पर खूब चुटकी लेते हैं और बटुक शर्मा भी राहुल की खिंचाई करने से नहीं चुकते। एक महिका रायजादा भी कहानी में है जो राहुल के कॉलेज की है जो बाद में कुछ दिन गर्लफ्रेंड भी बन जाती है। एक छोटू नाम का लड़का भी है जो राहुल और मोहित के यहां घर का काम करता है। ये बहुत बड़ा क्रिकेट प्रेमी मालूम होता है पर बाद में ये छोटू सबको आउट कर देता है अपनी गुगली से।

कहानी की शुरुआत राहुल मिश्रा के प्रेम-प्रसंगों से होता है और अंत में इन्हीं पर जाकर खत्म होता है। लेकिन कैसे? ये बड़ा ही मजेदार है और इसे और भी मजेदार बनाया है लेखक सत्य व्यास ने। पाठक को कैसे बांध कर रखते है ये चीज ये बखूबी जानते हैं। आप पढ़ते समय एक पेज भी छोड़ना पसंद नहीं करेंगे। हमेशा आपके मन में एक सस्पेंस रहेगा की आगे क्या होगा। बीच-बीच राहुल की कुछ मजेदार बातें आपको हँसाते रहेगी। जैसे- किताब खोलो और थर्मोडायनामिक्स से गरम रहो, थम्स-अप पीने को अंगूठा पिएगा कहना, आज मेरे और तेरे भाभी का इंटीग्रेशन होते-होते डिफरेंशियेशन हो गया इत्यादि। राहुल हमेशा मोहित को शायरी सुनाने कहता है फिर उस शायरी की चिर-हरण कर देता है। जैसे मोहित सुनाता है-
"तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो,
तुमको देखें की तुमसे बात करें।"
राहुल इस पर कहता है "इसलिए कहते हैं झाड़ी की तुम पगलंठ हो। भाग जाएगी, पक्का भाग जाएगी। मतलब या तो देखोगे या फिर बात करोगे। तीसरा काम सिलेबस में है ही नहीं क्या? सत्य ने कुछ लाइन्स ऐसी भी लिखी है जो चुपके से एक सच्चाई कह देती है। जैसे-
" प्रेम के कारण नहीं होते परिणाम होते हैं";
"बांधकर रखना भी तो कोई प्यार नहीं हुआ न",
जिंदगी एयर होस्टेज हो गई है जिसमें बिना चाहे मुस्कुराना पड़ता है",
प्रेम,पानी और प्रयास की अपनी ही जिद होती है और अपना ही रास्ता"

वाकई मजेदार है सत्य का दिल्ली दरबार, जहॉ दरबार के मौज मे हम पढ़ते पढ़ते खुद को भूल जाते है, लगता है सत्य कहीं खड़े बदमासी से मुस्कराते हुये याद दिला रहे हों कि यह है किस्सागोई,

किताब के बैक फ्लैप पर सत्य के बारे मे तफसील भी किसी किस्से से कम नही है, " अस्सी के दशक मे बूढ़े हुये. नब्बे के दशक मे जवान. इक्कीसवीं सदी के पहले दशक मे बचपना गुजराऔर कहते है कि नई सदी के दूसरे दशक मे पैदा हुये है, अब जब पैदा ही हुये हैं तो खूब उत्पात मचा रहे है. चाहते है कि उन्हे कास्मोपालिटन कहा जाय. हालॉकि देश से बाहर बस भूटान गये है. पूछने पर बता नही पाते किकहॉ के है. उत्तर प्रदेश से जड़े जुड़ी है. 20 साल तक जब खुद को बिहारी कहने का सुख लिया तो अचानक ही बताया गया कि अब तुम झारखण्डी हो. उसमे भी खुश है. खुद जियो औरों को भी जीने दो के धर्म मे विश्वास करते है और एक साथ कई कई चीजें लिखते हैं."

सत्य व्यास व उनके लेखन शैली को न जानने वालो के लिये यह परिचय पहेली जैसा लगे पर यह सत्य की अपनी स्टाईल है, अल्हढ़, अलहदा, अजूबी और बेबाक. जो सत्य को सबसे अलग रख कर हमारे दिल के बड़ी करीब से होकर बेहद करीने से निकल जाती है, कभी सावन के फुहारो की तरह, कभी भादों के बौछारो की तरह, कभी बसंत के झोंको की तरह खभी जेठ के लू के थपेड़ो की तरह,  लेकिन हर एक का अपना महत्व , खाने मे नमक की तरह जरूरी कथानक का कसा हुआ प्लाट , जिसमे नमक की तरह न तो मात्र घटायी जा सकती है न ही बढ़ाई जा सकती है. सब कुछ बिलकुल परफेक्ट, समय की जरूरत के लिहाज से दिल्ली दरबार के राहुल मिश्रा की तरह, जो लाईन से उतरते उतरते एकदम सही ट्रैक पकड़ लेता है जैसे बेलाईन होना भी जिन्दगी का हिस्सा हो, 

अगर न जोहरा- जबीनों के दरमियॉ गुजरे

तो फिर ये कैसे कटे जिंदगी, कहॉ गुजरे

एक लफ्ज मे कहे तो "मार्वलस",  सत्य, कीप ईट अप.

