#समाज_जिसमें_हम_रहते_हैं....../"चलो न,अपने घर"
सुधा जी अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानती थीं।जहां आजकल बेटे बहुओं द्वारा अपने माता पिता या सास श्वसुर को अपमानित या प्रताड़ित करने की घटनाएं आए दिन देखने सुनने को मिलती रहती हैं,वहां उनका बेटा विकास ,बहू अनाया उनका और उनके पति लोकेश का बहुत ध्यान रखते थे।दो वर्ष होने को आए थे विकास की शादी को।वह और अनाया मुंबई में एक ही कंपनी में अच्छे ओहदों पर काम कर रहे थे।लोकेश जी पिछले वर्ष ही रिटायर हुए थे और पेंशन के नाम पर मात्र कुछ हज़ार ही उनको हर माह मिलते थे।लाख मना करने के बावजूद विकास उनके अकाउंट में कुछ रुपए हर माह डाल देता था और समय समय पर उनके ब्लड प्रेशर इत्यादि की दवाइयां उनके घर ऑनलाइन ऑर्डर करके भिजवा देता था।बेटे बहू अक्सर रोज़ ही फोन करके सुधा जी और लोकेश जी के हाल चाल रोज़ रात को ले लेते थे।लोकेश जी और सुधा हापुड़ में अपने पैतृक मकान में रह रहे थे और अपने मकान के ही ग्राउंड फ्लोर पर उन्होंने एक छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया था ताकि मन भी लगा रहे और थोड़ी इनकम भी हो जाए।
विकास से छोटी उनकी एक बेटी वनिता भी थी जिसकी पिछले वर्ष ही शादी हुई थी।वनिता और उसका पति अतुल गुड़गांव में ही मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर रहे थे।
पिछले एक महीने से विकास और अनाया सुधा से आग्रह कर रहे थे कि वह और पापा दोनों कुछ दिन उनके पास आकर मुंबई रह जाएं।रोज़ रोज़ के एक से उबाऊ जीवन से कुछ समय के लिए छुटकारा भी मिल जाएगा ।उधर बेटी वनिता और दामाद जी भी उनको फोन करके कुछ दिन अपने पास रहने के लिए बुलाते रहते थे।
बेटे विकास के पास उसके घर मुंबई दोनों सिर्फ एक दिन के लिए उस समय गए थे जब पिछले वर्ष शिरडी साई बाबा के दर्शन के लिए गए थे और लौटते समय एक दिन बेटे के पास मुंबई रुक गए थे क्योंकि वहीं से उनकी दिल्ली के लिए वापसी की फ्लाइट थी।
इस बार विकास ने जबरन दोनों का फ्लाइट का टिकट बुक करा ही दिया अतः उनको मुंबई आने का प्रोग्राम बनाना ही पड़ा।
अनाया ने खाना ,नाश्ता बनाने के लिए कुक लगा रखी थी। वह रोज़ सुबह ब्रेकफास्ट,लंच और डिनर का मेन्यू कुक को बता कर विकास के साथ कार से ऑफिस निकल जाती और रात सात ,आठ बजे तक ही घर लौट पाती थी।विकास और अनाया दोनों ही फिटनेस फ्रीक और हेल्थ कॉन्शस थे।बहुत कम घी तेल में उनके यहां खाना बनता था, अनाया को अपनी फिगर खराब होने का भी डर लगा रहता था।अपने 3 बीएचके फ्लैट में एक रूम की बालकनी को तो उन्होंने जिम में ही परिवर्तित कर रखा था जहां डेली एक्सरसाइज करने वाले तमाम इक्विपमेंट्स रखे हुए थे।
लोकेश जी और सुधा जी को ये उबली हुई बिना घी तेल की सब्जियां बिलकुल नहीं अच्छी लगती थीं।सुधा अपने घर तो आए दिन कभी बेसन के गट्टे की सब्ज़ी,कोफ्ते,बड़ी आलू, चिली पनीर इत्यादि बनाती रहती थी क्योंकि लोकेश के साथ साथ उसको स्वयं भी अच्छे तेल मसाले वाली चटपटी सब्जियां और नाश्ते पसंद थे।यह जीरे वाली लौकी,स्प्राउट्स, ओट्स मील वह रोज़ रोज़ खा ही नहीं सकती थी।एक हफ्ते तक तो दोनों ने किसी तरह यह स्वास्थ्यवर्धक पर बेस्वाद खाना खाया फिर एक दिन सुबह सुधा ने आटे में अजवाइन ,नमक और घी का मोइन डाल कर स्वयं गरम गरम मठलियां और नमकपारे नाश्ते में अपने और पति के लिए बनाए। कुछ नमकपारे,मठरी बेटे बहू के लिए एयर टाइट डिब्बे में पैक करके रख दिए।फिर उन्हें याद आया कि विकास को लौकी के कोफ्ते बड़े पसंद हैं।रात में डिनर में उन्होंने कुक से सिर्फ रोटियां सिकवा लीं और स्वयं बड़े मन से ग्रेवी वाले चटपटे लौकी के कोफ्ते तैयार कर दिए।
