अवढरदानी महादेव शंकर की राजधानी काशी मे पला बढ़ा और जीवन यापन कर रहा हूँ. कबीर का फक्कडपन और बनारस की मस्ती जीवन का हिस्सा है, पता नही उसके बिना मैं हूँ भी या नही. राजर्षि उदय प्रताप के बगीचे यू पी कालेज से निकल कर महामना के कर्मस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे खेलते कूदते कुछ डिग्रीयॉ पा गये, नौकरी के लिये रियाज किया पर नौकरी नही मयस्सर थी. बनारस छोड़ नही सकते थे तो अपनी मर्जी के मालिक वकील बन बैठे.
सोमवार, 8 फ़रवरी 2016
जनवरी २०१६ मे पठानकोट एअरबेस पर हुये आतंकी हमलो मे सैनिको के मृत्यु पर
आज रात मुझे फिर नींद नही आयी,
ऑखे डबडबाती रही ये सोच सोच कर,
मै तो रजाई मे था,सपनों के संग मगर,
सरहद पर बहा खून था मेरी नींद के लिए..!
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