बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

यह शहर है ही कुछ अजीब सा........ (३) banaras / varanasi problem 10/02/2016


          वरूणापार इलाके का सबसे महत्वपूर्ण स्थान बनारस कचहरी है। बीसवीं सदी के शुरूआत मे जब बनारस कचहरी चौक से स्थानान्तरित हुई तो वरूणा के किनारे  खुलेपन की भरपूर संभावाओं को ध्यान मे रख यहॉ निर्मित हुई। लगभग ११५ सालों का बनारस कचहरी का शानदार इतिहास रहा है। १९४२ के धानापुर काण्ड के सुनवाई की गवाह रही लाल बिल्डिंग में बीसवी सदी के आखिर तक भदोही, चंदौली व बनारस  का न्यायाधिकार प्राप्त अदालते चलती थी। समय बीतने के साथ भदोही व चंदौली बनारस से अलग हो गये और लाल बिल्डिंग के अगल बगल दो पीली बारह कक्षीय न्यायालय भवन बने। गेट न०३ के पास बनारस बार एसोशियेसन भवन तो उसके सामने द्रुतगामी न्यायालय भवन (लोगबाग की भाषा मे मुरगी दड़बा बिल्डिंग) बनी। शहर की आबादी बढ़ने के साथ साथ वकीलो की तादाद भी बढ़ी और कचहरी परिसर मे टीन सेड भी बढ़ते गये। १९९५ के बाद उदारीकरण का असर कचहरी मे भी दिखने लगा। साइकिल का स्थान मोटर बाईकों ने ले लिया व स्कूटर के बजाय कारें कचहरी की शोभा बढ़ाने लगी। २००५ तक ये दौर आ गया कि कचहरी मे सामान्यतया चलने फिरने के लिये बाईको के बीच से बचा बचा कर निकलना पड़ता था।
इस बीच बनारस कचहरी ने आतंकी घटनाओं को भी झेला। साइकिल पर रखे झोले मे बम विस्फोट ने पूरे कचहरी को ही हिला कर रख दिया। भारी जान माल की क्षति ने कचहरी की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाये तो न्यायिक अधिकारियो को छोड़ कर बाकी सभी वाहनो को कचहरी परिसर मे प्रतिबंधित करते हुये प्रवेश निषेध कर दिया गया।लेकिन यह व्यवस्था पूरी तरह लागू नही हो सकी। कुछ दिनो तक सख्ती के बाद कुछ विशेष लोगो के दबाव व मुँहदेखी से कचहरी परिसर मे  विशेष गाड़ियो व कर्मचारियो के बाईकों का आगमन सुलभ हो गया है ।
    बाईको के लिये संदेश रेस्टूरेंट के सामने के मैदान को  निर्धारित कराया गया पर अव्यवस्था के चलते वह भी नाकाफी ही रहा लिहाजा गाड़ियॉ कचहरी परिसर के बाहर सड़क पर खड़ी होने लगी। रातो रात सड़क किनारे इन अवैध वाहन स्टैण्डो के ठीकेदार पैदा हो गये। आज स्थिति यह है कि इन अवैध वाहनो की दुकादारी लगभग १५से २० हजार रूपये रोजाना है। यह  अवैध वसूली व वाहनस्टैण्ड कचहरी पुलिस चौकी के ठीक सामने कैण्ट पुलिस के नाको के नीचे हो रहा है। पता नही कैण्ट पुलिस व उच्चाधिकारियो को यह दिखता नही या वे देख कर भी समझना नही चाहते। आज कचहरी अपने चौतरफा जाम का दबाव झेलने को मजबूर है तो उसका एकमात्र कारण सड़क कब्जियाये ये अवैध वाहन स्टैण्ड है।
        दो साल पहले तत्कालीन डी एम प्रांजल यादव ने इस जाम को हटाने की पहल करते हुये कचहरी के पीछे जे पी मेहता कालेज के सामने से लेकर बनारस क्लब तक विशाल पार्किग स्टैण्ड बनवा कर  इन अवैध स्टैण्डो को हटा कर जाममुक्त कचहरी बनाने का प्रयास किया। स्टैण्ड तो बन गया पर अवैध कमाई के पैरोकारो ने ऐसा खुरपेंच चलाया कि वह आज विरान है और कचहरी जाम से हैरान है। इतना ही नही जाम के हिमायतिओ ने कचहरी की दीवार, रोडगेज, सड़क पर कब्जा करने के साथ साथ यात्रियो के लिये यात्री विश्रामालय व नगर बस स्टैण्ड को भी अपनी मनमाफिक व्यवस्था मे ढाल कर उसे भी वाहन स्टैण्ड बना डाला।
     यही तो बनारस है जहॉ पार्किग के लिये बनाये गये स्टैण्ड खाली पड़े हैं। चलने के लिये बनाये गये सड़क पर वाहन खड़े है। यात्री विश्रामालय मे मोटरसाइकिले पायी जाती है और इस सब की जिम्मेदारी कौन ले यह तो अफसरान लगायत पुलिस तक को नही पता है।
तभी तो यहॉ कबीर दास जी उल्टी बानी बोलते थे क्योकि ये शहर ही है कुछ अजीब सा.........


