शहर मे उगे कंक्रीट के अव्यवस्थित जंगलो ने प्राकृतिक पेड़ पौधों को लील लिया है.
बनारस मे वाराणसी विनास ( सही पढ़ रहे है आप) प्राधिकरण व नरक निगम (पुन: सही पढ़ रहे है आप) के कृपा के चलते शहर मे एक तुलसी भी लगाने की जगह नही बची है. तालाब, पोखरों को तो छोड़े नाला, नजूल व सरकारी जमीन को कब्जा करा दिया इन दोन विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों ने. फिर फटाफट मकान नंबर भी एलाट कर बिजली, पानी,रासनकार्ड सब कुछ बनवा दिया, बदले मे लखनऊ दिल्ली गाजियाबाद नोयडा के पासकालोनियो मे अपनीआलीशान कोठी खड़ी कर ली. अनादिकाल से जिन्दा शहर बनारस जीये चाहे मरे, इनके बला से.
अब पर्यावरण दिवस पर प्रचण्ड गर्मी मे 48 डिग्री तापमान पर शहर मे पेड़ लगाने की योजना है, योजना बन गई पर बनारस मे जमीन कहॉ है? कल रात देर तक दो तीन मित्रो से चर्चा होती रही कि गीनिजबुक मे प्लॉटेसन पर अखिलेशी रिकार्ड के तरह इस बार भी मामला हवा हवाई करने की मुकम्मल व्यवस्था कर ली है योगी के अफसरान ने.
चलिये प्लांटेसन के लिये हम जमीन का सुझाव देते है. वरूणा के किनारे दोनो तरफ जो गाद निकाली गई है उस पर सघन वृक्षारोपण किया जाये, गंगा वरूणा, नाद, अस्सी के पेटे को साफ कर उनसे तटबंध बनाये जाये व उन पर वृक्षारोपण हो. अर्दलीबाजार लगायत गोदौलिया लंका, डीएलडब्लू गेट ककरमत्ता होते हुये मंडुआडीह स्टेशन से रथयात्रा तक. लहरतारा से मंडुआडीह बाजार लगायत ककरमत्ता तक और डीएलडब्लू गेट से चितईपुर चौराहा होते हुये अमरा बाईपास तक पेड़ लगाते हुये उसकी जिम्मेदारी पास के दुकानदारो को अर्थदण्ड के साथ सौंपा जाये.
इसी तरह शहर के अनुदानित विद्यालय परिसर मे भी सघन वृक्षारोपण कर के हम शहर के साथ अपना जीवन स्वस्थपूर्ण बना सकते है.
यह सूची समापन नही है, आप अपने सुझाव जोड़ते हुये इस पोस्ट को शेयर व फारवर्ड करे और बनारस शहर के जिम्मेदार नागरिक होने के साथ खुद के व परिजनो के बेहतरी के लिये आगे आयें.
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अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
सोमवार, 5 जून 2017
बनारस के नागरिक होने की हमारी जिम्मेदारी : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 5जून 2017
पर्यावरण दिवस, जो किया जा सकता है: व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 5 जून 2017
क्या सार्वजनिक बसो को समयबद्धऔर पर्याप्त मात्रा मे चला कर प्रदूषण व जाम रोकने की कवायद नही करनी चाहिये?
आज पूरा देश विशेषकर हमारा शहर जाम व प्रदूषण से परेशान है. आम जनता की तकलीफ है कि चारो तरफ जाम रहता है धूल गर्दा धूप से कही जाना मुश्किल हो गया है, प्रशासन की दिक्कत यह है कि शहर की सड़के सँकरी है लोगो को जल्दी है बेतरीब ड्रइविंग है बेहिसाब गाड़ियॉ है कम संसाधन है उपर से बनारसी भौकाल .
ऐसे मे कैसे नियंत्रित व सहज हो शहर की व्यवस्था?
इस बात को लेकर मीटिंग दनादन हो रही है एसी मीटिंग हाल से लेकर चौराहो के कोने अतरे तक.
पर रिजल्ट सब विकास के पैसे की तरह कहॉ जारगा है पता ही नही.
भाई मेरे, कभी इसका सामान्य सा हल सोचा और पालन किया गया होता तो अपने शहर मे ये समस्या ही नही है.
बनारस की जनता को शहर के चारो कोनो से जोड़ने वाली समयबद्ध व सर्वसुलभ नगर बस प्रणाली से बस जोड़ कर उसे नियमित व बाधारहित चलाने की जरूरत है.
मसलन सारनाथ से डीरेका, शिवपुर से लंका. मडुआडीह से मुगलसराय, कचहरी से राजातालाब, बाबतपुर से राजघाट, सामनेघाट से चौकाघाट के रूट पर हर १० से १५ मिनट पर बस चला कर सड़क पर वाहनो की भीड़ काफी कम की जा सकती है. होना तो यह भी चाहिये कि बस रूट पर रिक्सा आटो व प्राईवेट वाहनो को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाये.( विशेष परिस्थिति व रोगी वाहनो को छोड़ कर )
ऐसा नही है कि यह कार्य संभव नही है, बहुतों को याद होगा कि आज से २०-२५ वर्ष पूर्व बनारस मे सिटी बस की यह व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही थी.
सच तो यह है कि हम मे से बहुतेरे जाम प्रदूषण और पार्किंग के झंझट के साथ साथ पेट्रोल खर्च व व्यर्थ समय से बचना चाहते है ऐसे मे हमे सरल सुचारू समयबद्ध सस्ती यातायात बस प्रणाली मिले तो हम क्यो अपने जेब पर पेट्रोल व पार्किंग तथा सिर पर धूप व जाम का टेन्सन झेलेगें ?
शहर के यातायात समस्या पर आपके विचार आमंत्रित है. आइये मिल जुल कर सोशल मीडिया के रास्ते से ही से इसका समाधान खोजा जाय.....
(पिछले साल फेसबुक पर लिखी गई पोस्ट, जो आज भी प्रासंगिक है और कल भी रहेगी)
(बनारस, 5 जून 2017)