वरूणापार इलाके का सबसे महत्वपूर्ण स्थान बनारस कचहरी है। बीसवीं सदी के शुरूआत मे जब बनारस कचहरी चौक से स्थानान्तरित हुई तो वरूणा के किनारे खुलेपन की भरपूर संभावाओं को ध्यान मे रख यहॉ निर्मित हुई। लगभग ११५ सालों का बनारस कचहरी का शानदार इतिहास रहा है। १९४२ के धानापुर काण्ड के सुनवाई की गवाह रही लाल बिल्डिंग में बीसवी सदी के आखिर तक भदोही, चंदौली व बनारस का न्यायाधिकार प्राप्त अदालते चलती थी। समय बीतने के साथ भदोही व चंदौली बनारस से अलग हो गये और लाल बिल्डिंग के अगल बगल दो पीली बारह कक्षीय न्यायालय भवन बने। गेट न०३ के पास बनारस बार एसोशियेसन भवन तो उसके सामने द्रुतगामी न्यायालय भवन (लोगबाग की भाषा मे मुरगी दड़बा बिल्डिंग) बनी। शहर की आबादी बढ़ने के साथ साथ वकीलो की तादाद भी बढ़ी और कचहरी परिसर मे टीन सेड भी बढ़ते गये। १९९५ के बाद उदारीकरण का असर कचहरी मे भी दिखने लगा। साइकिल का स्थान मोटर बाईकों ने ले लिया व स्कूटर के बजाय कारें कचहरी की शोभा बढ़ाने लगी। २००५ तक ये दौर आ गया कि कचहरी मे सामान्यतया चलने फिरने के लिये बाईको के बीच से बचा बचा कर निकलना पड़ता था।
इस बीच बनारस कचहरी ने आतंकी घटनाओं को भी झेला। साइकिल पर रखे झोले मे बम विस्फोट ने पूरे कचहरी को ही हिला कर रख दिया। भारी जान माल की क्षति ने कचहरी की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाये तो न्यायिक अधिकारियो को छोड़ कर बाकी सभी वाहनो को कचहरी परिसर मे प्रतिबंधित करते हुये प्रवेश निषेध कर दिया गया।लेकिन यह व्यवस्था पूरी तरह लागू नही हो सकी। कुछ दिनो तक सख्ती के बाद कुछ विशेष लोगो के दबाव व मुँहदेखी से कचहरी परिसर मे विशेष गाड़ियो व कर्मचारियो के बाईकों का आगमन सुलभ हो गया है ।
बाईको के लिये संदेश रेस्टूरेंट के सामने के मैदान को निर्धारित कराया गया पर अव्यवस्था के चलते वह भी नाकाफी ही रहा लिहाजा गाड़ियॉ कचहरी परिसर के बाहर सड़क पर खड़ी होने लगी। रातो रात सड़क किनारे इन अवैध वाहन स्टैण्डो के ठीकेदार पैदा हो गये। आज स्थिति यह है कि इन अवैध वाहनो की दुकादारी लगभग १५से २० हजार रूपये रोजाना है। यह अवैध वसूली व वाहनस्टैण्ड कचहरी पुलिस चौकी के ठीक सामने कैण्ट पुलिस के नाको के नीचे हो रहा है। पता नही कैण्ट पुलिस व उच्चाधिकारियो को यह दिखता नही या वे देख कर भी समझना नही चाहते। आज कचहरी अपने चौतरफा जाम का दबाव झेलने को मजबूर है तो उसका एकमात्र कारण सड़क कब्जियाये ये अवैध वाहन स्टैण्ड है।
दो साल पहले तत्कालीन डी एम प्रांजल यादव ने इस जाम को हटाने की पहल करते हुये कचहरी के पीछे जे पी मेहता कालेज के सामने से लेकर बनारस क्लब तक विशाल पार्किग स्टैण्ड बनवा कर इन अवैध स्टैण्डो को हटा कर जाममुक्त कचहरी बनाने का प्रयास किया। स्टैण्ड तो बन गया पर अवैध कमाई के पैरोकारो ने ऐसा खुरपेंच चलाया कि वह आज विरान है और कचहरी जाम से हैरान है। इतना ही नही जाम के हिमायतिओ ने कचहरी की दीवार, रोडगेज, सड़क पर कब्जा करने के साथ साथ यात्रियो के लिये यात्री विश्रामालय व नगर बस स्टैण्ड को भी अपनी मनमाफिक व्यवस्था मे ढाल कर उसे भी वाहन स्टैण्ड बना डाला।
यही तो बनारस है जहॉ पार्किग के लिये बनाये गये स्टैण्ड खाली पड़े हैं। चलने के लिये बनाये गये सड़क पर वाहन खड़े है। यात्री विश्रामालय मे मोटरसाइकिले पायी जाती है और इस सब की जिम्मेदारी कौन ले यह तो अफसरान लगायत पुलिस तक को नही पता है।
तभी तो यहॉ कबीर दास जी उल्टी बानी बोलते थे क्योकि ये शहर ही है कुछ अजीब सा.........