ये शहर है ही कुछ अजीब सा....... (२) banaras / varanasi 09/02/2016

अभी सिन्धोरा मार्ग की खुदाई पूरी भी नही हुई थी कि आज कचहरी पर गोलघर चौराहे पर भी खुदाई शुरू हो गयी। उधर महावीर मंदिर टकटकपुर बसही मार्ग पर खुदाई लगातार जारी है। जनता परेशान है, वह समझ नही पा रही है कि कार्य प्रगति पर है, कष्ट के लिये खेद है का बोर्ड दिखा कर ये खुदाई एजेन्सियॉ उसे वाकई कब तक कष्ट देती रहेगीं? कोई भगीरथ आम जनता के लिये भी कार्य पूर्ण होने का संदेश लेकर कब आयेगा?
      हम गैर तकनीकी आम जन आज तक कई बार कोशिस करने के बावजूद यह समझने मे असमर्थ रहे हैं कि जब एक ही सड़क पर सीवर, पानी व रेन ड्रेनेज के तीन काम होने है तो पूरी सड़क को एक बार न खोद कर तीन बार खोदने की क्या जरूरत है। मेरा अवचेतन मन मुझे चेताता है कि शहर के विकास के लिये पैसे दो-तीन जगह से आये है लिहाजा सड़क भी दो तीन बार खुद कर मरम्मत होना जरूरी है। अब ईश्वर जाने या खुदाई विभाग व एजेन्सियों के इंजीनियर । पर यह सच है कि हर बार खुदाई के दौरान इंजीनियर साहब के मकान की एक मंजिल बन जाती है। उनका लड़का की गाड़ी बदल जाती हैऔर उनकी पत्नी के हाथ के कंगन, कड़े व गले के चेन व हार की डिजाईन बदल जाती है। बदल तो हमारा शहर भी जाता है पर वह बदलाव प्रतिगामी व कष्टप्रद ही दिखता है।
    दूपहिया व चारपहिया जिस तरह बढ़ते जा रहे है सड़के उसी गति से सिकुड़ती जा रही है, बल्कि दुकानो के विस्तार मे खोती जा रही है।पहले सड़क के किनारे पटरियॉ होती थी, पटरियों के बाद चबूतरे और चबूतरे पर दुकान। पर अब न चबूतरे रहे न पटरियॉ, दुकान चल कर सड़क पर आ गई और दुकान के सामानो ने पटरी छेंक लिया। अब पटरी पर दुकान है तो खरीदार का सड़क पर रहना मजबूरी है। सड़क के राहगीर चूल्हे भाड़ मे जायें , उनकी बला से।
        यही स्थिति कमोबेस पूरे वरूणापार की है, शिवपुर के बाजार से गिलटबाजार होते हुये अर्दलीबाजार लगायत कचहरी तक, बसहीं से भोजूबीर पंचकोसी महावीर मंदिर पाण्डेपुर लगायत पहड़िया , खजूरी, हुकुलगंज पुलिसलाईन व लालपुर तक। हर कहीं दुकाने सड़क के सिर पर सवार है और सड़को का कोई माई बाप नही। जहॉ दुकाने नही है वहॉ अस्पताल व क्लिनिक है जिनके यहॉ आने वाले रोगियों व तीमारदारो की गाड़ियॉ आधी सड़क पर कब्जा की रहती है। कहने को अपने शहर मे एसपी ट्रैफिक व उनका पूरा अमला है पर सड़क को अतिक्रमण करने वाले दुकानो व अस्पतालो के मालिको डाक्टरो पर कभी चालान की कार्यवाही कभी हुई भी हो, हमे तो नही लगता।
        फिर भी शहर चल रहा है अपने मे अलमस्त अपने मे बेतरीब। किसी से कोई शिकायत नही, किसी से कोई शिकवा नही।
         क्योंकि यह शहर ही है कुछ अजीब सा.......

