गुरुवार, 19 जनवरी 2017

एक कड़ुआ सच यह भी : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 19 जनवरी 2017, गुरूवार

आज जब गांधी जी के फोटो पर सवाल पर सवाल उठ रहे हैं, ऐसे मे यह कड़ुई पर सच्ची पोस्ट हकीकत का सामना कराती है.
चरखे के साथ छपी इक फोटो पर कितना बवाल हो रहा है ....यूँ ही याद आता है कुछ ४ साल पहले इन्ही दिनों का किस्सा ...
jan , 2013 .... जब गांधी जी की कुछ चीजे ....चरखा,चश्मा और उनके खून लगी हुई घास के साथ साथ् 29 आइटमस .....
जब लन्दन में नीलाम हो रही थी... तब भारत सरकार ....
.जिनका शायद गाँधी के नाम पर #PATENT है वो सरकार....
वो सरकार जिसके मुनाइंदो ने शायद कभी गाँधी के आदर्शो और मूल्यों को नहीं अपनाया ...
मोहनलाल करमचंद गाँधी के समूर्ण व्यक्तित्व में से उन्होंने सिर्फ गाँधी उपनाम को अपनाया
और उसका इस्तेमाल किया
गाँधी नाम पे आस्था रखने वाले ..गाँधी को भगवन समझ कर पूजने वाले हिंदुस्तानियो के वोट पाने के लिए ...
वो भारत की कांग्रेस सरकार ने उस वक़्त गाँधी की उन अनमोल चीज़ों को जिसमे उन चरखा और चश्मा भी थे ...उनको भारत में लाने की कोई जहमत नहीं उठाई ....और न ही उस नीलामी में हिस्सा लिया
और फिर जब एक उधोग पति कमल मोरारका ने गांधी जी के सभी 29 सामान को 2 करोड़ में खरीदकर भारत ले आये, तो सरकार ने उस पर 22 लाख का टेक्स वसूल लिया ,   
उसी सरकार ने सचिन तेंदुलकर की फरारी पर किसी भी प्रकार का टेक्स नहीं लगाया !
अब इसे क्या कहे ?
वो तथाकथित गाँधी अब स्वछ भारत अभियान ...और मेक इन इंडिया का मजाक उड़ाते है सार्वजनिक मंचो से ...जबकि वो मूलतः गाँधी जी के ही तो चलाये अभियान थे ...
चरखा तो नीलाम हो गया पर शुक्र है की किसी भारतीय ने उस चरखे की लाज रख ली .!!
अब रही बात खादी की ... जिसकी आज खास चर्चा हो रही है ..2.5 साल पहले की ही तो बात है
कहाँ थी खादी ...कोन  पहनता था ...खादी के इक मात्र दुकान हुआ करती थी बरसो पहले हर छोटे छोटे शहरो में कस्बो में ....सब दम तोड़ चुकी थी ...बड़े बड़े विदेशी ब्रांड की शॉप्स अपना वर्चस्व कायम कर चुकी थी ....किसी को गाँधी और उसके सपनो की याद नहीं थी ...
मोदी ने खादी को अपनाने के लिए जनता से अपील की ..अपने पहले ही रेडियो पे दिए मन की बात में जनता से अपील की कि खादी खरीदे ...भले ही इक रुमाल खरीदे....
.खुदखादी कि जैकेट्स पहन कर इक ब्रांड बन कर खादी को युथ का फेव बनाया ,
लड़के लडकिया खादी की जैकेट्स प पहनने लगे
, बिक्री बड़ी , मुर्दा पड़े खादी ग्राम उद्योग में फिर जान आने लगी ।।।
      गांधी के सपनो के भारत के मुरझाए पौधे में अगर मोदी ने अपनी कोशिशों से उसमे जान डाल दी तो क्या बुरा किया ।।
चरखे की ईजाद बापू ने नहीं की थी , और ऐसा भी नहीं था कि गांधी जी से पहले इस देश में चरखा नहीं काता गया ।।
न ही चरखे के साथ फोटो खिंचवाने से कोई मोदी
महात्मा गांधी बन पाएगा।
बापू नेस्वदेशी वस्त्रों को बढ़ावा देने के लिए इसका इस्तेमाल करना सिखाया ।।
देश को स्वावलंबी बनाना उनका उद्देश्य था
मगर यहाँ किस्सा कुछ अलग है
मोदी का चरखे के साथ फोटो खिचवाने से
अगर खादी को बढ़ावा मिलता है तो उसमें हर्ज ही क्या है
कोई इंसान अगर गीता के उपदेशों को फैला कर
उसे जान जान तक पहुचता है तो उसका अर्थ ये कैसे हुआ की वो कृष्ण भगवान् की जगह खुद को प्रमोट कर रहा है ।
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बुधवार, 18 जनवरी 2017

आईजी आफिस के सिपाही की हनक : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 18जनवरी 2016, वुधवार

आज सुबह अखबार मे एक खबर पढ़ा अमूमन रोजमर्रा की खबर. मामला पास का था तो सोचने को मजबूर होना पड़ा, कल भोजूबीर के व्यस्ततम चौराहे पर प्रकाशदीप हास्पिटल के सामने से एक ईनोवा कार जा रही थी, ठीक उसी समय सामने विपरीत दिशा से कचहरी की ओर से नंबरप्लेट की जगह पुलिस लिखी हुई एक बाईक पर आ रहे सज्जन ने अपनी साईड के बजाय डिवाईडर पार कर बिल्कुल दाहिने पटरी मे आये और ईनोवा के बगल से उल्टे निकलने लगे. न चाहते हुये भी ईनोवा से बाईक की हैण्डिल को टच होना ही था, बस सज्जन का पारा चढ़ गया और वे सही दिशा मे चल रही ईनोवा के ड्राइवर को खींच कर बाहर निकाला और पीटना शुरू कर दिया. इसी स्थान से सोलह सत्रह कदमो की दूरी पर यातायात पुलिस की पिकेट है. जहॉ मौजूद सिपाही व एएसआई मौके पर  पहुँचे तो बाईक वाले सज्जन ने अपना परिचय आईजी आफिस के सिपाही के रूप मे दिया बस वे लोग पीछे हट गये. मार खाता व अपनी कई पुस्तो के साथ अपनी मॉ बहन बेटी के बारे ने अशोभनीय संबोधन सुनता हुआ यह नही समझ पा रहा था कि आखिर उसने गलती कहॉ व क्या की? धीरे धीरे भीड़ जुटने लगी. लोग बाग सहित पिकेट के पुलिस वाले आईजी साहब के सिपाही जी को समझाते रहे पर सिपाही जी का गुस्सा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा था उसने अपने रूतबे का इस्तेमाल करते हुये  पुलिसलाईन से क्रेन मंगवा लिया. सूचना पा कर सीओ कैण्ट भी आये पर लोग बाग यह देख कर हैरान रह गये कि आईजी आफिस के सिपाही के रूतबे के आगे वे भी लाचार नजर आ रहे थे. उन्होने सिपाही को उसके गलती जताने के बजाय उसे समझाना शुरू कर दिया.  सामान्य जन पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा गलत दिशा बिना नंबर की गाड़ी बिना वर्दी वाले सिपाही  के मानमनोव्वल को देख भौचक्का थे. सिपाही ईनोवा को जबर्दस्ती क्रेन से खिंचवा कर पुलिसलाईन ले जाने से नीचे मानने को तैय्यार ही नही था. जब कुछ मीडियाकर्मी व लोग गलत ट्रैक पर  खड़ी बाईक की फोटो लेना शुरू किया तब सिपाही जी वहॉ से खिसक गये. 
     सुबह अखबार मे यह खबर पढ़ कर एक जिम्मेदार शहरी की तरह मैने इस खबर को वाराणसी पुलिस को  ट्वीट किया तो शाम तक उनका रिट्वीट भी आ गया कि प्रकरण की जॉच कर कार्यवाही की जा रही है.
