तीन दिन से ट्रौमा सेण्टर बीएचयू मे हूँ और एक नेक नीयत से शुरू की गई व्यवस्था को उसके अपनो द्वारा जानबूझ कर ध्वस्त होते हुये देख रहा हूँ। बनारस के लिये एक अनुपम भेंट को ध्वस्त करने वाले कोई और नही यही के कर्मचारीगण हैं। ज्यादातर कॉन्ट्रैक्ट सेलरी पर रखे गये कर्मचारियों का आपस मे कोई तालमेल नही है, ऐसे मे उनसे मरीजो की तीमारदारी की उम्मीद करना बेमानी है।
स्थिति यह है कि अगर आपने एक स्टाफ नर्स को कुछ करने को बोला है तो दूसरी स्टाफनर्स आपके ऊपर ध्यान नही ही दे सकती भले ही आप कितने भी पीड़ा या परेशानी मे क्यों न हो?
वरिष्ठ चिकित्सको को इन तीन दिनो मे हमने वार्ड का विजिट करते हुये शायद ही देखा, पर उनके अंडर मे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे रेजिडेण्ट्स डाक्टर्स जरूर मौजूद मिलते दिखते थे। पर उनका आपसी व्यवहार इतना तल्ख व अमानवीय होता है जो सामान्य स्तर पर भी उचित नही कहा जा सकता । हम लोगो के वार्ड मे तमिलनाडु का एक लड़का डाक्टर है, फर्स्ट ईयर रेजिडेण्ट, नाम देना उचित नही होगा, जब से हम आये है उस बंदे क लगातार काम पर देखा है २४ घंटे रात दिन। बेहद सुलझा और मेहनती। हम मजाक मे उससे पूछते भी है कि डाक्टर साहब आप सोते कब हो, बेचारा मुस्करा के जबाब देता है, सोते कहॉ है सर जी, दोपहर मे दो घंटे रेस्ट करते है तो पूरे वार्ड मे शोर हो जाता है। ऐसे बेचारे जूनियर डाक्टर को उसके सीनियर्स इस बुरी तरह लताड़ लगा के मॉ बहन की गाली देते है कि हम लोगो को सुन कर नागवार लगता है। मजा यह है कि गलती किसी की भी हो , डॉट उसी बेचारे जूनियर रेजिडेण्ट को सुननी है। चाहे वह नर्स ने किया हो चाहे मरीज ने या खुद सीनियर ने पर डॉट जूनियर को इसलिये पड़नी है कि उसने देखा क्योंं नही अथवा बताया क्यो नही।
एक बार तो उस जूनियर रेज्डेण्ट को अनायास डॉट व गाली गलौज सुनते हुये देख मुझसे नही रहा गया मैने उस जूनियर से इतना सब कुछ सहने का कारण पूछा तो उसने बेहद मासूमियत से जबाब देते हुये कहा कि छोड़िये न सर। कौन सा ये लोग जिन्दगी भर हमारे सीनियर बने रहेगें? पर मै स्वयं एक व्यवसायगत पेशे का हिस्सा होकर भी यह समझ पाने मे असमर्थ हूँ कि अपने जूनियर्स को सिखाने का यह कौन सा तरीका है जहॉ उसे व्यक्तिगत प्रताड़ना व सार्वजनिक बेईज्जती सहते हुये इस तरह की व्यवसायिक जानतारियॉ सिखनी पड़ती है?
बहरहाल बात अव्यवस्था की हो रही थी । कहने को तो ट्रौमा सेण्टर व सुपर स्पेशियल्टी हास्पिटल बना दिया गया पर दोनो के रखरखाव की व्यवस्थाये परले सिरे से ही नदारद है। न तो सेण्टर मे साफ सफाई की पूरी व्यवस्था है न ही बिजली पानी की। एक फ्लोर पर लगभग ६० मरीजो के बीच एक वाटर कूलर। तीन सामान्य शौचालय दो बेसिन वे भी साफ सफाई से कोसो दूर। कहने को तो औपचारिकताओं के नाम पर कई बार झाडू पोछा किया जाता है पर वह केवल गैलरी के फर्श पर ही नजर आता है।
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
शनिवार, 23 जुलाई 2016
अपनों के अव्यवस्था से जूझता ट्रौमा सेण्टर : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 17 जुलाई 2016
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