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

जनवरी २०१६ मे पठानकोट एअरबेस पर हुये आतंकी हमलो मे सैनिको के मृत्यु पर

आज रात मुझे फिर नींद नही आयी,
ऑखे डबडबाती रही ये सोच सोच कर,
मै तो रजाई मे था,सपनों के संग मगर,
सरहद पर बहा खून था मेरी नींद के लिए..!

ये शहर है कुछ अजीब सा...... banaras / varanasi 08/02/2016

कहते है बनारस आशुतोष अवढरदानी भगवान शंकर की नगरी है, यह मिथक भले हो पर आज का बनारस इसे पूरी तरह सिद्ध कर रहा है. विश्व मे अपने काम व नाम से डंका बबजाने वाले भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस बात को अच्छी तरह से जान गये हैं. अपने संसदीय क्षेत्र का नियमित दौरा करना भले ही मोदी ने अपने नियम मे शामिल कर लिया हो पर हम बनारसी है कि हम नही सुधरेगें के तर्ज पर कोई नियम मानने को तैयार नही. बात वरूणा पार से शुरू करें , पहले यह इलाका निछद्बदम और बहरी अलंग के लिये मसहूर हुआ करता था, लोग बाग दिव्य मे नहाने निपटने के लिये इधर फरचंगे मे आया करते थे, कुँयें बगीचो व पोखरो बावलियों वाले वरूणापार मे शनिवार की शाम व रविवार को दिन बनारसियो के भॉग बूटी व हाहा हीही से गुलजार रहने वाला यह इलाका शहरीकरण की चपेट मे आ कर कंक्रीट का जंगल तो बन गया पर शहर नही बन सका . यहॉ की सड़के आज भी कदाचित वैसे ही है जैसे कमोबेस आजादी के समय रही होगीं. पिछले बीस सालो से बार बार बनने को उजड़ रहा भोजूबीर सिन्धोरा मार्ग, कभी निछद्दम मे  पेड़ो की छाया मे इठलाती हुई पटरी, कुओं, मन्दिरो से सजी हुई और आज अतिक्रमण से बिलबिलाती हुई अपने अस्तित्व से जूझती पंचक्रोसी सड़क, हुकुलगंज रोड, शिवपुर रोड, सुअर बड़वा रोड रोज ही बन कर जी रही है और बनने के दोचार दिनो बाद ही मृतप्राय होकर पोस्टमार्टम का रस्ता देख रही है.  यहॉ के वासिन्दों सहित आमजन व सैलानीयों को मरती हुई सड़क भले दिख जाये पर बनाने वाले व मरम्मत करने वाले विभागो को ये नही दिखती, पता नही उनके आला अफसरानो के ऑखो पर चढ़े कमीसनखोरी  के चश्मे का असर है या इस शहर की नियति. कहना मुश्किल है. विश्वास न हो तो गिलट बाजार मे ऱाष्ट्रीय राजमार्ग ५६ वाराणसी लखनऊ मार्ग की बानगी ले.  कुछ लोग इसे एअरपोर्ट रोड तो कुछ वीआईपी रोड भी कहते है. जुमा जुमा २ महीने भी नही बीते जब अबे सिंजो के साथ मोदी जी यहॉ आये थे, सड़क ताजी ताजी बनी थी पर आज पूरी सड़क छर्री की खदान बनी हुई है,  राहगीर गिर रहे है, आमजन परेशान है , होता रहे़ आखिर शहर के सवसे ज्यादा डाक्टर भी तो इसी इलाके मे है.
बात विभाग की नही बात व्यवस्था की भी नही, बात इस शहर के तासीर की है, जैसे हमारे आराध्य महादेव शंकर स्वर्ण शिखर वाले मंदिर से लेकर मोहल्ले के वीरान चबूतरे पर भी समान भाव से संतुष्ट है वैसे ही इस शहर की आम जनता भी मोदी जी के आने पर काली पालिस व चमकदार सड़को से लेकर उधराती गिट्टायो व खुले गडढो वाले रस्तो मे भी समान भाव से जी रही है,
क्योकि इस बनारस शहर का मिजाज ही अजीब है.......