मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

महासमर- आनुषांगिक : महाभारत के परिप्रेक्ष्य मे जीवन दर्शन > व्योमेश चित्रवंश की डायरी, 04 मार्च 2017, मगलवार

              यूँ तो महासमर का वर्ष 2015 मे प्रकाशित अंतिम, नवम व विशेष खण्ड  आनुषंगिक पिछले नवरात्रि मे ही पढ़ चुका था, बल्कि यूँ कहे कि दूसरी बार पढ़ चुका था, इसके काफी पहले भी हमने इस रचना के लगभग संपूर्ण अंश को कई खण्डों मे "जहॉ है धर्म वहीं है जय " के लेखमाला मे संभवतः 1989-90 के आसपास ही पढ़ा था तब यह संभवतः स्वतंत्र भारत मे प्रत्येक रविवार को प्रकाशित हुआ करता था. तब न तो महासमर समझने की पात्रता थी न ही विवेक का वह स्तर जिसके आधार पर इस संपूर्ण कथा को समझा जा सके. बस अच्छा और अभूतपूर्व लगता था इसलिये अगले लेख की प्रतीक्षा रहती थी. बाद मे श्रद्धेय डॉ0 नरेन्द्र कोहली के संपर्क मे आने के बाद उनकी अद्भुत महान कालजयी कृति महासमर के आठों खण्डों बंधन से निर्बन्ध तक पढ़ा तो एक नये जीवन दर्शन का बोध हुआ. श्रद्धेय कोहली जी की महासमर मात्र महाभारत की कथा न होकर मानव जीवन को संपूर्ण विराटता के साथ मौलिक रूप से प्रस्तुत करने का जीवन्त दर्शन है. जीवन के वास्तविक रूप से संबन्धित प्रश्नो का समाधान डा0 कोहली अनुभूति व तर्क के आधार पर देते हैं.सच तो यह है कि महासमर के बहाने आप महाभारत पढ़ने बैठेगें तो अपना जीवन पढ़ कर उठेगें. और महासमर के विस्तार के संबंध मे जहॉ तक मेरी समझ है , यह हिन्दी साहित्य का अब तक की विशालतम कृति है जिसकी तुलना लियो टालस्टाय के युद्ध व शांति से की जाती है.
       बहरहाल,  बात वर्तमान प्रसंग की, पिछले नवरात्रि मे महासमर के संपूर्ण नौ खण्डों को पढ़ने के बाद मेरी सोच बार बार आनुषंगिक पर ही रूक जाती थी, क्योंकि यह महासमर की भूमिका होने के साथ उसका समापन भी है व संपूर्णता भी. क्योंकि जहॉ यह महासमर की कथा को समझने का सूत्र है वही महासमर को पढ़ने के पश्चात उसका आवश्यक नेपथ्य भी. मैने पिछले शारदीय नवरात्रि से लेकर इस वासंतिक नवरात्रि के मध्य की अवधि मे आनुषंगिक को कई बार पढ़ा, और हर बार पढ़ने के पश्चात अपने मन मे उठ रहे महाभारत संबंधी जिग्यासा के साथ अपने जीवन की समस्याओं का समाधान भी पाया और कई बार आनुषंगिक पर कुछ लिखने को सोचा पर हर बार पात्रता के प्रश्न को लेकर मेरा विवेक सामने आ गया. सच कहे तो अभी भी मेरा स्वयं का विवेक इस तथ्य को स्वीकारने की अनुमति नही देता और न ही मै स्वयं को इस हेतुक उचित पात्र मानता हूँ. हॉ, संपूर्ण नवरात्रि व्रत होने का लाभ यह रहा कि इस नवरात्रि मे अपने चित्त की अंतर्यात्रा मे आनुषंगिक का परायण एक बार पुन: हो गया और व्यक्तिगत स्तर पर मैने यह महसूस किया कि महासमर पढ़ने के साथ आनुषंगिक पढ़ना अावश्यक ही नही अनिवार्य हो जाता है क्योंकि महासमर लिखते समय कोहली साहब के मन मे कौन कौन सी समस्याएं और कौन कौन से प्रश्न थे? किसी घटना अथवा चरित्र को वर्तमान रूप मे प्रस्तुत करने का क्या कारण था?वही प्रश्न और समस्यायें महासमर पढ़ते समय हमारे समक्ष भी खड़े होते है और इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिये स्वयं लेखक से उचित व्यक्ति कोई नही हो सकता. वस्तुतः यह लेखक के सृजन प्रक्रिया के गवाक्ष खोलने जैसा ही है. महाभारत की मूल कथा के साथ साथ लेखक के कृतित्व को समझने के लिये आनुषंगिक को पढ़ना आवश्यक है. सो मैने पुनरावृत्ति की प्रक्रिया मे आनुषंगिक का पुन: अनुशीलन किया , इस बार के अनुशीलन मे श्रद्धेय डॉ0 कोहली की अद्य प्रकाशित श्रीमद्भागवतगीता पर लिखी गई रचना "शरणम्" ने इसमे सहयोगी व संपूरक की भूमिका निभाई.
    आनुषंगिक मूलत: चार खण्डों मे लिखी गई थी जो पूर्व मे जहॉ है धर्म वहीं है जय मे प्रकाशित हो चुके है साथ ही इसमे डॉ0 कोहली द्वारा 29 मार्च 2008 को नार्वे के नेशनल थियेटर ओस्लो मे पढ़ा गया पत्र " महाभारत की प्रासंगिकता" को सम्मिलित किया गया है जो स्वयं अपने आप मे महाभारत का मनोवैज्ञानिक चित्रण व वर्तमान मे महाभारत के सिद्धांतों का व्यवहारिक रूप सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है. वर्तमान परिस्थिति मे मानव स्वभाव व स्वारथ के आधार पर उद्धरण देते हुये जिस तरह से महाभारत की वर्तमान व्यवहारिकता बताई गई है वह स्वयं अपने आप मे किसी पुस्तक के अन्तर्वस्तु से कम नही है. प्रथम खण्ड मे महाभारत की रचना प्रक्रिया, द्वितीय खण्ड मे महाभारत की कथा, उसकी कालावधि, पात्रों का कालखण्ड पर चुनाव, पात्रो का मनोवैज्ञानिक मनोविश्लेषण ,तृतीय खण्ड में महाभारत के मूल नायक की तलाश और चतुर्थ खण्ड मे महाभारत का ऐतहासिक, काव्यात्मक व आध्यात्मिक पक्ष पाठक के समक्ष कोई ऐसा प्रश्न छोड़ते ही नही जो अनसुलझा हो और यही महासमर का वह बीजतत्व है जो हमारे आपके जीवन, अध्यात्म व मनोविज्ञान के सारे गुत्थियों को सुलझा कर एक वास्तविक व सात्विक जीवनदर्शन देता है.
     संपूर्ण नवरात्रि के व्रत मे महासमर के अध्ययन ने जीवन मे सकारात्मकता के साथ जो जीवन दृष्टि दिया उसके लिये श्रद्धेय डॉ0 नरेन्द्र कोहली जी आभार.
व ईश्वर को इस महती कृपा हेतु नमन.
(बनारस, वासंतिक नवरात्रि अष्टमी, 4अप्रैल 2017, मंगलवार)
http://chitravansh.blogspot.in

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