(बनारस, 24जून 2017, शनिवार) http://chitravansh.blogspot.in


मंगलवार, 20 जून 2017

इतिहास का एक पहलू यह भी: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 20 जून 2017

इतिहास का एक पहलू यह भी: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 20 जून 2017

योगी आदित्यनाथ का यह बयान कुछ लोगों को बुरा लग रहा है कि ताजमहल हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। लोग इस बयान पर आपत्ति जताते हुए ताजमहल को प्रेम का प्रतीक बता रहे हैं। ताजमहल, और उसके पीछे के प्रेम की कहानी कुछ दिनों पहले भाई रामप्रकाश त्रिपाठी की वाल पर पढ़ी थी। इतिहास को विद्रुप कर हमे वामपंथियों द्वारा सच से परे जो कुछ परोसा गया है, उसकी एक बानगी भर है यह लेख.

मुगलों के हरम की औलाद को हरामजादा
कहा जाता है।

शाहजहाँ के हरम में ८००० रखैलें थीं जो उसे
उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी।
उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया।

उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट
की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य
हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को
बढ़ाता ही रहा।''
(अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ ३५९)

कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली
का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था
और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी।

जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की
यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ
प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों
और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों
हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था।

यह नर पशु,यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित
और उत्साही था,कि हिन्दू महिलाओं का मीना
बाजार लगाया करता था,यहाँ तक कि अपने
महल में भी।

सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर
ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि,
''महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार,
जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं
का, क्रय-विक्रय हुआ करता था,राज्य द्वारा बड़ी
संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था,और
नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में
उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान
के लिए ही थी।
(टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर-
फ्रान्कोइसबर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ,
औक्सफोर्ड १९३४)

**शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया
जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए।
८००० औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर
किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार
ही कहा जाएगा।आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे
कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं
बल्कि उसका असली नाम "अर्जुमंद-बानो-बेगम" था।

और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार
की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना
तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी ।

मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी।
इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले
3 शादियाँ कर रखी थी और,मुमताज से शादी करने
के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी
उस ने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के
मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना
से शादी कर ली थी।
जिसे उसने रखैल बना कर रखा हुआ था जिससे शादी
करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था।

अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और
शादियाँ क्यों की....?????

अब आप यह भी जान लो कि शाहजहाँ की सातों
बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत
बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी ।

उस से भी घिनौना तथ्य यह है कि शाहजहाँ से
शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की
नहीं थी बल्कि वो शादीशुदा थी और,उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम "शेर अफगान खान" था।शाहजहाँ ने शेर अफगान खान
की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।

गौर करने लायक बात यह भी है कि ३८ वर्षीय
मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से
नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान
अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी।

यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन
ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला।

**शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात
था कि कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी
सगी बेटी जहाँआरा के साथ स्वयं सम्भोग करने
का दोषी कहा है।

शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी
जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी।

इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में
लम्पट शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को
फंसाकर भोगना शुरू कर दिया था।

जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था
कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया।

बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में
चर्चा शुरू हुई,तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक
बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने
के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि - "माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का
हक़ है"।

(Francois Bernier wrote,
" Shah Jahan used to have regular sex
with his eldest daughter Jahan Ara.
To defend himself,Shah Jahan used to
say that,it was the privilege of a planter
to taste the fruit of the tree he had
planted.")

**इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक
को वह उसके पास फटकने नहीं देता था।
कहा जाता है की एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ
गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ नेतंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा
जला दिया।

**दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था
कि मुगलिया खानदान की बेटियों की शादी नहीं
होगी।
इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं।
इसका परिणाम यह होता था कि मुग़लखानदान
की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए
अवैध तरीके से दरबारी,नौकर के साथ साथ,रिश्तेदार
यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी।

**जहाँआरा अपने लम्पट बाप के लिए लड़कियाँ भी
फंसाकर लाती थी।
जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई
शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था।

**शाहजहाँ के राजज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण
लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे
से नशा करा बाप के हवाले कर दिया था जिससे शाहजहाँ
ने 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह
किया था।

बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के
बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की
सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों
अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।

**शाहजहाँ शेखी मारा करता था कि ' 'वह तिमूर
(तैमूरलंग)का वंशज है जो भारत में तलवार और
अग्नि लाया था।
उस उजबेकिस्तान के जंगली जानवर तिमूर से और
उसकी हिन्दुओं के रक्तपात की उपलब्धि से इतना
प्रभावित था कि ''उसने अपना नाम तिमूरद्वितीय
रख लिया''।
(दी लीगेसी ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया-
डॉ. के.एस. लाल, १९९२ पृष्ठ- १३२).

