गुरुवार, 1 नवंबर 2018

व्योमवार्ता/ बात मू्र्ति की नही , विरोध के राजनीति की : व्योमेश चित्रवंश की डायरी,31अक्टूबर 2018

व्योमवार्ता/ बात मू्र्ति की नही , विरोध के राजनीति की : व्योमेश चित्रवंश की डायरी,31अक्टूबर 2018

                          जब तक हर आदमी के पेट में अन्न ना हो और हर सड़क बन ना जाए, देश में बन रहे हवाई पट्टियाँ, ख़रीदे जा रहे टैंक और ब्रह्मास्त्र, मिसाइल आदि, न्यूक्लिअर पावर वाले रिएक्टर बनाने में हो रहा खर्च सब बंद कर देना चाहिए। आईआईटी आदि में सारा फ़ंड बंद कर देना चाहिए क्योंकि लोग आत्महत्या कर रहे हैं।
ताजमहल देखने क्यों जाते हो? ताजमहल क्या शाहजहाँ के बाप के पैसे से बना था? उसके रखरखाव में कितना पैसा लगता है हर साल मालूम है? गूगल पर जाकर सर्च कर लो। हम रॉकेट से मंगलयान क्यों छोड़ रहे हैं? वो साईंस है। तो क्या उससे भूखमरी मिट रही है? ग़रीब तो तब भी मर ही रहे हैं देश में!
दीवार घड़ी की भी अपनी जगह है, हाथ घड़ी की भी, और मोबाइल फोन की भी। याद कीजिए कितनी बार आप महात्मा गाँधी पथ पर चलते हुए उनके योगदान याद कर पाए? याद कीजिए कि कोई IGIMS पटना में जाता है तो क्या वो इंदिरा गाँधी की जीवनी याद करता है? सोचिए कि इंदिरा गाँधी हवाई अड्डे पर जाकर आप कितनी बार उनके योगदान के बारे में सोचते हैं?
                  लेकिन जब आप किसी व्यक्ति को समर्पित जगह पर जाते हैं, जिसका उद्देश्य ही उनके योगदानों को याद दिलाना हो, तो आप उसके बारे में जानेंगे। आपको ज़रूरत नहीं होगी कि आप ज़बरदस्ती याद करें।
       शिवाजी की मूर्ति, ताजमहल, कोणार्क का सूर्य मंदिर, अजंता की गुफाएँ, अंबेदकर की संविधान हाथ में ली हुई मूर्ति, गाँधी के नाम की सड़कें, स्टेडियम आदि सिर्फ मूर्तियाँ और खंडहर नहीं हैं। ख़ुद से पूछो कि शिवाजी के बारे में कितनी लाइन लिख सकते हो बिना विकिपीडिया पढ़े, पता चल जाएगा।
किसी भी समाज को कुचलने और ख़ुद पर अविश्वास करने की स्थिति में लाने की सबसे पहली तरकीब होती है उसके इतिहास को नष्ट कर देना। उसकी भाषाओं को निगल जाना। उसके भूतकाल को अपने हिसाब से अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना। इसीलिए अमेरिका और यूरोप का हर बच्चा अपना इतिहास बख़ूबी जानता है। लेकिन तुम बोर्ड में नंबर लाने के लिए एक गलत इतिहास पढ़ते रहे, कभी बड़े होकर उससे इतर ना पढ़ा, ना सोचा।
इसीलिए तुम्हें हर अंग्रेज़ ज्ञानी दिखता है, हर मुग़ल शासक तुम्हारे देश की स्थिति सुधारता नज़र आता है, हर बर्बर लुटेरे में तुम्हें एक 'सुशासन' लाने वाला नेता दिखाया जाता है। तुम्हें कहा जाता है कि वो लुटेरे थे, शोषण थे लेकिन तुम्हें अंग्रेज़ी दे दिया, तुम्हें रेल की पटरियाँ दे दीं, तुम्हें ताजमहल दे दिया। तो क्या ताजमहल अपने पिछवाड़े में डाल लें? पटरी क्या हमारे लिए बनाई गई थी या फिर हमारा सामान लूटकर ले जाने के लिए?
शिवाजी कौन था? पेशवा बाजीराव कौन था? सरदार पटेल कौन थे? कुँवरसिंह कौन थे? लक्ष्मीबाई कौन थी? कित्तूर की रानी चेनम्मा कौन थी? बंदूक़ें बोने वाला भगत सिंह कौन था? अंग्रेज़ी हुकूमत के ताबूत में कील ठोंकने वाला लाला लाजपत राय कौन था? ख़ुद से पूछो कि इनके बारे में कितनी लाइन लिख सकते हो पता चल जाएगा।
इन सब की विशाल मूर्तियाँ लगानी ज़रूरी है क्योंकि ये हमारे सड़कों और विद्यालयों से ज्यादा ज़रूरी हैं। ये हमारी शिक्षा का एक हिस्सा है। ये तब और भी ज़रूरी है जब एक शिक्षण संस्थान में आतंकवादियों के अरमानों को पूरा करने की कसम खाई जाती है और देश के टुकड़े करने की आवाज उठाई जाती है। ये बताना ज़रूरी है कि हमारा इतिहास क्या था ताकि हम भविष्य की ओर देख सकें।
ये किसी आतंकी अफ़ज़ल की तस्वीर नहीं है, ना ही बुरहान या याकूब का जनाजा है जिसमें टोपियाँ पहने मुसलमानों का हुजूम तुम्हें दिखता है। वो टोपियाँ भी एक स्मारक हैं जो तुम्हें याद दिलाते हैं कि हज़ारों लोगों के लिए मुसलमान नाम कितना ज़रूरी है भले ही उसने इसी देश के ख़िलाफ़ साज़िश रची और सैकड़ों लोगों को मारा।