बहरहाल हमे इससे नही मतलब कि उक्त सिपाही के विरूद्घ जॉच कर क्या कार्यवाही हुई. क्योंकि ऐसे जॉचो का हश्र हन् मालूम है. पर कुछ सवाल उठना लाजिम है. क्या अनुशासन को तार तार करने वाले सिपाही के विरूद् अनुशासनात्मक कार्यवाही से पुलिस प्रशासन मे अपने रूतबे व पहुँच के बल पर उच्चाधिकारीयो के अवमानना का परिमार्जन गो सकेगा?
क्या सही दिशा मे चलने वाले ईनोवा ड्राइवर के बेईज्जती व मारपीट के लिये सिपाही के विरूद्घ कोई कानूनी कार्यवाही की जायेगी? सामान्य जन को हेलमेट से लेकर नंबरप्लेट पर गर्द पड़े रहने पर चालान करने वाली पुलिस क्या बिना नंबर वाले बाईक चलाने मे चालान करेगी? वैसे हमे पूरा विश्वास है कि उस वाहन का पंजीकरण, ईश्योरेंस, प्रदूषण, डीएल कुछ भी नही रहा होगा? बावजूद इसके कुछ नही होगा. क्योंकि सारे नियम कानून सामान्य जनता के लिये है न कि रसूख व पहुँच वाले लोगो के लिये.
वैसे भी जहॉ यह घटना हुई वहॉ पर यातायात पिकेट के सिपाही व एएसआई हमेशा मौजूद रहते है. यह वरूणापार का व्यस्ततम चौराहा है एकतरह से शहर का प्रवेशद्वार. सड़क के दोनो पटरियो पर तीन चार बड़े नीजी अस्पताल, तीन चार डिपारिटमेण्टल स्टोर्स, बीसीयों डाक्टर, व मिठाई, बेकरी, मॉस, इलेक्ट्रॉनिक की दुकाने है. जिनके यहॉ खड़े दूपहिया, चारपहिया वाहन आधे सड़क को घेरे रहते हैं. शेष आधी सड़क पर फल वाले, खोमचे वाले,  रजाई गद्दे वाले कब्जा जमाये है. शेष बची सड़क पर आटो स्टैण्ड बना हुआ है. ऐसे मे चौड़ी होने के बावजूद सड़क अतिक्रमण की जद मे फंस कर जाम लगाने को मजबूर है. मजेदार तथ्य यह है कि  इस चौराहे को प्रशासन व पुलिस के उच्चाधिकारीगण संयुक्त रूप से सौन्दर्यीकरण के उद्देश्य से गोंद लिये है. पर सौन्दर्यीकरण तो दूर सड़क से अतिक्रमण से भी मुक्त नही करा सके है. जब प्रॉजल  यादव  यहॉ के डीएम  हुआ करते थे तो उन्होने सड़क को अतिक्रमणमुक्त कराने के साथ डिवाईडर भी बनवाया था जिससे काफी हद तक चीजें नियंत्रण मे हो गयी थी पर अब स्थिति बद से बदतर होने लगे है.
अभी भी हमारे दृष्टि से अगर एक पखवारे तक लगातार बिना किसी भेदभाव के सड़को पर खड़े वाहनो का नियमित चालान होने लगे. अस्पताल, बेकरी, डिपार्टमैंटल स्टोर पर अतिक्रमण के लिये भारी जुरमाना लगाया जाय तो मात्र तीन दिनो मे स्थिति बदल सकती है. ऐसा नही है कि यह केवल भ्रम है वरन इसी शहर मे हम लोगो ने मात्र दो साल पहले प्रॉजल यादव के डीएम कार्यकाल मे हमने यह देखा है. हॉ यह जरूर है कि इस शहर का मिजाज व माहौल अलग है नही तो क्या इसी तरह हनक दिखा कर कोई भी सिपाही सही व्यक्ति पर हाथ उठा देता. और हम इसे चुपचाम सहन कर लें.
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