कहते है बनारस आशुतोष अवढरदानी भगवान शंकर की नगरी है, यह मिथक भले हो पर आज का बनारस इसे पूरी तरह सिद्ध कर रहा है. विश्व मे अपने काम व नाम से डंका बबजाने वाले भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस बात को अच्छी तरह से जान गये हैं. अपने संसदीय क्षेत्र का नियमित दौरा करना भले ही मोदी ने अपने नियम मे शामिल कर लिया हो पर हम बनारसी है कि हम नही सुधरेगें के तर्ज पर कोई नियम मानने को तैयार नही. बात वरूणा पार से शुरू करें , पहले यह इलाका निछद्बदम और बहरी अलंग के लिये मसहूर हुआ करता था, लोग बाग दिव्य मे नहाने निपटने के लिये इधर फरचंगे मे आया करते थे, कुँयें बगीचो व पोखरो बावलियों वाले वरूणापार मे शनिवार की शाम व रविवार को दिन बनारसियो के भॉग बूटी व हाहा हीही से गुलजार रहने वाला यह इलाका शहरीकरण की चपेट मे आ कर कंक्रीट का जंगल तो बन गया पर शहर नही बन सका . यहॉ की सड़के आज भी कदाचित वैसे ही है जैसे कमोबेस आजादी के समय रही होगीं. पिछले बीस सालो से बार बार बनने को उजड़ रहा भोजूबीर सिन्धोरा मार्ग, कभी निछद्दम मे पेड़ो की छाया मे इठलाती हुई पटरी, कुओं, मन्दिरो से सजी हुई और आज अतिक्रमण से बिलबिलाती हुई अपने अस्तित्व से जूझती पंचक्रोसी सड़क, हुकुलगंज रोड, शिवपुर रोड, सुअर बड़वा रोड रोज ही बन कर जी रही है और बनने के दोचार दिनो बाद ही मृतप्राय होकर पोस्टमार्टम का रस्ता देख रही है. यहॉ के वासिन्दों सहित आमजन व सैलानीयों को मरती हुई सड़क भले दिख जाये पर बनाने वाले व मरम्मत करने वाले विभागो को ये नही दिखती, पता नही उनके आला अफसरानो के ऑखो पर चढ़े कमीसनखोरी के चश्मे का असर है या इस शहर की नियति. कहना मुश्किल है. विश्वास न हो तो गिलट बाजार मे ऱाष्ट्रीय राजमार्ग ५६ वाराणसी लखनऊ मार्ग की बानगी ले. कुछ लोग इसे एअरपोर्ट रोड तो कुछ वीआईपी रोड भी कहते है. जुमा जुमा २ महीने भी नही बीते जब अबे सिंजो के साथ मोदी जी यहॉ आये थे, सड़क ताजी ताजी बनी थी पर आज पूरी सड़क छर्री की खदान बनी हुई है, राहगीर गिर रहे है, आमजन परेशान है , होता रहे़ आखिर शहर के सवसे ज्यादा डाक्टर भी तो इसी इलाके मे है.
बात विभाग की नही बात व्यवस्था की भी नही, बात इस शहर के तासीर की है, जैसे हमारे आराध्य महादेव शंकर स्वर्ण शिखर वाले मंदिर से लेकर मोहल्ले के वीरान चबूतरे पर भी समान भाव से संतुष्ट है वैसे ही इस शहर की आम जनता भी मोदी जी के आने पर काली पालिस व चमकदार सड़को से लेकर उधराती गिट्टायो व खुले गडढो वाले रस्तो मे भी समान भाव से जी रही है,
क्योकि इस बनारस शहर का मिजाज ही अजीब है.......
बात विभाग की नही बात व्यवस्था की भी नही, बात इस शहर के तासीर की है, जैसे हमारे आराध्य महादेव शंकर स्वर्ण शिखर वाले मंदिर से लेकर मोहल्ले के वीरान चबूतरे पर भी समान भाव से संतुष्ट है वैसे ही इस शहर की आम जनता भी मोदी जी के आने पर काली पालिस व चमकदार सड़को से लेकर उधराती गिट्टायो व खुले गडढो वाले रस्तो मे भी समान भाव से जी रही है,
क्योकि इस बनारस शहर का मिजाज ही अजीब है.......
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