मंगलवार, 24 जुलाई 2018

व्योमवार्ता/ एम्स मे आपरेशन की तारीख मिली 17जनवरी 2024, क्या हम चिकित्सा सेवा मे संवेदनशील नही हो सकते :व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24जुलाई 2017, मंगलवार

व्योमवार्ता/ एम्स मे आपरेशन की तारीख मिली 17जनवरी 2024, क्या हम चिकित्सा सेवा मे संवेदनशील नही हो सकते :व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 24जुलाई 2017, मंगलवार

आज सुबह सुबह दैनिक जागरण के मुखपृष्ठ पर एक खबर पढ़ा कि काशी के अंकित को आपरेशन के लिये मिली 2024 की डेट. मै अंकित को नही जानता, आप भी नही जानते होगें. अंकित 13साल का बच्चा है, उसके दिल मे छेद है, शायद हर्ट का एक वाल्व भी खराब है,उसके पिता दौलतपुर के रहने वाले बेलदार है, बीएचयू द्वारा रेफर किये जाने के बाद जब वे हृदय के आपरेशन के लिये एम्स दिल्ली गये तो छह माह तक ओपीडी व जॉच कार्यवाही के बाद उसके आपरेशन के लिये तारीख दी गई 17जनवरी 2024. अंकित को अभी समय के प्रतीक्षा का अनुभव नही पर उसके पिता को है, वे हताश है साथ ही निराश भी, उन्हे नही मतलब कि सन 24 तक क्या होगा? पता नही गंगा साफ भी हो पायेगीं कि नही? पता नही बनारस स्मार्ट सिटी बन पायेगा कि नही, पता नही राहुल गांधी अविश्वास प्रस्ताव ले कर आने की स्थिति मे होगे या नही, उसे तो अपने बेटे अंकित की चिंता है,
कब इस देश मे हम मेडिकल ईमरजेंसी की बढ़ियॉ और त्वरित सुविधायें दे सकेगें यह सवाल भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शिक्षा, आवास ,रोजगार जैसे बाकी बुनियादी जरूरतें.
आज अंकित के बारे मे सोचते हुये दो साल पहले एक मित्र द्वारा बताई व देखी गयी एम्स की ही एक घटना याद आ गई, मन अभी तक सोच कर उदास हो जाता है.
एक बाप स्ट्रेचर पर तडपते हुए अपने बेटे को दिलासा दिला रहा था कि
"बेटा मैं हूँ न ,
सब ठीक हो जाएगा
बस तुम्हारी MRI होना बाकी है
फिर डॉक्टर तुम्हारा इलाज शुरू कर ,
वो बदकिस्मत बाप अपनी बात पूरी कर पाता उस से पहले ही स्ट्रेचर पर पड़े उसके बेटे को एक भयानक दौरा पड़ा
बात बीच में छोड़ कर वो उसकी पीठ पर थप्पी मारने लगा
अपने इक्लोते बेटे को यूँ तडपते हुए देख उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे।
6 फिट लम्बाई
लम्बा चोडा शरीर था उसका
लेकिन अपने बेटे की दुर्दशा देख उसका सारा पोरुष पिघल गया।
बच्चो की माफिक रोने लगा।
उसे उम्मीद थी कि जल्द उसके बेटे की MRI हो जायेगी।
फिर उसको हुई बिमारी का पता चल जाएगा
और उसका काम हो जाएगा।
होगा क्यों नहीं ?
देश के सबसे बड़े अस्पताल में जो आया था
सारी उम्मीद लेकर आया था।
लेकिन पिछले 1 घंटे से उसका नंबर न आया।
आता भी कैसे ?
अन्दर पहले से MRI करवाने वालो की भीड़ जो थी।
एक MRI में करीब आधा घंटा लगता है।
और 50 संवेदनहीन लोग उस से पहले लाइन लगा के बेठे थे।
और मशीन 24 घंटे चलती तब भी उसका नंबर शायद 2वे दिन आता।
देश का सबसे बड़ा अस्पताल !!
देश के नामी गिरामी विशेषज्ञों से लेस अस्पताल !!
क्या यही हमारी चिकित्सा व्यवस्थायें हैं आज हम 21वीं सदी में हैं
हमारी GDP की रफ़्तार सभी देशो को मात दे रही है।
हमने सबसे सस्ता मंगल यान अन्तरिक्ष में भेज दिया।
हर महीने हर सप्ताह हमारा इसरो नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।
हमें न्युक्लिर मिसाइल ग्रुप की सदस्यता मिलने वाली है।
हम तेजस जैसे हलके लड़ाकू विमान बना रहे हैं।
पंडूबियाँ बना रहे हैं।
लेकिन हमारे अस्पतालों में Xray मशीन नहीं हैं
MRI मशीन नहीं हैं।
होंगी भी कैसे ?
यहाँ MRI मशीन बनाने की तकनीक है ही नहीं
न ही उसके खराब होने पर उसे सुधारने की कोई तकनीक है।
आपको बता दूँ एक उम्दा गुणवत्ता की MRI मशीन करीब 1 करोड़ की आती है और ये चीन जापान कोरिया जैसे देशो से आयात की जाती हैं खराब होने पर या तो मशीन चाइना जायेगी या वहां से टीम यहाँ आएगी इसकी मरम्मत का खर्च लगभग लाखो में आएगा।
अब ये जानकर आपको अमृतानंद की अनुभूति होगी कि 3600 करोड़ की शिवाजी की मूर्ती और लगभग 2100 करोड़ की सरदार पटेल की मूर्ति क्रमश: मुंबई और गुजरात में बन रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है ये दोनों हमारे गौरव थे हैं सदा रहेंगे।इनका मोल इन पैसो से कहीं बढ़कर था।
लेकिन ये भी होते तो कहते कि"अस्पताल बनाओ जरुरी व्यवस्था उपलब्ध कराओ।
उनकी जरुरत की चीजे बनाओ।"
ज्यादा दूर न जाकर नजदीक आते हैं
मेट्रो के अगले चरण में कुल 4 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। और ये उक्त सभी प्रोजेक्ट अपनी अपनी जगह ठीक हैं। लेकिन प्राथमिकताए जैसे रोटी कपडा मकान स्वस्थ्य पीने का पानी ये तो पूरी हों। सबसे बड़े अस्पताल में कम से कम 10 MRI मशीन हो जाए तो किसका क्या बिगड़ जाएगा ?
मेक इन इंडिया के तहत यहाँ ऐसी जरुरत की चीजे बनने सुधरने लगेंगी तो किसका क्या बिगड़ जाएगा ?
लेकिन नहीं !!
हमें सबसे ज्यादा जरुरत अभी 36 राफेल लड़ाकू विमानों की है
जिनकी कीमत करीब 36000 करोड़ है
आखिर में वो बिलखता हुआ बाप स्ट्रेचर पे लेटे हुए अपने बच्चे को रोते हुए बाहर ले गया।
शायद हिम्मत टूट गयी थी उसकी
या उस बच्चे की साँसे !
लेकिन रोज मोत देखने वाले अस्पताल की संवेदनाये तो मर चुकी थी
उन्हें क्या फर्क पड़ता है कि कोई मरे या जिए
आज दान की जरूरत मंदिरो से ज्यादा अस्पतालों को है ,
पर क्या हमारी प्राथमिकता मे अस्पताल और चिकित्सकीय सुविधाये क्या प्रथम सोपान पर ऱखे जायेगें ?
(बनारस, 24 जुलाई 2018, मंगलवार)
http://chitravansh.blogspot.com