गुरुवार, 30 मई 2024

महावीर स्वामी

#भगवान_महावीर_स्वामी
सत्य अहिंसा के प्रेरणास्तंभ भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवै तीर्थकर के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें महावीर वर्द्धमान भी कहते है। तीर्थकर का अर्थ सर्वोच्च उपदेशक होता है जो समाज को अपने उपदेशों एवं जीवन चरित्र व कार्यों के माध्यम से एक सही दिशा दिखाये। महावीर स्वामी का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में 540 ईसा पूर्व में कुण्डग्राम वैशाली में हुआ था । तत्कालीन महाजनपद वैशाली वर्तमान बिहार प्रदेश में स्थित था। उनकी माता का नाम प्रियकारणी त्रिशला व पिता का नाम सिद्धार्थ था। मान्यताओं के अनुसार महावीर के माता पिता तेइसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ जी के अनुयायी थे। जब महावीर का जन्म होने वाला था उसके पूर्व से ही इंद्र ने यह जानकर कि प्रियकारिणी त्रिशला के गर्भ से महान आत्मा का जन्म होने वाला है, प्रियकारिणी त्रिशला की सेवा के लिये षटकुमारी देवियों को भेजा। रानी त्रिशला ने स्वप्न में ऐरावत हाथी और अनेकों शुभ चिन्ह देखे जिससे यह अनुमान लगाया कि नये तीर्थकर इस पावन धरा पर पुनर्जन्म लेने वाले है। चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन वर्द्धमान का जन्म हुआ। महावीर के जन्म वर्ष में कृषि व्यापार, उद्योग में जबदस्त लाभ हुआ। लोगों को आत्मिक, भौतिक व शारीरिक सुख शान्ति का अनुभव हुआ। इस लिये उनके जन्म पर पूरे राज्य में उत्सव मनाये गये और बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया गया। कुलगुरु सोधमेन्द्र ने उनका नाम नगर में उत्साह व वृद्धि को ध्यान में रख कर 'वर्द्धमान' रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने उन्हें 'सन्मति' कह कर पुकारा। संगमदेव ने उनके अपरिमित साहस की परीक्षा ले कर 'महावीर नाम से अभिहित किया।
बचपन से ही महावीर सांसारिक क्रिया कलापों के बजाय आध्यात्मिक एवं आत्मिक शांति, ध्यान जैसे कार्यों में अधिक समय बीताते थे। तीस वर्ष की आयु में उन्होंने अपने परिजनों से अनुमति ले कर सभी सांसारिक सम्पतियों, सुख सुविधाओं को त्याग दिया  और आध्यात्मिक जागृति की खोज में घर छोड़ कर तपस्या करने लगे। साढ़े बारह वर्षों तक गहन ध्यान और कठोर तपस्या के पश्चात उन्हें सर्वज्ञता की प्राप्ति हुई। सर्वग्यता का अर्थ शुद्ध एवं केवल ज्ञान होने से इसे कैवल्यता प्राप्ति भी कहते हैं। कैवल्य प्राप्ति के पश्चात 'वर्द्धमान' जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर के रूप में जाने जाने लगे और 'महावीर जैन' के रूप में प्रतिष्ठित हुये। महावीर जैन का अर्थ है वह महावीर जिसने स्वयं हो जान लिया और सर्वस्व को जीत लिया। इसके पश्वात महावीर समाज में अहिंसा सत्य अपरिग्रह की शिक्षा देने लगे। महावीर ने सिखाया कि अहिंसा, सत्य, अस्तेय अर्थात चोरी न करना, ब्रह्‌मचर्य अर्थात शुद्धता एवं अपरिग्रह अर्थात किसी से लगाव व मोह का न होना आध्यात्मिक मुक्ति के लिये आवश्यक है। उन्होंने अनेकांतवाद अर्थात बहुपक्षीय वास्तविकता के सिद्धान्तों की शिक्षा दी। महावीर की शिक्षाओं को उनके प्रमुख शिष्य इंद्रभूति गौतम ने जैन आगम के रूप में संकलित किया था। माना जाता है कि जैन भिक्षुओं द्वारा मौखिक रूप से संप्रेषित ये ग्रंथ ईषा की पहली शताब्दी तक आते आते काफी हद तक विलुप्त हो गये।