शाम को बेटा बहू जब लौटे तो चाय के साथ उन्होंने मठरी और अपने साथ लाया हुआ आम का अचार रखा।
" ओह मम्मी जी इतनी खस्ता मठरी !! मेरा वजन इतनी मुश्किल से कम हुआ है,इतना ऑयली खा के फिर से बढ़ जाएगा,कहते हुए अनाया ने बस मठरी का एक कोना तोड़ कर अपने मुंह में डाला और चाय पी कर उठ गई।विकास ने तो मठरी को हाथ भी नहीं लगाया।रात में मसालेदार कोफ्ते देख कर विकास बजाए खुश होने के सुधा जी पे भड़क गया।
" मां,कितनी बार कहा कि आप पापा को इतना ऑयली खाना मत खिलाया करो,और खुद भी मत खाया करो।पापा को ब्लड प्रेशर रहता है,आपकी भी उम्र हो रही है,कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ जायेगा तो फालतू में हार्ट रिलेटेड बीमारियों का खतरा बढ़ जायेगा।
और आपको पता है कि हम दोनों सिर्फ आधी एक चम्मच घी में बनी कम मसाले की सब्जियां खाते हैं।आप कुक से वो तो बनवा लेती। ख़ैर,आपने इतने मन से बनाए हैं तो एक टुकड़ा चख लेता हूं।," कह कर उसने रोटी के एक टुकड़े से कोफ्ता चखा और वह और अनाया फ्रिज से दही निकाल कर , रोटी उसी के साथ खा कर डाइनिंग टेबल से उठ गाएं
बेटे बहू से अपनी प्रशंसा सुनने की आस लगायी बैठी सुधा जी का मुंह उतर गया।
वह जानती थीं कि विकास जो कह रहा है,सही कह रहा है,उनके और लोकेश जी के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर ही कह रहा है,पर अंदर ही अंदर उनके मन में कुछ दरक सा गया।
रात में सोने से पहले दोनो उनके कमरे में आए।
" पापा,आपने अपने ब्लड प्रेशर की दवाई खा ली न?मम्मी ,आप बहुत घी तेल खाने लगी हो।परसों आप दोनों का फुल बॉडी चेक अप करवा दूंगा, रात आठ बजे तक कल डिनर कर लेना," विकास बोला।
" हां,मम्मी जी,कल संडे है।कल आप दोनों को नेशनल पार्क, जुहू बीच और हैंगिंग गार्डन दिखाने ले जायेंगे।", अनाया बोली।
" अच्छा बेटा,ठीक है," सुधा थोड़े उदास स्वर में बोली।गुड नाईट बोल कर दोनों अपने कमरे में सोने चले गए।
अगले दिन संडे को विकास और अनाया देर सुबह तक सोते रहे।आखिर बेचारों को एक ही दिन मिलता था रेस्ट का।उनके ऑफिस में 5 डेज वीक नहीं था।
सुधा जी जबसे आई थीं,देख रही थीं कि विकास के घर में स्थापित लकड़ी के छोटे मंदिर का मुंह दक्षिण की तरफ था,जोकि उनके अपने बुजुर्गों के मुंह से सुनी गई मान्यताओं के अनुसार ठीक नहीं था।यद्यपि सुधा जी स्वयं भी इन बातों को अधिक नहीं मानती थीं पर फिर भी मन में वहम तो आ ही जाता है , अतः घरेलू नौकर से बोल कर उन्होंने उसको वहां से हटवा कर उसके बगल वाली खाली दीवार पे टंगवा दिया ताकि उसका मुंह पूरब की तरफ हो जाए।अब तक अनाया भी उठ चुकी थी।मंदिर को वहां टंगे देख गुस्से में जोर से चिल्ला कर नौकर से बोली," रामदीन,तुमने मुझसे बिना पूछे यह मंदिर इस दीवार पर क्यों टांगा? यहां तो मुझे एक बड़ी फुल साइज पेंटिंग लगानी है,"!
