शनिवार, 11 अप्रैल 2020

व्योमवार्ता / लाकडाऊन मे एक जिम्मेदार कानूनपसंद नजरबंद शहरी की डायरी

व्योमवार्ता/ लाकडाऊन में एक जिम्मेदार कानूनपसंद नजरबंद शहरी की डायरी

लाकडाऊन की जीवनचर्या
(दि० 10अप्रैल 2020,शुक्रवार)

पूर्वाह्न ७.३० बजे, चाय, नित्यक्रिया,
सोशल मीडिया पर ज्ञान प्राप्त किया
८.०० ध्यान,पूजन
८.३० अखबार,
९.०० रामायण साथ मे प्राणायाम
१०.०० भोजन, एक झपकी
११.००व्योमकेश बख्शी
१२.०० मध्याह्न महाभारत
अपराह्न १ से २बजे
अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़े
एक दो किताबें और पलटे
२से ४ लेखन
४ से ६ कुछ इधर उधर किये, चाय, टीवी समाचार
६ से ७ मित्रों से मोबाईल पर वार्ता,
७ से ८ महाभारत, साथ मे भोजन
८से ९ छत पर टहले
९ से १० रामायण
१० से १०.१५ तक चाणक्य की प्रतीक्षा
१०.१५ से १०.३० तक दूरदर्शन को चाणक्य का समय बदलने पर गरियाये और टि्वट कर शिकायत
१०.३०से ११ टीवी समाचार
११ से ११.३० सोशल मीडिया पर ज्ञान बॉटे
११.३० से पूर्वाह्न १.४४ तक यूट्यूब पर पुरानी फिल्म "एक रूका हुआ फैसला" देखे।
१.४४ से२बजे तक कल के बारे मे टाईमपास प्रोग्राम सोचते हुये सो गये।

एक नजरबंद कैदी के लिये इससे बेहतर  कोई अन्य कार्यक्रम हो या सुधार की गुंजाईस हो तो सुझाईयेगा।🙏
(बनारस, ११अप्रैल २०२०,शनिवार)
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#Vyomvarta

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

व्योमवार्ता / पीएम-केयर्स और प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष मे सानता एवं अंतर : व्योमेश चित्रवंश की डायरी

