व्योमवार्ता/ कर्जमाफी कर्मपरायणता और हमारा नैतिक चरित्र : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 22दिसंबर 2018
सोशल मीडिया पर आज से छ:माह पूर्व पढ़ी जापान की एक घटना याद आ रही थी। यह 20 जून 2018 की घटना है । टोक्यो (जापान) में एक प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी लंच से महज 3 मिनट पहले अपनी डेस्क से उठ जाता है।
दोपहर को 1 बजे उस कंपनी में लंच ब्रेक होता था और वो कर्मचारी 12.57 बजे अपनी डेस्क से उठ जाता है जिस पर उस कंपनी के सीनियर अधिकारियों नें शाम को छुटी के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और बाकायदा नेशनल Tv चेनल पर देश के सामने झुक कर माफी मांगी कि उसकी कंपनी के एक कर्मचारी की वजह से राष्ट्र का नुकसान हुआ है....!!
यह कदाचार हुआ है हम राष्ट्र के हुए इस नुकसान के लिए क्षमा मांगते है और राष्ट्र के नुकसान की भरपाई के लिए 3 मिनट के बदले उस कर्मचारी की एक दिन की तनख्वाह में से आधे दिन की तनख्वाह काट कर भरपाई करेंगे।
मै यह सोच रहा था कि यह वही जापान देश और ये उसी जापान देश की देशभक्त जनता है जो दो-दो परमाणु हमले झेल कर तबाह हो चुका है। यह वही जापान जो 2011 की सुनामी से बुरी तरह प्रभावित हो चुका है और इन सब के बावजूद फिर से उठ खड़ा हुआ और अनुमानतः आज विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में खुद को स्थापित कर चुका है।
इस सब के बावजूद जापान दुनियां का 7 वां सबसे ताकतवर देश है!! जापान की इस ताकत के पीछे वहां की सरकार से ज्यादा जापान की राष्ट्रभक्त जनता है, वहीं दूसरी ओर हम है जो आज अपने व्यकिक्तिगत करिजे को माफ करने के लिये सरकार और पार्टसीियों का मुँह ताक रहे हैं। जापान मे तीन मिनट पहले ड्यूटी छोड़ने पर कंपनी पूरे देश से सार्वजनिक माफी मॉगते हुये उस तीन मिनट के बदले आधे दिन का पगार काट कर नुकसान का भरपाई करती है। और दूसरी ओर हमारे देश की जनता जो अपने व्यक्तिगत कर्ज़ को माफ करने के लिये सरकार बदल देती है और नई सरकार के अर्थव्यवस्था पर एक लंबा कभी न पटने वाला निरर्थक बोझ डाल देती है। यही अंतर है हमारे कर्मपरायणता जापान की कर्तव्यपरायणता में ।
किसी देश की अर्थव्यवस्था का उसकी ताकत का आधार उसकी जनता और जनता द्वारा दिया जाने वाला टैक्स होता है। जापान में टैक्स दर 55.59 फीसदी है जबकि हमारे देश मे टैक्स की अधिकतम दर 28 % है। #आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 31 अगस्त 2018 तक 5.42 करोड़ लोगों नें टैक्स भरा है इसका मतलब यह है कि इन 5.42 करोड़ टैक्स भरने वाले लोगों के कंधों पर हमारे देश के 130 करोड़ लोगों का भार है।
इन्ही नियमित करदाताओं के कंधों पर हमारी मुफ्तखोरी का भार है, कर्जमाफी का भार है, छात्रवृत्ति का भार है, सब्सिडी का भार है मुफ्त राशन का भार है, मुफ्त चिकित्सा का भार है, सस्ती_यात्रा का भार है, फ्री शिक्षा मुफ्त खाद बीज का भार है।
इन सब के अलावा हमें अगर मुफ्त में बिजली मिल जाए तो सोने पर सुहागा है और नहीं मिलती है तो बिजली चोरी करने का हुनर तो हमारे पास है ही लिहाजा बढ़ रहे बिजली घाटे की भरपाई करने का भार भी 5.42 करोड़ लोगों पर ही है। आज हमें पेट्रोल_डीजल सस्ता चाहिए, अगर दाल 80 से 90 रुपये किलो हो जाए तो हम सरकार गिराने को तैयार हो जाते है।
फिर भी हम गर्व से कहते है कि हम देशभक्त है पर ? है क्या हममें से कोई एक भी जो जापानियों जैसा देशभक्त है? है क्या कोई जिसने 3 मिनट तो छोड़ो 3 दिन अनुपस्थित रहने के बाद देश की जगह अपने सीनियर से भी माफी मांगी हो?
आज वोटों के लिए सरकारें जोर शोर से कर्ज माफी कर रही है माना कि किसान हित में फैसला है पर जिस देश में बच्चों के जन्म से लेकर उनकी शिक्षा, चिकित्सा, और शादी यहां तक कि बूढ़े होने पर पेंशन और मुफ्त तीर्थ तक की सेवाएं मुफ्त में मिलती हो। खाद बीज से लेकर कृषि उपकरणों तक पर सब्सिडी मिलती हो उस देश मे आखिर किसान क्यों मात्र 10 हजार से लेकर 2 लाख तक का कर्ज नहीं चुका सकते??
वो देश जो चावल, गेहूं, फलों, सब्जियों के उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है उस देश में वो कौनसे किसान है जो इतना उत्पादन करते है और उसके बाद भी कर्जदार है?
आज हमें कोई गरीब या दलित कहे तो हमारा खून खौलता है पर सरकार के आगे हमें गरीब, शोषित, दलित, पीड़ित ही रहना है क्योंकि हमें हर चीज मुफ्त में मिलेगी। इन सब के बावजूद हमें अच्छी सड़कें, उन्नत इंफ्रास्ट्रक्चर, मॉडर्न फैसिलिटी सहित तमाम विकास भी चाहिए उसके बाद हम चीन - पाकिस्तान से भी दो-दो हाथ करने की इच्छा भी रखते है।
ये वो देश है जिसमें ऐसे भी उदाहरण है जहां सामान्य वर्ग का आदमी सड़क पर और आरक्षित वर्ग का आदमी महल में सोता है। ये वो देश है जहां गरीबी जाति देख कर आती है।
मै किसी पार्टी, वर्ग या किसी अन्य के खिलाफ नहीं हूं पर जरा सोचिए कि जिस देश में 130 करोड़ में से सिर्फ 5.5 करोड़ लोग ही टैक्स भरते हो और ऊपर से इतनी सब सुविधाएं मुफ्त की हो वो देश कैसे विश्वगुरु बन पाएगा?
कैसा लगता होगा उन मेहनतकश 5.5 करोड़ लोगों को जिनकी मेहनत के बल पर इस देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है ?? अगर यही सब चलता रहा तो हम कभी चीन, अमेरिका, रूस, जापान की बराबरी नहीं कर पाएंगे यहां तक कि बांग्लादेश जैसे देश भी हमसे आगे निकल जाएंगे।
यह मात्र मुफ्तखोरी नहीं है बल्कि हम जिस शाख पर बैठे है उसी शाख को काट रहे है ।फिर बजाते रहना झुनझुना कि किसी समय हमारा देश विश्वगुरु था,सोने की चिड़िया था।
(बनारस, 22 दिसंबर 2018, शनिवार)
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