व्योमवार्ता / "ये शहर बनारस तेरे हवाओं के बगैर ये सांसे अधूरी है।"
घाटो और मंदिरो के शहर के नाम से प्रसिद्ध काशी की सुबह जंहा काकी के कचौड़ी जलेबी के भोग से शुरू होती है तो, दूसरी तरफ चाय के टपरी पर बकैती से और बाकी दिन भर तो कोने-खोपचे में अपने श्रद्धा अनुसार लोग चिलम के धुआँ में उतराते रहते है,
वहीं शाम होते ही लंका यादव, ख़ादिम और बीबीसी विधान सभा जिसकी प्रतिनिधित्व की बागडोर हमारे युवा लौंडो के हाँथ में उनकी कैंपेनिंग शुरू हो जाती है, पर ये कैंपेनिंग न वोट मांगने के लिये होती है न चुनाव जीतने के लिये, ई तो कन्या के साथ नैन मटक्के के लिये होती है और हो भी क्यों न रंडूओ की संख्या में इजाफा जो दिन प्रतिदिन होती जा रही है,
पर भईया इन्हीं जमघट के बीच और बनारस एक ऐसी जगह जंहा प्रवेश द्वार तो है पर निकास द्वार नही है, क्यों कि काशी में रहने की लत ऐसी है जो कि चरस से भी बुरी है चाह कर भी कोई दूर नही हो सकता है और अगर जो दूर होता है तो ऐसे तड़पता है जैसे बिन पानी के मछली
कुछ खास बात इस शहर की
प्रवेश द्वार पर बौद्ध स्थल सारनाथ तो दूसरी तरफ शिक्षा की राजधानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वंही भारत का दूसरा संसद अस्सी घाट जंहा का एक-एक बच्चा से लेके बुढ़वा तक कैबिनेट मंत्रिमण्डल का पदाधिकारी और सांसद होता है, जिसको कुछ बोलने से पहले ना सोचना होता है न बोलने के बाद माफ़ी माँगना होता है सब अपने में गुरु है, कौनो चेला नही
और भोसड़ी के सबका अपने में एक से बढ़ के एक भौकाल रहता है, मोदी चा भी आ जाये तो चूरन हो जायेंगे भौकाल से,
वंही दूसरी तरफ कैंट स्टेशन से 6 किलोमीटर की दुरी पर है अपना राजघाट पुल जंहा की बात और रौनक ही कुछ और ही है, रात में मानो ऐसा लगता है की चांदनी के साथ आसमां जमीन से अठखेलियां कर रहा हो, वंही किष्णमूर्ति संस्था का स्कूल चार चाँद लगाता है
तो वसंता कालेज की लड़कियों का कॉलेज से निकलता हुआ झुंड और उनकी खिलखिलाती हुई मुस्कान फिजा में एक अलग तरह की हवा बिखेर देती है, जिसमे नशा का पैमाना बिना एल्कोहल के चरम सिमा पे पंहुचा रहता है,
अगर शराबी देखे तो उतर जाये और होश वाला देखे तो चढ़ जाये, मोड़ पे गोल गप्पे वाले चच्चा का गोल गप्पा तो जैसे बिन सीजन के आम वाली फिलिंग देते है, न खाओ तो निमोनिया हो जाये और दू गो खा लो तो जैसे लगता है, पेट का गुब्बाड़ा बन गया हो और उधर से गुजरते हुये लड़को की बटेर की तरह टुकुर टुकुर लड़कियों को देखना,
सीआईडी के एसीपी प्रद्युमन के तरह आंख गड़ाये हो, ओहि जगह है लाल खाँ का रौजा अब तो ऐतिहासिक धरोहर कम युगलों के चोंच लड़ऊल का ठीहा ज्यादा बन गया है
राजघाट पुल पे फिल्माया उ गाना एक दम उसके लिए फिट बैठता है की "तू किसी रेल से गुजरती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ"
वंही पुल को देख भोसड़ी के कुन्दनवा का परेम और उसकी फटफटिया, तो फैजल खाँ और उसका चिलम रह रह के याद आते है!
"ये शहर बनारस तेरे हवाओं के बगैर ये सांसे अधूरी है"।"
स्रोत; सोशल मीडिया
(प्रयागराज, 8जून 2019)
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