आज सुबह अखबार मे एक खबर पढ़ा अमूमन रोजमर्रा की खबर. मामला पास का था तो सोचने को मजबूर होना पड़ा, कल भोजूबीर के व्यस्ततम चौराहे पर प्रकाशदीप हास्पिटल के सामने से एक ईनोवा कार जा रही थी, ठीक उसी समय सामने विपरीत दिशा से कचहरी की ओर से नंबरप्लेट की जगह पुलिस लिखी हुई एक बाईक पर आ रहे सज्जन ने अपनी साईड के बजाय डिवाईडर पार कर बिल्कुल दाहिने पटरी मे आये और ईनोवा के बगल से उल्टे निकलने लगे. न चाहते हुये भी ईनोवा से बाईक की हैण्डिल को टच होना ही था, बस सज्जन का पारा चढ़ गया और वे सही दिशा मे चल रही ईनोवा के ड्राइवर को खींच कर बाहर निकाला और पीटना शुरू कर दिया. इसी स्थान से सोलह सत्रह कदमो की दूरी पर यातायात पुलिस की पिकेट है. जहॉ मौजूद सिपाही व एएसआई मौके पर पहुँचे तो बाईक वाले सज्जन ने अपना परिचय आईजी आफिस के सिपाही के रूप मे दिया बस वे लोग पीछे हट गये. मार खाता व अपनी कई पुस्तो के साथ अपनी मॉ बहन बेटी के बारे ने अशोभनीय संबोधन सुनता हुआ यह नही समझ पा रहा था कि आखिर उसने गलती कहॉ व क्या की? धीरे धीरे भीड़ जुटने लगी. लोग बाग सहित पिकेट के पुलिस वाले आईजी साहब के सिपाही जी को समझाते रहे पर सिपाही जी का गुस्सा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा था उसने अपने रूतबे का इस्तेमाल करते हुये पुलिसलाईन से क्रेन मंगवा लिया. सूचना पा कर सीओ कैण्ट भी आये पर लोग बाग यह देख कर हैरान रह गये कि आईजी आफिस के सिपाही के रूतबे के आगे वे भी लाचार नजर आ रहे थे. उन्होने सिपाही को उसके गलती जताने के बजाय उसे समझाना शुरू कर दिया. सामान्य जन पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा गलत दिशा बिना नंबर की गाड़ी बिना वर्दी वाले सिपाही के मानमनोव्वल को देख भौचक्का थे. सिपाही ईनोवा को जबर्दस्ती क्रेन से खिंचवा कर पुलिसलाईन ले जाने से नीचे मानने को तैय्यार ही नही था. जब कुछ मीडियाकर्मी व लोग गलत ट्रैक पर खड़ी बाईक की फोटो लेना शुरू किया तब सिपाही जी वहॉ से खिसक गये.
सुबह अखबार मे यह खबर पढ़ कर एक जिम्मेदार शहरी की तरह मैने इस खबर को वाराणसी पुलिस को ट्वीट किया तो शाम तक उनका रिट्वीट भी आ गया कि प्रकरण की जॉच कर कार्यवाही की जा रही है.
बहरहाल हमे इससे नही मतलब कि उक्त सिपाही के विरूद्घ जॉच कर क्या कार्यवाही हुई. क्योंकि ऐसे जॉचो का हश्र हन् मालूम है. पर कुछ सवाल उठना लाजिम है. क्या अनुशासन को तार तार करने वाले सिपाही के विरूद् अनुशासनात्मक कार्यवाही से पुलिस प्रशासन मे अपने रूतबे व पहुँच के बल पर उच्चाधिकारीयो के अवमानना का परिमार्जन गो सकेगा?
क्या सही दिशा मे चलने वाले ईनोवा ड्राइवर के बेईज्जती व मारपीट के लिये सिपाही के विरूद्घ कोई कानूनी कार्यवाही की जायेगी? सामान्य जन को हेलमेट से लेकर नंबरप्लेट पर गर्द पड़े रहने पर चालान करने वाली पुलिस क्या बिना नंबर वाले बाईक चलाने मे चालान करेगी? वैसे हमे पूरा विश्वास है कि उस वाहन का पंजीकरण, ईश्योरेंस, प्रदूषण, डीएल कुछ भी नही रहा होगा? बावजूद इसके कुछ नही होगा. क्योंकि सारे नियम कानून सामान्य जनता के लिये है न कि रसूख व पहुँच वाले लोगो के लिये.
वैसे भी जहॉ यह घटना हुई वहॉ पर यातायात पिकेट के सिपाही व एएसआई हमेशा मौजूद रहते है. यह वरूणापार का व्यस्ततम चौराहा है एकतरह से शहर का प्रवेशद्वार. सड़क के दोनो पटरियो पर तीन चार बड़े नीजी अस्पताल, तीन चार डिपारिटमेण्टल स्टोर्स, बीसीयों डाक्टर, व मिठाई, बेकरी, मॉस, इलेक्ट्रॉनिक की दुकाने है. जिनके यहॉ खड़े दूपहिया, चारपहिया वाहन आधे सड़क को घेरे रहते हैं. शेष आधी सड़क पर फल वाले, खोमचे वाले, रजाई गद्दे वाले कब्जा जमाये है. शेष बची सड़क पर आटो स्टैण्ड बना हुआ है. ऐसे मे चौड़ी होने के बावजूद सड़क अतिक्रमण की जद मे फंस कर जाम लगाने को मजबूर है. मजेदार तथ्य यह है कि इस चौराहे को प्रशासन व पुलिस के उच्चाधिकारीगण संयुक्त रूप से सौन्दर्यीकरण के उद्देश्य से गोंद लिये है. पर सौन्दर्यीकरण तो दूर सड़क से अतिक्रमण से भी मुक्त नही करा सके है. जब प्रॉजल यादव यहॉ के डीएम हुआ करते थे तो उन्होने सड़क को अतिक्रमणमुक्त कराने के साथ डिवाईडर भी बनवाया था जिससे काफी हद तक चीजें नियंत्रण मे हो गयी थी पर अब स्थिति बद से बदतर होने लगे है.
अभी भी हमारे दृष्टि से अगर एक पखवारे तक लगातार बिना किसी भेदभाव के सड़को पर खड़े वाहनो का नियमित चालान होने लगे. अस्पताल, बेकरी, डिपार्टमैंटल स्टोर पर अतिक्रमण के लिये भारी जुरमाना लगाया जाय तो मात्र तीन दिनो मे स्थिति बदल सकती है. ऐसा नही है कि यह केवल भ्रम है वरन इसी शहर मे हम लोगो ने मात्र दो साल पहले प्रॉजल यादव के डीएम कार्यकाल मे हमने यह देखा है. हॉ यह जरूर है कि इस शहर का मिजाज व माहौल अलग है नही तो क्या इसी तरह हनक दिखा कर कोई भी सिपाही सही व्यक्ति पर हाथ उठा देता. और हम इसे चुपचाम सहन कर लें.
http://chitravansh.blogspot.com
अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
बुधवार, 18 जनवरी 2017
आईजी आफिस के सिपाही की हनक : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 18जनवरी 2016, वुधवार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें