उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल मे ही अपने सभी चिकित्सालयो मेे पार्किग सुविधा निशुल्क कर दिया उसके लिये बेहद जरूरी व वाजिबकारण बताते हुये यह कहा गया कि अस्पताल मे मरीजो की सुविधा के लिये सुविधाओं को निशुल्क अथवा बेहद मामूली शुल्क पर किया जाना चाहिये।
वहीं दूसरी तरफ बीएचयू ट्रौमा सेण्टर मे अगर आप सीधे व सरल स्वभाव के है तो पार्किग वाला आपसे मनमाने तौर पर पार्किंग शुल्क वसूल करेगा और काऱण पूछने पर आप के साथ जबरदस्ती व गुंडई करने को बिलकुल स्वतंत्र है। उस पर से बड़ा तुर्रा यह कि वह माफिया है अगर आपको गाड़ी नही खड़ी करनी है तो मत खड़ी करिये। पार्किंग से मिलने वाले रसीद मे व्यौरा कुछ और ही दर्ज है।
पार्किंग स्थल की हालत यह है कि पूरे पार्किंग एरिया मे कीचड़ भरा है। जरा सा पानी बरसने पर वहॉ घुटने भर पानी भर जाता है। गलती से आपकी दूपहिया रह गयी तो फिर स्टार्ट होने के लिये भगवान मालिक है।
यदि आपने अपनी गाड़ी भूलवश नो पार्किंग एरिया मे खड़ा कर दिया है तो हास्पिटल मैनेजमेण्ट सिस्टम बार बार एनाउंसमेण्ट कर आपको इस गलती के लिये याद दिलाता रहेगा जब तक आप उसे पार्क करने जायेगे तब तक पार्किग वाले आपकी गाड़ी पंचर भी कर सकते है। और पूछने पर वही जबाब कि वे माफिया है कुछ भी कर सकते हैं।
जब हमने पार्किंग के कर्मचारियो की शिकायत ट्रौमा सेण्टर के सिक्यूरिटी सिस्टम से किया तो उन बेचारो ने अपनी बेबसी बताते हुये कहा कि साहब वे माफिया लोग हैं वीसी व ओएसडी के खासमखास है हम कॉन्टैक्ट ड्यूटी वाले उन्है कैसे रोक सकते है?
कल रात को ११,३० बजे पार्क की हुई गाड़ी को आज सुबह ६ बजे निकालने पर पार्किंग कर्मचारी द्वारा ३०/- मॉगने पर फिर किचकिच हुई मैने जब शिफ्ट वाईज चार्ज पूछा तो कर्मचारी ने सरलता से गणित समझाया कि रोज 2000/- रूपये वीसी को व3000/- रूपये ओएसडी को देने के बाद हमारे भी बालबच्चो को पालने के लिये खर्च निकालना पड़ता है।
पता नही कर्मचारी कितना सच बोल रहा था पर अगर इसमे रत्ती भर भी सच्चाई है तो यह पूज्य महामना के परित्राणाम दुखतप्तम् जैसे पवित्र विचारों की सरेआम हत्या है जिसके प्रतिे बीएचयू के पूर्व छात्र रहे हम जैसे लोग प्रतिकार करते हैं।
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
शनिवार, 23 जुलाई 2016
ट्रौमा सेण्टर के पार्किंग ठेकेदार खुद मे ही माफिया है।: व्योमेश चित्रवंश की डायरी ,19 जुलाई 2016
अपनों के अव्यवस्था से जूझता ट्रौमा सेण्टर : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17 जुलाई 2016
तीन दिन से ट्रौमा सेण्टर बीएचयू मे हूँ और एक नेक नीयत से शुरू की गई व्यवस्था को उसके अपनो द्वारा जानबूझ कर ध्वस्त होते हुये देख रहा हूँ। बनारस के लिये एक अनुपम भेंट को ध्वस्त करने वाले कोई और नही यही के कर्मचारीगण हैं। ज्यादातर कॉन्ट्रैक्ट सेलरी पर रखे गये कर्मचारियों का आपस मे कोई तालमेल नही है, ऐसे मे उनसे मरीजो की तीमारदारी की उम्मीद करना बेमानी है।
स्थिति यह है कि अगर आपने एक स्टाफ नर्स को कुछ करने को बोला है तो दूसरी स्टाफनर्स आपके ऊपर ध्यान नही ही दे सकती भले ही आप कितने भी पीड़ा या परेशानी मे क्यों न हो?