महावीर ने जीवन चर्चा के लिये सर्वजन हेतु एक आचार संहिता बनाई जिसमें किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना, किसी भी वस्तु को किसी के दिये बिना स्वीकार न करना, मिथ्या भाषण अर्थात झूठ नहीं बोलना आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, मात्र शारीरिक आवरण के वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना प्रमुख है।
जैन ग्रंथों एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं है। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवे तीर्थकर है जिन्होंने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बना कर भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। महावीर ने धर्म के क्षेत्र में मंगल क्रांति संपन्न करते हुये उद्‌घोष किया कि आँख मूंद कर किसी का अनुकरण या अनुशरण मत करो। धर्म दिखावा नहीं है, धर्म रूढ़ि नहीं है, धर्म प्रद‌र्शन नहीं है एवं धर्म किसी के प्रति घृणा एवं द्वेषभाव भी नहीं है। महावीर ने धर्म को कर्म काण्डों, अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाल धर्मो के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाया। महावीर ने घोषणा किया कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जिसमें आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। साधना की सिद्धि परम- शक्ति का अवतार बन कर जन्म लेने में अथवा साधना के बाद परमात्मा में विलीन होने में नहीं है बाल्के वह तो बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में है।
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार तपश्या को अवधि पूर्ण कर कैवल्य प्राप्ति के पश्चात लगभग तीस वर्षों तक महावीर धर्म का प्रचार करते रहे और उनका निर्वाण 527 ईषा पूर्व नालन्दा जिले के पावापुरी में हुआ।
महावीर स्वामी के अनेक नाम है जिनमें अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, महावीर, अतिवीर प्रमुख है। मान्यता है कि 'जिन' नाम से ही उनके अनुयायियों ने धर्म का नाम जैन धर्म रखा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मो की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह को साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ समान भाव रखते थे और किसी को भूल कर भी कोई दुख नहीं देना चाहते थे। भगवान महावीर के अनुयायी उनके नाम का स्मरण श्रद्धा और भक्ति से लेते हैं। उनका यह मानना है कि महावीर स्वामी ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश दिया अपित मुक्ति की सरल व सच्ची राह भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। पूरे भारत में  भगवान महावीर के उपदेशों का पालन करते हुये श्रद्धापूर्वक उनका जन्मदिन महावीर जयंती के रूप में मनाता है।
(दिगंबर जैन मंदिर धर्मशाला मे महावीर जयंती पर उद्बोधन,जिसका प्रसारण #आकाशवाणी वाराणसी द्वारा दिनांक 21अप्रैल 2024 को सायं 5 बजे हुआ।)

व्योमवार्ता/ बोयेगें पेड़ कैक्टस का....../व्योमेश चित्रवंश की डायरी 30मई2024

   
