15 अप्रैल 2016, शुक्रवार
श्मसान मे नगरवधुओं द्वारा नृत्याभिषेक
श्री श्री 1008 बाबा महाश्मशान नाथ जी मणिकर्णिका घाट के त्रिदिवशीय श्रृंगार महोत्सव के अन्तिम दिन कल नवरात्रि के सप्तमी तिथि को प्राचीन काल से चली आ रही गणिकाओं के नृत्य की परम्परा को जीवंत किया आज की नगर वधुओं ने, ऐसी मान्यता और कहा जाता है कि जब दशाश्वमेध घाट पर राजा जयसिंह द्वारा मान महल का निर्माण कराया जा रहा था तो उसी समय राजा जयसिंह द्वारा महाश्मशान नाथ जी के मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया गया था चूकिं हिन्दूओं में ऐसा चलन है कि हर शुभ कार्य में संगीत जरूर होता है तो उस समय राजा को अपने समकक्ष ऐसा कोई संगीतकार नहीं मिला जो महामशान पर आकर संगीत प्रस्तुत कर सके कारण उस समय का छुआछूत व जातीय परम्परा का होना तब काशी की नगर वधुओं को इस बात की जानकारी हुई कि उनके आराध्य के सामने कोई संगीतकार नहीं आना चाहता है तो उन्हें इस बात का काफी मलाल हुआ और अपने संदेश वाहक से नगर वधुओं ने तत्काल यह संदेश राजा जयसिंह को भिजवाया कि अगर आप को ऐतराज ना हो तो अपने आराध्य बाबा को हम काशी की गणिकाएं नृत्याजलीं व गीतांजलि के माध्यम से दरबार सजाना चाहते हैं जिसे राजा ने त्वरित स्वीकार करते हुए निमंत्रण भिजवा दिया कि काशी की गणिकाएं ही सजाएंगी बाबा महाश्मशान नाथ जी का दरबार और एक नई परम्परा का होगया श्री गणेश, तब से आज तक यह महफिल सजने लगी महामशान पर काशी के अदभुत, अद्वितीय, अलोकिक, अविस्मरणीय त्योहारों की तरह, और नगर वधुओं में यह मान्यता घर कर गई थी कि एक दिन सब को चार कधें पर बाबा महाश्मशान नाथ जी के गोद मणिकर्णिका जाना ही है तो क्यों न अपने दुर्भाग्य को जो इस जन्म में मिला है नाचने वाली के रूप में उसे जीभर कर जी ले व जीते जी बाबा से अपने दुख भी बाट आए जिससे अगला जन्म तो ऐसा ना मिले, और शुरु हो गई एक परम्परा, जो आज भी बदस्तूर जारी है कि बिना किसी निमंत्रण और बुलावे के देश के कोने कोने से चली आ जाती है ये नगर वधुएं जिन्हें भी यह जानकारी मिलती है।
# नोट : आशुतोष तिवारी जी बनारस के बनारसियत को जीने वाले एक बेहतरीन फोटोग्राफर है। यह फोटो व जानकारी उन्होने ही उपलब्ध करायी है।
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