शनिवार, 6 अगस्त 2022

व्योमवार्ता/यह भी जाने.......

समाज जिसमे हम रहते हैं.....
यह भी जाने......

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या अंतर है ?
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे *ध्वजारोहण कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है।
जबकि
 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है।

15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं।
जबकि
 26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है।
जबकि
गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।
(काशी,6अगस्त 2022,शनिवार)
#व्योमवार्ता

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

व्योमवार्ता/ भूली हुई यादें....

व्योमवार्ता / भूली हुई यादें.......

           रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।
दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !!
रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो...
और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट"
पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्बर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता...पाँच हजार एक सौ तिरासी ...फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री !!
कोई मुरव्वत नहीं..पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।
रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी,लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निशुल्क होती।
जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टोर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के गर्व के साथ नीचे उतरते।
जिनका नम्बर अखबार में नहीं होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढाँढस बँधाते... अरे, कुम्भ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम...
पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे ... फलाने के लड़के ने तो पहली बार में ही ...
आजकल बच्चों के मार्क्स भी तो #फारेनहाइट में आते हैं।
99.2, 98.6, 98.8.......
और हमारे जमाने में मार्क्स #सेंटीग्रेड में आते थे....37.1, 38.5, 39, 
हाँ यदि किसी के मार्क्स 50 या उसके ऊपर आ जाते तो लोगों की खुसर -फुसर .....
नकल की होगी ,मेहनत से कहाँ इत्ते मार्क्स आते हैं।
वैसे भी इत्ता पढ़ते तो कभी देखा नहीं । (भले ही बच्चे ने रात रात जगकर आँखें फोड़ी हों)
सच में, रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था
(काशी,4अगस्त2022,गुरूवार)
#भूली_हुई_यादें
#हमारे_जमाने_के_रिजल्ट
#व्योमवार्ता

व्योमवार्ता/ भूली हुई यादें.....

व्योमवार्ता/ भूली हुई यादें.....

जब हम स्कूल में पढ़ते थे ( 😳 ) उस स्कूली दौर में निब पैन का चलन जोरों पर था..!

तब कैमलिन की स्याही प्रायः हर घर में मिल ही जाती थी, कोई कोई टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे और बुक स्टाल पर शीशी में स्याही भर कर रखी होती थी 5 पैसा दो और ड्रापर से खुद ही डाल लो ये भी सिस्टम था ...जिन्होंने भी पैन में स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से भली भांति परिचित होंगे ! 

कुछ लोग ड्रापर का उपयोग कान में तेल डालने में भी करते थे...😜

महीने में दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में डालकर उसकी सर्विसिंग भी की जाती थी और लगभग सभी को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है। 

सामने के जेब मे पेन टांगते थे और कभी कभी स्याही लीक होकर सामने शर्ट नीली कर देती थी जिसे हम लोग सामान्य भाषा मे पेन का पोंक देना कहते थे...पोंकना अर्थात लूज मोशन...😧

हर क्लास में एक ऐसा एक्सपर्ट होता था जो पैन ठीक से नहीं चलने पर ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा कर लेता था !!

नीचे के हड्डा को घिस कर परफेक्ट करना भी एक आर्ट था !!

हाथ से निब नहीं निकलती थी तो दांतों के उपयोग से भी निब निकालते थे...दांत , जीभ औऱ होंठ भी नीला होकर भगवान महादेव की तरह हलाहल पिये सा दिखाई पड़ता था 😜

दुकान में नयी निब खरीदने से पहले उसे पैन में लगाकर सेट करना फिर कागज़ में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदो पर लगाकर निब की स्याही सोखने की क्षमता नापना ही किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था..!

निब पैन कभी ना चले तो हम सभी ने हाथ से झटका देने के चक्कर में आजू बाजू वालों पर स्याही जरूर छिड़कायी होगी!!

कुछ बच्चे ऐसे भी होते ( मेरे जैसे ) थे जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियो में स्याही जरूर लगा लेते थे, बल्कि पैंट पर भी छिड़क लेते थे ताकि घरवालों को देख के लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है!!
#भूली_हुइ_यादें....  
(काशी,4अगस्त2022,गुरूवार)
#व्योमवार्ता
http://chitravansh.blogspot.in