अभी सिन्धोरा मार्ग की खुदाई पूरी भी नही हुई थी कि आज कचहरी पर गोलघर चौराहे पर भी खुदाई शुरू हो गयी। उधर महावीर मंदिर टकटकपुर बसही मार्ग पर खुदाई लगातार जारी है। जनता परेशान है, वह समझ नही पा रही है कि कार्य प्रगति पर है, कष्ट के लिये खेद है का बोर्ड दिखा कर ये खुदाई एजेन्सियॉ उसे वाकई कब तक कष्ट देती रहेगीं? कोई भगीरथ आम जनता के लिये भी कार्य पूर्ण होने का संदेश लेकर कब आयेगा?
हम गैर तकनीकी आम जन आज तक कई बार कोशिस करने के बावजूद यह समझने मे असमर्थ रहे हैं कि जब एक ही सड़क पर सीवर, पानी व रेन ड्रेनेज के तीन काम होने है तो पूरी सड़क को एक बार न खोद कर तीन बार खोदने की क्या जरूरत है। मेरा अवचेतन मन मुझे चेताता है कि शहर के विकास के लिये पैसे दो-तीन जगह से आये है लिहाजा सड़क भी दो तीन बार खुद कर मरम्मत होना जरूरी है। अब ईश्वर जाने या खुदाई विभाग व एजेन्सियों के इंजीनियर । पर यह सच है कि हर बार खुदाई के दौरान इंजीनियर साहब के मकान की एक मंजिल बन जाती है। उनका लड़का की गाड़ी बदल जाती हैऔर उनकी पत्नी के हाथ के कंगन, कड़े व गले के चेन व हार की डिजाईन बदल जाती है। बदल तो हमारा शहर भी जाता है पर वह बदलाव प्रतिगामी व कष्टप्रद ही दिखता है।
दूपहिया व चारपहिया जिस तरह बढ़ते जा रहे है सड़के उसी गति से सिकुड़ती जा रही है, बल्कि दुकानो के विस्तार मे खोती जा रही है।पहले सड़क के किनारे पटरियॉ होती थी, पटरियों के बाद चबूतरे और चबूतरे पर दुकान। पर अब न चबूतरे रहे न पटरियॉ, दुकान चल कर सड़क पर आ गई और दुकान के सामानो ने पटरी छेंक लिया। अब पटरी पर दुकान है तो खरीदार का सड़क पर रहना मजबूरी है। सड़क के राहगीर चूल्हे भाड़ मे जायें , उनकी बला से।
यही स्थिति कमोबेस पूरे वरूणापार की है, शिवपुर के बाजार से गिलटबाजार होते हुये अर्दलीबाजार लगायत कचहरी तक, बसहीं से भोजूबीर पंचकोसी महावीर मंदिर पाण्डेपुर लगायत पहड़िया , खजूरी, हुकुलगंज पुलिसलाईन व लालपुर तक। हर कहीं दुकाने सड़क के सिर पर सवार है और सड़को का कोई माई बाप नही। जहॉ दुकाने नही है वहॉ अस्पताल व क्लिनिक है जिनके यहॉ आने वाले रोगियों व तीमारदारो की गाड़ियॉ आधी सड़क पर कब्जा की रहती है। कहने को अपने शहर मे एसपी ट्रैफिक व उनका पूरा अमला है पर सड़क को अतिक्रमण करने वाले दुकानो व अस्पतालो के मालिको डाक्टरो पर कभी चालान की कार्यवाही कभी हुई भी हो, हमे तो नही लगता।
फिर भी शहर चल रहा है अपने मे अलमस्त अपने मे बेतरीब। किसी से कोई शिकायत नही, किसी से कोई शिकवा नही।
क्योंकि यह शहर ही है कुछ अजीब सा.......
हम गैर तकनीकी आम जन आज तक कई बार कोशिस करने के बावजूद यह समझने मे असमर्थ रहे हैं कि जब एक ही सड़क पर सीवर, पानी व रेन ड्रेनेज के तीन काम होने है तो पूरी सड़क को एक बार न खोद कर तीन बार खोदने की क्या जरूरत है। मेरा अवचेतन मन मुझे चेताता है कि शहर के विकास के लिये पैसे दो-तीन जगह से आये है लिहाजा सड़क भी दो तीन बार खुद कर मरम्मत होना जरूरी है। अब ईश्वर जाने या खुदाई विभाग व एजेन्सियों के इंजीनियर । पर यह सच है कि हर बार खुदाई के दौरान इंजीनियर साहब के मकान की एक मंजिल बन जाती है। उनका लड़का की गाड़ी बदल जाती हैऔर उनकी पत्नी के हाथ के कंगन, कड़े व गले के चेन व हार की डिजाईन बदल जाती है। बदल तो हमारा शहर भी जाता है पर वह बदलाव प्रतिगामी व कष्टप्रद ही दिखता है।
दूपहिया व चारपहिया जिस तरह बढ़ते जा रहे है सड़के उसी गति से सिकुड़ती जा रही है, बल्कि दुकानो के विस्तार मे खोती जा रही है।पहले सड़क के किनारे पटरियॉ होती थी, पटरियों के बाद चबूतरे और चबूतरे पर दुकान। पर अब न चबूतरे रहे न पटरियॉ, दुकान चल कर सड़क पर आ गई और दुकान के सामानो ने पटरी छेंक लिया। अब पटरी पर दुकान है तो खरीदार का सड़क पर रहना मजबूरी है। सड़क के राहगीर चूल्हे भाड़ मे जायें , उनकी बला से।
यही स्थिति कमोबेस पूरे वरूणापार की है, शिवपुर के बाजार से गिलटबाजार होते हुये अर्दलीबाजार लगायत कचहरी तक, बसहीं से भोजूबीर पंचकोसी महावीर मंदिर पाण्डेपुर लगायत पहड़िया , खजूरी, हुकुलगंज पुलिसलाईन व लालपुर तक। हर कहीं दुकाने सड़क के सिर पर सवार है और सड़को का कोई माई बाप नही। जहॉ दुकाने नही है वहॉ अस्पताल व क्लिनिक है जिनके यहॉ आने वाले रोगियों व तीमारदारो की गाड़ियॉ आधी सड़क पर कब्जा की रहती है। कहने को अपने शहर मे एसपी ट्रैफिक व उनका पूरा अमला है पर सड़क को अतिक्रमण करने वाले दुकानो व अस्पतालो के मालिको डाक्टरो पर कभी चालान की कार्यवाही कभी हुई भी हो, हमे तो नही लगता।
फिर भी शहर चल रहा है अपने मे अलमस्त अपने मे बेतरीब। किसी से कोई शिकायत नही, किसी से कोई शिकवा नही।
क्योंकि यह शहर ही है कुछ अजीब सा.......
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