शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

व्योमवार्ता /प्रतिभा श्रीवास्तव की The Peaceful Chaos, निस्वार्थ प्यार पर उम्दा उपन्यासिका : व्योमेश चित्रवंश की डायरी,

व्योमवार्ता /प्रतिभा श्रीवास्तव की The Peaceful Chaos, निस्वार्थ प्यार पर उम्दा उपन्यासिका : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 21 फरवरी 2020
       बहुमुखी प्रतिभा की धनी , भरतनाट्यम  कलाकार अपनी छोटी बहन जैसी प्रतिभा श्रीवास्तव की उपन्यासिका The Peaceful Chaos पढ़ने को मिली। आज के भौतिकवादी भागते दौड़ते माहौल और तुरत फुरत रिश्तो को कैश करा लेने वाले माहौल मे कालेज जीवन के रूमानी प्यार पर बेहद मर्मस्पर्शी लिहाज से कहानी को पिरोया है प्रतिभा ने। यह उनकी पहली किताब है, पर स्टोरी प्लाट का चयन, साफ सुथरे शब्दों का प्रयोग और प्रेमकहानी मे निस्वार्थ भावनात्मक दोस्ती को आधार पर लिखी कहानी प्रतिभा के अंदर छुपे गंभीर लेखक का परिचय कराती है। हालॉकि एक झूठे बहाने को ले कर शुरू हुये कहानी जो अंत मे उसे दूसरे पक्ष के सच मे बदल देती है पर थोड़ी और मेहनत की जरूरत थी, मुझे लगता है कि यदि लेखिका ने इसे उपन्यासिका बनाने के बजाय घटनाओं को विस्तार देते हुये उसे उपन्यास का रूप दिया होती तो संभवतः ज्यादा सफल होती। जतिन और आशी के दोस्ती की यह कहानी उनके आपसी मोहब्बत के एहसास के साथ ही परिस्थितिवश समाप्त हो जाती है, बल्कि मै कहूँ कि समाप्त कर दी गई तो गलत नही होगा। पर जिन बुनियादी सवालातों को लेकर इस प्रेमकहानी का अंत बताया गया वह मेरे गले के नीचे सामान्यत: नही उतरती। एक कालेज मे पढ़ने वाले आज के मोबाईल जमाने मे जाति को न जानने का सवाल, फिर कहानी के पीक प्वाइंट पर आशी के बाबा दादी के महत्वपूर्ण भूमिका के बाद उनका एकाएक कहानी से ओझल हो जाना, रेल भगदड़ मे गुम होने वाली पढ़ी लिखी कालेज गर्ल का बलात्कार के पश्चात अस्पताल मे रहने के दौरान कोई पहचान नही होना, गुमशुदगी की एफआईआर के बावजूद पूरी कहानी से पुलिस कीकोई भूमिका मही होना,आशी का गुमनामी मे  गॉव जा कर वापस आ जाना और अस्पताल मे कहानी का अंत कहीं न कहीं मन मे  सवाल खड़े करते है। लगता है कि जल्दबाजी और पहली बार के लेखकीय उत्साह में सब कुछ बड़ी तेजी से समेट दिया है लेखिका ने।
उपन्यासिका के अंत मे प्रतिभा ने कुछ वाजिब सवाल उठाये है आज के समाज यानि हमसे और आपसे, जो मौजूं ही नही जरूरी है जिन पर हमे सौचना होगा, अगर अभी तक नही सोचा तो सोचना पड़ेगा नही तो यूँ ही जतिन और आशी जैसे सरल और साफगोई से जीने वाले लोग सामाजिक बंधनों के इस अबूझ आत्मघाती चक्की मे पीसे जाते रहेगें।
नवोदित लेखिका के रूप मे प्रतिभा सराहना व बधाई की पात्र है, मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक तरीके से उनकी उपन्यासिका पठनीय व प्रशंसनीय है।
(बनारस, शिवरात्रि, 21 फरवरी 2020, शुक्रवार)
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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

व्योमवार्ता/ काशी टेल, बनारस के छात्रजीवन की आईना ओम प्रकाश राय यायावर की किताब : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 18फरवरी 2020

