एक अप्रसंगिक कहानी
गली मे एक परकटी पतंग के लिये दो बच्चे काफिर व सज्जन आपस मेे लड़ रहे थे, सज्जन का तर्क था कि पतंग मेरी है पर काफिर का मानना था कि अब सज्जन यहॉ नही रहता तो पतंग उसकी क्यो होगी? काफिर जो शकल व अकल से ही काईयॉ दिख रहा था एकाएक भाग कर गली के मोड़ पर अपने घर मे घुस गया और छत पर चढ़ के तीन चार ईंटे सज्जन पर चला दिया। सज्जन को काफी चोटें आई उसका सिर फट गया वह भाग कर बचने को पेड़ के पीछे छिप गया। वह भी काफिर को सबक सिखाना चाहता था पर उसे मौका नही मिल रहा था। एकाएक उसे अपने कमर मे खोंसे गुलेल की याद आई। बस फिर क्या था उसने पेड़ की आड़ से मौका पाते ही छत पर से झॉक रहे काफिर पर निसाना साधा और गुलेल की कंकड़ी सीधे काफिर के बॉयी ऑख से जरा सी नीचे लगी। काफिर के समझ मे आ गया कि चोट क्या होती है?
पर यह क्या ? काफिर के बुक्का फोड़ कर रोते ही उसके घर वाले आ के सज्जन को बुरा भला कहने लगे। उनके पक्ष मे कुछ सेकूलर मीडिया चैनल भी आ गये। और तो और दूसरे गॉव मोहल्ले के लोग जिन्होने कभी ये गली देखी भी नही थी, न ही उन्हे झगड़े का कारण पता था वे भी काफिर के लिये अपना माथा पीटने लगे, उनके साथ की महिलाये अपना सिंधूर पोछ पोछ के सज्जन के गुलेल पर सवाल उठाते हुये अपना विधवा प्रलाप करने लगी। दूसरे गॉव के सरपंच ने सवाल उठाया कि इस गॉव व गली मे गुलेल जैसे खतरनाक खिलौने बिल्कुल प्रतिबंधित होने चाहिये। बेचारा सज्जन सोच रहा था कि अगर उसके मॉ बाप को काफिर के खानदान के लोगो ने यह गली छोड़ने को मजबूर नही किया होता तो आज उसके तरफ से भी को ई बोलने वाला होता। वह इन सभी शकलो को पहचान रहा था, इनमे से तब कोई भी सज्जन के परिवार के बेदखली पर बोल नही रहा था। तब इन सेकूलर चैनलो व रांडपन व विधवा प्रलाप कर रही महिलाओ व अपने को गमजदा दिखा रहे मानवाधिकार वादी भी नही दिखे थे।
बहरहाल बात बच्चो के गाली से शुरू हुई गली से निकलते हुये अदालत तक जा पहुँची। फिर मानवाधिकारवादियों ने सज्जन के गुलेल जैसे खतरनाक हथियार को गॉव की उस गली मे प्रतिबँधित करने हेतु सबसे बड़े अदालत मे सवाल उठाय। अर्जी डाली।
सबसे बड़ी अदालत ने फैसला दिया कि भले सज्जन काफिर के फेके गये ईंट पत्थर से मर गया होता पर उसे गुलेल जैसे खतरनाक खिलौने से काफिर की बॉयी ऑख पर निसाना बिलकुल नही साधना चाहिये , उसे इस सेकूलर देश की न्याय व्यवस्था मानवाधिकार के हित मे ऐसे किसी किस्म के खिलौने से खेलने की अनुमति नही दी जा सकती।
नन्हा सज्जन बेचारा हैरान परेशान है उसका गुलेल छीन लिया गया है। उसे नही मालूम कि मानवाधिकार क्या है, सेकूलरिज्म क्या है? काफिर को जरा सा चोट लगते ही दूसरी गली मोहल्ले मे रहने वाले सच से अनजाने लोग क्यो कुकुर की तरह भौ भौ और सियार की तरह हुऑ हुऑ क्यो करने लगते है? और देश की अदालत कभी उसके बारे मे क्यो नही सोचती बल्कि सियारो की हुऑ हुऑ सुन मरते हुये लाशो पर गिद्घ की तरह मडराते हुये केवल सड़ॉध ही क्यो सूँघ पाते है।
कहानी अब बदल रही है, सज्जन भी अब इसके पीछे की राजनीति समझने लगा है क्योकि जंगल के पार से कहीं कोने मे बसे सताये लोगो की मिली जुली आवाजे उसे सुनाई पड़ने लगी है। सज्जन को भरोसा हो रहा है कि अब इन नासपीटे कुकुरो के सेकूलरी भौभौ व मानवाधिकारनवादी विधवा प्रलाप कर रहे सियारो के हुऑ हुऑ से उसकी आवाज देर तक नही दबाई जा सकती भले ही फारेन फंडो पर पलने वाले चारित्रिक भ्रष्ट मीडिया वाले इस सियापे मे ऱूदाली क्रंदन करते रहें।
- व्योमेश चित्रवंश, 28 अगस्त 2016