वरिष्ठ चिकित्सको को इन तीन दिनो मे हमने वार्ड का विजिट करते हुये शायद ही देखा, पर उनके अंडर मे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे रेजिडेण्ट्स डाक्टर्स जरूर मौजूद मिलते दिखते थे। पर उनका आपसी व्यवहार इतना तल्ख व अमानवीय होता है जो सामान्य स्तर पर भी उचित नही कहा जा सकता । हम लोगो के वार्ड मे तमिलनाडु का एक लड़का डाक्टर है, फर्स्ट ईयर रेजिडेण्ट, नाम देना उचित नही होगा, जब से हम आये है उस बंदे क लगातार काम पर देखा है २४ घंटे रात दिन। बेहद सुलझा और मेहनती। हम मजाक मे उससे पूछते भी है कि डाक्टर साहब आप सोते कब हो, बेचारा मुस्करा के जबाब देता है, सोते कहॉ है सर जी, दोपहर मे दो घंटे रेस्ट करते है तो पूरे वार्ड मे शोर हो जाता है। ऐसे बेचारे जूनियर डाक्टर को उसके सीनियर्स इस बुरी तरह लताड़ लगा के मॉ बहन की गाली देते है कि हम लोगो को सुन कर नागवार लगता है। मजा यह है कि गलती किसी की भी हो , डॉट उसी बेचारे जूनियर रेजिडेण्ट को सुननी है। चाहे वह नर्स ने किया हो चाहे मरीज ने या खुद सीनियर ने पर डॉट जूनियर को इसलिये पड़नी है कि उसने देखा क्योंं नही अथवा बताया क्यो नही।
एक बार तो उस जूनियर रेज्डेण्ट को अनायास डॉट व गाली गलौज सुनते हुये देख मुझसे नही रहा गया मैने उस जूनियर से इतना सब कुछ सहने का कारण पूछा तो उसने बेहद मासूमियत से जबाब देते हुये कहा कि छोड़िये न सर। कौन सा ये लोग जिन्दगी भर हमारे सीनियर बने रहेगें? पर मै स्वयं एक व्यवसायगत पेशे का हिस्सा होकर भी यह समझ पाने मे असमर्थ हूँ कि अपने जूनियर्स को सिखाने का यह कौन सा तरीका है जहॉ उसे व्यक्तिगत प्रताड़ना व सार्वजनिक बेईज्जती सहते हुये इस तरह की व्यवसायिक जानतारियॉ सिखनी पड़ती है?
बहरहाल बात अव्यवस्था की हो रही थी । कहने को तो ट्रौमा सेण्टर व सुपर स्पेशियल्टी हास्पिटल बना दिया गया पर दोनो के रखरखाव की व्यवस्थाये परले सिरे से ही नदारद है। न तो सेण्टर मे साफ सफाई की पूरी व्यवस्था है न ही बिजली पानी की। एक फ्लोर पर लगभग ६० मरीजो के बीच एक वाटर कूलर। तीन सामान्य शौचालय दो बेसिन वे भी साफ सफाई से कोसो दूर। कहने को तो औपचारिकताओं के नाम पर कई बार झाडू पोछा किया जाता है पर वह केवल गैलरी के फर्श पर ही नजर आता है।
क्या मै देवता नही हूँ? : व्योमेश चित्रवंश की डायरी
मुझे भी मेरे अपने बहुत प्यार करते है, वे हमे गुरू शिष्य, मित्र, अधिवक्ता, सहयोगी,अग्रज व अनुज के साथ अन्य ढेरो सम्बंधो के नाम पर पूजते है, स्नेह व सम्मान देते हैं। ऐसे मे किसी ने मेरे किसी भी नैतिक अनैतिक वाजिब गैरवाजिब कार्यों के खिलाफ कोई टिप्पणी किया और कल देश जलने लगे तो इसमे उनका कोई दोष नही है, न ही मेरी कोई जिम्मेदारी होगी।
ध्यान ऱखियेगा।
( नोट :- यह मेरी अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है, इसे किसी नेता नेती के राजनैतिक विचारों से जोड़ कर देखने की कोई आवश्यकता नही।)
बदहाल बीएचयू ट्रौमा सेण्टर :व्योमेश चित्रवंश की डायरी
बीएचयू ट्रौमा सेण्टर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 सितंबर 2015 को किया था यह वही समय था जब मोदी जी का स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत जोर शोर से हो चुकी थी। देश मे स्वच्छ भारत का असर दिखने भी लगा है पर मोदी जी द्वारा उद्घाटित ट्रौमा सेण्टर की सफाई व्यवस्था बद से बदतर होती जा रही है। ज्यादातर वाटर वेसिन गंदगी से पटे और जाम पड़े हैं। ज्यादातर लैट्रीन के कमोड्स व सीट बदरंग व गंदे है। वाटर कूलर पर धूल व गंदगी का अंबार लगा है।कुछ सर्विस मास्टर क्लीनर की वर्दी वाले सफाईकर्मी साफसफाई करते नजर आते रहते है पर उनके कामो की देख रेख करने वाला कोई नही। स्थिति यह है कि चौथे मंजिल पर आर्थोपेडिक वार्ड में वेसिन की टोटियॉ रस्सी से बॉधी गई है और बाथरूम की हालत यह है कि आप उसका प्रयोग करना तो दूर वहॉ खड़े तक नही हो सकते। हमने इस संबन्ध मे जब आन ड्यूटी नर्सेज से बात किया तो उनका सीधा जबाब था कि यह देखना उनकी ड्यूटी मे नही हैं। मौजूदा डाक्टर्स तो ज्यादातर प्रथम वर्ष के रेजिडेण्ट है जो स्वयं अपने सीनियर्स के व्यवहार व थोपे गये कार्यो से त्रस्त है वे बेचारे इस संबन्ध मे क्या बता पायेगें।
हमने इस संबन्ध मे ट्रौमा सेण्टर के विशेष कार्याधिकारी व उप चिकित्सा अधीक्षक से मिल कर शिकायत करने की कोशिश की पर वे दोनो अधिकारी हमे अपने कमरे मे नही मिले।
पूर्वी उत्तर प्रदेश व पश्चिमी बिहार के साथ साथ छत्तीसगढ व झारखण्ड के लिये एम्स जैसा एकमात्र जीवनदायी माने जाने वाले बीएचयू के अत्याधुनिक ट्रौमासेण्टर की बदहाली को बढ़ाने मे कुछ निहित शक्तियॉ अपने स्वार्थवश बदनाम व ध्वस्त करने मे लगी है क्या उनके मायाजाल से आमजन के बनाये ट्रौमासेण्टर मुक्त हो सकेगा?