रविवार, 10 अप्रैल 2016

अब क्या करोगे अभिमन्यु: व्योमेश चित्रवंश की कवितायें, 30 दिसम्बर 1999

अब क्या करोगे अभिमन्यु?

पुन: मोड़ दर मोड़, घने अंधियारे में
राहों के चक्रव्यूह मे खड़ा अभिमन्यु
नही पहुँचलपाता चक्रव्यूह के द्वार तक
इस अभिमन्यु ने नही सुना था व्यूहभेदन
अपनी मॉ सुभद्रा के गर्भ मे
नहीसिखाया उसे धनुरविद्या के साथ
व्यवहार शिक्षा, उसके मामा श्री कृष्ण ने
वह तो निपट अकेला है बेबस
हाथ मे थोथी डिग्रियों का धनुष
स्मृति पर आधारित परीक्षा प्रणाली की
तरकस खाली है, आज उसके
उसकी खाली जेबों की तरह
उसके पास सोर्स और मनी फोर्स भी नही
चक्रव्यूह के द्वार पर खड़े गुरू द्रोण
जो आकांक्षी है गुरूदक्षिणा मे अंगूठे के
खड़ा अंधियारे भविष्यहीन चक्रव्यूह के द्वार पर
विवस, एकाकी, थका,उत्साहहीन अभिमन्यु
स्वयं से ही करता अंतहीन, उत्तरहीन प्रश्न
अब क्या करोगे अभिमन्यु ?
(३०-१२-१९९९)

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