                    अभी अभी सुबह के टहलाव (मार्निंग वाक) से वापस आया हूं। आज तीन चक्कर के बजाय दो ही चक्कर पूरा कर के इस दैनिक कार्यक्रम का इतिश्री कर लिया। कारण आज बहुत गर्मी है। सुबह के छ:बजे ही तापमान 36डिग्री  और फीलिंग लाईक 38 दिखा रहा है। आज हमारे बनारस का चुनावी तापमान भी अपने चरम है। लोकसभा चुनाव का आज आखिरी प्रचार दिवस है। यू पी कालेज जहां हम सुबह के टहलाव पर जाते है वहीं से दो विधानसभा क्षेत्र के लिये पोलिंग पार्टियों की रवानगी होने से प्रशासन ने खेल के मैदान को अपने कब्जे मे ले लिया है लिहाजा मैदान के अंदर टहलने और खेलने वालों की भीड़ भी हमारे पैदल परिक्रमा पथ पर ही आ कर उसे ओवरक्राउडेड बना दी है। गर्मियों की छुट्टियां होने से और मायके विजिट के इस महीने मे वैसे भी मायके आये और साल भर के बोरिंग बिजी रूटीन से निजात पायी विवाहित महिलाओं और बच्चों के उत्साह से भी कालेज की सुबह शाम कुछ ज्यादा चहल पहल वाली हो जाती है। बहरहाल मै चर्चा गर्मी की कर रहा था पिछले वर्षों से तापमान का मिजाज लगातार बढ़ता जा रहा है। बनारस मे आ रहे यात्रियों की तरह। गणित के अनुमान से कहे तो प्रतिवर्ष लगभग 15 से 20 प्रतिशत। यहां के लोकप्रिय सांसद मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शहर के बिजली व्यवस्था मे अभूतपूर्व परिवर्तन आया। जहां बनारस 8से12 घंटे बिजली पा कर अपने दैनिक जीवन को समायोजित करने का अभ्यस्त हो चला था वहीं शुरूआती वर्षों मे 24 घंटे बिजली उसके लिये मुंहमांगी नियामत थी। इनवर्टर के बैटरी की बिक्री गिर कर 10-15 प्रतिशत रह गई। लोग बाग महानगरीय जीवन को सच्चे अर्थों मे जीने के अभ्यस्त होने लगे।पुराने नंगे अल्युमुनियम तारों को हटा कर इंसुलेटेड केबुल फैला कर, तो पुराने काले चांद कांटा वाले मीटरों के जगह स्मार्ट मीटरों को लगा कर बिजली चोरी पर लगाम कसा गया तो धीरे धीरे सुबह तड़के उठ कर मौसम के मिजाज परखने वाला मस्त बनारसी भी आरामदायक जीवन जीने का आदी होने लगा। मंहगाई का रोना लेकर जोर जोर से ढपोरसंख बजाने वाले भी शहर मे आये तब्दीली और जेब मे आये गरमी को महसूस करने लगे। कभी काले पंखों का निर्माता शोधकर्ता रहा पूरा शहर अब  पंखे से एसी पर शिफ्ट होने लगा। आज स्थिति यह है कि हर घर मे दो तीन एसी लटक कर घर वालों को ठण्डा तो गली और शहर को गर्म बना रहे हैं। 
बनारस शहर पहले कूंये, पोखरे, बावली, बाग बगीचे के नाते जाना जाता था। बहरी अलंग,गहरेबाजी, अड़ी और गंगापूजैया गलियों व मंदिरों के इस शहर का मौलिक स्वभाव था पर आज बनारस मे हो रहे माईग्रेशन और इंपोर्टेड आबादी शहर का मिजाज बदल रही है। बाग बगीचे खत्म हुये तो उनसे जुड़ा बहरी अलंग खत्म हो गये। गहरेबाजी तो बीसवीं सदी के आंठवे दशक के बाद इतिहास बन कर रह गया। मंदिरों को पर्यटन व व्यवसायिक बनाने व सौन्दर्यीकरण विस्तारीकरण के नाम पर गलियों व स्थानीय छोटे छोटे मंदिरों का जो सत्यानाश हुआ उसने शहर का मिजाज बदल कर रख दिया। सड़को को चौड़ी कर के उनके फुटपाथ व पटरियों को अगलबगल के दुकानदारों को दे कर उन्हे रोजाना कमाई का हिस्सा बना लिया गया । तारकोल,पत्थर के  चौके, सीमेन्टेड ब्रिक्स के डमरू बिछा कर रहे सहे पेड़ों की सांस रोक कर उन्हे आत्महत्या को मजबूर कर दिया गया आज हालात यह है कि बनारस की सड़कों पर चलते हुये पन्ना लाल पार्क के बाद शायद ही आपको कहीं पेड़ की छाया मिल सके। यह कमाल किया शहर के भाग्यनियंता बने जिम्मेदार अधिकारियों ने, जिन्हे न बनारस शहर के मिजाज का पता है न ही यहां भूगोल इतिहास संस्कृति और सामाजिक परिवेश का। शहर मे आने वाले हर सड़क को फोरलेन सिक्सलेन बना दिया गया या बनाया जा रहा है पर उन बढ़ते लेनों के लिये हम शहरवासिंयों ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है वह आज के बढ़ते पारे से समझा जा सकता है। सड़को के किनारे लगे नीम जामुन पीपल गुलमोहर पाकड़ काट कर उनके जगह बोगेनबीलिया और कनेर