वो एक मूर्ति नहीं है, वो एक गौरवशाली इतिहास का एक पन्ना है जिसे पढ़ना ज़रूरी है। वो उस इतिहास का पन्ना है जिसे तुम्हें पढ़ने से रोका जा रहा है। देश की परिकल्पना सिर्फ ग़रीबी मिटाने से या लंबी इमारतों से नहीं होती। हर देश का एक इतिहास होता है, हर देश के लोगों में विश्वास भरने के लिए, ये कार्य भी ज़रूरी है। ये काम उतना ही ज़रूरी है जितनी तुम्हारी पढ़ाई। इसे बनाने की भी उतनी ही कोशिश होनी चाहिए जितनी भुखमरी मिटाने की।
जिन्हें ये सिर्फ एक पार्क या मूर्ति लग रही हो, वो या तो नासमझ हैं, या बने रहना चाहते हैं। अगर नाम में मोहम्मद लगा होता तो शायद देश की भुखमरी ग़ायब हो जाती। नाम अगर अकबर होता तो कुपोषण और ग़रीबी की बात कोई नहीं करता। नाम अगर टीपू सुल्तान होता तो मूर्ति की ऊँचाई बढ़ाने के लिए लोग चंदा दे रहे होते। लेकिन क्या कीजिएगा नाम है शिवाजी जिसने मुग़लों के अंदर बाँस डालने का काम किया था। नाम है पटेल का जो नेहरू से कई गुणा क़द्दावर नेता थे। दर्द तो होगा ही कुछ लोगों को। और दर्द होगा तो ग़रीब याद आएँगे। क्योंकि ग़रीब बस अलग-अलग समय पर याद ही आने के लिए हैं।
हर सरकारी डिपार्टमेंट, मंत्रालय और मंत्रियों द्वारा हर अख़बार में इंदिरा, राजीव, और नेहरू के जन्म और मरण की, हर साल दो बार, याद दिलाते विज्ञापणों का खर्चा याद है? याद है एक अख़बार के 32 में से सोलह पन्ने पूरे या आधे इनके चेहरों से भरे होते थे?
जहाँ गाँधीजी पाकिस्तान को आर्थिक सहायता दिलवाने के लिए अनशन पर बैठे थे, वहीं पटेल हैदराबाद के निज़ामों की निज़ामत निकाल रहे थे। लेकिन सरकारों ने कभी भी अपनी ही पार्टी के इस क़द्दावर नेता को आगे नहीं आने दिया।
उसके नाम 586 रियासतों के एकीकरण की एक लाइन इतिहास में दर्ज करा दी गई और फिर 'लौहपुरुष' कहकर भुला दिया गया क्योंकि नेहरू के, इंदिरा के, राजीव के आइकॉनिफिकेशन के लिए गाँधी और पटेल का नीचे जाना ज़रूरी था। लेकिन गाँधी को नीचे करना असंभव था, तो उनके नाम पर सड़कें, स्टेडियम और 'राष्ट्रपिता' लिखने के बाद, बाकी की हर सड़क, स्टेडियम, एयरपोर्ट, स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल, बस अड्डे नेहरू, इंदिरा, राजीव और राहुल तक के नाम हो गए।
ग़रीबों के नाम लाखों करोड़ों रुपए की योजनाएँ हैं। उनको इस सरकार ने नकारा नहीं है। आयुष्मान भारत, स्वच्छता अभियान, फ़ूड सिक्योरिटी, मनरेगा, उज्जवला, विद्युतीकरण आदि तमाम योजनाएँ सिर्फ और सिर्फ ग़रीबों और वंचितों के लिए ही है। बाकी की सारी योजनाओं में भी वो हैं, लेकिन अधिकतर के केन्द्र में वही हैं। हर तरह की सब्सिडी, छूट, और योजनाएँ उनके लिए हैं।
इसलिए बाकी के कामों पर, जो समाज और राष्ट्र की जागृति के लिए, संस्कृति के लिए आवश्यक हैं, वो भी होती रहें तो बेहतर है। वरना जिसने हमें ग़ुलाम बनाया, जिसने हमारी संस्कृति नष्ट की उनके ख़ानदानों के हर सुल्तान के नाम पर दसवीं कक्षा में चैप्टर गढ़े गए हैं। और जो आधुनिक भारत की शान हैं, धरोहर हैं, उनके नाम पर पैराग्राफ़ भर है।
यही कारण है कि ऐसी मूर्तियाँ बहुत ज़रूरी हैं। भुलाए गए हर नायक और नायिकाओं की मूर्तियाँ, उनके नाम पर इतिहास के पन्ने और उनके योगदान की गाथाएँ हर भारतीय को जाननी चाहिए। न कि उनकी जिन्होंने यहाँ रहकर यहाँ की लड़कियों का बलात्कार किया, मंदिरों को बर्बाद किया, पुस्तकालयों में आग लगाए, और गाँवों में सामूहिक नरसंहार किए।
इन्हें भुलाना नहीं है, इनकी करतूतों को याद रखते हुए, सही नायकों की गाथा याद करनी है और गौरवान्वित होना है। अपने छोटे दिमाग़ों से उपजने वाली छोटी और कुतर्की सोच को उसी दिमाग में बंद रखिए, बहुत फायदा होगा।
(बनारस,३१अक्टूबर,२०१८, बुधवार)
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