व्योमवार्ता/ काशी टेल, बनारस के छात्रजीवन की आईना  ओम प्रकाश राय यायावर की किताब : व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 18फरवरी 2020

                  पिछले सप्ताह अपने मुखपुस्तिका (फेसबुक) के मित्र ओम प्रकाश राय यायावर का उपन्यास काशी टेल पढ़ा। इस किताब को पढ़ने की काफी दिनों से ईच्छा रहने के बावजूद किन्ही न किन्ही कारणों से यह पढ़ने से छूट जा रही थी। हालॉकि ओम प्रकाश जी ने भी इसके लिये एक बार उलाहना दे डाला, सो अबकी बार किताब उठाई तो पूरा पढ़ने के बाद ही दूसरे काम हाथ मे लिया। फिर किताब के बारे मे सोचते हुये लिखने मे देर हो गई। बहरहाल आज इस काम को भी पूरा करने का मन मिजाज बना के बैठा हूँ। ओम प्रकाश राय बिहार से बनारस काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पढ़ने आये तो औरों की तरह हमारी सर्व विद्या की राजधानी ने दोनो बॉहें फैलाये इन्हे स्वीकार कर लिया अभी वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे ही उच्च अध्ययनरत हैं।बनारस टेल इसी बीएचयू के शिक्षा संकाय की कथा है जिसमे बड़े बेबाकी से आज कल बीएड करने वाले छात्रों के मनस्थिति व परिस्थिति को दिखाते हुये यात्रा करती है, बिहार से  आये निहाल पाणे के साथ, तो रामनगर की आईपीएस मुस्लिम पिता व हिन्दू मॉ की पुत्री सदफ के साथ कमच्छा से गोदौलिया तक, रामनगर सामनेघाट से लंका तक, रेवड़ी तालाब के जय नारायण इंटर कालेज के खाली बीरान मैदान से दशाश्वमेध घाट की सीढ़ियों पर  चढ़ते उतरते ,बीएचयू की अमराईयों मे टहलते हुये सेण्ट्रल आफिस तक।
कभी सिविलसर्विस और पीसीएस के रिजल्ट मे अपना बड़ा सा घेरा बनाने वाले आक्सफोर्ड आफ ईस्ट के शहर कहे जाने वाले ईलाहाबाद अब प्रयागराज मे पीसीएस की तैयारी करने वाला बिहारी निम्न मध्यवर्गीय आय वाले परिवार का लड़का निहाल पाण्डेय, अपने पिता की उलाहनाओं से अाजिज आकर एक सिक्योर्ड नैकरी मास्टरी के  लिये बीएड करने  बीएचयू  आ जाता है। वहॉ उसकी मुलाकात उच्च आयवर्गीय मुस्लिम परिवार की सदफ से होती है। पहली मुलाकात के बाद दोनो के बीच दोस्ती से थोड़ा बढ़ कर मधुर रिश्ता बन जाता है। चंचल शोख सदफ के संगत मे अपने मे सिमटे रहने वाला निहाल भरपूर कालेज जीवन के दोस्ती का लुत्फ उठाने लगते है। इस दोस्ती ईश्क मोहब्बत के साथ साथ हास्टल जीवन की चुहलबाजिया, बदमासियॉ और बिन्दास अंदाज किताब की रोचकता को जीवन्त करते हैं। कहानी मे ठहराव आता है तो कहानी हाथ से फिसलती जान पड़ती है पर फिर से बिहार के अपने गॉव मे स्कूली शिक्षा मे अलख जगाने की कोशिश कर रहे निहाल पाणे बाबा कहानी के छोर को थाम लेते है।
कुल मिला कर ओम प्रकाश राय ने कथा को रोचक बनाने मे कोई कसर नही छोड़ा है और जो लोग बनारस, पश्चिम बिहार के भूगोल, और संस्कृति से परिचित है उनके लिये कहानी से जुड़ाव व अपनापन लगना स्वाभाविक है। बनारस टेल बेहतरीन कोशिश है इधर आये बनारस , बीएचयू, बिहार से जुड़े उपन्यासों की कड़ी में।
(बनारस, 18फरवरी,2020, मंगलवार)
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