शनिवार, 2 मई 2020

व्योमवार्ता/ करना है एक वादा खुद से

व्योमवार्ता/  करना है एक वादा खुद से, : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 2मई2020

                      हम आर्थिक चुनौतियों के दौर में हैं। बहुत से लोगों की नौकरी चली गई होगी। जा सकती है। सैलरी कम हो गई होगी या हो सकती है। याद रखना है कि ये हालात आपकी वजह से नहीं आए हैं। आप ख़ुद को दोष न दें। न हार, अपमानित महसूस करें। रास्ता नज़र नहीं आएगा लेकिन हिम्मत न हारें। कम से कम खर्च करें। अपनी मानसिक परेशानियों को लेकर अकेले न रहें। दोस्तों से बात करें। रिश्तेदारों से बात करें। किसी तरह का बुरा ख़्याल आए तो न आने दें। इस स्थिति से कोई नहीं बच सकता। तो धीरे धीरे खुद को पहाड़ काट कर नया रास्ता बनाने के लिए तैयार करें। अपनी भाषा या सोच ख़राब न करें। कुछ भी हो जाए, जीना है, कल के लिए। धीरज रखें। कम में जीना है। यह वक्त आपका इम्तहान लेने आ गया है।

भरोसा रखिए जब आपने एक बार शून्य से शुरू कर यहाँ तक लाया है तो एक और बार शून्य से शुरू कर आप कहीं पहुँच जाएँगे। बस यूँ समझिए कि आप सांप सीढ़ी खेल रहे थे। 99 पर साँप ने काट लिया है लेकिन आप गेम से बाहर नहीं हुए हैं। क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए। हंसा कीजिए। थोड़े दिन झटके लगेंगे। उदासी रहेगी लेकिन अब ये आ गया है तो देख लिया जाएगा यह सोच कर रोज़ जागा कीजिए।

सकारात्मक रहे। घर पर ही रहिए।
(बनारस,2मई 2020,शनिवार)
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शुक्रवार, 1 मई 2020

व्योमवार्ता / हमारी संस्कृति मे अभिवादन के लिये नमस्ते

व्योमवार्ता / हमारी संस्कृति में अभिवादन के लिए नमस्ते : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 1मई 2020, शुक्रवार

              “नमस्ते” शब्द संस्कृत भाषा का है। इसमें दो पद हैं – नम:+ते । इसका अर्थ है कि ‘आपका मान करता हूँ।’ संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार “नम:” पद अव्यय (विकाररहित) है। इसके रूप में कोई विकार=परिवर्तन नहीं होता, लिङ्ग और विभक्ति का इस पर कुछ प्रभाव नहीं। नमस्ते का साधारण अर्थ सत्कार = सम्मान होता है। अभिवादन के लिए आदरसूचक शब्दों में “नमस्ते जी"  शब्द का प्रयोग ही उचित तथा उत्तम है।
नम: शब्द के अनेक शुभ अर्थ हैं। जैसे - दूसरे व्यक्ति या पदार्थ को अपने अनुकूल बनाना, पालन पोषण करना, अन्न देना, जल देना,  वाणी से बोलना, और दण्ड देना आदि।  नमस्ते namaste शब्द वेदोक्त है। वेदादि सत्य शास्त्रों और आर्य इतिहास (रामायण, महाभारत आदि) में ‘नमस्ते’ शब्द का ही प्रयोग सर्वत्र पाया जाता है।
सब शास्त्रों में ईश्वरोक्त होने के कारण वेद का ही परम प्रमाण है, अत: हम परम प्रमाण वेद  से ही मन्त्रांश नीचे देते है :-

नमस्ते परमेश्वर के लिए
1. - दिव्य देव नमस्ते अस्तु॥ – अथर्व० 2/2/1
   हे प्रकाशस्वरूप देव प्रभो! आपको नमस्ते होवे।
2. - विश्वकर्मन नमस्ते पाह्यस्मान्॥ – अथर्व० 2/35/4
3. - तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम: ॥– अथर्व० 10/7/32
            सृष्टिपालक महाप्रभु ब्रह्म परमेश्वर के लिए हम नमन=भक्ति करते है।
4. - नमस्ते भगवन्नस्तु ॥  – यजु० 36/21
   हे ऐश्वर्यसम्पन्न ईश्वर ! आपको हमारा नमस्ते होवे।
                      
नमस्ते बड़ों के लिए
1. -  नमस्ते राजन् ॥ – अथर्व० 1/10/2
   हे राष्ट्रपते ! आपको हम नमस्ते करते हैं।
2. - तस्मै यमाय नमो अस्तु मृत्यवे॥– अथर्व०6/28/3
   पापियों के लिए मृत्युस्वरूप दण्डदाता न्यायाधीश के लिए नमस्ते हो।
3. - नमस्ते अधिवाकाय ॥   – अथर्व० 6/13/2
   उपदेशक और अध्यापक के लिए नमस्ते हो।

नमस्ते देवी (स्त्री) के लिए
1. - नमोsस्तु देवी ॥   – अथर्व० 1/13/4
   हे देवी ! माननीया महनीया माता आदि देवी ! तेरे लिए नमस्ते हो।
2 -  नमो नमस्कृताभ्य: ॥   – अथर्व० 11/2/31
   पूज्य देवियों के लिए नमस्ते।

   नमस्ते  बड़े, छोटे बराबर सब को
1-  नमो महदभयो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्य: ॥     – ऋग० 1/27/13.
बड़ों बच्चों जवानों सबको नमस्ते ।
2 -  नमो ह्रस्वाय नमो बृहते वर्षीयसे च नम: ।।– यजु० 16/30.
    छोटे, बड़े और वृद्ध को नमस्ते ।
3 - नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नम: ॥– यजु०16/32
       सबसे बड़े और सबसे छोटे के लिए नमस्ते।

👉वैज्ञानिक महत्व:
हाथ के तालु में कुछ विशेष अंश हमारे मस्तिष्क और हृदय के साथ सुक्ष्म स्नायु माध्यम द्वारा संयुक्त है।
दोनो हाथ जब प्रणाम मुद्रा में आते हैं, तो उन विशेष अंश में उद्दीपन होते हैं, जो कि हृदय एवं मस्तिष्क के लिए लाभदायक है।
तो यही है नमस्ते की परम्परा।
इसलिए जब भी आप एक दूसरे का अभिवादन करना चाहें, तो ऋषियों के अनुसार चार कार्य करने चाहिएँ।।
पहला - सिर झुकाना।
दूसरा - हाथ जोड़ना।
तीसरा - मुंह से नमस्ते जी बोलना।
और चौथा -  बड़ों का पांव छूना।

यदि सामने वाला व्यक्ति आप से बड़ा नहीं है, धन में बल में विद्या में बुद्धि में अनुभव में किसी भी चीज में बड़ा नहीं है, बराबर का है, अथवा छोटा है, तो आप 4 में से चौथी क्रिया = (पांव छूने वाली क्रिया) छोड़ सकते हैं। बाकी तीन क्रियाएं तो करनी ही चाहिएँ।  तभी दूसरे का सम्मान ठीक प्रकार से हुआ, ऐसा माना जाता है।
सबको हमारा *नमस्ते जी* 🙏
(बनारस, 1मई 2020,शुक्रवार)
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