विजय पर्व के पश्चात : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 01 अक्टूबर 2017, रविवार
आज जब नवरात्रि के व्रत के पश्चात व विजयादशमी के त्यौहार मना कर फुर्सत मे बैठा तो संपूर्ण रामकथा पर विचार करने लगा और ढेरो सवाल एक के बाद किन्तु परन्तुक रूप मे उठने लगे, चार दिन पूर्व दूरदर्शन लोकसभा पर रामकथा के प्रख्यात उपन्यासकार परम आदरणीय पद्मश्री डॉ0 नरेन्द्र कोहली जी ( हमारे गुरू जी) ने राम कथा के पात्रों के वर्तमान सरोकार व प्रासंगिकता पर बताते हुये कहा कि वृत्ति ही मानव को दानव बनाती है. वर्तमान परिस्थिति मे रामकथा पर विचार करते समय इन्ही प्रवृत्तियों पर मन मे ढेरो सवाल उठ रहे हैं.
राम से उदास जीवन किसका होगा? सीता से ज्यादा किसने सहा होगा? लक्ष्मण से ज्यादा समर्पण कौन करेगा ? दशरथ से ज्यादा कौन त्यागी होगा ? कैकेयी से |ज्यादा क्रूरता किसने दिखाई होगी? हनुमान से ज्यादा भक्त कौन होगा?रावण से ज्यादा विद्वान शत्रु कौन होगा ?तुलसीदास से ज्यादा बेहतर कविता कौन लिख सकेगा ? रामचरितमानस और उसके सभी पात्र हमारे आदर्श हैं ,दुश्मनी करो तो रावण जैसे ,प्रेम करो तो सीता जैसे , धर्म निभाओ तो राम जैसे? त्याग करो तो दशरथ जैसे|
तभी रामकथा की सार्थकता होगी.
(झूंसी, इलाहाबाद, 01 अक्टूबर,2017, रविवार)
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अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
रविवार, 1 अक्टूबर 2017
व्योमवार्ता / विजय पर्व के पश्चात : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 01 अक्टूबर 2017, रविवार
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