के पेड़ लगा कर पर्यावरण का समायोजन करेगें तो सूरज को दोष देना बेमानी ही होगा। इधर सात आठ सालों से एक नया फैशन चला है जून के मध्य दूपहरिया मे पेड़ लगाने का विश्वरिकार्ड बनाने का। मुझे लगता है अगर वृक्षारोपड़ का हमारा रिकार्ड वाकई धरातल पर होता तो अब तक पूरा देश घनघोर जंगल मे तब्दील हो गया होता। पर जुलाई के पहले हफ्ते मे मै प्राय: देखता हूं कि वर्ल्डरिकार्ड प्लांटेशन वाले वे सभी गड्ठे, ट्रीगार्ड ,बोर्ड सहित जगहें भी अगले साल वर्ल्डरिकार्ड बनाने के लिये खाली हो चुके होते है। आज तक हम यह नही समझ पाये कि वह कौन सा वानिकी और पर्यावरण विशेषज्ञ है जो बनारस और मैदानी जिलों मे जून के 45डिग्री टेम्परेचर मे प्लांटेशन करवा कर पैसों का पेड़ उगाते हैं?
         आज हर दूसरा व्यक्ति इस बात को लेकर परेशान है कि टेम्परेचर बढ़ रहा है, एसी काम नही कर रहा है,बिजली कट रही है, ट्रांसफार्मर जल रहा है पर कभी खुद से नही पूछता कि इसके लिये उसने व्यक्तिगत तौर पर क्या प्रयास किया है?
आज मेरे आगे आगे टहल रहे दो बुजुर्गवार मे से एक सज्जन दूसरे को बता रहे थे कि गांव के दरवाजे पर लगा चार नीम का पेड़ इस साल बेंच कर एक दो टन का और एसी ड्राइंगरूम मे लगवा लिये. पेड़ बेकार ही पड़े हुये थे. बच्चे तो अब गांव जाने वाले नही, तीस हजार रूपये मिल गये थे। उन पेड़ो के नीचे दिन भर गांव के आवारा लड़के बैठ के तास खेलते थे। दूसरे सज्जन ने उनके निर्णय से सहमति जताते हुये कहा कि सही बात है एसी तो काम आयेगा पेड़ तो बेकार ही पड़े हुये थे। अभी तो एसी का दाम और बढ़ेगा इसलिये अभी खरीद लेना सही रहा। उनकी आपसी बातचीत बढ़ते गर्मी मे बिजली न रहने के लिये सरकार को कोंसने, सूरज के बढ़ते तापमान और व्यवस्था की आलोचना के साथ खत्म हुई। हम दोनो बुजुर्गवार को पहचानते है एक सात आठ साल पहले केन्द्रिय विद्यालय के प्रिंसपल पद से रिटायर हुये है दूसरे बैंक से। मै नीम के पेड़ो की कीमत की तुलना दो टन के एसी से कर रहा हूं। कुल गणितीय गुणाभाग के सही होने के बावजूद हमें नीम के मूल्य एसी से बहुत ज्यादा समझ मे आ रहे हैं। बहरहाल अपना अपना हिसाब  है। पर यह हिसाब आने वाले समय के साथ अभी के लिये कितना भारी पड़ने लगा है यह हम कब समझेगें ? कब तक आम के फल खाने की ईच्छा के बावजूद नागफनी और कैक्टस गमले मे लगा अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान सरकार की आलोचना करते रहेगें?
#व्योमवार्ता
(बनारस,30मई2024,गुरूवार)
#बोयेगें_पेड़_कैक्टस_का.....
http://chitravansh.blogspot.com

सोमवार, 27 मई 2024

व्योमवार्ता/ टूटते हुये बनते परिवार,कौन है जिम्मेदार /व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24मई2024,शनिवार


       रोज कचहरी मे परिवार न्यायालयों के सामने नव विवाहितों व नवयुवतियों की भीड़ देख मन में परिवार संस्था पर प्रश्नचिन्ह उठता है। विवाह जैसे विश्वासी गठबंधन और संस्कार भी समयचक्र मे अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। वैवाहिक कार्यक्रमों मे शौक और दिखावे के लिये पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद साल दो साल कभी कभी महीनों और अब दिनों के अंदर विवाह को तोड़ने के लिये नव वर वधू न्यायालय के शरण मे देखे जा रहे है प्रतिदिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है, इसके कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा। कभी सोचिये तो इसके पीछे महत्वपूर्ण कारण क्या है?
