शनिवार, 4 नवंबर 2017

व्योमवार्ता / अच्छे दिन कब आयेगें???? : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 04 नवंबर 2017

अच्छे दिन कब आयेंगे ?????????? : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 04 नवंबर 2017

          बन्दरों का एक समूह था, जो फलो के बगिचों मे फल तोड़ कर खाया करते थे। माली की मार और डन्डे भी खाते थे, रोज पिटते थे ।
उनका एक सरदार भी था जो सभी बंदरो से ज्यादा समझदार था। एक दिन बन्दरों के कर्मठ और जुझारू सरदार ने सब बन्दरों से विचार-विमर्श कर निश्चय किया कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है कि यदि हम अपना फलों का बगीचा लगा लें तो इतने फल मिलेंगे की हर एक के हिस्से मे 15-15 फल आ सकते है, हमे फल खाने मे कोई रोक टोक भी नहीं होगी और हमारे *अच्छे दिन आ जाएंगे* ।
सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया । जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ।
पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया और सुबह देखा तो फलो के पौधे भी नहीं आये थे ! जिसे देखकर बंदर भड़क गए और सरदार को गरियाने लगे और नारे लगाने लगे, "कहा है हमारे 15-15 फल", *"क्या यही अच्छे दिन है?"*। सरदार ने इनकी मुर्खता पर अपना सिर पिट लिया और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोला, "भाईयो और बहनो, अभी तो हमने बीज बोया है, मुझे थोड़ा समय और दे दो, फल आने मे थोड़ा समय लगता है।" इस बार तो बंदर मान गए।
                       दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया, परन्तु पौधे नहीं आये, अब मुर्ख बन्दरों से नही रहा गया तो उन्होंने मिट्टी हटाई - देखा फलो के बीज जैसे के तैसे मिले ।
                          बन्दरों ने कहा - सरदार फेकु है, झूठ बोलते हैं । हमारे कभी अच्छे दिन नही आने वाले । हमारी किस्मत में तो माली के डन्डे ही लिखे हैं और बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर फलो के बीज निकाल निकाल कर फेंक दिये । पुन: अपने भोजन के लिये माली की मार और डन्डे खाने लगे ।
(बनारस, 04 नवंबर 2017, शनिवार)
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रविवार, 29 अक्टूबर 2017

व्योमवार्ता : व्योमेश चित्रवंश की डायरी के पुराने पन्ने

  दो वर्ष पूर्व 29 अक्टूबर  2015 को लिखी व फेसबुक  पर पोस्ट की व्यंग्य रचना

प्रधानमंत्री  जी के नाम भैंस का खुला खत

प्रधानमंत्री जी,
सबसे पहले तो मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं ना आज़म खां की भैंस हूं और ना लालू यादव की!
ना मैं कभी रामपुर गयी ना पटना! मेरा उनकी भैंसों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।
यह सब मैं इसलिये बता रही हूं कि कहीं आप मुझे विरोधी पक्ष की भैंस ना समझे लें।
मैं तो भारत के करोड़ों इंसानों की तरह आपकी बहुत बड़ी फ़ैन हूं।
जब आपकी सरकार बनी तो जानवरों में सबसे ज़्यादा ख़ुशी हम भैंसों को ही हुई थी।
हमें लगा कि ‘अच्छे दिन’ सबसे पहले हमारे ही आयेंगे।लेकिन हुआ एकदम उल्टा! आपके राज में तो हमारी और भी दुर्दशा हो गयी।
अब तो जिसे देखो वही गाय की तारीफ़ करने में लगा हुआ है। कोई उसे माता बता रहा है तो कोई बहन! अगर गाय माता है तो हम भी तो आपकी चाची, ताई, मौसी, बुआ कुछ लगती ही होंगी!
हम सब समझती हैं। हम अभागनों का रंग काला है ना! इसीलिये आप इंसान लोग हमेशा हमें ज़लील करते रहते हो और गाय को सर पे चढ़ाते रहते हो!
आप किस-किस तरह से हम भैंसों का अपमान करते हो, उसकी मिसाल देखिये।
आपका काम बिगड़ता है अपनी ग़लती से और टारगेट करते हो हमें कि
देखो गयी भैंस पानी में
गाय को क्यूं नहीं भेजते पानी में! वो महारानी क्या पानी में गल जायेगी?
आप लोगों में जितने भी लालू लल्लू हैं, उन सबको भी हमेशा हमारे नाम पर ही गाली दी जाती है
काला अक्षर भैंस बराबर
माना कि हम अनपढ़ हैं, लेकिन गाय ने क्या पीएचडी की हुई है?
जब आपमें से कोई किसी की बात नहीं सुनता, तब भी हमेशा यही बोलते हो कि
भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फ़ायदा!
आपसे कोई कह के मर गया था कि हमारे आगे बीन बजाओ? बजा लो अपनी उसी प्यारी गाय के आगे!
अगर आपकी कोई औरत फैलकर बेडौल हो जाये तो उसे भी हमेशा हमसे ही कंपेयर करोगे कि
भैंस की तरह मोटी हो गयी हो
करीना; कैटरीना गाय और डॉली बिंद्रा भैंस! वाह जी वाह!
गाली-गलौच करो आप और नाम बदनाम करो हमारा कि
भैंस पूंछ उठायेगी तो गोबर ही करेगी
हम गोबर करती हैं तो गाय क्या हलवा करती है?
अपनी चहेती गाय की मिसाल आप सिर्फ़ तब देते हो, जब आपको किसी की तारीफ़ करनी होती है-
वो तो बेचारा गाय की तरह सीधा है, या- अजी, वो तो राम जी की गाय है!
तो गाय तो हो गयी राम जी की और हम हो गये लालू जी के!
वाह रे इंसान! ये हाल तो तब है, जब आप में से ज़्यादातर लोग हम भैंसों का दूध पीकर ही सांड बने घूम रहे हैं।
उस दूध का क़र्ज़ चुकाना तो दूर, उल्टे हमें बेइज़्ज़त करते हैं! आपकी चहेती गायों की संख्या तो हमारे मुक़ाबले कुछ भी नहीं हैं। फिर भी, मेजोरिटी में होते हुए भी हमारे साथ ऐसा सलूक हो रहा है!
प्रधानमंत्री जी, आप तो मेजोरिटी के हिमायती हो, फिर हमारे साथ ऐसा अन्याय क्यूं होने दे रहे हो?
प्लीज़ कुछ करो!
आपके ‘कुछ’ करने के इंतज़ार में – 
     आपकी एक तुच्छ प्रशंसक!
(बनारस, 29अक्टूबर 2015)
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