सोमवार, 5 जून 2017

बनारस के नागरिक होने की हमारी जिम्मेदारी : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 5जून 2017

शहर मे उगे कंक्रीट के अव्यवस्थित जंगलो ने प्राकृतिक पेड़ पौधों को लील लिया है.
बनारस मे वाराणसी विनास ( सही पढ़ रहे है आप) प्राधिकरण व नरक निगम (पुन: सही पढ़ रहे है आप) के कृपा के चलते शहर मे एक तुलसी भी लगाने की जगह नही बची है. तालाब, पोखरों को तो छोड़े नाला, नजूल व सरकारी जमीन को कब्जा करा दिया इन दोन विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों ने. फिर फटाफट मकान नंबर भी एलाट कर बिजली, पानी,रासनकार्ड सब कुछ बनवा दिया, बदले मे लखनऊ दिल्ली गाजियाबाद नोयडा के पासकालोनियो मे अपनीआलीशान कोठी खड़ी कर ली. अनादिकाल से जिन्दा शहर बनारस  जीये चाहे मरे, इनके बला से.
अब पर्यावरण दिवस पर प्रचण्ड गर्मी मे 48 डिग्री तापमान पर शहर मे पेड़  लगाने की योजना है, योजना बन गई पर बनारस मे जमीन कहॉ है? कल रात देर तक दो तीन मित्रो से चर्चा होती रही कि गीनिजबुक मे प्लॉटेसन पर अखिलेशी रिकार्ड के तरह इस बार भी मामला हवा हवाई करने की मुकम्मल व्यवस्था कर ली है योगी के अफसरान ने.
चलिये प्लांटेसन के लिये हम जमीन का सुझाव देते है. वरूणा के किनारे दोनो तरफ जो गाद निकाली गई है उस पर सघन वृक्षारोपण किया जाये, गंगा वरूणा, नाद, अस्सी के पेटे को साफ कर उनसे तटबंध बनाये जाये व उन पर वृक्षारोपण हो. अर्दलीबाजार लगायत गोदौलिया लंका,  डीएलडब्लू गेट ककरमत्ता होते हुये मंडुआडीह स्टेशन से रथयात्रा तक. लहरतारा से मंडुआडीह बाजार लगायत ककरमत्ता तक और डीएलडब्लू गेट से चितईपुर चौराहा होते हुये अमरा बाईपास तक पेड़ लगाते हुये उसकी जिम्मेदारी पास के दुकानदारो को अर्थदण्ड के साथ सौंपा जाये.
इसी तरह शहर के अनुदानित विद्यालय परिसर मे भी सघन वृक्षारोपण कर के हम शहर के साथ अपना जीवन स्वस्थपूर्ण बना सकते है.
यह सूची समापन नही है, आप अपने सुझाव जोड़ते हुये इस पोस्ट को शेयर व फारवर्ड करे और बनारस शहर के जिम्मेदार नागरिक होने के साथ खुद के व परिजनो के बेहतरी के लिये आगे आयें.
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