1, माँ बाप की अनावश्यक दखलंदाज़ी।
2, संस्कार विहीन शिक्षा।
3, आपसी तालमेल का अभाव।
4, ज़ुबान।
5, सहनशक्ति की कमी।
6, आधुनिकता का आडम्बर।
7, समाज का भय न होना।
8, घमंड।
9, अपनों से अधिक गैरों की राय।
10, परिवार से कटना।
11.और सबसे ऊपर मोबाईल फोन
मेरे ख्याल से बस यही 11 कारण हैं जो विवाह के अस्तित्व को घर की दहलीज से न्यायालय के देहरी तक ले जाते हैं।
शायद पहले भी तो परिवार होता था और वो भी बड़ा, लेकिन वर्षों आपस में निभती थी, भय भी था प्रेम भी था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।
पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य मे दक्ष है, और अब मेरी बेटी नाज़ो से पली है आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया, तो फिर करेगी क्या शादी के बाद??
शिक्षा के घमँड में आदर सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते। माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं, भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही हो, ऐसे मे वो दो घर खराब करती है।
मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए, परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं, या तो टीवी सीरियल्स या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में ता‌ंक झांक, जितने सदस्य उतने मोबाईल, बस लगे रहो।
बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं, पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता, सब अपने कमरे में, वो भी मोबाईल पर।बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है, कुत्ते बिल्ली के लिये समय है, परिवार के लिये नहीं, सबसे ज्यादा गिरावट तो इन दिनों महिलाओं में आई है।
दिन भर मनोरँजन, मोबाईल, स्कूटी..समय बचे तो बाज़ार और ब्यूटी पार्लर, जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े, भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं। होटल रोज़ नये नये खुल रहे हैं।
जिसमें स्वाद के नाम पर कचरा बिक रहा है, और साथ ही बिक रही है बीमारी और फैल रही है घर में अशांति, क्योंकि घर के शुद्ध खाने में पौष्टिकता तो है ही प्रेम भी है, लेकिन ये सब पिछड़ापन हो गया है।
आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है, बुज़ुर्ग तो हैं ही घर में चौकीदार, पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थी, और अब नृत्य सीखकर। क्यों कि महिला संगीत मे अपनी प्रतिभा जो दिखानी है। जिस की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है।
घूँघट और साड़ी हटना तो ठीक है, लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े?? ये कैसी आधुनिकता है?
बड़े छोटे की शर्म या डर रही है क्या??वरमाला में पूरी फूहड़ता, कोई लड़के को उठा रहा है, कोई लड़की को उठा रहा है ये सब क्या है?? और हम ये तमाशा देख रहे है मौन रहकर।
सब अच्छा है माँ बाप बच्ची को शिक्षा दे रहे है।
ये अच्छी बात है लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच?? ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करे, बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये।
कमा खा ले, जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो रिज़ल्ट तो वही सामने आना है, साइँस ये कहता है कि गर्भवती महिला अगर कमरे में सुन्दर शिशु की तस्वीर टांग ले तो शिशु भी सुन्दर और हृष्ट पुष्ट होगा।
मतलब हमारी सोच का रिश्ता भविष्य से है, बस यही सोच कि पांव पर खड़ी हो जायेगी, गलत है संतान सभी को प्रिय है लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं पहले स्त्री छोड़ो पुरुष भी कोर्ट कचहरी से घबराते थे और शर्म भी करते थे।
अब तो फैशन हो गया है पढे लिखे युवा तलाकनामा तो जेब मे लेकर घूमते हैं पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी और अब माँ बाप तक को जूते पर रखते है अगर गलत है तो बिना औलाद से पूछे या एक दूसरे को दिखाये रिश्ता करके दिखाओ तो जानूं??