व्योमवार्ता/ क्या है PM-CARES और PMNRF? जानिए दोनों के बीच की समानताएं और अंतर : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 6अप्रैल 2020
                 पीएम केयर के घोषणा होते ही मोदी विरोध मे अनायास व अनर्गल सवाल उठाने वालों ने यह सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष के रहने पर पीएम केयर की क्या जरूरत थी ? प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क ने Apr 03, 2020 को अपने एक लेख मे दोनो के अंतर को बताने का प्रयास किया है।
                   पूरा विश्व कोरोना वायरस के महामारी से जूझ रहा है। भारत भी इस महामारी से बचने के लिए कई उपाय किए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से PM-CARES में दान देने की भी अपील की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब PM-CARES की बात की है तो अब इसको लेकर चर्चा यह है कि आखिर इस PM-CARES की क्या आवश्यकता है जबकि पहले से ही प्रधानमंत्री राहत कोष है। लोग प्रधानमंत्री राहत कोष में क्यों ना दान करें? PM-CARES में क्यों दान करें? आज हम आपको PM-CARES और PMNRF के बारे में बताएंगे और यह भी बताएंगे कि आखिर इन दोनों के बीच क्या अंतर है?
               सबसे पहले बात प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) की करते हैं। यह राहत कोष से 1948 में बनाया गया था। इसका उद्देश्य भारत के विभाजन के दौरान और उसके ठीक बाद पाकिस्तान से विस्थापित लोगों को सहायता करना था। प्रधानमंत्री राहत कोष के संसाधनों का इस्तेमाल मुख्य रूप से बाढ़, तूफान या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों और उनके परिवार वालों की मदद के लिए किया जाता है। इसके अलावा दुर्घटनाओं और दंगों से भी पीड़ितों को तत्काल मदद के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष का इस्तेमाल किया जाता है। प्रधानमंत्री राहत कोष का इस्तेमाल चिकित्सीय उपचार प्रदान करने के लिए भी किया जाता है। फंड में पूरी तरह से सार्वजनिक योगदान होता है और इसे कोई बजटीय समर्थन नहीं मिलता है। फंड के कॉर्पस को विभिन्न रूपों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और अन्य एजेंसियों के साथ निवेश किया जाता है। संवितरण प्रधान मंत्री के ही अनुमोदन से किए जाते हैं।
          प्रधानमंत्री राहत कोष के बारे में एक बात गौर करने वाली है कि यह संसद द्वारा गठित नहीं किया गया है। विभाजन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि विस्थापितों के मदद के लिए सरकार प्रयास कर रही है परंतु यह पर्याप्त नहीं है और इसीलिए इनकी मदद के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी है। इसी के तहत एक राष्ट्रीय कोष की स्थापना की गई। खास बात यह भी है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया था हालांकि इसके प्रबंध समिति ने हमेशा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को शामिल किया गया है। हम यह बताते हैं कि जब फंड को बनाया गया था तो कौन-कौन से लोग इसके प्रबंध समिति में शामिल थे।
i) प्रधान मंत्री
ii) भारत की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष।
iii) उप प्रधान मंत्री।
iv) वित्त मंत्री।
v) टाटा ट्रस्टीज़ का एक प्रतिनिधि।
vi) फिक्की द्वारा चुने जाने वाले उद्योग और वाणिज्य का प्रतिनिधि।
           हालांकि बाद में समय-समय पर इसमें नए सदस्यों को जोड़ा गया है। 1985 में एक ऐसा समय आया जब इस फंड प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को सौंप दिया गया। प्रधानमंत्री को यह भी अधिकार दिया गया कि वह जिसे चाहे उसे फंड का सचिव बना सकते हैं जिस पर फंड के बैंक खातों को संचालित करने का अधिकार होगा। यानि कि यह फंड पूरे तरीके से PMO के द्वारा संचालित किया जाने लगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह निर्णय तब लिया गया था जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री होने के नाते इस फंड के प्रभारी थे।
                   अब बात PM-CARES की करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सार्वजनिक योगदान के लिए PM-CARES फंड का गठन किया है। इसके तहत मिलने वाले दान को कोरोना वायरस से प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इस फंड के अन्य सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री को शामिल किया गया है। इसके अलावा विज्ञान, स्वास्थ्य, कानून और सार्वजनिक क्षेत्रों में अच्छे काम करने वाले लोगों को भी इसके सदस्य के रूप में नियुक्ति की गई है। इस फंड के गठन के साथ ही प्रसिद्ध हस्तियों के साथ-साथ आम लोगों ने भी लाखों की संख्या में अपने योगदान किए हैं। हालांकि एक सवाल बार-बार उठता रहा कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष होने के बावजूद भी पीएम के अंत की शुरुआत क्यों की गई? एक पत्रिका ने दावा किया है कि पीएम के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक है। अतः यह कहना भी गलत नहीं होगा कि PM-CARES प्रधानमंत्री राहत कोष की तुलना में अधिक पारदर्शी है। PM-CARES में सलाहकार बोर्ड की स्थापना का भी प्रावधान है जिसमें चिकित्सा व्यवसाई और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों, शिक्षाविदों, अर्थशास्त्रियों और वकीलों को रखा जा सकता है।
                  PM-CARES को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस जहां इसे पारदर्शी नहीं बता रही है वहीं भाजपा का कहना है कि कांग्रेस इससे इसलिए नाखुश है क्योंकि इसमें कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कोई जगह नहीं है।
साभार: प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क
(बनारस,6अप्रैल 2020, सोमवार)
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#PM-CARES
#CORONA
#प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

व्योमवार्ता/ जीत जायेगें हम, सब अगर संग है....

व्योमवार्ता /जीत जाएंगे हम-सब अगर संग हैं : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 5अप्रैल 2020