**बहुत प्रारम्भिक अवस्था से ही शाहजहाँ ने काफिरों
(हिन्दुओं) के प्रति युद्ध के लिए साहस व रुचि दिखाई थी।

अलग-अलग इतिहासकारों ने लिखा था कि,
''शहजादे के रूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी
पर अधिकार करलिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं
का भीषण नरसंहार किया था ।

**भारत यात्रा पर आये देला वैले,इटली के एक धनी
व्यक्ति के अुनसार -शाहजहाँ की सेना ने भयानक
बर्बरता का परिचय कराया था।
हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित
धन को दे देने के लिए विवश किया गया,और अनेकों
उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं का शील भंग
किया गया।''
(कीन्स हैण्ड बुक फौर विजिटर्स टू आगरा एण्ड
इट्सनेबरहुड, पृष्ठ २५)

**हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहाँ को
एक महान निर्माता के रूप में चित्रित किया है।

किन्तु इस मुजाहिद ने अनेकों कला के प्रतीक सुन्दर
हिन्दू मन्दिरों और अनेकों हिन्दू भवन निर्माण कला
के केन्द्रों का बड़ी लगन और जोश से विध्वंस किया था

अब्दुल हमीद ने अपने इतिहास अभिलेख, 'बादशाहनामा' में लिखा था-'महामहिम शहंशाह महोदय की सूचना में
लाया गया कि हिन्दुओं के एक प्रमुख केन्द्र,बनारस में
उनके अब्बा हुजूर के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों के
पुनः निर्माण का काम प्रारम्भ हुआ था और काफिर
हिन्दू अब उन्हें पूर्ण कर देने के निकट आ पहुँचे हैं।

इस्लाम पंथ के रक्षक,शहंशाह ने आदेश दिया कि
बनारस में और उनके सारे राज्य में अन्यत्र सभी
स्थानों पर जिन मन्दिरों का निर्माण कार्य आरम्भ है,
उन सभी का विध्वंस कर दिया जाए।

**इलाहाबाद प्रदेश से सूचना प्राप्त हो गई कि
जिला बनारस के छिहत्तर मन्दिरों का ध्वंस कर
दिया गया था।''
(बादशाहनामा : अब्दुल हमीद लाहौरी,
अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VII,
पृष्ठ ३६)

**हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करनेकी प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।
(मध्यकालीन भारत - हरीश्चंद्र वर्मा - पेज-१४१)

*''कश्मीर से लौटते समय १६३२ में शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में
शादी कर ली है।
शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी
बना लिया गया।

प्रथम उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया
कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका।

तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को
चुन लेने का विकल्प दिया गया।

जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया,उन सभी
पुरूषों का सर काट दिया गया।

लगभग चार हजार पाँच सौं महिलाओं को बलात् मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और
रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।''
(हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल :
आर.सी. मजूमदार, भारतीय विद्या भवन,पृष्ठ३१२)

* १६५७ में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के
बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी रखैल जहाँआरा के
साथ आगरा के किले में बंद कर दिया।

परन्तु औरंगजेब मे एक आदर्श बेटे का भी फर्ज निभाया
और अपने बाप की कामुकता को समझते हुए उसे अपने
साथ ४० रखैलें (शाही वेश्याएँ) रखने की इजाजत दे दी।

दिल्ली आकर उसने बाप के हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर बाकी
सभी को उसने किले से बाहर निकाल दिया।

उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से
में पनाह मिली जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है।

जो उसके अब्बा शाहजहाँ की मेहरबानी से ही बसा और गुलजार हुआ था ।

***शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही २२ जनवरी १६६६ ईस्वी में ७४ साल की उम्र में द हिस्ट्री चैन शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही २२ जनवरी १६६६ ईस्वी में ७४ साल की उम्र में द हिस्ट्री चैनल के अनुसार अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था।

** अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन
और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर
महानबताया जाता है...... ?????

क्या ऐसा बदचलन इंसान कभी किसी से प्यार कर
सकता है....?????

क्या ऐसे वहशी और क्रूर व्यक्ति की अय्याशी की कसमेंखाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नही
करते हैं ??

दरअसल ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए
गढ़ी गयी है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपायी जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान् शिव का मंदिर""तेजो महालय"" है....!

और जिसे प्रमाणित करने के लिए डा० सुब्रहमण्यम स्वामी आज भी सुप्रीम कोर्ट में सत्य की लड़ाई लड़
रहे हैं।

** असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण,
लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू
के आदेश पर हमारे इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया।
और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।

( दैनिक जागरण  के विशेष संवाददाता श्री ओम प्रकाश  तिवारी के वॉल से साभार )
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