ऐसे में समाज या पँच क्या कर लेगा, सिवाय बोलकर फ़जीहत कराने के?? सबसे खतरनाक है औरत की ज़ुबान, कभी कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।
लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझती है। आखिर शिक्षित है और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में लेकर आई है आखिर झुक गयी तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी इतिहास गवाह है कि द्रोपदी के वो दो शब्द...अंधे का पुत्र भी अंधा ने महाभारत करवा दी, काश चुप रहती गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।
आज समाज सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों बेटा भी तो पुरुष ही है एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये।
खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों, घरवाली के लिये हार के सपने देखता है बच्चों को महँगी शिक्षा देता है मैं मानती हूँ पहले नारी अबला थी माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़ और बड़े परिवार के काम का बोझ। अब ऐसा है क्या? सारी आज़ादी।
मनोरंजन हेतु TV, कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन, मसाला पीसने के लिए मिक्सी, रेडिमेड आटा, पानी की मोटर, पैसे हैं तो नौकर चाकर, घूमने को स्कूटी या कार फिर भी और आज़ादी चाहिये। आखिर ये मृगतृष्णा का अंत कब और कैसे होगा? घर में कोई काम ही नहीं बचा।दो लोगों का परिवार, उस पर भी ताना, कि रात दिन काम कर रही हूं।
ब्यूटी पार्लर आधे घंटे जाना आधे घंटे आना और एक घंटे सजना नहीं अखरता। लेकिन दो रोटी बनाना अखर जाता है। कोई कुछ बोला तो क्यों बोला? बस यही सब वजह है घर बिगड़ने की। खुद की जगह घर को सजाने में ध्यान दे तो ये सब न हो। समय होकर भी समय कम है परिवार के लिये, ऐसे में परिवार तो टूटेंगे ही। पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं और पुराने रिश्ते भी।
आज बिड़ला सिमेन्ट वाले मजबूत घर कुछ दिनों में ही धराशायी। और रिश्ते भी महीनों में खत्म। इसका कारण है घरों को बनाने में भ्रष्टाचार और रिश्तों मे ग़लत सँस्कार। खैर हम तो आधा जीवन जी लिये, सोचे आनेवाली पीढी, घर चाहिये या दिखावे की आज़ादी ? दिनभर घूमने के बाद रात तो घर में ही महफूज़ रहती है।
मेरी बात क‌इयों को हो सकता है बुरी लगी हो, विशेषकर महिलाओं को लेकिन सच तो यही है, समाज को छोड़ो, अपने इर्द गिर्द पड़ोस में देखो। सब कुछ साफ दिख जायेगा। यही हर समाज के घर घर की कहानी है जो युवा बहनें हैं और जिनको बुरा लगा हो वो थोड़ा इंतजार करो क्यों कि सास भी कभी बहू थी के समय में देरी है लेकिन आयेगा ज़रुर ।
मुझे क्या है जो जैसा सोचेगा सुख दुःख उन्हीं के खाते में आना है बस तकलीफ इस बात की है कि हमारी ग़लती से बच्चों का घर खराब हो रहा है वे नादान हैं। क्या हम भी हैं? शराब का नशा मज़ा देता है लेकिन उतरता ज़रुर है फिर बस चिन्तन ही बचता है कि क्या खोया क्या पाया?? पैसों की और घर की बर्बादी।
उसके बाद भी शराब के चलन का बढ़ना आज की आधुनिक शिक्षा को दर्शाता है अपना अपना घर देखो सभी। अभी भी वक्त है नहीं तो व्हाटसप में आडियो भेजते रहना, जग हंसाई के खातिर, कोई भी समाजसेवक कुछ नहीं कर पायेगा, सिवाय उपदेश के।
आपकी हर समस्या का निदान केवल आप ही कर सकते हो। सोच के ज़रिये, रिश्ते झुकने पर ही टिकते है तनने पर टूट जाते है। इस खूबी को निरक्षर बुज़ुर्ग जानते थे, आज का मूर्ख शिक्षित नहीं, काश सब जान पाते।
#व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24मई 2024