जापान में पुरानी कथा है।
एक छोटे से राज्य पर एक बड़े राज्य ने आक्रमण कर दिया।
उस राज्य के सेनापति ने राजा से कहा कि आक्रमणकारी सेना के पास बहुत संसाधन है हमारे पास सेनाएं कम है संसाधन कम है हम जल्दी ही हार जायेंगे बेकार में अपने सैनिक कटवाने का कोई मतलब नहीं। इस युद्ध में हम निश्चित हार जायेंगे और इतना कहकर सेनापति ने अपनी तलवार नीचे रख दिया।
अब राजा बहुत घबरा गया अब क्या किया जाए, फिर वह अपने राज्य के एक बूढे फकीर के पास गया और सारी बातें बताई।
फकीर ने कहा उस सेनापति को फौरन हिरासत में ले लो उसे जेल भेज दो। नहीं तो हार निश्चित है।
यदि सेनापति ऐसा सोचेगा तो सेना क्या करेंगी।
आदमी जैसा सोचता है वैसा हो जाता है।
फिर राजा ने कहा कि "युद्ध कौन करेगा?"
फकीर ने कहा," मैं",
वह फकीर बूढ़ा था, उसने कभी कोई युद्ध नहीं लड़ा था और तो और वह कभी घोड़े पर भी कभी चढ़ा था। उसके हाथ में सेना की बागडोर कैसे दे दे।
लेकिन कोई दूसरा चारा न था।
वह बूढ़ा फकीर घोड़े पर सवार होकर सेना के आगे आगे चला।
रास्ते में एक पहाड़ी पर एक मंदिर  था। फकीर सेनापति वहां रुका और सेना से कहा कि पहले मंदिर के देवता से पूछ लेते हैं कि हम युद्ध में जीतेंगे कि हारेंगे।
सेना हैरान होकर पूछने लगी कि देवता कैसे बतायेंगे और बतायेंगे भी तो हम उनकी भाषा कैसे समझेंगे।
बूढ़ा फकीर बोला,"ठहरो मैंने आजीवन देवताओं से संवाद किया है मैं कोई न कोई हल निकाल लूंगा।"
फिर फकीर अकेले ही पहाड़ी पर चढा और कुछ देर बाद वापस लौट आया।
फकीर ने सेना को संबोधित करते हुए कहा कि "मंदिर के देवता ने मुझसे कहा है कि यदि रात में मंदिर से रौशनी निकलेगी तो समझ लेना कि दैविय शक्ति तुम्हारे साथ है और युद्ध में अवश्य तुम्हारी जीत हासिल होगी।"
सभी सैनिक साँस रोके रात होने की प्रतीक्षा करने लगे। रात हुई और उस अंधेरी रात में मंदिर से प्रकाश छन छन कर आने लगा ।
सभी सैनिक जयघोष करने लगे और वे युद्ध स्थल की ओर कूच कर गए ।
21 दिन तक घनघोर युद्ध हुआ फिर सेना विजयी होकर लौटीं।
रास्ते में वह मंदिर पड़ता था।
जब मंदिर पास आया तो सेनाएं उस बूढ़े फकीर से बोली कि "चलकर उस देवता को धन्यवाद दिया जाए जिनके आशीर्वाद से यह असम्भव सा युद्ध हमने जीता है।"
सेनापति बोला," कोई जरूरत नहीं ।"
सेना बोली ,"बड़े कृतघ्न मालूम पड़ते हैं आप जिनके प्रताप से आशीर्वाद से हमने इस भयंकर युद्ध को जीता उस देवता को धन्यवाद भी देना आपको मुनासिब नही लगता।"
तब
उस बूढ़े फकीर ने कहा , "वो दीपक मैंने ही जलाया था जिसकी रौशनी दिन के उजाले में तो तुम्हें नहीं दिखाई दिया पर रात्रि के घने अंधेरे में तुम्हे दिखाई दिया।
तुम जीते क्योंकि तुम्हे जीत का ख्याल निश्चित हो गया।
विचार अंततः वस्तुओं में बदल जाती है।
विचार अंततः घटनाओं में बदल जाती है।"
                   मोदी जी दिया जलाने की बात कर रहे हैं वह वस्तुतः उपरोक्त प्रक्रिया का ही प्रयोग है। क्योंकि यह निश्चित है कि बाह्य संसाधनों के बल पर कोरोना से आप नहीं जीत सकते , अमेरिका का उदाहरण आपके सामने है। अमेरिका एक ताकतवर परंतु डरा हुआ मुल्क है। इतिहास गवाह है वह युद्ध अपनी धरती पर नहीं लड़ता कि उसके लोग मारे जायेंगे।   आधुनिक काल के इतिहास में यह पहला युद्ध है जिसे उसको अपनी धरती पर लड़ना पड़ रहा है।*
*यह वह मुल्क है जहां एक बार 6 घंटे बिजली आपूर्ति ठप्प हो गई थी तो सैकड़ों लोग डिप्रेशन से मर गए थे। अतः हे भारत के अदम्य जिजीविषा से भरे हमारे बहनों एवं भाईयों हम यह युद्ध आधी जीत चुके हैं हमारे यहां कोरोना पीड़ितो की मृत्यु दर कम है वही मृत्यु को प्राप्त हो रहे है जिन्हें कोई अन्य बीमारी हो या जो जीवन से निराश हो चुके हैं। अतः हे भारत के महामानव आपका कोरोना कुछ नहीं बिगड़ेगा , आपके लिए कोरोना सिजनल फ्लू जैसा बनकर रह जायेगा।*
*बस कुछ सावधानियां बरतें। सामाजिक दूरी बनाए रखें। गाईडलाइन का फाँलो करे। अपने आत्मविश्वास को मजबूत करें अभी बहुत कुछ करना है।
साभार : सोशल मीडिया
(बनारस, 5अप्रैल 2020, रविवार)
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