" मेम साब,आंटी जी ने कहा तो मैंने लगा दिया," रामदीन सफाई देते हुए बोला।
" मम्मी जी प्लीज,मेरा फ्लैट मुझे मेरे हिसाब से सेट करने दीजिए।आप हापुड़ में शौक से अपने हिसाब से अपना घर सजाइए।मंदिर का मुंह इधर करने से ड्रॉइंग रूम में बैठे गेस्ट्स ,मेरी खरीदी हुई कीमती नई पेंटिंग देख ही नहीं पाएंगे।
रामदीन,इसको वापस अपनी पुरानी जगह ही लगा दो", अनाया ने रामदीन को आदेश दिया और ब्रश करने वाशरूम में चल दी।
सुधा चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई।
दोपहर में लंच के बाद सब घूमने निकल गए। कार में सुधा चुप चुप सी ,उखड़ी सी बैठी रही।लोकेश जी सब समझ गए थे,आखिर पति थे उनके।
शाम को घर लौटने पर लोकेश जी विकास से बोले," बेटा हमारा कल की वापसी का रिजर्वेशन करवा दो,अगर मिल रहा हो तो!!मैं तो सिर्फ तीन चार दिन के लिए तुम्हारे पास रहने आया था,आज देखो पूरा एक हफ्ता हो गया।दुकान इतने दिन से बंद है,सारे ग्राहक टूट जायेंगे और मिश्रा की दुकान से सामान लेने लगेंगे।तुम दोनों ने खूब हमारा ख्याल रखा।खूब घुमाया फिराया,अब जाने दो।लौटते पर दो दिन बेटी के पास गुड़गांव रह लेंगे,वह भी कई दिन से बुला रही है।"
" यह क्या पापा,आपने तो कहा था कि इस बार पूरा एक महीना रहेंगे आप मेरे पास।इतनी जल्दी मन ऊब गया? " विकास नाराज़ होते हुए बोला।
" ऐसी बात नहीं बेटा",सुधा बोलीं," हम फिर आ जायेंगे।अभी दिवाली पर दुकान में लक्ष्मी गणेश पूजन भी करना है।फिर वनिता भी बुलाए पड़ी है।दो दिन उसके पास भी रुक लेंगे।"
दोनों के ज़िद करने पर विकास ने दो दिन बाद का उनका वापसी का रिजर्वेशन करवा दिया। अनाया ने भी उनसे काफी ज़िद करी रुकने की,कहा कि अभी तो मुंबई के कई स्थान घूमने के लिए रह गए हैं,पर सुधा ने प्यार से मना कर दिया।
वापसी में दोनों बेटी वनिता के यहां आ गए।
वनिता का पति अतुल डेली नॉन वेज खाने वालों में से था,बहुत ही शौकीन।जबकि लोकेश और सुधा अंडा तक नहीं खाते थे,यहां तक कि अंडे की स्मेल से सुधा जी का जी मिचलाने लगता था।
दोपहर लंच में डाइनिंग टेबल पर बेटी ने खाना लगा दिया।अपने पापा मम्मी के लिए उसने मटर पनीर,रायता,मेथी के साग की सब्ज़ी बनाई थी पर साथ में ही लंच करने बैठे दामाद अतुल जी की प्लेट में रखे चिकन पीस की गंध दोनों बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे अतः अपनी प्लेट लगा कर दोनों बेड रूम में ही आकर खाने लगे।
" क्या करूं पापा,आपको तो पता है कि इनको रोज़ नॉन वेज चाहिए, न मिले तो यह भूखे से रह जाते हैं,वनिता हंसते हुए बोली।
" कोई बात नहीं बेटा,दामाद जी को जिस चीज़ का शौक है,वह उनको मिलनी ही चाहिए," लोकेश जबरन मुस्कुराते हुए बोले।
शाम को अचानक से कानपुर से लोकेश जी के समधी समधिन भी बेटे अतुल के घर आ गए क्योंकि उन्हें गुड़गांव में कोई शादी अटेंड करनी थी।
रात में दूसरे कमरे के डबल बेड पर वनिता के सास ससुर सो गए और वनिता ने ड्राइंग रूम में ही दो फोल्डिंग डाल कर अपने पापा मम्मी का बिस्तर लगा दिया।
लोकेश जी को फोल्डिंग चारपाई पे बिलकुल नींद नहीं आती थी और उनकी पीठ में दर्द हो जाता था। रात भर वह करवटें बदलते रहे।
सुबह सुधा जी और लोकेश जी को चार बजे से ही आंख खुल गई।
" आज ही घर वापस चलें क्या? लोकेश जी ने सुधा से पूछा।
हां,आज ही कैब बुक करवा के या बस से वापस घर चलते हैं।मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही है।सारे कमरे,आंगन इतने दिन से बंद पड़े हैं,गंदे हो गए होंगे।तुलसी जी कहीं सूख न गई हों,बिना पानी के।"सुधा जी खुश होते हुए बोलीं।
" हां,शर्मा जी, मिश्रा जी,श्रीवास्तव साहब से भी बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हुई। उस दिन उनका फोन भी आया था, मिश्रा कह रहा था कि जबसे मैं वहां से गया हूं,चारों की चांडाल चौकड़ी जमी ही नहीं।शाम को चारों इकट्ठा होकर गपशप लड़ाया करते थे," लोकेश जी बोले।
" हां,हमारा घर हमें वापस बुला रहा है,जिसकी मालकिन सिर्फ मैं हूं,सिर्फ मैं!
जहां मैं अपनी मन मर्जी का खा, पका सकती हूं,कहीं भी सो सकती हूं,कुछ भी अपने मन का कर सकती हूं,जहां सिर्फ मेरी मनमर्जियां चलती हैं," सुधा जी मुस्कुराते हुए एक चैन की सांस लेते हुए बोलीं।
दोनों ने उठ कर अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया।
#व्योमवार्ता